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औद्योगिक संबंध और पूंजीवाद

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

औद्योगिक संबंध और पूंजीवाद के बीच अंतर

औद्योगिक संबंध vs. पूंजीवाद

औद्योगिक संबंध एक बहु-विषयक कार्य क्षेत्र है जो रोजगार संबंध का अध्ययन करता है। औद्योगिक संबंधों को तेजी से रोजगार संबंध कहा जाने लगा है, ऐसा गैर-औद्योगिक रोजगार संबंधों के महत्व के कारण हुआ है। कई बाहरी लोग औद्योगिक संबंधों को श्रम संबंधों के बराबर भी मानते हैं और समझते हैं कि औद्योगिक संबंध केवल संगठित रोजगार स्थितियों का ही अध्ययन करते हैं, मगर यह एक अत्यधिक सरलीकरण है। स्वामी और श्रमिक के निजी उद्देश्यों की भिन्नता ने औद्योगिक संबंधों की समस्या को जन्म दिया। मानव कल्याण के प्रसाधन के रूप में अब उद्योगों के समाजिक उद्देश्य भली भाँति स्वीकार कर लिया गया है। इसका अर्थ है, काम करने के लिए अधिक अनुकूल ऐसी अवस्थाओं का सृजन जिनके अंतर्गत उत्पादन को सुव्यवस्थित किया जा सके और उत्पादन के दो मुख्य प्रसाधनों, पूँजी और श्रम, के बीच होनेवाली क्रिया प्रतिक्रिया को सुविभाजित करने के लिए एक उपयुक्त सिद्धांत बन सके। कारखानों की पुरानी व्यवस्था के अंतर्गत पूँजीपति श्रमिकों के साथ एक विक्रेय वस्तु की भाँति व्यवहार करते थे और वे पारश्रमिक, काम के घंटों और नौकरी के प्रतिबंधों के लिए माँग एवं पूर्ति के नियम के अनुसार अनुशासित होते थे। आरंभ में तो श्रमिकों ने इसे टल जानेवाली विपत्ति समझा, किंतु बाद में उन्हें यह भान हुआ कि उनके ये दु:ख प्राय: स्थायी से हो चले हैं। स्वामी के अधिकारक्षेत्र में उनके सामाजिक एवं भौतिक अभाव दिन दूने रात चौगुने होते गए और इस प्रकार दोनों के संबंध इस ढंग के न रहे जिन्हें किसी भी प्राकर सद्भावनापूर्ण कहा जा सके। समस्या दिनों-दिन उग्र रूप धारण करती गई। अब औद्योगिक संबंधों का अर्थ केवल स्वामी श्रमिक का संबंध ही नहीं रहा, अपितु वैयक्तिक संबंध, सह परामर्श, समितियों के संयुक्त लेन-देन तथा इन संबंधों के निर्वाह कार्य में सरकार की भूमिका आदि सब कुछ है। मध्ययुग में व्यापारों का क्षेत्र छोटा था तथा स्वामी एवं श्रमिक अधिक निकट संपर्क में थे। श्रमिक स्वामियों से पृथक अपनी एक भिन्न जाति ही समझते थे। धीरे-धीरे उन्हें बोध हुआ कि उनकी व्यक्तिगत शक्ति कितनी अल्प थी। फिर उनकी स्थिति में और भी पतन हुआ जिससे वे क्रीतदास के समान हो गए और अंतत: स्वामी श्रमिक का संबंध इसी आधार पर स्थिर हुआ। उत्पादन कार्य में कारखानों की पद्धति प्रारंभ होने पर श्रमिक वर्ग ने अपना संघ स्थापित करना आरंभ किया। इस दिशा में सर्वप्रथम ब्रिटेन के श्रमिक १९वीं सदी में अग्रगामी सिद्ध हुए, यद्यपि उनके संघ १८२४ ई. तक गैरकानूनी प्रतिबंध लगा ही रहा। फिर भी, औद्योगिक संघटनों (ट्रेड यूनियन) के आंदोलन के विकास के साथ-साथ संयुक्त मोल भाव (कलेक्टिव बार्गेनिंग) की प्रणाली शक्तिशाली बनती गई, और आज यह प्रणाली न केवल ब्रिटेन में, वरन् विश्व भर के देशों में, औद्योगिक संबंधों को सुनिश्चित करने की मुख्य प्रणाली के रूप में व्यवहृत हो रही है। इन संघटनों (यूनियन) का महत्व इतने से ही समझा जा सकता है कि १९०० ई. से इन्होंने कुछ देशों की राजनीति पर भी अपना प्रभाव डालना आरंभ कर दिया और उनके वर्तमान एवं भविष्य को अधिकाधिक प्रभावित करने लगे। औद्योगिक-श्रम-संघटनों का अंतर्राष्ट्रीय संघ १९१९ ई. में स्थापित हुआ जिसमें ६० देशों के मालिकों, श्रमिकों एवं सरकारों के प्रतिनिधि सम्मिलित हुए। कुछ यूरोपीय देशों में मालिकों एवं श्रमिकों के संघटन सरकारी नियंत्रण में ले लिए गए। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान और उसके बाद भी अधिकांश देशों की सरकारों ने अपने मामलों में मालिकों एवं श्रमिकों के प्रतिनिधियों से परामर्श ग्रहण किया। अब सामान्यत: सभी श्रमिक देश के लिए अपना महत्व समझने लगे हैं और यह भी जान गए हैं कि उनकी सुखसुविधा अंतत: उत्पादन को विकसित करने पर ही अवलंबित है। . पूंजीवाद (Capitalism) सामन्यत: उस आर्थिक प्रणाली या तंत्र को कहते हैं जिसमें उत्पादन के साधन पर निजी स्वामित्व होता है। इसे कभी कभी "व्यक्तिगत स्वामित्व" के पर्यायवाची के तौर पर भी प्रयुक्त किया जाता है यद्यपि यहाँ "व्यक्तिगत" का अर्थ किसी एक व्यक्ति से भी हो सकता है और व्यक्तियों के समूह से भी। मोटे तौर पर कहा जा सकता है कि सरकारी प्रणाली के अतिरिक्त निजी तौर पर स्वामित्व वाले किसी भी आर्थिक तंत्र को पूंजीवादी तंत्र के नाम से जाना जा सकता है। दूसरे रूप में ये कहा जा सकता है कि पूंजीवादी तंत्र लाभ के लिए चलाया जाता है, जिसमें निवेश, वितरण, आय उत्पादन मूल्य, बाजार मूल्य इत्यादि का निर्धारण मुक्त बाजार में प्रतिस्पर्धा द्वारा निर्धारित होता है। पूँजीवाद एक आर्थिक पद्धति है जिसमें पूँजी के निजी स्वामित्व, उत्पादन के साधनों पर व्यक्तिगत नियंत्रण, स्वतंत्र औद्योगिक प्रतियोगिता और उपभोक्ता द्रव्यों के अनियंत्रित वितरण की व्यवस्था होती है। पूँजीवाद की कभी कोई निश्चित परिभाषा स्थिर नहीं हुई; देश, काल और नैतिक मूल्यों के अनुसार इसके भिन्न-भिन्न रूप बनते रहे हैं। .

औद्योगिक संबंध और पूंजीवाद के बीच समानता

औद्योगिक संबंध और पूंजीवाद आम में एक बात है (यूनियनपीडिया में): औद्योगिक क्रांति

औद्योगिक क्रांति

'''वाष्प इंजन''' औद्योगिक क्रांति का प्रतीक था। अट्ठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध तथा उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में कुछ पश्चिमी देशों के तकनीकी, सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक स्थिति में काफी बड़ा बदलाव आया। इसे ही औद्योगिक क्रान्ति (Industrial Revolution) के नाम से जाना जाता है। यह सिलसिला ब्रिटेन से आरम्भ होकर पूरे विश्व में फैल गया। "औद्योगिक क्रांति" शब्द का इस संदर्भ में उपयोग सबसे पहले आरनोल्ड टायनबी ने अपनी पुस्तक "लेक्चर्स ऑन दि इंड्स्ट्रियल रिवोल्यूशन इन इंग्लैंड" में सन् 1844 में किया। औद्योगिक क्रान्ति का सूत्रपात वस्त्र उद्योग के मशीनीकरण के साथ आरम्भ हुआ। इसके साथ ही लोहा बनाने की तकनीकें आयीं और शोधित कोयले का अधिकाधिक उपयोग होने लगा। कोयले को जलाकर बने वाष्प की शक्ति का उपयोग होने लगा। शक्ति-चालित मशीनों (विशेषकर वस्त्र उद्योग में) के आने से उत्पादन में जबरदस्त वृद्धि हुई। उन्नीसवी सदी के प्रथम् दो दशकों में पूरी तरह से धातु से बने औजारों का विकास हुआ। इसके परिणामस्वरूप दूसरे उद्योगों में काम आने वाली मशीनों के निर्माण को गति मिली। उन्नीसवी शताब्दी में यह पूरे पश्चिमी यूरोप तथा उत्तरी अमेरिका में फैल गयी। अलग-अलग इतिहासकार औद्योगिक क्रान्ति की समयावधि अलग-अलग मानते नजर आते हैं जबकि कुछ इतिहासकार इसे क्रान्ति मानने को ही तैयार नहीं हैं। अनेक विचारकों का मत है कि गुलाम देशों के स्रोतों के शोषण और लूट के बिना औद्योगिक क्रान्ति सम्भव नही हुई होती, क्योंकि औद्योगिक विकास के लिये पूंजी अति आवश्यक चीज है और वह उस समय भारत आदि गुलाम देशों के संसाधनों के शोषण से प्राप्त की गयी थी। .

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औद्योगिक संबंध और पूंजीवाद के बीच तुलना

औद्योगिक संबंध 8 संबंध है और पूंजीवाद 17 है। वे आम 1 में है, समानता सूचकांक 4.00% है = 1 / (8 + 17)।

संदर्भ

यह लेख औद्योगिक संबंध और पूंजीवाद के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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