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कम्युनिस्ट पार्टी का घोषणापत्र

सूची कम्युनिस्ट पार्टी का घोषणापत्र

साम्यवादी घोषणापत्र का प्रथम पृष्ठ कम्युनिस्ट पार्टी का घोषणापत्र (जर्मन: Manifest der Kommunistischen Partei) वैज्ञानिक कम्युनिज़्म का पहला कार्यक्रम-मूलक दस्तावेज़ है जिसमें मार्क्सवाद और साम्यवाद के मूल सिद्धान्तों की विवेचना की गयी है। यह महान ऐतिहासिक दस्तावेज़ वैज्ञानिक कम्युनिज़्म के सिद्धान्त के प्रवर्तक कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स ने तैयार किया था और २१ फ़रवरी सन् १८४८ को पहली बार जर्मन भाषा में प्रकाशित हुआ था। इसे प्राय: साम्यवादी घोषणापत्र (Communist manifesto) के नाम से जाना जाता है। यह संसार की सबसे प्रभावशाली राजनैतिक पाण्डुलिपियों में से एक है। इसमें (वर्तमान एवं आधुनिक) वर्ग संघर्ष तथा पूंजी की समस्यों की विश्लेषणात्मक विवेचन किया गया है (न कि साम्यवाद के भावी रूपों की भविष्यवाणी)। लेनिन के शब्दों में, यह छोटी-सी पुस्तिका अनेकानेक ग्रन्थों के बराबर है; उसकी आत्मा सभ्य संसार के समस्त संगठित और संघर्षशील सर्वहाराओं को प्रेरणा देती रही है और उनका मार्गदर्शन करती रही है। .

10 संबंधों: दास कैपिटल, प्रसिद्ध पुस्तकें, फ्रेडरिक एंगेल्स, मार्क्सवाद, साम्यवाद, जर्मन भाषा, वर्ग संघर्ष, व्लादिमीर लेनिन, वैज्ञानिक समाजवाद, कार्ल मार्क्स

दास कैपिटल

दास कैपिटल (Das Kapital; अर्थ - पूँजी) एक पुस्तक है जिसकी रचना कार्ल मार्क्स ने 1867 ई. में की थी। इसमें पूँजी एवं पूँजीवाद का विश्लेषण है तथा मजदूरवर्ग को शोषण से मुक्त करने के उपाय बताये गए हैं। इस पुस्तक के द्वारा एक सर्वथा नवीन विचारधारा प्रवाहित हुई जिसने संपूर्ण प्राचीन मान्यताओं को झकझोर कर हिला दिया। इस पुस्तक के प्रकाशित होने के कुछ ही वर्षों के बाद रूस में साम्यवादी क्रांति हुई। .

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प्रसिद्ध पुस्तकें

कोई विवरण नहीं।

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फ्रेडरिक एंगेल्स

फ्रेडरिक एंगेल्स (२८ नवंबर, १८२० – ५ अगस्त, १८९५ एक जर्मन समाजशास्त्री एवं दार्शनिक थे1 एंगेल्स और उनके साथी साथी कार्ल मार्क्स मार्क्सवाद के सिद्धांत के प्रतिपादन का श्रेय प्राप्त है। एंगेल्स ने 1845 में इंग्लैंड के मजदूर वर्ग की स्थिति पर द कंडीशन ऑफ वर्किंग क्लास इन इंग्लैंड नामक पुस्तक लिखी। उन्होंने मार्क्स के साथ मिलकर 1848 में कम्युनिस्ट घोषणापत्र की रचना की और बाद में अभूतपूर्व पुस्तक "पूंजी" दास कैपिटल को लिखने के लिये मार्क्स की आर्थिक तौर पर मदद की। मार्क्स की मौत हो जाने के बाद एंगेल्स ने पूंजी के दूसरे और तीसरे खंड का संपादन भी किया। एंगेल्स ने अतिरिक्त पूंजी के नियम पर मार्क्स के लेखों को जमा करने की जिम्मेदारी भी बखूबी निभाई और अंत में इसे पूंजी के चौथे खंड के तौर पर प्रकाशित किया गया। .

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मार्क्सवाद

सामाजिक राजनीतिक दर्शन में मार्क्सवाद (Marxism) उत्पादन के साधनों पर सामाजिक स्वामित्व द्वारा वर्गविहीन समाज की स्थापना के संकल्प की साम्यवादी विचारधारा है। मूलतः मार्क्सवाद उन आर्थिक राजनीतिक और आर्थिक सिद्धांतो का समुच्चय है जिन्हें उन्नीसवीं-बीसवीं सदी में कार्ल मार्क्स, फ्रेडरिक एंगेल्स और व्लादिमीर लेनिन तथा साथी विचारकों ने समाजवाद के वैज्ञानिक आधार की पुष्टि के लिए प्रस्तुत किया। .

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साम्यवाद

साम्यवाद, कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स द्वारा प्रतिपादित तथा साम्यवादी घोषणापत्र में वर्णित समाजवाद की चरम परिणति है। साम्यवाद, सामाजिक-राजनीतिक दर्शन के अंतर्गत एक ऐसी विचारधारा के रूप में वर्णित है, जिसमें संरचनात्मक स्तर पर एक समतामूलक वर्गविहीन समाज की स्थापना की जाएगी। ऐतिहासिक और आर्थिक वर्चस्व के प्रतिमान ध्वस्त कर उत्पादन के साधनों पर समूचे समाज का स्वामित्व होगा। अधिकार और कर्तव्य में आत्मार्पित सामुदायिक सामंजस्य स्थापित होगा। स्वतंत्रता और समानता के सामाजिक राजनीतिक आदर्श एक दूसरे के पूरक सिद्ध होंगे। न्याय से कोई वंचित नहीं होगा और मानवता एक मात्र जाति होगी। श्रम की संस्कृति सर्वश्रेष्ठ और तकनीक का स्तर सर्वोच्च होगा। साम्यवाद सिद्धांततः अराजकता का पोषक हैं जहाँ राज्य की आवश्यकता समाप्त हो जाती है। मूलतः यह विचार समाजवाद की उन्नत अवस्था को अभिव्यक्त करता है। जहाँ समाजवाद में कर्तव्य और अधिकार के वितरण को 'हरेक से अपनी क्षमतानुसार, हरेक को कार्यानुसार' (From each according to her/his ability, to each according to her/his work) के सूत्र से नियमित किया जाता है, वहीं साम्यवाद में 'हरेक से क्षमतानुसार, हरेक को आवश्यकतानुसार' (From each according to her/his ability, to each according to her/his need) सिद्धांत का लागू किया जाता है। साम्यवाद निजी संपत्ति का पूर्ण प्रतिषेध करता है। .

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जर्मन भाषा

विश्व के जर्मन भाषी क्षेत्र जर्मन भाषा (डॉयट्श) संख्या के अनुसार यूरोप की सब से अधिक बोली जाने वाली भाषा है। ये जर्मनी, स्विट्ज़रलैंड और ऑस्ट्रिया की मुख्य- और राजभाषा है। ये रोमन लिपि में लिखी जाती है (अतिरिक्त चिन्हों के साथ)। ये हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार में जर्मनिक शाखा में आती है। अंग्रेज़ी से इसका करीबी रिश्ता है। लेकिन रोमन लिपि के अक्षरों का इसकी ध्वनियों के साथ मेल अंग्रेज़ी के मुक़ाबले कहीं बेहतर है। आधुनिक मानकीकृत जर्मन को उच्च जर्मन कहते हैं। जर्मन भाषा भारोपीय परिवार के जर्मेनिक वर्ग की भाषा, सामान्यत: उच्च जर्मन का वह रूप है जो जर्मनी में सरकारी, शिक्षा, प्रेस आदि का माध्यम है। यह आस्ट्रिया में भी बोली जाती है। इसका उच्चारण १८९८ ई. के एक कमीशन द्वारा निश्चित है। लिपि, फ्रेंच और अंग्रेजी से मिलती-जुलती है। वर्तमान जर्मन के शब्दादि में अघात होने पर काकल्यस्पर्श है। तान (टोन) अंग्रेजी जैसी है। उच्चारण अधिक सशक्त एवं शब्दक्रम अधिक निश्चित है। दार्शनिक एवं वैज्ञानिक शब्दावली से परिपूर्ण है। शब्दराशि अनेक स्रोतों से ली गई हैं। उच्च जर्मन, केंद्र, उत्तर एवं दक्षिण में बोली जानेवाली अपनी पश्चिमी शाखा (लो जर्मन-फ्रिजियन, अंग्रेजी) से लगभग छठी शताब्दी में अलग होने लगी थी। भाषा की दृष्टि से "प्राचीन हाई जर्मन" (७५०-१०५०), "मध्य हाई जर्मन" (१३५० ई. तक), "आधुनि हाई जर्मन" (१२०० ई. के आसपास से अब तक) तीन विकास चरण हैं। उच्च जर्मन की प्रमुख बोलियों में यिडिश, श्विज्टुन्श, आधुनिक प्रशन स्विस या उच्च अलेमैनिक, फ्रंकोनियन (पूर्वी और दक्षिणी), टिपृअरियन तथा साइलेसियन आदि हैं। .

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वर्ग संघर्ष

वर्ग संघर्ष (Class struggle) मार्क्सवादी विचारधारा का प्रमुख तत्व है। मार्क्सवाद के शिल्पकार कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंजेल्स ने लिखा है, " अब तक विद्यमान सभी समाजों का लिखित इतिहास वर्ग संघर्ष का इतिहास है।" मार्क्स द्वारा प्रतिपादित वर्ग-संघर्ष का सिद्धांत ऐतिहासिक भौतिकवाद की ही उपसिधि है ओर साइर्थ ही यह अतिरिक्त मूल्य के सिद्धांत के अनुकूल है। मार्क्स ने आर्थिक नियतिवाद की सबसे महत्वपूर्ण अभिव्यक्ति इस बात में देखी है कि समाज मे सदैव ही विरोधी आर्थिक वर्गों का अस्तित्व रहा है। एक वर्ग वह है जिसके पास उत्पादन के साधनों का स्वामित्व है ओर दूसरा वह जो केवल शारिरिक श्रम करता है। पहला वर्ग सदैव ही दूसरे वर्ग का शोषण करता है। मार्क्स के अनुसार समाज के शोषक ओर शोषित - ये दो वर्ग सदा ही आपस मे संघर्षरत रहे हैं और इनमें समझोता कभी संभव नहीं है। .

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व्लादिमीर लेनिन

व्लादिमीर इलीइच उल्यानोव, जिन्हें लेनिन के नाम से भी जाना जाता है, (२२ अप्रैल १८७० – २१ जनवरी १९२४) एक रूसी साम्यवादी क्रान्तिकारी, राजनीतिज्ञ तथा राजनीतिक सिद्धांतकार थे। लेनिन को रूस में बोल्शेविक क्रांति के नेता के रूप में व्यापक पहचान मिली। वह १९१७ से १९२४ तक सोवियत रूस के, और १९२२ से १९२४ तक सोवियत संघ के भी "हेड ऑफ़ गवर्नमेंट" रहे। उनके प्रशासन काल में रूस, और उसके बाद व्यापक सोवियत संघ भी, रूसी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा नियंत्रित एक-पक्ष साम्यवादी राज्य बन गया। लेनिन विचारधारा से मार्क्सवादी थे, और उन्होंने लेनिनवाद नाम से प्रचलित राजनीतिक सिद्धांत विकसित किए। सिंविर्स्क में एक अमीर मध्यमवर्गीय परिवार में पैदा हुए लेनिन ने १८८७ में अपने भाई के निष्पादन के बाद क्रांतिकारी समाजवादी राजनीति को गले लगाया। रूसी साम्राज्य की ज़ार सरकार के विरोध में में भाग लेने पर उन्हें कज़न इंपीरियल विश्वविद्यालय से निकल दिया गया, और फिर उन्होंने अगले वर्षों में कानून की डिग्री प्राप्त की। वह १८९३ में सेंट पीटर्सबर्ग में चले गए और वहां एक वरिष्ठ मार्क्सवादी कार्यकर्ता बन गए। १८९७ में उन्हें देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया, और तीन साल तक शूसनस्केय को निर्वासित कर दिया गया, जहां उन्होंने नाडेज़्दा कृपकाया से शादी कर ली। अपने निर्वासन के बाद, वह पश्चिमी यूरोप में चले गए, जहां वे मार्क्सवादी रूसी सामाजिक डेमोक्रेटिक लेबर पार्टी (आरएसडीएलपी) में एक प्रमुख सिद्धांतकार बन गए। १९०३ में उन्होंने आरएसडीएलपी के वैचारिक विभाजन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, और फिर वह जुलियस मार्टोव के मेन्शेविकों के खिलाफ बोल्शेविक गुट का नेतृत्व करने लगे। रूस की १९०५ की असफल क्रांति के दौरान विद्रोह को प्रोत्साहित करने के बाद उन्होंने प्रथम विश्व युद्ध के समय एक अभियान चलाया, जिसे यूरोप-व्यापी सर्वहारा क्रांति में परिवर्तित किया जाना था, क्योंकि एक मार्क्सवादी के रूप में उनका मानना था कि यह विरोध पूंजीवाद को उखाड़ फेंकने, और समाजवाद की स्थापना का कारण बनेगा। १९१७ की फरवरी क्रांति के बाद जब रूस में ज़ार को हटा दिया गया और एक अनंतिम सरकार की स्थापना हो गई, तो वह रूस लौट आए। उन्होंने अक्तूबर क्रांति में प्रमुख भूमिका निभाई, जिसमें बोल्शेविकों ने नए शासन को उखाड़ फेंका था। .

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वैज्ञानिक समाजवाद

फ्रेडरिक इंगेल्स ने कार्ल मार्क्स द्वारा प्रतिपादित सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक सिद्धान्त को वैज्ञानिक समाजवाद (Scientific Socialism) का नाम दिया। मार्क्स ने यद्यपि कभी भी वैज्ञानिक समाजवाद शब्द का प्रयोग नहीं किया किन्तु उन्होने यूटोपियन समाजवाद की आलोचना की। मार्क्स को वैज्ञानिक समाजवाद का प्रणेता माना जाता है। मार्क्स जर्मन देश के एक राज्य का रहनेवाला था और जर्मनी 1871 ई. के पूर्व राजनीतिक रूप से कई राज्यों में विभाजित, तथा आर्थिक दृष्टि से पिछड़ा हुआ था। अत: यहाँ पर समाजवादी विचारों का प्रचार देर से हुआ। यद्यपि जोहान फिख्टे (Johaan Fichte, 1761-1815) के विचारों में समाजवाद की झलक है, परंतु जर्मनी का सर्वप्रथम और प्रमुख समाजवादी विचारक कार्ल मार्क्स ही माना जाता है। मार्क्स के विचारों पर हीगेल के आदर्शवाद, फोरवाक (Feuerbach) के भौतिकवाद, ब्रिटेन के शास्त्रीय अर्थशास्त्र, तथा फ्रांस की क्रांतिकारी राजनीति का प्रभाव है। मार्क्स ने अपने पूर्वगामी और समकालीन समाजवादी विचारों का समन्वय किया है। उसके अभिन्न मित्र और सहकारी एंगिल्स ने भी समाजवादी विचार प्रतिपादित किए हैं, परंतु उनमें अधिकांशत: मार्क्स के सिद्धांतों की व्याख्या है, अत: उसके लेख मार्क्सवाद के ही अंग माने जाते हैं। मार्क्स के दर्शन को द्वंद्वात्मक भौतिकवाद (Dialectical materialism) कहा जाता है। मार्क्स के लिए वास्तविकता विचार मात्र नहीं भौतिक सत्य है; विचार स्वयं पदार्थ का विकसित रूप है। उसका भौतिकवाद, विकासवान् है परंतु यह विकास द्वंद्वात्मक प्रकार से होता है। इस प्रकार मार्क्स, हीगल के विचारवाद का विरोधी है परंतु उसकी द्वंद्वात्मक प्रणाली को स्वीकार करता है। मार्क्स के विचारों की दूसरी विशेषता उसका ऐतिहासिक भौतिकवाद (Historical materialism) है। कुछ लेखक इसको इतिहास की अर्थशास्त्रीय व्याख्या भी कहते हैं। मार्क्स ने सिद्ध किया कि सामाजिक परिवर्तनों का आधार उत्पादन के साधन और उससे प्रभावित उत्पादन संबंधों में परिवर्तन हैं। अपनी प्रतिभा के अनुसार मनुष्य सदैव की उत्पादन के साधनों में उन्नति करता है, परंतु एक स्थिति आती है जब इस कारण उत्पादन संबंधों पर भी असर पड़ने लगता है और उत्पादन के साधनों के स्वामी-शोषक-और इन साधनों का प्रयोग करनेवाला शोषित वर्ग में संघर्ष आरंभ हो जाता है। स्वामी पुरानी अवस्था को कायम रखकर शोषण का क्रम जारी रखना चाहता है, परंतु शोषित वर्ग का और समाज का हित नए उत्पादन संबंध स्थापित कर नए उत्पादन के साधनों का प्रयोग करने में होता है। अत: शोषक और शोषित के बीच वर्गसंघर्ष क्रांति का रूप धारण करता है और उसके द्वारा एक नए समाज का जन्म होता है। इसी प्रक्रिया द्वारा समाज आदिकालीन कबायली साम्यवाद, प्राचीन गुलामी, मध्यकालीन सामंतवाद और आधुनिक पूँजीवाद, इन अवस्थाओं से गुजरा है। अभी तक का इतिहास वर्गसंघर्ष का इतिहास है, आज भी पूँजीपति और सर्वहारा वर्ग के बीच यह संघर्ष है, जिसका अंत सर्वहारा क्रांति द्वारा समाजवाद की स्थापना से होगा। भावी साम्यवादी अवस्था इस समाजवादी समाज का ही एक श्रेष्ठ रूप होगी। मार्क्स ने पूंजीवादी समाज का गूढ़ और विस्तृत विश्लेषण किया है। उसकी प्रमुख पुस्तक का नाम das पूँजी (Capital) है। इस संबंध में उसके अर्घ (Value) और अतिरिक्त अर्घ (Surplus value) संबंधी सिद्धांत मुख्य हैं। उसका कहना है कि पूँजीवादी समाज की विशेषता अधिकांशत: पण्यों (Commodities) की पैदावार है, पूँजीपति अधिकतर चीजें बेचने के लिए बनाता है, अपने प्रयोग मात्र के लिए नहीं। पण्य वस्तुएँ अपने अर्घ के आधार पर खरीदी बेची जाती हैं। परंतु पूँजीवादी समाज में मजदूर की श्रमशक्ति भी पण्य बन जाती है और वह भी अपने अर्घ के आधार पर बेची जाती है। प्रत्येक चीज के अर्घ का आधार उसके अंदर प्रयुक्त सामाजिक रूप से आवश्यक श्रम है जिसका मापदंड समय है। मजदूर अपनी श्रमशक्ति द्वारा पूँजीपति के लिए बहुत सामथ्र्य (पण्य) पैदा करता है, परंतु उसकी श्रमशक्ति का अर्घ बहुत कम होता है। इन दोनों का अंतर अतिरिक्त अर्घ है और यह अतिरिक्त अर्घ जिसका आधार मजदूर का श्रम है पूँजीवादी मुनाफे, सूद, कमीशन आदि का आधार है। सारांश यह कि पूँजी का स्रोत श्रमशोषण है। मार्क्स का यह विचार वर्गसंघर्ष को प्रोत्साहन देता है। पूँजीवाद की विशेषता है कि इसमें स्पर्धा होती है और बड़ा पूँजीपति छोटे पूँजीपति को परास्त कर उसका नाश कर देता है तथा उसकी पूँजी का स्वयं अधिकारी हो जाता है। वह अपनी पूँजी और उसके लाभ को भी फिर से उत्पादन के क्रम में लगा देता है। इस प्रकार पूँजी और पैदावार दोनों की वृद्धि होती है। परंतु क्योंकि इसके अनुपात में मजदूरी नहीं बढ़ती, अत: श्रमिक वर्ग इस पैदावार को खरीदने में असमर्थ होता है और इस कारण समय समय पर पूँजीवादी व्यवस्था आर्थिक संकटों की शिकार होती है जिसमें अतिरिक्त पैदावार और बेकारी तथा भुखमरी एक साथ पाई जाती है। इस अवस्था में पूँजीवादी समाज उत्पादनशक्तियों का पूर्ण रूप से प्रयोग करने में असमर्थ होता है। अत: पूँजीपति और सर्वहारा वर्ग के बीच वर्गसंघर्ष बढ़ता है और अंत में समाज के पास सर्वहारा क्रांति (Proletarian Revolution) तथा समाजवाद की स्थापना के अतिरिक्त और कोई चारा नहीं रह जाता। सामाजिक पैमाने पर उत्पादन परंतु उसके ऊपर व्यक्तिगत स्वामित्व, मार्क्स के अनुसार यह पूँजीवादी व्यवस्था की असंगति है जिसे सामाजिक स्वामित्व की स्थापना कर समाजवाद दूर करता है। राज्य के संबंध में मार्क्स की धारणा थी कि यह शोषक वर्ग का शासन का अथवा दमन का यंत्र है। अपने स्वार्थों की रक्षा के लिए प्रत्येक शासकवर्ग इसका प्रयोग करता है। पूँजीवाद के भग्नावशेषों के अंत तथा समाजवादी व्यवस्था की जड़ों को मजबूत बनाने के लिए एक संक्रामक काल के लिए सर्वहारा वर्ग भी इस यंत्र का प्रयोग करेगा, अत: कुछ समय के लिए सर्वहारा तानाशाही की आवश्यकता होगी। परंतु पूँजीवादी राज्य मुट्ठी भर शासकवर्ग की बहुमत शोषित जनता के ऊपर तानाशाही है जब कि सर्वहारा का शासन बहुमत जनता की, केवल नगण्य अल्पमत के ऊपर, तानाशाही है। समाजवादियों का विश्वास है कि समाजवादी व्यवस्था उत्पादन की शक्तियों का पूरा पूरा प्रयोग करके पैदावार को इतना बढ़ाएगी कि समस्त जनता की सारी आवश्यकताएँ पूरी हो जाएंगी। कालांतर में मनुष्यों को काम करने की आदत पड़ जाएगी और वे पूँजीवादी समाज को भूलकर समाजवादी व्यवस्था के आदी हो जाएंगे। इस स्थिति में वर्गभेद, मिट जाएगा और शोषण की आवश्यकता न रह जाएगी, अत: शोषणयंत्रराज्य-भी अनवाश्यक हो जाएगा। समाजवाद की इस उच्च अवस्था को मार्क्स साम्यवाद कहता है। इस प्रकार का राज्यविहीन समाज अराजकतावादियों का भी आदर्श है। मार्क्स ने अपने विचारों को व्यावहारिक रूप देने के लिए अंतरराष्ट्रीय श्रमजीवी समाज (1864) की स्थापना की जिसकी सहायता से उसने अनेक देशों में क्रांतिकारी मजदूर आंदोलनों को प्रोत्साहित किया। मार्क्स अंतरराष्ट्रवादी था। उसका विचार था कि पूँजीवाद ही अंतरदेशीय संघर्ष और युद्धों की जड़ है, समाजवाद की स्थापना के बाद उनका अंत हो जाएगा और विश्व का सर्वहारा वर्ग परस्पर सहयोग तथा शांतिमय ढंग से रहेगा। मार्क्स ने सन् 1848 में अपने "साम्यवादी घोषणापत्र" में जिस क्रांति की भविष्यवाणी की थी वह अंशत: सत्य हुई और उस वर्ष और उसके बाद कई वर्ष तक यूरोप में क्रांति की ज्वाला फैलती रही; परंतु जिस समाजवादी व्यवस्था की उसको आशा थी वह स्थापित न हो सकी, प्रत्युत क्रांतियाँ दबा दी गईं और पतन के स्थान में पूँजीवाद का विकास हुआ। फ्रांस और प्रशा के बीच युद्ध (1871) के समय पराजय के कारण पेरिस में प्रथम समाजवादी शासन (पेरिस कम्यून) स्थापित हुआ परंतु कुछ ही दिनों में उसको भी दबा दिया गया। पेरिस कम्यून की प्रतिक्रिया हुई और मजदूर आंदोलनों का दमन किया जाने लगा जिसके फलस्वरूप मार्क्स द्वारा स्थापित अंतरराष्ट्रीय मजदूर संघ भी तितर बितर हो गया। मजदूर आंदोलनों के सामने प्रश्न था कि वे समाजवाद की स्थापना के लिए क्रांतिकारी मार्ग अपनाएँ अथवा सुधारवादी मार्ग ग्रहण करें। इन परिस्थितियों में कतिपय सुधारवादी विचारधाराओं का जन्म हुआ। इनमें ईसाई समाजवाद, फेबियसवाद और पुनरावृत्तिवाद मुख्य हैं। .

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कार्ल मार्क्स

कार्ल हेनरिख मार्क्स (1818 - 1883) जर्मन दार्शनिक, अर्थशास्त्री और वैज्ञानिक समाजवाद का प्रणेता थे। इनका जन्म 5 मई 1818 को त्रेवेस (प्रशा) के एक यहूदी परिवार में हुआ। 1824 में इनके परिवार ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया। 17 वर्ष की अवस्था में मार्क्स ने कानून का अध्ययन करने के लिए बॉन विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। तत्पश्चात्‌ उन्होंने बर्लिन और जेना विश्वविद्यालयों में साहित्य, इतिहास और दर्शन का अध्ययन किया। इसी काल में वह हीगेल के दर्शन से बहुत प्रभावित हुए। 1839-41 में उन्होंने दिमॉक्रितस और एपीक्यूरस के प्राकृतिक दर्शन पर शोध-प्रबंध लिखकर डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। शिक्षा समाप्त करने के पश्चात्‌ 1842 में मार्क्स उसी वर्ष कोलोन से प्रकाशित 'राइनिशे जीतुंग' पत्र में पहले लेखक और तत्पश्चात्‌ संपादक के रूप में सम्मिलित हुआ किंतु सर्वहारा क्रांति के विचारों के प्रतिपादन और प्रसार करने के कारण 15 महीने बाद ही 1843 में उस पत्र का प्रकाशन बंद करवा दिया गया। मार्क्स पेरिस चला गया, वहाँ उसने 'द्यूस फ्रांजोसिश' जारबूशर पत्र में हीगेल के नैतिक दर्शन पर अनेक लेख लिखे। 1845 में वह फ्रांस से निष्कासित होकर ब्रूसेल्स चला गया और वहीं उसने जर्मनी के मजदूर सगंठन और 'कम्युनिस्ट लीग' के निर्माण में सक्रिय योग दिया। 1847 में एजेंल्स के साथ 'अंतराष्ट्रीय समाजवाद' का प्रथम घोषणापत्र (कम्युनिस्ट मॉनिफेस्टो) प्रकाशित किया 1848 में मार्क्स ने पुन: कोलोन में 'नेवे राइनिशे जीतुंग' का संपादन प्रारंभ किया और उसके माध्यम से जर्मनी को समाजवादी क्रांति का संदेश देना आरंभ किया। 1849 में इसी अपराघ में वह प्रशा से निष्कासित हुआ। वह पेरिस होते हुए लंदन चला गया जीवन पर्यंत वहीं रहा। लंदन में सबसे पहले उसने 'कम्युनिस्ट लीग' की स्थापना का प्रयास किया, किंतु उसमें फूट पड़ गई। अंत में मार्क्स को उसे भंग कर देना पड़ा। उसका 'नेवे राइनिश जीतुंग' भी केवल छह अंको में निकल कर बंद हो गया। कोलकाता, भारत 1859 में मार्क्स ने अपने अर्थशास्त्रीय अध्ययन के निष्कर्ष 'जुर क्रिटिक दर पोलिटिशेन एकानामी' नामक पुस्तक में प्रकाशित किये। यह पुस्तक मार्क्स की उस बृहत्तर योजना का एक भाग थी, जो उसने संपुर्ण राजनीतिक अर्थशास्त्र पर लिखने के लिए बनाई थी। किंतु कुछ ही दिनो में उसे लगा कि उपलब्ध साम्रगी उसकी योजना में पूर्ण रूपेण सहायक नहीं हो सकती। अत: उसने अपनी योजना में परिवर्तन करके नए सिरे से लिखना आंरभ किया और उसका प्रथम भाग 1867 में दास कैपिटल (द कैपिटल, हिंदी में पूंजी शीर्षक से प्रगति प्रकाशन मास्‍को से चार भागों में) के नाम से प्रकाशित किया। 'द कैपिटल' के शेष भाग मार्क्स की मृत्यु के बाद एंजेल्स ने संपादित करके प्रकाशित किए। 'वर्गसंघर्ष' का सिद्धांत मार्क्स के 'वैज्ञानिक समाजवाद' का मेरूदंड है। इसका विस्तार करते हुए उसने इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या और बेशी मूल्य (सरप्लस वैल्यू) के सिद्धांत की स्थापनाएँ कीं। मार्क्स के सारे आर्थिक और राजनीतिक निष्कर्ष इन्हीं स्थापनाओं पर आधारित हैं। 1864 में लंदन में 'अंतरराष्ट्रीय मजदूर संघ' की स्थापना में मार्क्स ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। संघ की सभी घोषणाएँ, नीतिश् और कार्यक्रम मार्क्स द्वारा ही तैयार किये जाते थे। कोई एक वर्ष तक संघ का कार्य सुचारू रूप से चलता रहा, किंतु बाकुनिन के अराजकतावादी आंदोलन, फ्रांसीसी जर्मन युद्ध और पेरिस कम्यूनों के चलते 'अंतरराष्ट्रीय मजदूर संघ' भंग हो गया। किंतु उसकी प्रवृति और चेतना अनेक देशों में समाजवादी और श्रमिक पार्टियों के अस्तित्व के कारण कायम रही। 'अंतरराष्ट्रीय मजदूर संघ' भंग हो जाने पर मार्क्स ने पुन: लेखनी उठाई। किंतु निरंतर अस्वस्थता के कारण उसके शोधकार्य में अनेक बाधाएँ आईं। मार्च 14, 1883 को मार्क्स के तूफानी जीवन की कहानी समाप्त हो गई। मार्क्स का प्राय: सारा जीवन भयानक आर्थिक संकटों के बीच व्यतीत हुआ। उसकी छह संतानो में तीन कन्याएँ ही जीवित रहीं। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

साम्यवादी घोषणापत्र, कम्युनिस्ट मैनिफ़ेस्टो, कम्युनिस्ट घोषणापत्र

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