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करुणाभरण नाटक और कृष्ण

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

करुणाभरण नाटक और कृष्ण के बीच अंतर

करुणाभरण नाटक vs. कृष्ण

करुणाभरण नाटक ब्रजभाषा का अत्यंत महत्वपूर्ण काव्यनाटक है। इसके रचयिता लछिराम हैं। कृष्णजीवन से संबंधित यह नाटक दोहा, चौपाई छंदों में लिखा गया है और विभिन्न अंगों में विभाजित है। अंगों का नामकरण राधा अवस्था, राधा मिलन आदि शीर्षकों में किया गया है। इसमें कृष्ण का, सूर्यग्रहण के अवसर पर, रुक्मिणी, सत्यभामा आदि के साथ कुरुक्षेत्र आना और वहीं नंद, यशोदा, राधा, गोपियों तथा गोपसमूह से उनका मिलन वर्णित है। करुणभरण का कथानक अत्यंत प्रौढ़ एवं नाट्यधर्मी है। पात्रों को मनोवैज्ञानिक भूमि पर प्रस्तुत किया गया है और उनका अंतर्द्वंद भी उभरकर सामने आता है। नाटक में मानसिक संघर्ष की अधिकता है। सत्यभामा की ईर्ष्या को केंद्रबिदु बनाकर कथानक का ताना बाना बुना गया है। भाषा सीधी सादी, सरस तथा सहज प्रवाहपूर्ण है। संवाद चुटीले हैं तथा वर्णन भी उबाऊ नहीं हैं। करुणाभरण नाटक के रचनाकाल को लेकर काफी मतभेद है। बाबू ब्रजरत्नदास (हिंदी नाट्य साहित्य, च.सं. पृ. 60) तथा डॉ॰ दशरथ ओझा इसका प्रणयनकाल 1772 वि. बाल कृष्ण का लड्डू गोपाल रूप, जिनकी घर घर में पूजा सदियों से की जाती रही है। कृष्ण भारत में अवतरित हुये भगवान विष्णु के ८वें अवतार और हिन्दू धर्म के ईश्वर हैं। कन्हैया, श्याम, केशव, द्वारकेश या द्वारकाधीश, वासुदेव आदि नामों से भी उनको जाना जाता हैं। कृष्ण निष्काम कर्मयोगी, एक आदर्श दार्शनिक, स्थितप्रज्ञ एवं दैवी संपदाओं से सुसज्ज महान पुरुष थे। उनका जन्म द्वापरयुग में हुआ था। उनको इस युग के सर्वश्रेष्ठ पुरुष युगपुरुष या युगावतार का स्थान दिया गया है। कृष्ण के समकालीन महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित श्रीमद्भागवत और महाभारत में कृष्ण का चरित्र विस्तुत रूप से लिखा गया है। भगवद्गीता कृष्ण और अर्जुन का संवाद है जो ग्रंथ आज भी पूरे विश्व में लोकप्रिय है। इस कृति के लिए कृष्ण को जगतगुरु का सम्मान भी दिया जाता है। कृष्ण वसुदेव और देवकी की ८वीं संतान थे। मथुरा के कारावास में उनका जन्म हुआ था और गोकुल में उनका लालन पालन हुआ था। यशोदा और नन्द उनके पालक माता पिता थे। उनका बचपन गोकुल में व्यतित हुआ। बाल्य अवस्था में ही उन्होंने बड़े बड़े कार्य किये जो किसी सामान्य मनुष्य के लिए सम्भव नहीं थे। मथुरा में मामा कंस का वध किया। सौराष्ट्र में द्वारका नगरी की स्थापना की और वहाँ अपना राज्य बसाया। पांडवों की मदद की और विभिन्न आपत्तियों में उनकी रक्षा की। महाभारत के युद्ध में उन्होंने अर्जुन के सारथी की भूमिका निभाई और भगवद्गीता का ज्ञान दिया जो उनके जीवन की सर्वश्रेष्ठ रचना मानी जाती है। १२५ वर्षों के जीवनकाल के बाद उन्होंने अपनी लीला समाप्त की। उनकी मृत्यु के तुरंत बाद ही कलियुग का आरंभ माना जाता है। .

करुणाभरण नाटक और कृष्ण के बीच समानता

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संदर्भ

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