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काइपर घेरा और प्लूटो (बौना ग्रह)

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

काइपर घेरा और प्लूटो (बौना ग्रह) के बीच अंतर

काइपर घेरा vs. प्लूटो (बौना ग्रह)

काइपर घेरे की ज्ञात वस्तुएँ - मुख्य घेरे की वस्तुएँ हरे रंग में, घेरे की बिखरी हुई वस्तुएँ नारंगी रंग में, सौर मण्डल के चार बाहरी ग्रह नीले रंग में, वरुण (नॅप्ट्यून) के इर्द-गिर्द की वस्तुएँ पीले रंग में और बृहस्पति के इर्द-गिर्द की वस्तुएँ गुलाबी रंग में दिखाई गयी हैं काइपर घेरा, काइपर-ऍजवर्थ घेरा या काइपर बॅल्ट हमारे सौर मण्डल का एक बाहरी क्षेत्र है जो वरुण ग्रह (नॅप्ट्यून) की कक्षा (जो सूरज से लगभग ३० खगोलीय इकाई दूर है) से लेकर सूर्य से ५५ ख॰इ॰ तक फैला हुआ है। क्षुद्रग्रह घेरे की तरह इसमें भी हज़ारों-लाखों छोटी-बड़ी खगोलीय वस्तुएँ हैं जो सौर मण्डल के ग्रहों के सृजनात्मक दौर से बची हुई रह गयी। काइपर घेरा का क्षेत्र क्षुद्रग्रह घेरे के क्षेत्र से २० गुना चौड़ा और २०० गुना ज़्यादा फैला हुआ है। जहाँ क्षुद्रग्रह घेरे की वस्तुएँ पत्थर और धातुओं की बनी हुई हैं, वहाँ काइपर घेरे की वस्तुएँ सर्दी की सख्ती से जमे हुए पानी, मीथेन और अमोनिया की मिली-जुली बर्फ़ों की बनी हुई हैं। सौर मण्डल के ज्ञात बौने ग्रहों में से तीन - यम, हउमेया और माकेमाके - काइपर घेरे के निवासी हैं। वैज्ञानिकों का यह भी मानना है के सौर मण्डल के कुछ प्राकृतिक उपग्रह भी इसी घेरे में जन्मे और घुमते-फिरते अपने ग्रहों के निटक पहुँच कर उनके गुरुत्वाकर्षण में फँस कर उनकी परिक्रमा करने लगे, जैसे की वरुण (नॅप्ट्यून) का उपग्रह ट्राइटन और शनि का उपग्रह फ़ीबी। काइपर घेरे का नाम डच-अमेरिकी खगोलशास्त्री जेरार्ड काइपर के नाम पर रखा गया हालाँकि, वास्तव में खुद उन्होंने इसके अस्तित्व की भविष्यवाणी नहीं की थी। वर्ष 1992 में, यम के बाद खोजा जाने वाला पहला काइपर घेरा वस्तु (केबीओ) था। इसकी खोज के बाद से अब तक, ज्ञात काइपर घेरा वस्तुओं (केबीओ'स) की संख्या हज़ार से अधिक हो चुकी है और से अधिक व्यास वाले 1,00,000 से अधिक केबीओ'स के होने का अनुमान है। प्रारम्भ में यह सोचा गया था कि काइपर बेल्ट ही उन सावधिक धूमकेतुओं का भण्डार है जिनकी कक्षायें 200 सालों से कम अवधि वाली हैं। हालाँकि, नब्बे के दशक के बाद के अध्ययनों ने दर्शाया है कि यह घेरा गतिशीलता की दृष्टि से स्थायित्व वाला है, और धूमकेतुओं की उत्पत्ति का वास्तविक स्थल एक प्रकीर्ण डिस्क है जो नेपच्यून की बहिर्मुखी गति द्वारा 4.5 बिलियन वर्ष पूर्व निर्मित, गतिशीलता के दृष्टि से एक सक्रिय मंडल है; इस प्रकीर्ण डिस्क के कुछ पिण्डों, जैसे कि ऍरिस इत्यादि, की विकेन्द्रता अत्यंत अधिक है और वे अपने परिक्रमा पथ में सूर्य से 100 AU तक की दूरी तक भी चले जाते हैं। . यम या प्लूटो सौर मण्डल का दुसरा सबसे बड़ा बौना ग्रह है (सबसे बड़ा ऍरिस है)। प्लूटो को कभी सौर मण्डल का सबसे बाहरी ग्रह माना जाता था, लेकिन अब इसे सौर मण्डल के बाहरी काइपर घेरे की सब से बड़ी खगोलीय वस्तु माना जाता है। काइपर घेरे की अन्य वस्तुओं की तरह प्लूटो का अकार और द्रव्यमान काफ़ी छोटा है - इसका आकार पृथ्वी के चन्द्रमा से सिर्फ़ एक-तिहाई है। सूरज के इर्द-गिर्द इसकी परिक्रमा की कक्षा भी थोड़ी बेढंगी है - यह कभी तो वरुण (नॅप्टयून) की कक्षा के अन्दर जाकर सूरज से ३० खगोलीय इकाई (यानि ४.४ अरब किमी) दूर होता है और कभी दूर जाकर सूर्य से ४५ ख॰ई॰ (यानि ७.४ अरब किमी) पर पहुँच जाता है। प्लूटो काइपर घेरे की अन्य वस्तुओं की तरह अधिकतर जमी हुई नाइट्रोजन की बर्फ़, पानी की बर्फ़ और पत्थर का बना हुआ है। प्लूटो को सूरज की एक पूरी परिक्रमा करते हुए २४८.०९ वर्ष लग जाते हैं। .

काइपर घेरा और प्लूटो (बौना ग्रह) के बीच समानता

काइपर घेरा और प्लूटो (बौना ग्रह) आम में 12 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): ऍरिस (बौना ग्रह), बौना ग्रह, माकेमाके (बौना ग्रह), मिथेन, सौर मण्डल, सूर्य, हउमेया (बौना ग्रह), वरुण (ग्रह), खगोलीय वस्तु, खगोलीय इकाई, गुरुत्वाकर्षण, कक्षा (भौतिकी)

ऍरिस (बौना ग्रह)

हबल अंतरिक्ष दूरबीन द्वारा ली गई ऍरिस और डिस्नोमिया की तस्वीर - ऍरिस बड़ा वाला गोला है ऍरिस हमारे सौर मण्डल का सब से बड़ा ज्ञात बौना ग्रह है। अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ द्वारा रखा गया इसका औपचारिक नाम "१३६११९ ऍरिस" है। ऍरिस हमारे सौर मण्डल में सूरज की परिक्रमा करती सभी ज्ञात खगोलीय वस्तुओं में से नौवी सबसे बड़ी वस्तु है। इसका व्यास (डायामीटर) २,३००-२,४०० किमी अनुमानित किया जाता है। इसका द्रव्यमान (मास) यम (प्लूटो) से २७% ज़्यादा और पृथ्वी के द्रव्यमान का केवल ०.२७% है। ऍरिस की खोज सन् २००५ में की गयी थी। यह एक वरुण-पार वस्तु है (यानि वरुण (नॅप्टयून) की कक्षा से भी बाहार है)। ऍरिस सूरज से बेहद दूर है और काइपर घेरे से भी बाहर एक बिखरे चक्र नाम के क्षेत्र में स्थित है। २०११ में यह सूरज से ९६.६ खगोलीय इकाई की दूरी पर था, जो प्लूटो से भी तीन गुना अधिक है। ऍरिस के इर्द-गिर्द इसका उपग्रह डिस्नोमिया परिक्रमा करता है। आज की तारीख़ में ऍरिस और डिस्नोमिया हमारे सौर मण्डल की सब से दूरी पर स्थित प्राकृतिक वस्तुएँ हैं। .

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बौना ग्रह

हउमेया और उसके उपग्रहों (हिइआका और नामाका) का काल्पनिक चित्रण माकेमाके का काल्पनिक चित्रण डिस्नोमिया की तस्वीर हमारे सौरमण्डल में पाँच ज्ञात बौने ग्रह है: १) यम (प्लूटो) २) सीरीस ३) हउमेया ४) माकेमाके ५) ऍरिस श्रेणी:सौर मंडल श्रेणी:बौने ग्रह.

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माकेमाके (बौना ग्रह)

माकेमाके का काल्पनिक चित्रण हबल अंतरिक्ष दूरबीन से ली गई माकेमाके की तस्वीर माकेमाके हमारे सौर मण्डल के काइपर घेरे में स्थित एक बौना ग्रह है। अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ द्वारा रखा गया इसका औपचारिक नाम "१३६४७२ माकेमाके" है। यह हमारे सौर मण्डल का तीसरा सब से बड़ा बौना ग्रह है और इसका औसत व्यास (डायामीटर) १,३६० से १,४८० किमी के आसपास अनुमानित है, यानि यम (प्लूटो) का लगभग तीन-चौथाई। माकेमाके का कोई ज्ञात उपग्रह नहीं, जो काइपर घेरे की बड़ी वस्तुओं में असामान्य बात है। इसकी खोज २००५ में हुई थी। .

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मिथेन

मिथेन अल्केन श्रेणी का प्रथम सदस्य है। यह सबसे साधारण हाइड्रोकार्बन है। .

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सौर मण्डल

सौर मंडल में सूर्य और वह खगोलीय पिंड सम्मलित हैं, जो इस मंडल में एक दूसरे से गुरुत्वाकर्षण बल द्वारा बंधे हैं। किसी तारे के इर्द गिर्द परिक्रमा करते हुई उन खगोलीय वस्तुओं के समूह को ग्रहीय मण्डल कहा जाता है जो अन्य तारे न हों, जैसे की ग्रह, बौने ग्रह, प्राकृतिक उपग्रह, क्षुद्रग्रह, उल्का, धूमकेतु और खगोलीय धूल। हमारे सूरज और उसके ग्रहीय मण्डल को मिलाकर हमारा सौर मण्डल बनता है। इन पिंडों में आठ ग्रह, उनके 166 ज्ञात उपग्रह, पाँच बौने ग्रह और अरबों छोटे पिंड शामिल हैं। इन छोटे पिंडों में क्षुद्रग्रह, बर्फ़ीला काइपर घेरा के पिंड, धूमकेतु, उल्कायें और ग्रहों के बीच की धूल शामिल हैं। सौर मंडल के चार छोटे आंतरिक ग्रह बुध, शुक्र, पृथ्वी और मंगल ग्रह जिन्हें स्थलीय ग्रह कहा जाता है, मुख्यतया पत्थर और धातु से बने हैं। और इसमें क्षुद्रग्रह घेरा, चार विशाल गैस से बने बाहरी गैस दानव ग्रह, काइपर घेरा और बिखरा चक्र शामिल हैं। काल्पनिक और्ट बादल भी सनदी क्षेत्रों से लगभग एक हजार गुना दूरी से परे मौजूद हो सकता है। सूर्य से होने वाला प्लाज़्मा का प्रवाह (सौर हवा) सौर मंडल को भेदता है। यह तारे के बीच के माध्यम में एक बुलबुला बनाता है जिसे हेलिओमंडल कहते हैं, जो इससे बाहर फैल कर बिखरी हुई तश्तरी के बीच तक जाता है। .

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सूर्य

सूर्य अथवा सूरज सौरमंडल के केन्द्र में स्थित एक तारा जिसके चारों तरफ पृथ्वी और सौरमंडल के अन्य अवयव घूमते हैं। सूर्य हमारे सौर मंडल का सबसे बड़ा पिंड है और उसका व्यास लगभग १३ लाख ९० हज़ार किलोमीटर है जो पृथ्वी से लगभग १०९ गुना अधिक है। ऊर्जा का यह शक्तिशाली भंडार मुख्य रूप से हाइड्रोजन और हीलियम गैसों का एक विशाल गोला है। परमाणु विलय की प्रक्रिया द्वारा सूर्य अपने केंद्र में ऊर्जा पैदा करता है। सूर्य से निकली ऊर्जा का छोटा सा भाग ही पृथ्वी पर पहुँचता है जिसमें से १५ प्रतिशत अंतरिक्ष में परावर्तित हो जाता है, ३० प्रतिशत पानी को भाप बनाने में काम आता है और बहुत सी ऊर्जा पेड़-पौधे समुद्र सोख लेते हैं। इसकी मजबूत गुरुत्वाकर्षण शक्ति विभिन्न कक्षाओं में घूमते हुए पृथ्वी और अन्य ग्रहों को इसकी तरफ खींच कर रखती है। सूर्य से पृथ्वी की औसत दूरी लगभग १४,९६,००,००० किलोमीटर या ९,२९,६०,००० मील है तथा सूर्य से पृथ्वी पर प्रकाश को आने में ८.३ मिनट का समय लगता है। इसी प्रकाशीय ऊर्जा से प्रकाश-संश्लेषण नामक एक महत्वपूर्ण जैव-रासायनिक अभिक्रिया होती है जो पृथ्वी पर जीवन का आधार है। यह पृथ्वी के जलवायु और मौसम को प्रभावित करता है। सूर्य की सतह का निर्माण हाइड्रोजन, हिलियम, लोहा, निकेल, ऑक्सीजन, सिलिकन, सल्फर, मैग्निसियम, कार्बन, नियोन, कैल्सियम, क्रोमियम तत्वों से हुआ है। इनमें से हाइड्रोजन सूर्य के सतह की मात्रा का ७४ % तथा हिलियम २४ % है। इस जलते हुए गैसीय पिंड को दूरदर्शी यंत्र से देखने पर इसकी सतह पर छोटे-बड़े धब्बे दिखलाई पड़ते हैं। इन्हें सौर कलंक कहा जाता है। ये कलंक अपने स्थान से सरकते हुए दिखाई पड़ते हैं। इससे वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला है कि सूर्य पूरब से पश्चिम की ओर २७ दिनों में अपने अक्ष पर एक परिक्रमा करता है। जिस प्रकार पृथ्वी और अन्य ग्रह सूरज की परिक्रमा करते हैं उसी प्रकार सूरज भी आकाश गंगा के केन्द्र की परिक्रमा करता है। इसको परिक्रमा करनें में २२ से २५ करोड़ वर्ष लगते हैं, इसे एक निहारिका वर्ष भी कहते हैं। इसके परिक्रमा करने की गति २५१ किलोमीटर प्रति सेकेंड है। Barnhart, Robert K. (1995) The Barnhart Concise Dictionary of Etymology, page 776.

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हउमेया (बौना ग्रह)

हउमेया और उसके उपग्रहों (हिइआका और नामाका) का काल्पनिक चित्रण हउमेया हमारे सौर मण्डल के काइपर घेरे में स्थित एक बौना ग्रह है। अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ द्वारा रखा गया इसका औपचारिक नाम "१३६१०८ हउमेया" है। यह हमारे सौर मण्डल का चौथा सब से बड़ा बौना ग्रह है और इसका द्रव्यमान यम (प्लूटो) का एक-तिहाई है। हउमेया का औसत व्यास (डायामीटर) लगभग १,४३६ किमी है। इसकी खोज २००४ में की गयी थी। हउमेया का आकार सारे ज्ञात बौने ग्रहों में अनूठा है - जहाँ बाक़ी सब गोल हैं यह एक पिचका हुआ गोला है। हउमेया की चौड़ाई उसकी लम्बाई से दो गुना ज़्यादा है। इसके इस अजीब आकार के साथ-साथ इसमें कुछ और भी भिन्नताएँ हैं - यह बहुत तेज़ी से अपने घूर्णन अक्ष (ऐक्सिस) पर घूमता है और इसका घनत्व बाहरी सौर मण्डल के अन्य बौने ग्रहों से अधिक है। इन विशेषताओं को देखकर लगता है के हउमेया अतीत में किसी भयंकर टकराव का नतीजा है। .

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वरुण (ग्रह)

वरुण, नॅप्टयून या नॅप्चयून हमारे सौर मण्डल में सूर्य से आठवाँ ग्रह है। व्यास के आधार पर यह सौर मण्डल का चौथा बड़ा और द्रव्यमान के आधार पर तीसरा बड़ा ग्रह है। वरुण का द्रव्यमान पृथ्वी से १७ गुना अधिक है और अपने पड़ौसी ग्रह अरुण (युरेनस) से थोड़ा अधिक है। खगोलीय इकाई के हिसाब से वरुण की कक्षा सूरज से ३०.१ ख॰ई॰ की औसत दूरी पर है, यानि वरुण पृथ्वी के मुक़ाबले में सूरज से लगभग तीस गुना अधिक दूर है। वरुण को सूरज की एक पूरी परिक्रमा करने में १६४.७९ वर्ष लगते हैं, यानि एक वरुण वर्ष १६४.७९ पृथ्वी वर्षों के बराबर है। हमारे सौर मण्डल में चार ग्रहों को गैस दानव कहा जाता है, क्योंकि इनमें मिटटी-पत्थर की बजाय अधिकतर गैस है और इनका आकार बहुत ही विशाल है। वरुण इनमे से एक है - बाकी तीन बृहस्पति, शनि और अरुण (युरेनस) हैं। इनमें से अरुण की बनावट वरुण से बहुत मिलती-जुलती है। अरुण और वरुण के वातावरण में बृहस्पति और शनि के तुलना में बर्फ़ अधिक है - पानी की बर्फ़ के अतिरिक्त इनमें जमी हुई अमोनिया और मीथेन गैसों की बर्फ़ भी है। इसलिए कभी-कभी खगोलशास्त्री इन दोनों को "बर्फ़ीले गैस दानव" नाम की श्रेणी में डाल देते हैं। .

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खगोलीय वस्तु

आकाशगंगा सब से बड़ी खगोलीय वस्तुएँ होती हैं - एन॰जी॰सी॰ ४४१४ हमारे सौर मण्डल से ६ करोड़ प्रकाश-वर्ष दूर एक ५५,००० प्रकाश-वर्ष के व्यास की आकाशगंगा है खगोलीय वस्तु ऐसी वस्तु को कहा जाता है जो ब्रह्माण्ड में प्राकृतिक रूप से पायी जाती है, यानि जिसकी रचना मनुष्यों ने नहीं की होती है। इसमें तारे, ग्रह, प्राकृतिक उपग्रह, गैलेक्सी आदि शामिल हैं। .

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खगोलीय इकाई

खगोलीय इकाई (AU या au या a.u. या यद कदा ua) लम्बाई की इकाई है, जो लगभग 150 मिलियन किलोमीटर है और पृथ्वी से सूर्य की दूरी पर आधारित है। इसकी सही सही मान है 149,597,870,691 ± 30 मीटर (लगभग 150 मिलियन किलोमीटर या 93 मिलियन मील).

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गुरुत्वाकर्षण

गुरुत्वाकर्षण के कारण ही ग्रह, सूर्य के चारों ओर चक्कर लगा पाते हैं और यही उन्हें रोके रखती है। गुरुत्वाकर्षण (ग्रैविटेशन) एक पदार्थ द्वारा एक दूसरे की ओर आकृष्ट होने की प्रवृति है। गुरुत्वाकर्षण के बारे में पहली बार कोई गणितीय सूत्र देने की कोशिश आइजक न्यूटन द्वारा की गयी जो आश्चर्यजनक रूप से सही था। उन्होंने गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत का प्रतिपादन किया। न्यूटन के सिद्धान्त को बाद में अलबर्ट आइंस्टाइन द्वारा सापेक्षता सिद्धांत से बदला गया। इससे पूर्व वराह मिहिर ने कहा था कि किसी प्रकार की शक्ति ही वस्तुओं को पृथिवी पर चिपकाए रखती है। .

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कक्षा (भौतिकी)

दिक् में एक बिंदु के इर्द-गिर्द अपनी अलग-अलग कक्षाओं में परिक्रमा करती दो अलग आकारों की वस्तुएँ भौतिकी में कक्षा या ऑर्बिट दिक् (स्पेस) में स्थित एक बिंदु के इर्द-गिर्द एक मार्ग को कहते हैं जिसपर चलकर कोई वस्तु उस बिंदु की परिक्रमा करती है। खगोलशास्त्र में अक्सर उस बिंदु पर कोई बड़ा तारा या ग्रह स्थित होता है जिसके इर्द-गिर्द कोई छोटा ग्रह या उपग्रह अपनी कक्षा में उसकी परिक्रमा करता है। यदि खगोलीय वस्तुओं की कक्षाओं को देखा जाए तो कई भिन्न तरह की कक्षाएँ देखी जाती हैं - कुछ गोलाकार हैं, कुछ अण्डाकार हैं और कुछ इन से अधिक पेचीदा हैं। श्रेणी:भौतिकी श्रेणी:खगोलशास्त्र श्रेणी:हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना * श्रेणी:ज्योतिष पक्ष.

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काइपर घेरा और प्लूटो (बौना ग्रह) के बीच तुलना

काइपर घेरा 20 संबंध है और प्लूटो (बौना ग्रह) 40 है। वे आम 12 में है, समानता सूचकांक 20.00% है = 12 / (20 + 40)।

संदर्भ

यह लेख काइपर घेरा और प्लूटो (बौना ग्रह) के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें: