कवि और शार्ङ्गधर
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कवि और शार्ङ्गधर के बीच अंतर
कवि vs. शार्ङ्गधर
कवि वह है जो भावों को रसाभिषिक्त अभिव्यक्ति देता है और सामान्य अथवा स्पष्ट के परे गहन यथार्थ का वर्णन करता है। इसीलिये वैदिक काल में ऋषय: मन्त्रदृष्टार: कवय: क्रान्तदर्शिन: अर्थात् ऋषि को मन्त्रदृष्टा और कवि को क्रान्तदर्शी कहा गया है। "जहाँ न पहुँचे रवि, वहाँ पहुँचे कवि" इस लोकोक्ति को एक दोहे के माध्यम से अभिव्यक्ति दी गयी है: "जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ, कवि पहुँचे तत्काल। दिन में कवि का काम क्या, निशि में करे कमाल।।" ('क्रान्त' कृत मुक्तकी से साभार) . शार्ङ्गधर मध्यकाल के एक आयुर्वेदाचार्य थे जिन्होने शार्ङ्गधरसंहिता नामक आयुर्वैदिक ग्रन्थ की रचना की। शार्ङ्गधर का जन्म समय १३वीं-१४वीं सदी के आसपास माना गया है। शार्ङ्गधरसंहिता में ग्रन्थकार ने कुछ ही जगह अपने नामों का उल्लेख किया है। इनके पिता पुरातत्ववेत्ता थे जिनका नाम दामोदर एवं पितामह का नाम राघवदेव था। आचार्य शार्ङ्गधर केवल चिकित्साशास्त्र के मर्मज्ञ ही नहीं थे, अपितु कवित्व शक्ति से सम्पन्न एवं विविध शास्त्रों के ज्ञाता थे। आचार्य शार्ङ्गधर के नाम से दो प्रसिद्ध ग्रन्थ है (१) शार्ङ्गधरसंहिता (२) शार्ङ्गधरपद्धति। .
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संदर्भ
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