कहरुवा और शल्कपंखी गण
शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ।
कहरुवा और शल्कपंखी गण के बीच अंतर
कहरुवा vs. शल्कपंखी गण
मालाओं में लगे कहरुवे कहरुवा या तृणमणि (जर्मन: Bernstein, फ्रेंच: ambre, स्पेनिश: ámbar, अंग्रेज़ी: amber, ऐम्बर) वृक्ष की ऐसी गोंद (सम्ख़ या रेज़िन) को कहते हैं जो समय के साथ सख़्त होकर पत्थर बन गई हो। दूसरे शब्दों में, यह जीवाश्म रेजिन है। यह देखने में एक कीमती पत्थर की तरह लगता है और प्राचीनकाल से इसका प्रयोग आभूषणों में किया जाता रहा है। इसका इस्तेमाल सुगन्धित धूपबत्तियों और दवाइयों में भी होता है। क्योंकि यह आरम्भ में एक पेड़ से निकला गोंदनुमा सम्ख़ होता है, इसलिए इसमें अक्सर छोटे से कीट या पत्ते-टहनियों के अंश भी रह जाते हैं। जब कहरुवे ज़मीन से निकाले जाते हैं जो वह हलके पत्थर के डले से लगते हैं। फिर इनको तराशकर इनकी मालिश की जाती है जिस से इनका रंग और चमक उभर आती है और इनके अन्दर झाँककर देखा जा सकता है। क्योंकि कहरुवे किसी भी सम्ख़ की तरह हाइड्रोकार्बन के बने होते हैं, इन्हें जलाया जा सकता है।, Faya Causey, Getty Publications, 2012, ISBN 978-1-60606-082-7,... एलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी द्वारा २०० गुना आवर्धित करके देखने पर शल्क (स्केल) का दृष्य शल्कपंखी या लेपिडॉप्टेरा (Lepidoptera), कीटों का एक विशाल गण है, जिसमें तितलियाँ एवं शलभ (moths) के अतिरिक्त बहुत से कीट सम्मिलित हैं। कीटों के वर्गीकरण के लिए लेपिडॉप्टेरा शब्द का उपयोग सर्वप्रथम लिनिअस (Linnaeus) ने किया। यह शब्द लैटिन के लेपिडॉस (lepidos .
कहरुवा और शल्कपंखी गण के बीच समानता
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संदर्भ
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