कर्कट रोग और जीन चिकित्सा के बीच समानता
कर्कट रोग और जीन चिकित्सा आम में 11 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): डीऑक्सीराइबो न्यूक्लिक अम्ल, प्रतिरक्षा प्रणाली, प्रतिजन, रोग, रोगजनक, जीन, जीनोम, वायरस, कोशिका, कोशिका केन्द्रक, उत्परिवर्तन।
डीऑक्सीराइबो न्यूक्लिक अम्ल
डीएनए के घुमावदार सीढ़ीनुमा संरचना के एक भाग की त्रिविम (3-D) रूप डी एन ए जीवित कोशिकाओं के गुणसूत्रों में पाए जाने वाले तंतुनुमा अणु को डी-ऑक्सीराइबोन्यूक्लिक अम्ल या डी एन ए कहते हैं। इसमें अनुवांशिक कूट निबद्ध रहता है। डी एन ए अणु की संरचना घुमावदार सीढ़ी की तरह होती है। डीएनए की एक अणु चार अलग-अलग रास वस्तुओं से बना है जिन्हें न्यूक्लियोटाइड कहते है। हर न्यूक्लियोटाइड एक नाइट्रोजन युक्त वस्तु है। इन चार न्यूक्लियोटाइडोन को एडेनिन, ग्वानिन, थाइमिन और साइटोसिन कहा जाता है। इन न्यूक्लियोटाइडोन से युक्त डिऑक्सीराइबोस नाम का एक शक्कर भी पाया जाता है। इन न्यूक्लियोटाइडोन को एक फॉस्फेट की अणु जोड़ती है। न्यूक्लियोटाइडोन के सम्बन्ध के अनुसार एक कोशिका के लिए अवश्य प्रोटीनों की निर्माण होता है। अतः डी इन ए हर एक जीवित कोशिका के लिए अनिवार्य है। डीएनए आमतौर पर क्रोमोसोम के रूप में होता है। एक कोशिका में गुणसूत्रों के सेट अपने जीनोम का निर्माण करता है; मानव जीनोम 46 गुणसूत्रों की व्यवस्था में डीएनए के लगभग 3 अरब आधार जोड़े है। जीन में आनुवंशिक जानकारी के प्रसारण की पूरक आधार बाँधना के माध्यम से हासिल की है। उदाहरण के लिए, एक कोशिका एक जीन में जानकारी का उपयोग करता है जब प्रतिलेखन में, डीएनए अनुक्रम डीएनए और सही आरएनए न्यूक्लियोटाइडों के बीच आकर्षण के माध्यम से एक पूरक शाही सेना अनुक्रम में नकल है। आमतौर पर, यह आरएनए की नकल तो शाही सेना न्यूक्लियोटाइडों के बीच एक ही बातचीत पर निर्भर करता है जो अनुवाद नामक प्रक्रिया में एक मिलान प्रोटीन अनुक्रम बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। वैकल्पिक भानुमति में एक कोशिका बस एक प्रक्रिया बुलाया डीएनए प्रतिकृति में अपने आनुवंशिक जानकारी कॉपी कर सकते हैं। डी एन ए की रूपचित्र की खोज अंग्रेजी वैज्ञानिक जेम्स वॉटसन और के द्वारा सन १९५३ में किया गया था। इस खोज के लिए उन्हें सन १९६२ में नोबेल पुरस्कार सम्मानित किया गया। .
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प्रतिरक्षा प्रणाली
A scanning electron microscope image of a single neutrophil (yellow), engulfing anthrax bacteria (orange). प्रतिरक्षा प्रणाली (Immune system) किसी जीव के भीतर होने वाली उन जैविक प्रक्रियाओं का एक संग्रह है, जो रोगजनकों और अर्बुद कोशिकाओं को पहले पहचान और फिर मार कर उस जीव की रोगों से रक्षा करती है। यह विषाणुओं से लेकर परजीवी कृमियों जैसे विभिन्न प्रकार के एजेंट की पहचान करने मे सक्षम होती है, साथ ही यह इन एजेंटों को जीव की स्वस्थ कोशिकाओं और ऊतकों से अलग पहचान सकती है, ताकि यह उन के विरुद्ध प्रतिक्रिया ना करे और पूरी प्रणाली सुचारु रूप से कार्य करे।। हिन्दुस्तान लाइव। २४ नवम्बर २००९ रोगजनकों की पहचान करना एक जटिल कार्य है क्योंकि रोगजनकों का रूपांतर बहुत तेजी से होता है और यह स्वयं का अनुकूलन इस प्रकार करते हैं कि प्रतिरक्षा प्रणाली से बचकर सफलतापूर्वक अपने पोषक को संक्रमित कर सकें। शरीर की प्रतिरक्षा-प्रणाली में खराबी आने से रोग में प्रवेश कर जाते हैं। प्रतिरक्षा-प्रणाली में खराबी को इम्यूनोडेफिशिएंसी कहते हैं। इम्यूनोडेफिशिएंसी या तो किसी आनुवांशिक रोग के कारण हो सकता है, या फिर कुछ खास दवाओं या संक्रमण के कारण भी संभव है। इसी का एक उदाहरण है एक्वायर्ड इम्यूनो डेफिशिएंसी सिंड्रोम (एड्स) जो एचआईवी वायरस के कारण फैलता है। ठीक इसके विपरीत स्वप्रतिरक्षित रोग (ऑटोइम्यून डिजीज) एक उत्तेजित ऑटो इम्यून सिस्टम के कारण होते हैं जो साधारण ऊतकों पर बाहरी जीव होने का संदेह कर उन पर आक्रमण करता है। प्रतिरक्षा प्रणाली के अध्ययन को प्रतिरक्षा विज्ञान (इम्म्यूनोलॉजी) का नाम दिया गया है। इसके अध्ययन में प्रतिरक्षा प्रणाली संबंधी सभी बड़े-छोटे कारणों की जांच की जाती है। इसमें प्रणाली पर आधारित स्वास्थ्य के लाभदायक और हानिकारक कारणों का ज्ञान किया जाता है। प्रतिरक्षा प्रणाली के क्षेत्र में खोज और शोध निरंतर जारी हैं एवं इससे संबंधित ज्ञान में निरंतर बढोत्तरी होती जा रही है। यह प्रणाली लगभग सभी उन्नत जीवों जैसे हरेक पौधे और जानवरों में मिलती मिलती है। प्रतिरक्षा प्रणाली के कई प्रतिरोधक (बैरियर) जीवों को बीमारियों से बचाते हैं, इनमें यांत्रिक, रसायन और जैव प्रतिरोधक होते हैं। .
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प्रतिजन
प्रतिजन प्रतिरक्षाविज्ञान में, प्रतिजन (antigen) किसी जीवधारी के शरीर में उपस्थित वे अणु हैं जो रोगों से लड़ने की क्षमता उत्पन्न करते हैं। दूसरे शब्दों में, कोई भी पदार्थ जो शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र को प्रतिपिण्ड उत्पन्न करने में सहायक होता है, उसको प्रतिजन कहते हैं। http://www.microbiologyinfo.com/antigen-properties-types-and-determinants-of-antigenicity/ श्रेणी:जीव विज्ञान श्रेणी:शब्दावली श्रेणी:सूक्ष्मजैविकी श्रेणी:जैव प्रौद्योगिकी श्रेणी:आण्विक जैविकी.
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रोग
पहले मोटापा को 'बड़प्पन' का सूचक माना जाता था। आजकल प्राय: इसे रोग माना जाता है। रोग अर्थात अस्वस्थ होना। यह चिकित्साविज्ञान का मूलभूत संकल्पना है। प्रायः शरीर के पूर्णरूपेण कार्य करने में में किसी प्रकार की कमी होना 'रोग' कहलाता है। किन्तु रोग की परिभाषा करना उतना ही कठिन है जितना 'स्वास्थ्य' को परिभाषित करना। .
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रोगजनक
पपीता के पत्ते के ऊपरी सतह पर 'ब्लैक स्पॉट' नामक रोग - यह ऐस्पेरिस्पोरिअम कैरिकी (Asperisporium caricae) नामक कवक के कारण होता है। रोगजनक (pathogen) उन्हें कहा जाता है, जिनके कारण कई तरह के बीमारियों का जन्म होता है। इसमें विषाणु, जीवाणु, कवक, परजीवी आदि आते हैं। यह किसी भी जीव, पेड़-पौधे या अन्य सूक्ष्म जीवों को बीमार कर सकते हैं। मानव में जीवों के कारण होने वाले रोग को भी रोगजनक रोगों के रूप में जाना जाता है। .
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जीन
गुणसूत्रों पर स्थित डी.एन.ए. (D.N.A.) की बनी वो अति सूक्ष्म रचनाएं जो अनुवांशिक लक्षणों का धारण एवं उनका एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानान्तरण करती हैं, जीन (gene) वंशाणु या पित्रैक कहलाती हैं। जीन, डी एन ए के न्यूक्लियोटाइडओं का ऐसा अनुक्रम है, जिसमें सन्निहित कूटबद्ध सूचनाओं से अंततः प्रोटीन के संश्लेषण का कार्य संपन्न होता है। यह अनुवांशिकता के बुनियादी और कार्यक्षम घटक होते हैं। यह यूनानी भाषा के शब्द जीनस से बना है। जीन आनुवांशिकता की मूलभूत शारीरिक इकाई है। यानि इसी में हमारी आनुवांशिक विशेषताओं की जानकारी होती है जैसे हमारे बालों का रंग कैसा होगा, आंखों का रंग क्या होगा या हमें कौन सी बीमारियां हो सकती हैं। और यह जानकारी, कोशिकाओं के केन्द्र में मौजूद जिस तत्व में रहती है उसे डी एन ए कहते हैं। जब किसी जीन के डीएनए में कोई स्थाई परिवर्तन होता है तो उसे म्यूटेशन याउत्परिवर्तन कहा जाता है। यह कोशिकाओं के विभाजन के समय किसी दोष के कारण पैदा हो सकता है या फिर पराबैंगनी विकिरण की वजह से या रासायनिक तत्व या वायरस से भी हो सकता है। .
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जीनोम
किसी भी जीव के डी एन ए में विद्यमान समस्त जीनों का अनुक्रम संजीन या जीनोम (Genome) कहलाता है। मानव जीनोम में अनुमानतः 80,000-1,00,000 तक जीन होते हैं। .
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वायरस
# कम्प्यूटर वायरस.
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कोशिका
कोशिका कोशिका (Cell) सजीवों के शरीर की रचनात्मक और क्रियात्मक इकाई है और प्राय: स्वत: जनन की सामर्थ्य रखती है। यह विभिन्न पदार्थों का वह छोटे-से-छोटा संगठित रूप है जिसमें वे सभी क्रियाएँ होती हैं जिन्हें सामूहिक रूप से हम जीवन कहतें हैं। 'कोशिका' का अंग्रेजी शब्द सेल (Cell) लैटिन भाषा के 'शेलुला' शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ 'एक छोटा कमरा' है। कुछ सजीव जैसे जीवाणुओं के शरीर एक ही कोशिका से बने होते हैं, उन्हें एककोशकीय जीव कहते हैं जबकि कुछ सजीव जैसे मनुष्य का शरीर अनेक कोशिकाओं से मिलकर बना होता है उन्हें बहुकोशकीय सजीव कहते हैं। कोशिका की खोज रॉबर्ट हूक ने १६६५ ई० में किया।"...
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कोशिका केन्द्रक
केन्द्रक का चित्र कोशिका विज्ञान में केन्द्रक (लातीनी व अंग्रेज़ी: nucleus, न्यूक्लियस) वनस्पतियों, प्राणियों और सुकेन्द्रिक जीवों की अधिकांश कोशिकाओं में एक झिल्ली द्वारा बंद एक भाग (या कोशिकांग) होता है। सुकेन्द्रिक जीवों की हर कोशिका में अधिकतर एक केन्द्रक होता है, लेकिन स्तनधारियों की लाल रक्त कोशिकाओं में कोई केन्द्रक नहीं होता और ओस्टियोक्लास्ट कोशिकाओं में कई केन्द्रक होते हैं। प्राणियों के केन्द्रकों का व्यास लगभग ६ माइक्रोमीटर होता है और यह उनकी कोशिकाओं का सबसे बड़ा कोशिकांग होता है। कोशिका केन्द्रकों में कोशिकाओं की अधिकांश आनुवंशिक सामग्री होती है, जो कई लम्बे डी॰ ऍन॰ ए॰ अणुओं में सम्मिलित होती है, जिनके रेशों कई प्रोटीनों के प्रयोग से गुण सूत्रों (क्रोमोज़ोमों) में संगठित होते हैं। इन गुण सूत्रों में उपस्थित जीन कोशिका का जीनोम होते हैं और कोशिका की प्रक्रियाओं को संचालित करते हैं। केन्द्रक इन जीनों को सुरक्षित रखता है और जीन व्यवहार संचालित करता है, यानि केन्द्रक कोशिका का नियंत्रणकक्ष होता है। पूरा केन्द्रक एक लिपिड द्विपरत की बनी झिल्ली द्वारा घिरा होता है जो केन्द्रक झिल्ली (nuclear membrane) कहलाती है और जो केन्द्रक के अन्दर की सामग्री को कोशिकाद्रव्य से पृथक रखता है। केन्द्रक के भीतर केन्द्रक आव्यूह (nuclear matrix) कहलाने वाला रेशों का ढांचा होता है जो केन्द्रक को आकार बनाए रखने के लिए यांत्रिक सहारा देता है, ठीक उसी तरह जैसे कोशिका कंकाल पूरी कोशिका को यांत्रिक सहारा देता है। .
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उत्परिवर्तन
जीन डी एन ए के न्यूक्लियोटाइडओं का ऐसा अनुक्रम है, जिसमें सन्निहित कूटबद्ध सूचनाओं से अंततः प्रोटीन के संश्लेषण का कार्य संपन्न होता है। यह अनुवांशिकता के बुनियादी और कार्यक्षम घटक होते हैं। यह यूनानी भाषा के शब्द जीनस से बना है। क्रोमोसोम पर स्थित डी.एन.ए. (D.N.A.) की बनी अति सूक्ष्म रचनाएं जो अनुवांशिक लक्षणें का धारण एंव एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानान्तरण करती हैं, उन्हें जीन (gene) कहते हैं। जीन आनुवांशिकता की मूलभूत शारीरिक इकाई है। यानि इसी में हमारी आनुवांशिक विशेषताओं की जानकारी होती है जैसे हमारे बालों का रंग कैसा होगा, आंखों का रंग क्या होगा या हमें कौन सी बीमारियां हो सकती हैं। और यह जानकारी, कोशिकाओं के केन्द्र में मौजूद जिस तत्व में रहती है उसे डीऐनए कहते हैं। जब किसी जीन के डीऐनए में कोई स्थाई परिवर्तन होता है तो उसे उत्परिवर्तन (म्यूटेशन) कहा जाता है। यह कोशिकाओं के विभाजन के समय किसी दोष के कारण पैदा हो सकता है या फिर पराबैंगनी विकिरण की वजह से या रासायनिक तत्व या वायरस से भी हो सकता है। प्रकृति के परिवर्तन में आण्विक डीएनए म्यूटेशन हो सकता है या नहीं कर सकते मापने में परिवर्तन के परिणामस्वरूप एक जावक जीव की उपस्थिति या कार्य है। .
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- यह आम कर्कट रोग और जीन चिकित्सा में है क्या
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कर्कट रोग और जीन चिकित्सा के बीच तुलना
कर्कट रोग 122 संबंध है और जीन चिकित्सा 25 है। वे आम 11 में है, समानता सूचकांक 7.48% है = 11 / (122 + 25)।
संदर्भ
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