कवलाहार और मुनि
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कवलाहार और मुनि के बीच अंतर
कवलाहार vs. मुनि
कवलाहार मुनि के आहार का पर्यायवाची है। आगम में किए गए मुनि के आहार के छः भेद बताये गये हैं- नोकर्माहार, कर्माहार, कवलाहार, लेप्याहार, ओजाहार और मानसाहार। भगवतीसूत्र, गाथा २११ में मुनि का अधिकतम आहार ३२ और आर्यिका (साध्वी) का २८ कवल (कौर) बताया है। एक कवल का उत्कृष्ट प्रमाण ५० चावलों का भात है। ज्ञातव्य है कि मुनि का छठा बाह्य तप अवमौदर्य (खुराक से कम खाना) है। मूल मान्यता यही है कि केवली (जीवन्मुक्त) के कवलाहार नहीं होता है क्योंकि उनके शरीर की स्थिति के लिए नोकर्म-कर्माहार ही पर्याप्त होते हैं। उत्तर काल में सवस्त्र मुक्ति के समान केवली के कवलाहार की भी कल्पना की गई। फलत: कवलाहार दिगंबर तथा श्वेतांबर संप्रदायों की मुख्य तीन भिन्नताओं में से भी एक है। श्रेणी:जैन धर्म. राग-द्वेष-रहित संतों, साधुओं और ऋषियों को मुनि कहा गया है। मुनियों को यति, तपस्वी, भिक्षु और श्रमण भी कहा जाता है। भगवद्गीता में कहा है कि जिनका चित्त दु:ख से उद्विग्न नहीं होता, जो सुख की इच्छा नहीं करते और जो राग, भय और क्रोध से रहित हैं, ऐसे निश्चल बुद्धिवाले मुनि कहे जाते हैं। वैदिक ऋषि जंगल के कंदमूल खाकर जीवन निर्वाह करते थे। .
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संदर्भ
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