हम Google Play स्टोर पर Unionpedia ऐप को पुनर्स्थापित करने के लिए काम कर रहे हैं
🌟हमने बेहतर नेविगेशन के लिए अपने डिज़ाइन को सरल बनाया!
Instagram Facebook X LinkedIn

क़ुतुबुद्दीन मुबारक़ ख़िलजी और ख़िलजी वंश

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

क़ुतुबुद्दीन मुबारक़ ख़िलजी और ख़िलजी वंश के बीच अंतर

क़ुतुबुद्दीन मुबारक़ ख़िलजी vs. ख़िलजी वंश

दिल्ली सल्तनत के खिलजी वंश का शासक। कुतुब शाह ने सन १३१६ से १३२० तक दिल्ली में शासन किया। खुसरो खान नामक इसके एक विश्वास-पात्र ने इसकी हत्या करके सिन्हासन पर कब्जा किया। क़ुतुबुद्दीन मुबारक़ ख़िलजी 19 अप्रैल 1316 ई. को दिल्ली के सिंहासन पर बैठा था। उसने 1316 ई. से 1320 ई. तक राज्य किया। गद्दी पर बैठने के बाद ही उसने देवगिरि के राजा हरपाल देव पर चढ़ाई की और युद्ध में उसे परास्त किया तथा बाद में उसे बंदी बनाकर उसकी खाल उधड़वा दी। अपने शासन काल में उसने गुजरात के विद्रोह का भी दमन किया था। अपनी इन विजयों के कारण ही उसका दिमाग फिर गया। वह अपना समय सुरा तथा सुन्दरियों में बिताने लगा। उसकी इन विजयों के अतिरिक्त अन्य किसी भी विजय का वर्णन नहीं मिलता है। क़ुतुबुद्दीन मुबारक़ ख़िलजी ने अपने सैनिकों को छः माह का अग्रिम वेतन दिया था। विद्धानों एवं महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों की छीनी गयी जागीरें उन्हें वापस कर दीं। अलाउद्दीन ख़िलजी की कठोर दण्ड व्यवस्था एवं बाज़ार नियंत्रण आदि व्यवस्था को उसने समाप्त कर दिया था। क़ुतुबुद्दीन मुबारक़ ख़िलजी को नग्न स्त्री-पुरुषों की संगत पसन्द थी। अपनी इसी संगत के कारण कभी-कभी वह राज्य दरबार में स्त्री का वस्त्र पहन कर आ जाता था। 'बरनी' के अनुसार मुबारक कभी-कभी नग्न होकर दरबारियों के बीच दौड़ा करता था। उसने ‘अल इमाम’, ‘उल इमाम’ एवं ‘ख़िलाफ़़त-उल्लाह’ की उपाधियाँ धारण की थीं। उसने ख़िलाफ़़त के प्रति भक्ति को हटाकर अपने को ‘इस्लाम धर्म का सर्वोच्च प्रधान’ और ‘स्वर्ण तथा पृथ्वी के अधिपति का 'ख़लीफ़ा घोषित किया था। साथ ही उसने ‘अलवसिक विल्लाह’ की धर्म की प्रधान उपाधि भी धारण धारण की थी। . खिलजी वंश (سلطنت خلجی) या ख़लजी वंश मध्यकालीन भारत का एक राजवंश था। इसने दिल्ली की सत्ता पर १२९०-१३२० इस्वी तक राज किया। दिल्ली की मुस्लिम सल्तनत में दूसरा शासक परिवार था, हालांकि ख़िलजी क़बीला लंबे समय से अफ़ग़ानिस्तान में बसा हुआ था, लेकिन अपने पूर्ववर्ती गुलाम वंश की तरह यह राजवंश भी मूलत: तुर्किस्तान का था। इसके तीन शासक अपनी निष्ठाहीनता, निर्दयता और दक्षिण भारतीय हिंदू राज्यों पर अधिकार के लिए जाने जाते थे। ख़लजी वंश के पहले सुल्तान जलालुद्दीन फ़िरोज़ ख़लजी, गुलाम वंश के अंतिम कमज़ोर बादशाह क्यूमर्श के पतन के बाद एक कुलीन गुट के सहयोग से गद्दी पर बैठे। जलालुद्देन उम्र में काफ़ी बड़े थे और अफ़ग़ानी क़बीले का माने जाने के कारण एक समय वह इतने अलोकप्रिय थे कि राजधानी में घुसने तक का साहस नहीं कर सकते थे। उनके भतीजे जूना ख़ां ने दक्कन के हिन्दू राज्य पर चढ़ाई करके एलिचपुर और उसके ख़ज़ाने पर क़ब्ज़ा कर लिया और फिर 1296 में वापस लौटकर उन्होंने अपने चाचा की हत्या कर दी। जूना ख़ां ने अलाउद्दीन ख़लजी की उपाधि धारण कर 20 वर्ष तक शासन किया। उन्होंने रणथंभौर (1301), चित्तौड़ (1303) और मांडू (1305) पर क़ब्ज़ा किया और देवगिरि के समृद्ध हिन्दू राज्य को अपने राज्य में मिला लिया। उन्होंने मंगोलों के आक्रमण का भी मुंहतोड़ जवाब दिया। अलाउद्दीन के सेनापति मलिक काफूर को 1308 में दक्षिण पर क़ब्ज़ा कर लिया, कृष्णा नदी के दक्षिण में होयसल वंश को उखाड़ फेंका और सुदूर दक्षिण में मदुरै पर अधिकार कर लिया। जब 1311 में मलिक काफूर दिल्ली लौटे, तो वह लूट के माल से लदे थे। इसके बाद अलाउद्दीन और वंश का सितारा डूब गया। 1316 के आरंभ में सुल्तान की मृत्यु हो गई। मलिक काफूर द्वारा सत्ता पर क़ाबिज़ होने की कोशिश उनकी मृत्यु के साथ ही समाप्त हुई। अंतिम ख़लजी शासक कुतुबुद्दीन मुबारक शाह की उनके प्रधानमंत्री खुसरो ख़ां ने 1320 में हत्या कर दी। बाद में तुग़लक वंश के प्रथम शासक ग़यासुद्दीन तुग़लक़ ने खुसरो ख़ां से गद्दी छेन ली। .

क़ुतुबुद्दीन मुबारक़ ख़िलजी और ख़िलजी वंश के बीच समानता

क़ुतुबुद्दीन मुबारक़ ख़िलजी और ख़िलजी वंश आम में एक बात है (यूनियनपीडिया में): अलाउद्दीन खिलजी

अलाउद्दीन खिलजी

अलाउद्दीन खिलजी (वास्तविक नाम अली गुरशास्प 1296-1316) दिल्ली सल्तनत के खिलजी वंश का दूसरा शासक था। उसका साम्राज्य अफगानिस्तान से लेकर उत्तर-मध्य भारत तक फैला था। इसके बाद इतना बड़ा भारतीय साम्राज्य अगले तीन सौ सालों तक कोई भी शासक स्थापित नहीं कर पाया था। मेवाड़ चित्तौड़ का युद्धक अभियान इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है। ऐसा माना जाता है कि वो चित्तौड़ की रानी पद्मिनी की सुन्दरता पर मोहित था। इसका वर्णन मलिक मुहम्मद जायसी ने अपनी रचना पद्मावत में किया है। उसके समय में उत्तर पूर्व से मंगोल आक्रमण भी हुए। उसने उसका भी डटकर सामना किया। अलाउद्दीन ख़िलजी के बचपन का नाम अली 'गुरशास्प' था। जलालुद्दीन खिलजी के तख्त पर बैठने के बाद उसे 'अमीर-ए-तुजुक' का पद मिला। मलिक छज्जू के विद्रोह को दबाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने के कारण जलालुद्दीन ने उसे कड़ा-मनिकपुर की सूबेदारी सौंप दी। भिलसा, चंदेरी एवं देवगिरि के सफल अभियानों से प्राप्त अपार धन ने उसकी स्थिति और मज़बूत कर दी। इस प्रकार उत्कर्ष पर पहुँचे अलाउद्दीन खिलजी ने अपने चाचा जलालुद्दीन की हत्या धोखे से 22 अक्टूबर 1296 को खुद से गले मिलते समय अपने दो सैनिकों (मुहम्मद सलीम तथा इख़्तियारुद्दीन हूद) द्वारा करवा दी। इस प्रकार उसने अपने सगे चाचा जो उसे अपने औलाद की भांति प्रेम करता था के साथ विश्वासघात कर खुद को सुल्तान घोषित कर दिया और दिल्ली में स्थित बलबन के लालमहल में अपना राज्याभिषेक 22 अक्टूबर 1296 को सम्पन्न करवाया। .

अलाउद्दीन खिलजी और क़ुतुबुद्दीन मुबारक़ ख़िलजी · अलाउद्दीन खिलजी और ख़िलजी वंश · और देखें »

सूची के ऊपर निम्न सवालों के जवाब

क़ुतुबुद्दीन मुबारक़ ख़िलजी और ख़िलजी वंश के बीच तुलना

क़ुतुबुद्दीन मुबारक़ ख़िलजी 3 संबंध है और ख़िलजी वंश 6 है। वे आम 1 में है, समानता सूचकांक 11.11% है = 1 / (3 + 6)।

संदर्भ

यह लेख क़ुतुबुद्दीन मुबारक़ ख़िलजी और ख़िलजी वंश के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें: