कांस्य युग और वाइटिस
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कांस्य युग और वाइटिस के बीच अंतर
कांस्य युग vs. वाइटिस
कांस्य युग उस काल को कहते हैं जिसमें मनुष्य ने तांबे (ताम्र) तथा उसकी रांगे के साथ मिश्रित धातु कांसे का इस्तेमाल किया। इतिहास में यह युग पाषाण युग तथा लौह युग के बीच में पड़ता है। पाषाण युग में मनुष्य की किसी भी धातु का खनन कर पाने की असमर्थता थी। कांस्य युग में लोहे की खोज नहीं हो पाई थी और लौह युग में तांबा, कांसा और लोहे के अलावा मनुष्य कुछ अन्य ठोस धातुओं की खोज तथा उनका उपयोग भी सीख गया था। कांस्य युग की विशेषता यह है कि मनुष्य शहरी सभ्यताओं में बसने लगा और इसी कारण से विश्व की कई जगहों में पौराणिक सभ्यताओं का विकास हुआ। इस युग की एक और ख़ास बात यह है कि विभिन्न सभ्यताओं में अलग-अलग लिपिओं का विकास हुआ जिनकी मदद से आज के पुरातत्व शास्त्रियों को उस युग के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य हासिल होते हैं। . वाइटिस (Vitis), जिसके सदस्यों को साधारण भाषा में अंगूरबेल (grapevine) कहा जाता है, सपुष्पक द्विबीजपत्री वनस्पतियों के वाइटेसिए कुल के अंतर्गत एक जीववैज्ञानिक वंश है। इस वंश में ७९ जीववैज्ञानिक जातियाँ आती हैं जो अधिकतर पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में उत्पन्न हुई हैं और लताओं के रूप में होती हैं। अंगूर इसका एक महत्वपूर्ण सदस्य है और उसके फल सीधे खाये जाते हैं और उसके रस को किण्वित (फ़रमेन्ट) कर के बड़े पैमाने पर हाला (वाइन) बनाई जाती है। अंगूरबेलों के पालन-पोषण और अंगूर-उत्पादन के अध्ययन को द्राक्षाकृषि (viticulture, विटिकल्चर) कहा जाता है। .
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संदर्भ
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