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कवि और पाब्लो नेरूदा

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

कवि और पाब्लो नेरूदा के बीच अंतर

कवि vs. पाब्लो नेरूदा

कवि वह है जो भावों को रसाभिषिक्त अभिव्यक्ति देता है और सामान्य अथवा स्पष्ट के परे गहन यथार्थ का वर्णन करता है। इसीलिये वैदिक काल में ऋषय: मन्त्रदृष्टार: कवय: क्रान्तदर्शिन: अर्थात् ऋषि को मन्त्रदृष्टा और कवि को क्रान्तदर्शी कहा गया है। "जहाँ न पहुँचे रवि, वहाँ पहुँचे कवि" इस लोकोक्ति को एक दोहे के माध्यम से अभिव्यक्ति दी गयी है: "जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ, कवि पहुँचे तत्काल। दिन में कवि का काम क्या, निशि में करे कमाल।।" ('क्रान्त' कृत मुक्तकी से साभार) . thumb पाब्लो नेरूदा(पाबलो नरूडा या पाब्लो नेरुदा) (१२ जुलाई १९०४-२३ सितंबर १९७३) का जन्म मध्य चीली के एक छोटे-से शहर पराल में हुआ था। उनका मूल नाम नेफ्ताली रिकार्दो रेइस बासोल्ता था। वे स्वभाव से कवि थे और उनकी लिखी कविताओं के विभिन्न रंग दुनिया ने देखे हैं। एक ओर उन्होंने उन्मत्त प्रेम की कविताएँ लिखी हैं दूसरी तरफ कड़ियल यथार्थ से ओतप्रोत। कुछ कविताएँ उनकी राजनीतिक विचारधारा की संवाहक नज़र आती हैं। उनका पहला काव्य संग्रह 'ट्वेंटी लव पोयम्स एंड ए साँग ऑफ़ डिस्पेयर' बीस साल की उम्र में ही प्रकाशित हो गया था। नेरूदा को विश्व साहित्य के शिखर पर विराजमान करने में योगदान सिर्फ उनकी कविताओं का ही नहीं बल्कि उनके बहुआयामी व्यक्तित्व का भी था। वो सिर्फ़ एक कवि ही नहीं बल्कि राजनेता और कूटनीतिज्ञ भी थे और लगता है वो जब भी क़दम उठाते थे रोमांच से भरी कोई गली कोई सड़क सामने होती थी। चिली के तानाशाहों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने के बाद उन्हें अपनी जान बचाने के लिए देश छोड़ना पड़ा। इटली में जहां शरण ली वहां भी प्रशासन के साथ आंख मिचौली खेलनी पड़ी। नेरूदा की विश्व प्रसिद्ध रचनाएँ 'माच्चु पिच्चु के शिखर' और 'कैंटो जनरल' ने विश्व के कई कवियों को प्रभावित किया और अशोक वाजपेयी मानते हैं कि उन्होंने पचास और साठ के दशक में भारतीय कवियों की सोच पर अपनी गहरी छाप छोड़ी थी। १९७० में चिली में सैलवाडॉर अलेंदे ने साम्यवादी सरकार बनाई जो विश्व की पहली लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई साम्यवादी सरकार थी। अलेंदे ने १९७१ में नेरूदा को फ़्रांस में चिली का राजदूत नियुक्त किया। और इसी वर्ष उन्हें साहित्य का नोबेल पुरस्कार भी मिला। १९७३ में चिली के सैनिक जनरल ऑगस्टो पिनोचे ने अलेंदे सरकार का तख्ता पलट दिया। इसी कार्रवाई में राष्ट्रपति अलेंदे की मौत हो गई और आने वाले दिनों में अलेंदे समर्थक हज़ारों आम लोगों को सेना ने मौत के घाट उतार दिया। कैंसर से बीमार नेरूदा चिली में अपने घर में बंद इस जनसंहार के ख़त्म होने की प्रार्थना करते रहे। लेकिन अलेंदे की मौत के १२ दिन बाद ही नेरूदा ने दम तोड़ दिया। सेना ने उनके घर तक को नहीं बख़्शा और वहाँ की हर चीज़ को तोड़ फोड़ कर एक कर दिया। परिणामस्वरूप इस घर से उनके कुछ दोस्त उनका जनाज़ा लेकर निकले। लेकिन सैनिक कर्फ़्यू के बावजूद हर सड़क के मोड़ पर आतंक और शोषण के ख़िलाफ़ लड़नेवाले इस सेनानी के हज़ारों चाहने वाले काफ़िले से जुड़ते चले गए। रुँधे हुए गलों से एक बार फिर उमड़ पड़ा साम्यवादी शक्ति का वो गीत जो नेरूदा ने कई बार इन लोगों के साथ मिल कर गाया था- "एकजुट लोगों को कोई ताक़त नहीं हरा सकती..." .

कवि और पाब्लो नेरूदा के बीच समानता

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कवि और पाब्लो नेरूदा के बीच तुलना

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संदर्भ

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