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ओड़िशा का इतिहास

सूची ओड़िशा का इतिहास

प्राचीन काल से मध्यकाल तक ओडिशा राज्य को कलिंग, उत्कल, उत्करात, ओड्र, ओद्र, ओड्रदेश, ओड, ओड्रराष्ट्र, त्रिकलिंग, दक्षिण कोशल, कंगोद, तोषाली, छेदि तथा मत्स आदि नामों से जाना जाता था। परन्तु इनमें से कोई भी नाम सम्पूर्ण ओडिशा को इंगित नहीं करता था। अपितु यह नाम समय-समय पर ओडिशा राज्य के कुछ भाग को ही प्रस्तुत करते थे। वर्तमान नाम ओडिशा से पूर्व इस राज्य को मध्यकाल से 'उड़ीसा' नाम से जाना जाता था, जिसे अधिकारिक रूप से 04 नवम्बर, 2011 को 'ओडिशा' नाम में परिवर्तित कर दिया गया। ओडिशा नाम की उत्पत्ति संस्कृत के शब्द 'ओड्र' से हुई है। इस राज्य की स्थापना भागीरथ वंश के राजा ओड ने की थी, जिन्होने अपने नाम के आधार पर नवीन ओड-वंश व ओड्र राज्य की स्थापना की। समय विचरण के साथ तीसरी सदी ई०पू० से ओड्र राज्य पर महामेघवाहन वंश, माठर वंश, नल वंश, विग्रह एवं मुदगल वंश, शैलोदभव वंश, भौमकर वंश, नंदोद्भव वंश, सोम वंश, गंग वंश व सूर्य वंश आदि सल्तनतों का आधिपत्य भी रहा। प्राचीन काल में ओडिशा राज्य का वृहद भाग कलिंग नाम से जाना जाता था। सम्राट अशोक ने 261 ई०पू० कलिंग पर चढ़ाई कर विजय प्राप्त की। कर्मकाण्ड से क्षुब्द हो सम्राट अशोक ने युद्ध त्यागकर बौद्ध मत को अपनाया व उनका प्रचार व प्रसार किया। बौद्ध धर्म के साथ ही सम्राट अशोक ने विभिन्न स्थानों पर शिलालेख गुदवाये तथा धौली व जगौदा गुफाओं (ओडिशा) में धार्मिक सिद्धान्तों से सम्बन्धित लेखों को गुदवाया। सम्राट अशोक, कला के माध्यम से बौद्ध धर्म का प्रचार करना चाहते थे इसलिए सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म को और अधिक विकसित करने हेतु ललितगिरि, उदयगिरि, रत्नागिरि व लगुन्डी (ओडिशा) में बोधिसत्व व अवलोकेतेश्वर की मूर्तियाँ बहुतायत में बनवायीं। 232 ई०पू० सम्राट अशोक की मृत्यु के पश्चात् कुछ समय तक मौर्य साम्राज्य स्थापित रहा परन्तु 185 ई०पू० से कलिंग पर चेदि वंश का आधिपत्य हो गया था। चेदि वंश के तृतीय शासक राजा खारवेल 49 ई० में राजगद्दी पर बैठा तथा अपने शासन काल में जैन धर्म को विभिन्न माध्यमों से विस्तृत किया, जिसमें से एक ओडिशा की उदयगिरि व खण्डगिरि गुफाऐं भी हैं। इसमें जैन धर्म से सम्बन्धित मूर्तियाँ व शिलालेख प्राप्त हुए हैं। चेदि वंश के पश्चात् ओडिशा (कलिंग) पर सातवाहन राजाओं ने राज्य किया। 498 ई० में माठर वंश ने कलिंग पर अपना राज्य कर लिया था। माठर वंश के बाद 500 ई० में नल वंश का शासन आरम्भ हो गया। नल वंश के दौरान भगवान विष्णु को अधिक पूजा जाता था इसलिए नल वंश के राजा व विष्णुपूजक स्कन्दवर्मन ने ओडिशा में पोडागोड़ा स्थान पर विष्णुविहार का निर्माण करवाया। नल वंश के बाद विग्रह एवं मुदगल वंश, शैलोद्भव वंश और भौमकर वंश ने कलिंग पर राज्य किया। भौमकर वंश के सम्राट शिवाकर देव द्वितीय की रानी मोहिनी देवी ने भुवनेश्वर में मोहिनी मन्दिर का निर्माण करवाया। वहीं शिवाकर देव द्वितीय के भाई शान्तिकर प्रथम के शासन काल में उदयगिरी-खण्डगिरी पहाड़ियों पर स्थित गणेश गुफा (उदयगिरी) को पुनः निर्मित कराया गया तथा साथ ही धौलिगिरी पहाड़ियों पर अर्द्यकवर्ती मठ (बौद्ध मठ) को निर्मित करवाया। यही नहीं, राजा शान्तिकर प्रथम की रानी हीरा महादेवी द्वारा 8वीं ई० हीरापुर नामक स्थान पर चौंसठ योगनियों का मन्दिर निर्मित करवाया गया। 6वीं-7वीं शती कलिंग राज्य में स्थापत्य कला के लिए उत्कृष्ट मानी गयी। चूँकि इस सदी के दौरान राजाओं ने समय-समय पर स्वर्णाजलेश्वर, रामेश्वर, लक्ष्मणेश्वर, भरतेश्वर व शत्रुघनेश्वर मन्दिरों (6वीं सदी) व परशुरामेश्वर (7वीं सदी) में निर्माण करवाया। मध्यकाल के प्रारम्भ होने से कलिंग पर सोमवंशी राजा महाशिव गुप्त ययाति द्वितीय सन् 931 ई० में गद्दी पर बैठा तथा कलिंग के इतिहास को गौरवमयी बनाने हेतु ओडिशा में भगवान जगन्नाथ के मुक्तेश्वर, सिद्धेश्वर, वरूणेश्वर, केदारेश्वर, वेताल, सिसरेश्वर, मारकण्डेश्वर, बराही व खिच्चाकेश्वरी आदि मन्दिरों सहित कुल 38 मन्दिरों का निर्माण करवाया। 15वीं शती के अन्त तक जो गंग वंश हल्का पड़ने लगा था उसने सन् 1038 ई० में सोमवंशीयों को हराकर पुनः कलिंग पर वर्चस्व स्थापित कर लिया तथा 11वीं शती में लिंगराज मन्दिर, राजारानी मन्दिर, ब्रह्मेश्वर, लोकनाथ व गुन्डिचा सहित कई छोटे व बड़े मन्दिरों का निर्माण करवाया। गंग वंश ने तीन शताब्दियों तक कलिंग पर अपना राज्य किया तथा राजकाल के दौरान 12वीं-13वीं शती में भास्करेश्वर, मेघेश्वर, यमेश्वर, कोटी तीर्थेश्वर, सारी देउल, अनन्त वासुदेव, चित्रकर्णी, निआली माधव, सोभनेश्वर, दक्क्षा-प्रजापति, सोमनाथ, जगन्नाथ, सूर्य (काष्ठ मन्दिर) बिराजा आदि मन्दिरों को निर्मित करवाया जो कि वास्तव में कलिंग के स्थापत्य इतिहास में अहम भूमिका का निर्वाह करते हैं। गंग वंश के शासन काल पश्चात् 1361 ई० में तुगलक सुल्तान फिरोजशाह तुगलक ने कलिंग पर राज्य किया। यह वह दौर था जब कलिंग में कला का वर्चस्व कम होते-होते लगभग समाप्त ही हो चुका था। चूँकि तुगलक शासक कला-विरोधी रहे इसलिए किसी भी प्रकार के मन्दिर या मठ का निर्माण नहीं हुअा। 18वीं शती के आधुनिक काल में ईस्ट इण्डिया कम्पनी का सम्पूर्ण भारत पर अधिकार हो गया था परन्तु 20वीं शती के मध्य में अंग्रेजों के निगमन से भारत देश स्वतन्त्र हुआ। जिसके फलस्वरूप सम्पूर्ण भारत कई राज्यों में विभक्त हो गया, जिसमें से भारत के पूर्व में स्थित ओडिशा (पूर्व कलिंग) भी एक राज्य बना। .

137 संबंधों: झारखंड पार्टी, तृतीय शताब्दी, थानेसर, दूसरी शताब्दी, धौली, नासिक, पुरी, प्लासी का पहला युद्ध, फ़िरोज़ शाह तुग़लक़, फकीर मोहन सेनापति, बालेश्वर, बिनायक आचार्य, बिहार का इतिहास, बंगाल, बंगाल का इतिहास, बक्सर का युद्ध, बौद्ध धर्म, बोधिसत्व, बीजू पटनायक, भद्रक, भारत का इतिहास, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, भुवनेश्वर, मथुरा, मदल पंजी, मधुसूदन दास, मराठा, महानदी, महामेघवाहन वंश, मार्च, मगध महाजनपद, मुग़ल साम्राज्य, म्यान्मार, मौर्य राजवंश, मेदिनीपुर, युद्ध, रत्नागिरि, रामानुज, राष्ट्रपति शासन, राजा मान सिंह, लिंगराज मंदिर, सदाशिव त्रिपाठी, समुद्रगुप्त, सातवाहन, सातवीं शताब्दी, संबलपुर, संस्कृत भाषा, स्वतंत्र पार्टी, हरियाणा, हरिहरपुर, ..., हर्षवर्धन, ह्वेन त्सांग, हैदराबाद, जनता पार्टी, जहाँगीर, जानकी बल्लभ पटनायक, जगन्नाथ, जगन्नाथ मन्दिर, पुरी, जैन धर्म, ईस्ट इण्डिया कम्पनी, वास्तुकला, विधान सभा, खारवेल, गंग वंश, ओड़िआ, ओडिशा, कटक, कला, कलिंग, कोणार्क, अफ़ग़ानिस्तान, अभिलेख, अशोक, अकबर, उदयगिरि, १०३८, १०५०, १११२, ११४७, १२११, १२३८, १२४४, १३६१, १५६७, १५६८, १५९०, १५९२, १५९५, १६०७, १६३३, १६७०, १७२८, १७५१, १७५७, १७६४, १८०३, १८१८, १८२२, १८३७, १८३९, १८४३, १८४८, १८४९, १८५३, १८५५, १८६५, १८६६, १९ अगस्त, १९००, १९५०, १९५६, १९५९, १९६१, १९६२, १९६३, १९६५, १९६६, १९६७, १९७१, १९७२, १९७३, १९७४, १९७६, १९७७, १९८०, १९८१, १९८४, १९८५, १९८९, १९९०, १९९५, २३२, २६१, ३५०, ४९, ४९८, ५०० सूचकांक विस्तार (87 अधिक) »

झारखंड पार्टी

झारखण्ड पार्टी भारत का एक राजनीतिक दल है। पार्टी की स्थापना ५ मार्च १९४९ को राँची में एक सम्मेलन में हुई। ८ जनवरी २००९ को हुए उपचुनाव में पार्टी नेता राजा पीटर ने तत्कालीन मुख्यमंत्री शिबू सोरेन को ९००० मतों से पराजित किया। .

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तृतीय शताब्दी

तृतीय शताब्दी एक ईसवीं शताब्दी है। तीसरी शताब्दी ईसा के बाद २०० से ३०० वर्ष तक। श्रेणी:शताब्दी.

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थानेसर

थानेसर या थानेश्वर (स्थानीश्वर) हरियाणा का ऐतिहासिक नगर एवं हिन्दुओं का तीर्थ है। यह सरस्वती घग्गर नदी के तट पर स्थित है।यह नगर कुरुक्षेत्र जिले में दिल्ली से १६० किमी उत्तर-पश्चिम में स्थित है। कुरुक्षेत्र का शहरी सीमा अब थानेसर से मिल गयी है।1014 में महमूद गजनवी ने थानेश्वर में लूटपाट की और चक्रस्वामी की मूर्ति तोड़कर मन्दिर को भारी नुकसान पहुँचाया .

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दूसरी शताब्दी

दूसरी शताब्दी एक ईसवीं शताब्दी है। श्रेणी:शताब्दी.

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धौली

धौली शब्द के कई अर्थ हो सकते हैं:-.

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नासिक

नासिक अथवा नाशिक भारत के महाराष्ट्र राज्य का एक शहर है। नसिक महाराष्ट्र के उत्तर पश्चिम में, मुम्बई से १५० किमी और पुणे से २०५ किमी की दुरी में स्थित है। यह शहर प्रमुख रूप से हिन्दू तीर्थयात्रियों का प्रमुख केन्द्र है। नासिक पवित्र गोदावरी नदी के तट पर स्थित है। समुद्र तल से इसकी ऊंचाई 565 मीटर है। गोदावरी नदी के तट पर बहुत से सुंदर घाट स्थित है। इस शहर का सबसे प्रमुख भाग पंचवटी है। इसके अलावा यहां बहुत से मंदिर भी है। नासिक में त्योहारों के समय में बहुत अधिक संख्या में भीड़ दिखलाई पड़ती है। .

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पुरी

पुरी भारत के ओड़िशा प्रान्त का एक जिला है। भारत के चार पवित्रतम स्थानों में से एक है पुरी, जहां समुद्र इस शहर के पांव धोता है। कहा जाता है कि यदि कोई व्यक्ति यहां तीन दिन और तीन रात ठहर जाए तो वह जीवन-मरण के चक्कर से मुक्ति पा लेता है। पुरी, भगवान जगन्नाथ (संपूर्ण विश्व के भगवान), सुभद्रा और बलभद्र की पवित्र नगरी है, हिंदुओं के पवित्र चार धामों में से एक पुरी संभवत: एक ऐसा स्थान है जहां समुद्र के आनंद के साथ-साथ यहां के धार्मिक तटों और 'दर्शन' की धार्मिक भावना के साथ कुछ धार्मिक स्थलों का आनंद भी लिया जा सकता है। पुरी एक ऐसा स्थान है जिसे हजारों वर्षों से कई नामों - नीलगिरी, नीलाद्रि, नीलाचल, पुरुषोत्तम, शंखक्षेत्र, श्रीक्षेत्र, जगन्नाथ धाम, जगन्नाथ पुरी - से जाना जाता है। पुरी में दो महाशक्तियों का प्रभुत्व है, एक भगवान द्वारा सृजित है और दूसरी मनुष्य द्वारा सृजित है। .

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प्लासी का पहला युद्ध

प्लासी का युद्ध 23 जून 1757 को मुर्शिदाबाद के दक्षिण में २२ मील दूर नदिया जिले में गंगा नदी के किनारे 'प्लासी' नामक स्थान में हुआ था। इस युद्ध में एक ओर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना थी तो दूसरी ओर थी बंगाल के नवाब की सेना। कंपनी की सेना ने रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में नवाब सिराज़ुद्दौला को हरा दिया था। किंतु इस युद्ध को कम्पनी की जीत नही मान सकते कयोंकि युद्ध से पूर्व ही नवाब के तीन सेनानायक, उसके दरबारी, तथा राज्य के अमीर सेठ जगत सेठ आदि से कलाइव ने षडंयत्र कर लिया था। नवाब की तो पूरी सेना ने युद्ध मे भाग भी नही लिया था युद्ध के फ़ौरन बाद मीर जाफ़र के पुत्र मीरन ने नवाब की हत्या कर दी थी। युद्ध को भारत के लिए बहुत दुर्भाग्यपूर्ण माना जाता है इस युद्ध से ही भारत की दासता की कहानी शुरू होती है। .

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फ़िरोज़ शाह तुग़लक़

फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ दिल्ली सल्तनत में तुग़लक़ वंश का शासक था। फ़िरोजशाह तुग़लक़ का जन्म १३०९ को हुआ। वो भारत पर अन्तिम मुसलिम शासक था। उसकी हूकूमत १३५१ से १३८८ तक रही। वो, दिपालपुर की हिदूं राजकुमारी का पुत्र था।उसने अपनी हूकूमत के दौरान कई हिन्दूयों को मुसलिम धर्म अपनाने पर मजबूर किया। उसने अपने शासनकाल में ही चांदी के सिक्के चलाये| फ़िरोज़शाह तुग़लक़ (१३५१-१३८८ ई.), मुहम्मद तुग़लक़ का चचेरा भाई एवं सिपहसलार 'रजब' का पुत्र था। उसकी माँ ‘बीबी जैजैला' ('भड़ी' रजामल की पुत्री) राजपूत सरदार रजामल की पुत्री थी। मुहम्मद तुग़लक़ की मुत्यु के बाद 20 मार्च 1351 को फ़िरोज़ तुग़लक़ का राज्याभिषक थट्टा के निकट हुआ। पुनः फ़िरोज़ का राज्याभिषेक दिल्ली में अगस्त, 1351 में हुआ। सुल्तान बनने के बाद फ़िरोज़शाह तुग़लक़ ने सभी क़र्ज़े माफ कर दिए, जिसमें 'सोंधर ऋण' भी शामिल था, जो मुहम्मद तुग़लक़ के समय किसानों को दिया गया था। .

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फकीर मोहन सेनापति

ओड़िआ साहित्य में फकीरमोहन सेनापति (१८४३- १९१८) ‘कथा-सम्राट्‍’ के रूप में प्रसिद्ध हैं। ओड़िआ कहानी एवं उपन्यास रचना में उनकी बिशिष्ट पहचान रही है। .

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बालेश्वर

बालेश्वर भारत के ओड़िशा प्रान्त का एक जिला है। श्रेणी:शहर.

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बिनायक आचार्य

बिनायक आचार्य (३० अगस्त १९१८ – ११ दिसम्बर १९८३) भारतीय राजनीतिज्ञ थे। वो २९ दिसम्बर १९७६ से ३० अप्रैल १९७७ तक ओडिशा के मुख्यमंत्री रहे। .

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बिहार का इतिहास

बिहार के इतिहास को तीन काल-खण्डों में बांटकर देखा जा सकता है। .

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बंगाल

बंगाल (बांग्ला: বঙ্গ बॉंगो, বাংলা बांला, বঙ্গদেশ बॉंगोदेश या বাংলাদেশ बांलादेश, संस्कृत: अंग, वंग) उत्तरपूर्वी दक्षिण एशिया में एक क्षेत्र है। आज बंगाल एक स्वाधीन राष्ट्र, बांग्लादेश (पूर्वी बंगाल) और भारतीय संघीय प्रजातन्त्र का अंगभूत राज्य पश्चिम बंगाल के बीच में सहभाजी है, यद्यपि पहले बंगाली राज्य (स्थानीय राज्य का ढंग और ब्रिटिश के समय में) के कुछ क्षेत्र अब पड़ोसी भारतीय राज्य बिहार, त्रिपुरा और उड़ीसा में है। बंगाल में बहुमत में बंगाली लोग रहते हैं। इनकी मातृभाषा बांग्ला है। .

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बंगाल का इतिहास

भारत के प्रागैतिहासिक काल के इतिहास में भी बंगाल का विशिष्‍ट स्‍थान है। सिकंदर के आक्रमण के समय बंगाल में गंगारिदयी नाम का साम्राज्‍य था। गुप्‍त तथा मौर्य सम्राटों का बंगाल पर विशेष प्रभाव नहीं पड़ा। बाद में शशांक बंगाल नरेश बना। कहा जाता है कि उसने सातवीं शताब्‍दी के पूर्वार्द्ध में उत्तर-पूर्वी भारत में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके बाद गोपाल ने सत्ता संभाली और पाल राजवंश की स्‍थापना की। पालों ने विशाल साम्राज्‍य खड़ा किया और चार शताब्‍दियों तक राज्‍य किया। पाल राजाओं के बाद बंगाल पर सेन राजवंश का अधिकार हुआ, जिसे दिल्‍ली के मुस्‍लिम शासकों ने परास्‍त किया। सोलहवीं शताब्‍दी में मुगलकाल के प्रारंभ से पहले बंगाल पर अनेक मुस्‍लमान राजाओं और सुल्तानों ने शासन किया। मुगलों के पश्‍चात् आधुनिक बंगाल का इतिहास यूरोपीय तथा अंग्रेजी व्‍यापारिक कंपनियों के आगमन से आरंभ होता है। सन् 1757 में प्‍लासी के युद्ध ने इतिहास की धारा को मोड़ दिया जब अंग्रेजों ने पहले-पहल बंगाल और भारत में अपने पांव जमाए। सन् 1905 में राजनीतिक लाभ के लिए अंग्रेजों ने बंगाल का विभाजन कर दिया लेकिन कांग्रेस के नेतृत्‍व में लोगों के बढ़ते हुए आक्रोश को देखते हुए 1911 में बंगाल को फिर से एक कर दिया गया। इससे स्‍वतंत्रता आंदोलन की ज्‍वाला और तेजी से भड़क उठी, जिसका पटाक्षेप 1947 में देश की आजादी और विभाजन के साथ हुआ। 1947 के बाद देशी रियासतों के विलय का काम शुरू हुआ और राज्‍य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 की सिफारिशों के अनुसार पड़ोसी राज्‍यों के कुछ बांग्‍लाभाषी क्षेत्रों को भी पश्‍चिम बंगाल में मिला दिया गया। .

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बक्सर का युद्ध

बक्सर का युद्ध २२ अक्टूबर १७६४ में बक्सर नगर के आसपास ईस्ट इंडिया कंपनी के हैक्टर मुनरो और मुगल तथा नबाबों की सेनाओं के बीच लड़ा गया था। बंगाल के नबाब मीर कासिम, अवध के नबाब शुजाउद्दौला, तथा मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय की संयुक्त सेना अंग्रेज कंपनी से लड़ रही थी। लड़ाई में अंग्रेजों की जीत हुई और इसके परिणामस्वरूप पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, उड़ीसा और बांग्लादेश का दीवानी और राजस्व अधिकार अंग्रेज कंपनी के हाथ चला गया। .

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बौद्ध धर्म

बौद्ध धर्म भारत की श्रमण परम्परा से निकला धर्म और महान दर्शन है। इसा पूर्व 6 वी शताब्धी में बौद्ध धर्म की स्थापना हुई है। बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध है। भगवान बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में लुंबिनी, नेपाल और महापरिनिर्वाण 483 ईसा पूर्व कुशीनगर, भारत में हुआ था। उनके महापरिनिर्वाण के अगले पाँच शताब्दियों में, बौद्ध धर्म पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैला और अगले दो हजार वर्षों में मध्य, पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी जम्बू महाद्वीप में भी फैल गया। आज, हालाँकि बौद्ध धर्म में चार प्रमुख सम्प्रदाय हैं: हीनयान/ थेरवाद, महायान, वज्रयान और नवयान, परन्तु बौद्ध धर्म एक ही है किन्तु सभी बौद्ध सम्प्रदाय बुद्ध के सिद्धान्त ही मानते है। बौद्ध धर्म दुनिया का चौथा सबसे बड़ा धर्म है।आज पूरे विश्व में लगभग ५४ करोड़ लोग बौद्ध धर्म के अनुयायी है, जो दुनिया की आबादी का ७वाँ हिस्सा है। आज चीन, जापान, वियतनाम, थाईलैण्ड, म्यान्मार, भूटान, श्रीलंका, कम्बोडिया, मंगोलिया, तिब्बत, लाओस, हांगकांग, ताइवान, मकाउ, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया एवं उत्तर कोरिया समेत कुल 18 देशों में बौद्ध धर्म 'प्रमुख धर्म' धर्म है। भारत, नेपाल, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, रूस, ब्रुनेई, मलेशिया आदि देशों में भी लाखों और करोडों बौद्ध हैं। .

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बोधिसत्व

बौद्ध धर्म में, बोधिसत्व (बोधिसत्त्व; बोधिसत्त) सत्त्व के लिए प्रबुद्ध (शिक्षा दिये हुये) को कहते हैं। पारम्परिक रूप से महान दया से प्रेरित, बोधिचित्त जनित, सभी संवेदनशील प्राणियों के लाभ के लिए सहज इच्छा से बुद्धत्व प्राप्त करने वाले को बोधिसत्व माना जाता है। तिब्बती बौद्ध धर्म के अनुसार, बोधिसत्व मानव द्वारा जीवन में प्राप्त करने योग्य चार उत्कृष्ठ अवस्थाओं में से एक है। बोधिसत्व शब्द का उपयोग समय के साथ विकसित हुआ। प्राचीन भारतीय बौद्ध धर्म के अनुसार, उदाहरण के लिए गौतम बुद्ध के पूर्व जीवन को विशिष्ट रूप से प्रदर्शित करने के लिए काम में लिया जाता था।http://www.britannica.com/EBchecked/topic/70982/bodhisattva दस पारमिताओं का पूर्ण पालन करने वाला बोधिसत्व कहलाता है। बोधिसत्व जब दस बलों या भूमियों (मुदिता, विमला, दीप्ति, अर्चिष्मती, सुदुर्जया, अभिमुखी, दूरंगमा, अचल, साधुमती, धम्म-मेघा) को प्राप्त कर लेते हैं तब " गौतम बुद्ध " कहलाते हैं, बुद्ध बनना ही बोधिसत्व के जीवन की पराकाष्ठा है। इस पहचान को बोधि (ज्ञान) नाम दिया गया है। कहा जाता है कि बुद्ध शाक्यमुनि केवल एक बुद्ध हैं - उनके पहले बहुत सारे थे और भविष्य में और होंगे। उनका कहना था कि कोई भी बुद्ध बन सकता है अगर वह दस पारमिताओं का पूर्ण पालन करते हुए बोधिसत्व प्राप्त करे और बोधिसत्व के बाद दस बलों या भूमियों को प्राप्त करे। बौद्ध धर्म का अन्तिम लक्ष्य है सम्पूर्ण मानव समाज से दुःख का अंत। "मैं केवल एक ही पदार्थ सिखाता हूँ - दुःख है, दुःख का कारण है, दुःख का निरोध है, और दुःख के निरोध का मार्ग है" (बुद्ध)। बौद्ध धर्म के अनुयायी अष्टांगिक मार्ग पर चलकर न के अनुसार जीकर अज्ञानता और दुःख से मुक्ति और निर्वाण पाने की कोशिश करते हैं। .

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बीजू पटनायक

बीजू पटनायक (ବିଜୁ ପଟ୍ଟନାୟକ, 5 मार्च 1916 - 17 अप्रैल 1997) एक भारतीय राजनीतिज्ञ,और दो बार ओडिशा के मुख्यमंत्री थे। इनके नाम पर बीजू पटनायक हवाई अड्डा है। .

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भद्रक

भद्रक भारत के उड़ीसा प्रान्त का एक जिला है। श्रेणी:शहर.

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भारत का इतिहास

भारत का इतिहास कई हजार साल पुराना माना जाता है। मेहरगढ़ पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान है जहाँ नवपाषाण युग (७००० ईसा-पूर्व से २५०० ईसा-पूर्व) के बहुत से अवशेष मिले हैं। सिन्धु घाटी सभ्यता, जिसका आरंभ काल लगभग ३३०० ईसापूर्व से माना जाता है, प्राचीन मिस्र और सुमेर सभ्यता के साथ विश्व की प्राचीनतम सभ्यता में से एक हैं। इस सभ्यता की लिपि अब तक सफलता पूर्वक पढ़ी नहीं जा सकी है। सिंधु घाटी सभ्यता वर्तमान पाकिस्तान और उससे सटे भारतीय प्रदेशों में फैली थी। पुरातत्त्व प्रमाणों के आधार पर १९०० ईसापूर्व के आसपास इस सभ्यता का अक्स्मात पतन हो गया। १९वी शताब्दी के पाश्चात्य विद्वानों के प्रचलित दृष्टिकोणों के अनुसार आर्यों का एक वर्ग भारतीय उप महाद्वीप की सीमाओं पर २००० ईसा पूर्व के आसपास पहुंचा और पहले पंजाब में बस गया और यहीं ऋग्वेद की ऋचाओं की रचना की गई। आर्यों द्वारा उत्तर तथा मध्य भारत में एक विकसित सभ्यता का निर्माण किया गया, जिसे वैदिक सभ्यता भी कहते हैं। प्राचीन भारत के इतिहास में वैदिक सभ्यता सबसे प्रारंभिक सभ्यता है जिसका संबंध आर्यों के आगमन से है। इसका नामकरण आर्यों के प्रारम्भिक साहित्य वेदों के नाम पर किया गया है। आर्यों की भाषा संस्कृत थी और धर्म "वैदिक धर्म" या "सनातन धर्म" के नाम से प्रसिद्ध था, बाद में विदेशी आक्रांताओं द्वारा इस धर्म का नाम हिन्दू पड़ा। वैदिक सभ्यता सरस्वती नदी के तटीय क्षेत्र जिसमें आधुनिक भारत के पंजाब (भारत) और हरियाणा राज्य आते हैं, में विकसित हुई। आम तौर पर अधिकतर विद्वान वैदिक सभ्यता का काल २००० ईसा पूर्व से ६०० ईसा पूर्व के बीच में मानते है, परन्तु नए पुरातत्त्व उत्खननों से मिले अवशेषों में वैदिक सभ्यता से संबंधित कई अवशेष मिले है जिससे कुछ आधुनिक विद्वान यह मानने लगे हैं कि वैदिक सभ्यता भारत में ही शुरु हुई थी, आर्य भारतीय मूल के ही थे और ऋग्वेद का रचना काल ३००० ईसा पूर्व रहा होगा, क्योंकि आर्यो के भारत में आने का न तो कोई पुरातत्त्व उत्खननों पर अधारित प्रमाण मिला है और न ही डी एन ए अनुसन्धानों से कोई प्रमाण मिला है। हाल ही में भारतीय पुरातत्व परिषद् द्वारा की गयी सरस्वती नदी की खोज से वैदिक सभ्यता, हड़प्पा सभ्यता और आर्यों के बारे में एक नया दृष्टिकोण सामने आया है। हड़प्पा सभ्यता को सिन्धु-सरस्वती सभ्यता नाम दिया है, क्योंकि हड़प्पा सभ्यता की २६०० बस्तियों में से वर्तमान पाकिस्तान में सिन्धु तट पर मात्र २६५ बस्तियां थीं, जबकि शेष अधिकांश बस्तियां सरस्वती नदी के तट पर मिलती हैं, सरस्वती एक विशाल नदी थी। पहाड़ों को तोड़ती हुई निकलती थी और मैदानों से होती हुई समुद्र में जाकर विलीन हो जाती थी। इसका वर्णन ऋग्वेद में बार-बार आता है, यह आज से ४००० साल पूर्व भूगर्भी बदलाव की वजह से सूख गयी थी। ईसा पूर्व ७ वीं और शुरूआती ६ वीं शताब्दि सदी में जैन और बौद्ध धर्म सम्प्रदाय लोकप्रिय हुए। अशोक (ईसापूर्व २६५-२४१) इस काल का एक महत्वपूर्ण राजा था जिसका साम्राज्य अफगानिस्तान से मणिपुर तक और तक्षशिला से कर्नाटक तक फैल गया था। पर वो सम्पूर्ण दक्षिण तक नहीं जा सका। दक्षिण में चोल सबसे शक्तिशाली निकले। संगम साहित्य की शुरुआत भी दक्षिण में इसी समय हुई। भगवान गौतम बुद्ध के जीवनकाल में, ईसा पूर्व ७ वीं और शुरूआती ६ वीं शताब्दि के दौरान सोलह बड़ी शक्तियां (महाजनपद) विद्यमान थे। अति महत्‍वपूर्ण गणराज्‍यों में कपिलवस्‍तु के शाक्‍य और वैशाली के लिच्‍छवी गणराज्‍य थे। गणराज्‍यों के अलावा राजतंत्रीय राज्‍य भी थे, जिनमें से कौशाम्‍बी (वत्‍स), मगध, कोशल, कुरु, पान्चाल, चेदि और अवन्ति महत्‍वपूर्ण थे। इन राज्‍यों का शासन ऐसे शक्तिशाली व्‍यक्तियों के पास था, जिन्‍होंने राज्‍य विस्‍तार और पड़ोसी राज्‍यों को अपने में मिलाने की नीति अपना रखी थी। तथापि गणराज्‍यात्‍मक राज्‍यों के तब भी स्‍पष्‍ट संकेत थे जब राजाओं के अधीन राज्‍यों का विस्‍तार हो रहा था। इसके बाद भारत छोटे-छोटे साम्राज्यों में बंट गया। आठवीं सदी में सिन्ध पर अरबी अधिकार हो गाय। यह इस्लाम का प्रवेश माना जाता है। बारहवीं सदी के अन्त तक दिल्ली की गद्दी पर तुर्क दासों का शासन आ गया जिन्होंने अगले कई सालों तक राज किया। दक्षिण में हिन्दू विजयनगर और गोलकुंडा के राज्य थे। १५५६ में विजय नगर का पतन हो गया। सन् १५२६ में मध्य एशिया से निर्वासित राजकुमार बाबर ने काबुल में पनाह ली और भारत पर आक्रमण किया। उसने मुग़ल वंश की स्थापना की जो अगले ३०० सालों तक चला। इसी समय दक्षिण-पूर्वी तट से पुर्तगाल का समुद्री व्यापार शुरु हो गया था। बाबर का पोता अकबर धार्मिक सहिष्णुता के लिए विख्यात हुआ। उसने हिन्दुओं पर से जज़िया कर हटा लिया। १६५९ में औरंग़ज़ेब ने इसे फ़िर से लागू कर दिया। औरंग़ज़ेब ने कश्मीर में तथा अन्य स्थानों पर हिन्दुओं को बलात मुसलमान बनवाया। उसी समय केन्द्रीय और दक्षिण भारत में शिवाजी के नेतृत्व में मराठे शक्तिशाली हो रहे थे। औरंगज़ेब ने दक्षिण की ओर ध्यान लगाया तो उत्तर में सिखों का उदय हो गया। औरंग़ज़ेब के मरते ही (१७०७) मुगल साम्राज्य बिखर गया। अंग्रेज़ों ने डचों, पुर्तगालियों तथा फ्रांसिसियों को भगाकर भारत पर व्यापार का अधिकार सुनिश्चित किया और १८५७ के एक विद्रोह को कुचलने के बाद सत्ता पर काबिज़ हो गए। भारत को आज़ादी १९४७ में मिली जिसमें महात्मा गाँधी के अहिंसा आधारित आंदोलन का योगदान महत्वपूर्ण था। १९४७ के बाद से भारत में गणतांत्रिक शासन लागू है। आज़ादी के समय ही भारत का विभाजन हुआ जिससे पाकिस्तान का जन्म हुआ और दोनों देशों में कश्मीर सहित अन्य मुद्दों पर तनाव बना हुआ है। .

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भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, अधिकतर कांग्रेस के नाम से प्रख्यात, भारत के दो प्रमुख राजनैतिक दलों में से एक हैं, जिन में अन्य भारतीय जनता पार्टी हैं। कांग्रेस की स्थापना ब्रिटिश राज में २८ दिसंबर १८८५ में हुई थी; इसके संस्थापकों में ए ओ ह्यूम (थियिसोफिकल सोसाइटी के प्रमुख सदस्य), दादा भाई नौरोजी और दिनशा वाचा शामिल थे। १९वी सदी के आखिर में और शुरूआती से लेकर मध्य २०वी सदी में, कांग्रेस भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में, अपने १.५ करोड़ से अधिक सदस्यों और ७ करोड़ से अधिक प्रतिभागियों के साथ, ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के विरोध में एक केन्द्रीय भागीदार बनी। १९४७ में आजादी के बाद, कांग्रेस भारत की प्रमुख राजनीतिक पार्टी बन गई। आज़ादी से लेकर २०१६ तक, १६ आम चुनावों में से, कांग्रेस ने ६ में पूर्ण बहुमत जीता हैं और ४ में सत्तारूढ़ गठबंधन का नेतृत्व किया; अतः, कुल ४९ वर्षों तक वह केन्द्र सरकार का हिस्सा रही। भारत में, कांग्रेस के सात प्रधानमंत्री रह चुके हैं; पहले जवाहरलाल नेहरू (१९४७-१९६५) थे और हाल ही में मनमोहन सिंह (२००४-२०१४) थे। २०१४ के आम चुनाव में, कांग्रेस ने आज़ादी से अब तक का सबसे ख़राब आम चुनावी प्रदर्शन किया और ५४३ सदस्यीय लोक सभा में केवल ४४ सीट जीती। तब से लेकर अब तक कोंग्रेस कई विवादों में घिरी हुई है, कोंग्रेस द्वारा भारतीय आर्मी का मनोबल गिराने का देश में विरोध किया जा रहा है । http://www.allianceofdemocrats.org/index.php?option.

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भुवनेश्वर

भुवनेश्वर (भुबनेस्वर भी) ओडिशा की राजधानी है। यंहा के निकट कोणार्क में विश्व प्रसिद्ध सूर्य मंदिर स्थित है। भुवनेश्‍वर भारत के पूर्व में स्थित ओडिशा राज्‍य की राजधानी है। यह बहुत ही खूबसूरत और हरा-भरा प्रदेश है। यहां की प्राकृतिक सुंदरता देखते ही बनती है। यह जगह इतिहास में भी अपना महत्‍वपूर्ण स्‍थान रखता है। तीसरी शताब्‍दी ईसा पूर्व में यहीं प्रसिद्ध कलिंग युद्ध हुआ था। इसी युद्ध के परिणामस्‍वरुप अशोक एक लड़ाकू योद्धा से प्रसिद्ध बौद्ध अनुयायी के रूप में परिणत हो गया था। भुवनेश्‍वर को पूर्व का काशी भी कहा जाता है। लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि यह एक प्रसिद्ध बौद्ध स्‍थल भी रहा है। प्राचीन काल में 1000 वर्षों तक बौद्ध धर्म यहां फलता-फूलता रहा है। बौद्ध धर्म की तरह जैनों के लिए भी यह जगह काफी महत्‍वपूर्ण है। प्रथम शताब्‍दी में यहां चेदी वंश का एक प्रसिद्ध जैन राजा खारवेल' हुए थे। इसी तरह सातवीं शताब्‍दी में यहां प्रसिद्ध हिंदू मंदिरों का निर्माण हुआ था। इस प्रकार भुवनेश्‍वर वर्तमान में एक बहुसांस्‍कृतिक शहर है। ओडिशा की इस वर्तमान राजधानी का निमार्ण इंजीनियरों और वास्‍तुविदों ने उपयोगितावादी सिद्धांत के आधार पर किया है। इस कारण नया भुवनेश्‍वर प्राचीन भुवनेश्‍वर के समान बहुत सुंदर तथा भव्‍य नहीं है। यहां आश्‍चर्यजनक मंदिरों तथा गुफाओं के अलावा कोई अन्‍य सांस्‍कृतिक स्‍थान देखने योग्‍य नहीं है। .

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मथुरा

मथुरा उत्तरप्रदेश प्रान्त का एक जिला है। मथुरा एक ऐतिहासिक एवं धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। लंबे समय से मथुरा प्राचीन भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता का केंद्र रहा है। भारतीय धर्म,दर्शन कला एवं साहित्य के निर्माण तथा विकास में मथुरा का महत्त्वपूर्ण योगदान सदा से रहा है। आज भी महाकवि सूरदास, संगीत के आचार्य स्वामी हरिदास, स्वामी दयानंद के गुरु स्वामी विरजानंद, कवि रसखान आदि महान आत्माओं से इस नगरी का नाम जुड़ा हुआ है। मथुरा को श्रीकृष्ण जन्म भूमि के नाम से भी जाना जाता है। .

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मदल पंजी

मदल पंजी (Palm-leaf Chronicles) ओडिशा के जगन्नाथ पुरी के जगन्नाथ का इतिहास है। इसमें भगवान जगन्नाथ और जगन्नाथ मन्दिर से सम्बन्धित घटनाओं का वर्णन है। इस पंजी के आरम्भ होने की वास्तविक तिथि ज्ञात नहीं है किन्तु ऐसा अनुमान किया जाता है कि यह १३वीं या १४वीं शती में आरम्भ हुई होगी। यह पुस्तक साहित्यिक दृष्टि से अनूठी है। इसकी तुलना श्रीलंका के राजवंशम् से, कश्मीर के राजतरंगिणी से और असम के बुरुंजी से की जा सकती है। इसमें गद्य का प्रयोग हुआ है। .

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मधुसूदन दास

मधुसूदन दास की प्रतिमा मधुसूदन दास (२८ अप्रैल १८४८ - ४ फ़रवरी १९३४) ओड़िया साहित्यकार एवं ओडिया-आन्दोलन के जनक थे। उन्हें उत्कल-गौरव कहा जाता है। उन्होने ही सबसे पहले 'स्वतंत्र ओड़िशा' की संकल्पना की थी। वे 'मधुबाबु' नाम से सर्वत्र जाने जाते थे। .

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मराठा

मराठा (पुरातन रूप से मरहट्टा या मारहट्टा के रूप में लिप्यंतरित) भारत में जातियों का एक समूह मुख्य रूप से महाराष्ट्र राज्य में रहता है। एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका के मुताबिक, "मराठा, भारत के इतिहास के बहादुर लोग हैं, इतिहास में प्रचलित हैं और हिंदू धर्म के विजेता हैं।" वे मुख्यतः भारतीय राज्य महाराष्ट्र में रहते हैं। ब्रिटिश राज काल के एक अप्रशिक्षित नृवंशविद वैज्ञानिक रॉबर्ट वाणे रसेल, जो वैदिक साहित्य पर बड़े पैमाने पर अपने शोध का आधार था, ने लिखा कि मराठों को 96 विभिन्न कुलों में विभाजित किया जाता है, जिसे 96 कुलि मराठों या 'शाहनु कुले', के रूप में जाना जाता है, जो की क्षत्रिय है मराठी, में शाहन्नौ का मतलब है 96। सूचियों का सामान्य निकाय अक्सर एक-दूसरे के साथ महान विचरण होता है। .

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महानदी

छत्तीसगढ़ तथा उड़ीसा अंचल की सबसे बड़ी नदी है। प्राचीनकाल में महानदी का नाम चित्रोत्पला था। महानन्दा एवं नीलोत्पला भी महानदी के ही नाम हैं। महानदी का उद्गम रायपुर के समीप धमतरी जिले में स्थित सिहावा नामक पर्वत श्रेणी से हुआ है। महानदी का प्रवाह दक्षिण से उत्तर की तरफ है। सिहावा से निकलकर राजिम में यह जब पैरी और सोढुल नदियों के जल को ग्रहण करती है तब तक विशाल रूप धारण कर चुकी होती है। ऐतिहासिक नगरी आरंग और उसके बाद सिरपुर में वह विकसित होकर शिवरीनारायण में अपने नाम के अनुरुप महानदी बन जाती है। महानदी की धारा इस धार्मिक स्थल से मुड़ जाती है और दक्षिण से उत्तर के बजाय यह पूर्व दिशा में बहने लगती है। संबलपुर में जिले में प्रवेश लेकर महानदी छ्त्तीसगढ़ से बिदा ले लेती है। अपनी पूरी यात्रा का आधे से अधिक भाग वह छत्तीसगढ़ में बिताती है। सिहावा से निकलकर बंगाल की खाड़ी में गिरने तक महानदी लगभग ८५५ कि॰मी॰ की दूरी तय करती है। छत्तीसगढ़ में महानदी के तट पर धमतरी, कांकेर, चारामा, राजिम, चम्पारण, आरंग, सिरपुर, शिवरी नारायण और उड़ीसा में सम्बलपुर, बलांगीर, कटक आदि स्थान हैं तथा पैरी, सोंढुर, शिवनाथ, हसदेव, अरपा, जोंक, तेल आदि महानदी की प्रमुख सहायक नदियाँ हैं। महानदी का डेल्टा कटक नगर से लगभग सात मील पहले से शुरू होता है। यहाँ से यह कई धाराओं में विभक्त हो जाती है तथा बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। इस पर बने प्रमुख बाँध हैं- रुद्री, गंगरेल तथा हीराकुंड। यह नदी पूर्वी मध्यप्रदेश और उड़ीसा की सीमाओं को भी निर्धारित करती है। .

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महामेघवाहन वंश

भुवनेश्वर के समीप उदयगिरि पहाड़ी पर हाथीगुंफा के अभिलेख से कलिंग में एक चेति (चेदि) राजवंश का इतिहास ज्ञात होता है। यह वंश अपने को प्राचीन चेदि नरेश वसु की संतति (वसु-उपरिचर) कहता है। कलिंग में इस वंश की स्थापना संभवत: महामेघवाहन ने की थी जिसके नाम पर इस वंश के नरेश महामेघवाहन भी कहलाते थे। खारवेल, जिसके समय में हाथीगुंफा का अभिलेख उत्कीर्ण हुआ इस वंश की तीसरी पीढ़ी में था। महामेघवाहन और खारवेल के बीच का इतिहास अज्ञात है। महाराज वक्रदेव, जिसके समय में उदयगिरि पहाड़ी की मंचपुरी गुफा का निचला भाग बना, इस राजवंश की संभवत: दूसरी पीढ़ी में था और खारवेल का पिता था। .

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मार्च

मार्च ग्रेगोरी कैलंडर का तीसरा महीना है। यह उन सात महीनों में से एक है जिनके दिनों की संख्या ३१ होती है। मार्च के दूसरे गुरूवार को “विश्व किडनी दिवस” मनाया जाता है। 04 मार्च : – राष्ट्रीय सुरक्षा दिवस 08 मार्च : – अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 13 मार्च : – नहीं धूम्रपान दिवस 15 मार्च : – विश्व उपभोक्ता अधिकार                                       दिवस 18 मार्च : – आयुध निर्माण दिवस 21 मार्च : – विश्व वन दिवस 22 मार्च : – विश्व जल दिवस / बिहार     दिवस 23 मार्च : – विश्व मौसम विज्ञान दिवस 24 मार्च : – विश्व तापेदिक / क्षयरोग दिवस 26 मार्च : – बांग्‍लादेश का राष्‍ट्रीय दिवस 27 मार्च : – विश्व रंगमंच दिवस.

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मगध महाजनपद

मगध प्राचीन भारत के 16 महाजनपदों में से एक था। आधुनिक पटना तथा गया ज़िला इसमें शामिल थे। इसकी राजधानी गिरिव्रज (वर्तमान राजगीर) थी। भगवान बुद्ध के पूर्व बृहद्रथ तथा जरासंध यहाँ के प्रतिष्ठित राजा थे। अभी इस नाम से बिहार में एक प्रंमडल है - मगध प्रमंडल। (२) सुमसुमार पर्वत के भाग, (३) केसपुत्र के कालाम, (४) रामग्राम के कोलिय, (५) कुशीमारा के मल्ल, (६) पावा के मल्ल, (७) पिप्पलिवन के मौर्य, (८) आयकल्प के बुलि, (९) वैशाली के लिच्छवि, (१०) मिथिला के विदेह। -- .

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मुग़ल साम्राज्य

मुग़ल साम्राज्य (फ़ारसी:, मुग़ल सलतनत-ए-हिंद; तुर्की: बाबर इम्परातोरलुग़ु), एक इस्लामी तुर्की-मंगोल साम्राज्य था जो 1526 में शुरू हुआ, जिसने 17 वीं शताब्दी के आखिर में और 18 वीं शताब्दी की शुरुआत तक भारतीय उपमहाद्वीप में शासन किया और 19 वीं शताब्दी के मध्य में समाप्त हुआ। मुग़ल सम्राट तुर्क-मंगोल पीढ़ी के तैमूरवंशी थे और इन्होंने अति परिष्कृत मिश्रित हिन्द-फारसी संस्कृति को विकसित किया। 1700 के आसपास, अपनी शक्ति की ऊँचाई पर, इसने भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश भाग को नियंत्रित किया - इसका विस्तार पूर्व में वर्तमान बंगलादेश से पश्चिम में बलूचिस्तान तक और उत्तर में कश्मीर से दक्षिण में कावेरी घाटी तक था। उस समय 40 लाख किमी² (15 लाख मील²) के क्षेत्र पर फैले इस साम्राज्य की जनसंख्या का अनुमान 11 और 13 करोड़ के बीच लगाया गया था। 1725 के बाद इसकी शक्ति में तेज़ी से गिरावट आई। उत्तराधिकार के कलह, कृषि संकट की वजह से स्थानीय विद्रोह, धार्मिक असहिष्णुता का उत्कर्ष और ब्रिटिश उपनिवेशवाद से कमजोर हुए साम्राज्य का अंतिम सम्राट बहादुर ज़फ़र शाह था, जिसका शासन दिल्ली शहर तक सीमित रह गया था। अंग्रेजों ने उसे कैद में रखा और 1857 के भारतीय विद्रोह के बाद ब्रिटिश द्वारा म्यानमार निर्वासित कर दिया। 1556 में, जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर, जो महान अकबर के नाम से प्रसिद्ध हुआ, के पदग्रहण के साथ इस साम्राज्य का उत्कृष्ट काल शुरू हुआ और सम्राट औरंगज़ेब के निधन के साथ समाप्त हुआ, हालाँकि यह साम्राज्य और 150 साल तक चला। इस समय के दौरान, विभिन्न क्षेत्रों को जोड़ने में एक उच्च केंद्रीकृत प्रशासन निर्मित किया गया था। मुग़लों के सभी महत्वपूर्ण स्मारक, उनके ज्यादातर दृश्य विरासत, इस अवधि के हैं। .

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म्यान्मार

म्यांमार यो ब्रह्मदेश दक्षिण एशिया का एक देश है। इसका आधुनिक बर्मी नाम 'मयन्मा' (မြန်မာ .

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मौर्य राजवंश

मौर्य राजवंश (३२२-१८५ ईसापूर्व) प्राचीन भारत का एक शक्तिशाली एवं महान राजवंश था। इसने १३७ वर्ष भारत में राज्य किया। इसकी स्थापना का श्रेय चन्द्रगुप्त मौर्य और उसके मन्त्री कौटिल्य को दिया जाता है, जिन्होंने नन्द वंश के सम्राट घनानन्द को पराजित किया। मौर्य साम्राज्य के विस्तार एवं उसे शक्तिशाली बनाने का श्रेय सम्राट अशोक को जाता है। यह साम्राज्य पूर्व में मगध राज्य में गंगा नदी के मैदानों (आज का बिहार एवं बंगाल) से शुरु हुआ। इसकी राजधानी पाटलिपुत्र (आज के पटना शहर के पास) थी। चन्द्रगुप्त मौर्य ने ३२२ ईसा पूर्व में इस साम्राज्य की स्थापना की और तेजी से पश्चिम की तरफ़ अपना साम्राज्य का विकास किया। उसने कई छोटे छोटे क्षेत्रीय राज्यों के आपसी मतभेदों का फायदा उठाया जो सिकन्दर के आक्रमण के बाद पैदा हो गये थे। ३१६ ईसा पूर्व तक मौर्य वंश ने पूरे उत्तरी पश्चिमी भारत पर अधिकार कर लिया था। चक्रवर्ती सम्राट अशोक के राज्य में मौर्य वंश का बेहद विस्तार हुआ। सम्राट अशोक के कारण ही मौर्य साम्राज्य सबसे महान एवं शक्तिशाली बनकर विश्वभर में प्रसिद्ध हुआ। .

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मेदिनीपुर

मेदिनीपुर भारत के पश्चिम बंगाल प्रान्त का एक जिला है। श्रेणी:शहर.

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युद्ध

वर्ष १९४५ में कोलोन युद्ध एक लंबे समय तक चलने वाला आक्रामक कृत्य है जो सामान्यतः राज्यों के बीच झगड़ों के आक्रामक और हथियारबंद लड़ाई में परिवर्तित होने से उत्पन्न होता है। .

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रत्नागिरि

बाल गंगाधर तिलक की यह जन्‍मस्‍थली भारत के महाराष्ट्र राज्‍य के दक्षिण-पश्चिम भाग में अरब सागर के तट पर स्थित है। यह कोंकण क्षेत्र का ही एक भाग है। यहां बहुत लंबा समुद्र तट हैं। यहां कई बंदरगाह भी हैं। यह क्षेत्र पश्चिम में सहयाद्रि पर्वतमाला से घिरा हुआ है। रत्नागिरि अल्‍फांसो आम के लिए भी प्रसिद्ध है। .

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रामानुज

रामानुजाचार्य (अंग्रेजी: Ramanuja जन्म: १०१७ - मृत्यु: ११३७) विशिष्टाद्वैत वेदान्त के प्रवर्तक थे। वह ऐसे वैष्णव सन्त थे जिनका भक्ति परम्परा पर बहुत गहरा प्रभाव रहा। वैष्णव आचार्यों में प्रमुख रामानुजाचार्य की शिष्य परम्परा में ही रामानन्द हुए जिनके शिष्य कबीर और सूरदास थे। रामानुज ने वेदान्त दर्शन पर आधारित अपना नया दर्शन विशिष्ट अद्वैत वेदान्त लिखा था। रामानुजाचार्य ने वेदान्त के अलावा सातवीं-दसवीं शताब्दी के रहस्यवादी एवं भक्तिमार्गी आलवार सन्तों के भक्ति-दर्शन तथा दक्षिण के पंचरात्र परम्परा को अपने विचारों का आधार बनाया। .

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राष्ट्रपति शासन

राष्ट्रपति शासन (या केन्द्रीय शासन) भारत में शासन के संदर्भ में उस समय प्रयोग किया जाने वाला एक पारिभाषिक शब्द है, जब किसी राज्य सरकार को भंग या निलंबित कर दिया जाता है और राज्य प्रत्यक्ष संघीय शासन के अधीन आ जाता है। भारत के संविधान का अनुच्छेद-356, केंद्र की संघीय सरकार को राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता या संविधान के स्पष्ट उल्लंघन की दशा में उस राज्य सरकार को बर्खास्त कर उस राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने का अधिकार देता है। राष्ट्रपति शासन उस स्थिति में भी लागू होता है, जब राज्य विधानसभा में किसी भी दल या गठबंधन को स्पष्ट बहुमत नहीं हो। सत्तारूढ़ पार्टी या केंद्रीय (संघीय) सरकार की सलाह पर, राज्यपाल अपने विवेक पर सदन को भंग कर सकते हैं, यदि सदन में किसी पार्टी या गठबंधन के पास स्पष्ट बहुमत ना हो। राज्यपाल सदन को छह महीने की अवधि के लिए ‘निलंबित अवस्था' में रख सकते हैं। छह महीने के बाद, यदि फिर कोई स्पष्ट बहुमत प्राप्त ना हो तो उस दशा में पुन: चुनाव आयोजित किये जाते हैं। इसे राष्ट्रपति शासन इसलिए कहा जाता है क्योंकि, इसके द्वारा राज्य का नियंत्रण बजाय एक निर्वाचित मुख्यमंत्री के, सीधे भारत के राष्ट्रपति के अधीन आ जाता है, लेकिन प्रशासनिक दृष्टि से राज्य के राज्यपाल को केंद्रीय सरकार द्वारा कार्यकारी अधिकार प्रदान किये जाते हैं। प्रशासन में मदद करने के लिए राज्यपाल आम तौर पर सलाहकारों की नियुक्ति करता है, जो आम तौर पर सेवानिवृत्त सिविल सेवक होते हैं। आमतौर पर इस स्थिति में राज्य में केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी की नीतियों का अनुसरण होता है। .

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राजा मान सिंह

राजा मान सिंह आमेर का राजमहल राजा मान सिंह आमेर (आम्बेर) के कच्छवाहा राजपूत राजा थे। उन्हें 'मान सिंह प्रथम' के नाम से भी जाना जाता है। राजा भगवन्त दास इनके पिता थे। वह अकबर की सेना के प्रधान सेनापति, थे। उन्होने आमेर के मुख्य महल के निर्माण कराया। महान इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने लिखा है- " भगवान दास के उत्तराधिकारी मानसिंह को अकबर के दरबार में श्रेष्ठ स्थान मिला था।..मानसिंह ने उडीसा और आसाम को जीत कर उनको बादशाह अकबर के अधीन बना दिया.

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लिंगराज मंदिर

लिंगराज मंदिर भारत के ओडिशा प्रांत की राजधानी भुवनेश्वर में स्थित है। यह भुवनेश्वर का मुख्य मन्दिर है तथा इस नगर के प्राचीनतम मंदिरों में से एक है। यह भगवान त्रिभुवनेश्वर को समर्पित है। इसे ललाटेडुकेशरी ने 617-657 ई. में बनवाया था। यद्यपि इस मंदिर का वर्तमान स्वरूप 1090-1104 में बना, किंतु इसके कुछ हिस्से 1400 वर्ष से भी अधिक पुराने हैं। इस मंदिर का वर्णन छठी शताब्दी के लेखों में भी आता है। .

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सदाशिव त्रिपाठी

सदाशिव त्रिपाठी (२१ अप्रैल १९१० – ९ सितम्बर १९८०) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राजनीतिज्ञ थे। वो २१ फ़रवरी १९६५ से ८ मार्च १९६७ तक ओडिशा के मुख्यमंत्री रहे। .

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समुद्रगुप्त

समुद्रगुप्त (राज 335-380) गुप्त राजवंश के चौथे राजा और चन्द्रगुप्त प्रथम के उत्तरधिकरी थे। वे भारतीय इतिहास में सबसे बड़े और सफल सेनानायक में से एक माने जाते है। समुद्रगुप्त, गुप्त राजवंश के तीसरे शासक थे, और उनका शासनकाल भारत के लिये स्वर्णयुग की शुरूआत कही जाती है। समुद्रगुप्त को गुप्त राजवंश का महानतम राजा माना जाता है। वे एक उदार शासक, वीर योद्धा और कला के संरक्षक थे। उनका नाम जावा पाठ में तनत्रीकमन्दका के नाम से प्रकट है। उसका नाम समुद्र की चर्चा करते हुए अपने विजय अभियान द्वारा अधिग्रहीत एक शीर्षक होना करने के लिए लिया जाता है जिसका अर्थ है "महासागर"। समुद्रगुप्त के कई अग्रज भाई थे, फिर भी उनके पिता ने समुद्रगुप्त की प्रतिभा के देख कर उन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। इसलिए कुछ का मानना है कि चंद्रगुप्त की मृत्यु के बाद, उत्तराधिकारी के लिये संघर्ष हुआ जिसमें समुद्रगुप्त एक प्रबल दावेदार बन कर उभरे। कहा जाता है कि समुद्रगुप्त ने शासन पाने के लिये अपने प्रतिद्वंद्वी अग्रज राजकुमार काछा को हराया था। समुद्रगुप्त का नाम सम्राट अशोक के साथ जोड़ा जाता रहा है, हलांकि वे दोनो एक-दूसरे से बिल्कुल भिन्न थे। एक अपने विजय अभियान के लिये जाने जाते थे और दूसरे अपने जुनून के लिये जाने जाते थे। गुप्तकालीन मुद्रा पर वीणा बजाते हुए समुद्रगुप्त का चित्र समुद्र्गुप्त भारत का महान शासक था जिसने अपने जीवन काल मे कभी भी पराजय का स्वाद नही चखा। उसके बारे में वि.एस स्मिथ आकलन किया है कि समुद्रगुप्त प्राचीनकाल में "भारत का नेपोलियन" था। .

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सातवाहन

सातवाहन प्राचीन भारत का एक राजवंश था। इसने ईसापूर्व २३० से लेकर दूसरी सदी (ईसा के बाद) तक केन्द्रीय दक्षिण भारत पर राज किया। यह मौर्य वंश के पतन के बाद शक्तिशाली हुआ था। इनका उल्लेख ८वीं सदी ईसापूर्व में मिलता है। अशोक की मृत्यु (सन् २३२ ईसापूर्व) के बाद सातवाहनों ने खुद को स्वतंत्र घोषित कर दिया था। सीसे का सिक्का चलाने वाला पहला वंश सातवाहन वंश था, और वह सीसे का सिक्का रोम से लाया जाता था। .

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सातवीं शताब्दी

सातवीं शताब्दी एक ईसवीं शताब्दी है। श्रेणी:शताब्दी.

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संबलपुर

संबलपुर भारत के उड़ीसा प्रान्त का एक जिला है। इसका नाम 'समलेश्वरी देवी' के नाम पर पड़ा है जो शक्तिरूपा हैं और इस क्षेत्र में पूज्य देवी हैं। संबलपुर, भुवनेश्वर से ३२१ किमी की दूरी पर है। इतिहास में इसे 'संबलक', 'हीराखण्ड', 'ओडियान' (उड्डियान), 'ओद्र देश', 'दक्षिण कोशल' और 'कोशल' आदि नामों से संबोधित किया गया है। महानदी इस जिले को विभक्त करती है। यह जिला तरंगित समतल है, जिसमें कई पहाड़ियाँ हैं। इनमें से सबसे बड़ी पहाड़ी ३०० वर्ग मील में फैली हुई है। जिले में महानदी के पश्चिमी भाग में सघन खेती होती है और पूर्वी भाग के अधिकांश में जंगल हैं। जिले में हीराकुड पर बाँध बनाकर सिंचाई के लिए जल एवं उद्योगों के लिए विद्युत् प्राप्त की जा रही है। महानदी और इब नदी के संगमस्थल के समीप हीराकुड में स्वर्णबालू एवं हीरा पाया गया है। संबलपुर, छत्तीसगढ़ और ओड़िशा राज्यों के बीच स्थित है और दोनों प्रान्तों को जोड़ता है। महानदी के बायें किनारे पर स्थित यह नगर कभी हीरों के व्यवसाय का केन्द्र था। यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त सूती और रेशमी बुनावट (टशर रेशम) की वस्त्र-कारीगरी (इकत), आदिवासी समृद्ध विरासत और प्रचुर जंगल भूमि के लिए प्रसिद्ध है। नगर की पृष्ठभूमि में वनाच्छादित पहाड़ियाँ स्थित हैं, जिनके कारण नगर सुंदर लगता है। संबलपुर ओड़िशा के जादूई पश्चिमी भाग का प्रवेश द्वार के रूप में सेवारत है। यह राज्य के उत्तरी प्रशासकीय मंडल का मंडल मुख्यालय है - जो एक महत्वपूर्ण और व्यावसायिक और शिक्षा केन्द्र हैं। .

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संस्कृत भाषा

संस्कृत (संस्कृतम्) भारतीय उपमहाद्वीप की एक शास्त्रीय भाषा है। इसे देववाणी अथवा सुरभारती भी कहा जाता है। यह विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है। संस्कृत एक हिंद-आर्य भाषा हैं जो हिंद-यूरोपीय भाषा परिवार का एक शाखा हैं। आधुनिक भारतीय भाषाएँ जैसे, हिंदी, मराठी, सिन्धी, पंजाबी, नेपाली, आदि इसी से उत्पन्न हुई हैं। इन सभी भाषाओं में यूरोपीय बंजारों की रोमानी भाषा भी शामिल है। संस्कृत में वैदिक धर्म से संबंधित लगभग सभी धर्मग्रंथ लिखे गये हैं। बौद्ध धर्म (विशेषकर महायान) तथा जैन मत के भी कई महत्त्वपूर्ण ग्रंथ संस्कृत में लिखे गये हैं। आज भी हिंदू धर्म के अधिकतर यज्ञ और पूजा संस्कृत में ही होती हैं। .

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स्वतंत्र पार्टी

स्वतंत्र पार्टी का ध्वज स्वतंत्र पार्टी, भारत का एक राजनैतिक दल था जिसकी स्थापना चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने अगस्त, १९५९ में की थी। इस दल ने जवाहरलाल नेहरू की समाजवादी नीति का विरोध किया और तथाकथित "लाइसेंस-परमिट राज" को समाप्त कर मुक्त अर्थव्यवस्था की वकालत की। भारत की उस समय की स्थिति ऐसी थी कि दुर्भाग्य से इसे जमींदारों और उद्योगपतियों की हितैषी पार्टी माना गया। स्वतंत्र पार्टी ने मध्य प्रदेश, राजस्थान और गुजरात में अच्छी सफलता प्राप्त की थी लेकिन पीलू मोदी की अध्यक्षता वाली इस पार्टी के भारतीय लोकदल में विलय के साथ इसका अस्तित्व खत्म हो गया। .

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हरियाणा

हरियाणा उत्तर भारत का एक राज्य है जिसकी राजधानी चण्डीगढ़ है। इसकी सीमायें उत्तर में हिमाचल प्रदेश, दक्षिण एवं पश्चिम में राजस्थान से जुड़ी हुई हैं। यमुना नदी इसके उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश राज्यों के साथ पूर्वी सीमा को परिभाषित करती है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली हरियाणा से तीन ओर से घिरी हुई है और फलस्वरूप हरियाणा का दक्षिणी क्षेत्र नियोजित विकास के उद्देश्य से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में शामिल है। यह राज्य वैदिक सभ्यता और सिंधु घाटी सभ्यता का मुख्य निवास स्थान है। इस क्षेत्र में विभिन्न निर्णायक लड़ाइयाँ भी हुई हैं जिसमें भारत का अधिकत्तर इतिहास समाहित है। इसमें महाभारत का महाकाव्य युद्ध भी शामिल है। हिन्दू मतों के अनुसार महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र में हुआ (इसमें भगवान कृष्ण ने भागवत गीता का वादन किया)। इसके अलावा यहाँ तीन पानीपत की लड़ाइयाँ हुई। ब्रितानी भारत में हरियाणा पंजाब राज्य का अंग था जिसे १९६६ में भारत के १७वें राज्य के रूप में पहचान मिली। वर्तमान में खाद्यान और दुध उत्पादन में हरियाणा देश में प्रमुख राज्य है। इस राज्य के निवासियों का प्रमुख व्यवसाय कृषि है। समतल कृषि भूमि निमज्जक कुओं (समर्सिबल पंप) और नहर से सिंचित की जाती है। १९६० के दशक की हरित क्रान्ति में हरियाणा का भारी योगदान रहा जिससे देश खाद्यान सम्पन्न हुआ। हरियाणा, भारत के अमीर राज्यों में से एक है और प्रति व्यक्ति आय के आधार पर यह देश का दूसरा सबसे धनी राज्य है। वर्ष २०१२-१३ में देश में इसकी प्रति-व्यक्ति १,१९,१५८ (अर्थव्यवस्था के आकार के आधार पर भारत के राज्य देखें) और वर्ष २०१३-१४ में १,३२,०८९ रही। इसके अतिरिक्त भारत में सबसे अधिक ग्रामीण करोड़पति भी इसी राज्य में हैं। हरियाणा आर्थिक रूप से दक्षिण एशिया का सबसे विकसित क्षेत्र है और यहाँ कृषि एवं विनिर्माण उद्योग ने १९७० के दशक से निरंतर वृद्धि का प्राप्त की है। भारत में हरियाणा यात्रि कारों, द्विचक्र वाहनों और ट्रैक्टरों के निर्माण में सर्वोपरी राज्य है। भारत में प्रति व्यक्ति निवेश के आधार पर वर्ष २००० से राज्य सर्वोपरी स्थान पर रहा है। .

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हरिहरपुर

हरिहरपुर, जौनपुर, उत्तर प्रदेश, भारत हरिहरपुर गांव, उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले का काफी पिछड़ा हुआ गांव है। यहाँ की कुल आबादी ३५०० है। गांव में के लोग आज भी प्रयाप्त शौचालय नहीं है। इस गांव को भारत का सबसे सुन्दर गांव बनाने का संकल्प पत्रकार विजय यादव ने लिया है। इसके लिए वह जिला अधिकारी से लेकर देश के प्रधानमंत्री तक से संपर्क कर रहे है। हरिहरपुर को आदर्श गांव ही नहीं बल्कि स्मार्ट विलेज बनाने का सपना है।.

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हर्षवर्धन

हर्षवर्धन का साम्राज्य हर्ष का टीला हर्षवर्धन (590-647 ई.) प्राचीन भारत में एक राजा था जिसने उत्तरी भारत में अपना एक सुदृढ़ साम्राज्य स्थापित किया था। वह हिंदू सम्राट् था जिसने पंजाब छोड़कर शेष समस्त उत्तरी भारत पर राज्य किया। शशांक की मृत्यु के उपरांत वह बंगाल को भी जीतने में समर्थ हुआ। हर्षवर्धन के शासनकाल का इतिहास मगध से प्राप्त दो ताम्रपत्रों, राजतरंगिणी, चीनी यात्री युवान् च्वांग के विवरण और हर्ष एवं बाणभट्टरचित संस्कृत काव्य ग्रंथों में प्राप्त है। शासनकाल ६०६ से ६४७ ई.। वंश - थानेश्वर का पुष्यभूति वंश। उसके पिता का नाम 'प्रभाकरवर्धन' था। राजवर्धन उसका बड़ा भाई और राज्यश्री उसकी बड़ी बहन थी। ६०५ ई. में प्रभाकरवर्धन की मृत्यु के पश्चात् राजवर्धन राजा हुआ पर मालव नरेश देवगुप्त और गौड़ नरेश शंशांक की दुरभिसंधि वश मारा गया। हर्षवर्धन 606 में गद्दी पर बैठा। हर्षवर्धन ने बहन राज्यश्री का विंध्याटवी से उद्धार किया, थानेश्वर और कन्नौज राज्यों का एकीकरण किया। देवगुप्त से मालवा छीन लिया। शंशाक को गौड़ भगा दिया। दक्षिण पर अभियान किया पर आंध्र पुलकैशिन द्वितीय द्वारा रोक दिया गया। उसने साम्राज्य को सुंदर शासन दिया। धर्मों के विषय में उदार नीति बरती। विदेशी यात्रियों का सम्मान किया। चीनी यात्री युवेन संग ने उसकी बड़ी प्रशंसा की है। प्रति पाँचवें वर्ष वह सर्वस्व दान करता था। इसके लिए बहुत बड़ा धार्मिक समारोह करता था। कन्नौज और प्रयाग के समारोहों में युवेन संग उपस्थित था। हर्ष साहित्य और कला का पोषक था। कादंबरीकार बाणभट्ट उसका अनन्य मित्र था। हर्ष स्वयं पंडित था। वह वीणा बजाता था। उसकी लिखी तीन नाटिकाएँ नागानंद, रत्नावली और प्रियदर्शिका संस्कृत साहित्य की अमूल्य निधियाँ हैं। हर्षवर्धन का हस्ताक्षर मिला है जिससे उसका कलाप्रेम प्रगट होता है। गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद भारत में (मुख्यतः उत्तरी भाग में) अराजकता की स्थिति बना हुई थी। ऐसी स्थिति में हर्ष के शासन ने राजनैतिक स्थिरता प्रदान की। कवि बाणभट्ट ने उसकी जीवनी हर्षचरित में उसे चतुःसमुद्राधिपति एवं सर्वचक्रवर्तिनाम धीरयेः आदि उपाधियों से अलंकृत किया। हर्ष कवि और नाटककार भी था। उसके लिखे गए दो नाटक प्रियदर्शिका और रत्नावली प्राप्त होते हैं। हर्ष का जन्म थानेसर (वर्तमान में हरियाणा) में हुआ था। थानेसर, प्राचीन हिन्दुओं के तीर्थ केन्द्रों में से एक है तथा ५१ शक्तिपीठों में एक है। यह अब एक छोटा नगर है जो दिल्ली के उत्तर में हरियाणा राज्य में बने नये कुरुक्षेत्र के आस-पडोस में स्थित है। हर्ष के मूल और उत्पत्ति के संर्दभ में एक शिलालेख प्राप्त हुई है जो कि गुजरात राज्य के गुन्डा जिले में खोजी गयी है। .

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ह्वेन त्सांग

ह्वेन त्सांग का एक चित्र ह्वेन त्सांग एक प्रसिद्ध चीनी बौद्ध भिक्षु था। वह हर्षवर्द्धन के शासन काल में भारत आया था। वह भारत में 15 वर्षों तक रहा। उसने अपनी पुस्तक सी-यू-की में अपनी यात्रा तथा तत्कालीन भारत का विवरण दिया है। उसके वर्णनों से हर्षकालीन भारत की सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक तथा सांस्कृतिक अवस्था का परिचय मिलता है। .

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हैदराबाद

हैदराबाद (तेलुगु: హైదరాబాదు,उर्दू: حیدر آباد) भारत के राज्य तेलंगाना तथा आन्ध्र प्रदेश की संयुक्त राजधानी है, जो दक्कन के पठार पर मूसी नदी के किनारे स्थित है। प्राचीन काल के दस्तावेजों के अनुसार इसे भाग्यनगर के नाम से जाना जाता था। आज भी यह प्राचीन नाम अत्यन्त ही लोकप्रिय है। कहा जाता है कि किसी समय में इस ख़ूबसूरत शहर को क़ुतुबशाही परम्परा के पाँचवें शासक मुहम्मद कुली क़ुतुबशाह ने अपनी प्रेमिका भागमती को उपहार स्वरूप भेंट किया था, उस समय यह शहर भागनगर के नाम से जाना जाता था। भागनगर समय के साथ हैदराबाद के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इसे 'निज़ामों का शहर' तथा 'मोतियों का शहर' भी कहा जाता है। यह भारत के सर्वाधिक विकसित नगरों में से एक है और भारत में सूचना प्रौधोगिकी एवं जैव प्रौद्यौगिकी का केन्द्र बनता जा रहा है। हुसैन सागर से विभाजित, हैदराबाद और सिकंदराबाद जुड़वां शहर हैं। हुसैन सागर का निर्माण सन १५६२ में इब्राहीम कुतुब शाह के शासन काल में हुआ था और यह एक मानव निर्मित झील है। चारमीनार, इस क्षेत्र में प्लेग महामारी के अंत की यादगार के तौर पर मुहम्मद कुली कुतुब शाह ने १५९१ में, शहर के बीचों बीच बनवाया था। गोलकुंडा के क़ुतुबशाही सुल्तानों द्वारा बसाया गया यह शहर ख़ूबसूरत इमारतों, निज़ामी शानो-शौक़त और लजीज खाने के कारण मशहूर है और भारत के मानचित्र पर एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में अपनी अलग अहमियत रखता है। निज़ामों के इस शहर में आज भी हिन्दू-मुस्लिम सांप्रदायिक सौहार्द्र से एक-दूसरे के साथ रहकर उनकी खुशियों में शरीक होते हैं। अपने उन्नत इतिहास, संस्कृति, उत्तर तथा दक्षिण भारत के स्थापत्य के मौलिक संगम, तथा अपनी बहुभाषी संस्कृति के लिये भौगोलिक तथा सांस्कृतिक दोनों रूपों में जाना जाता है। यह वह स्थान रहा है जहां हिन्दू और मुसलमान शांतिपूर्वक शताब्दियों से साथ साथ रह रहे हैं। निजामी ठाठ-बाट के इस शहर का मुख्य आकर्षण चारमीनार, हुसैन सागर झील, बिड़ला मंदिर, सालारजंग संग्रहालय आदि है, जो देश-विदेश इस शहर को एक अलग पहचान देते हैं। यह भारतीय महानगर बंगलौर से 574 किलोमीटर दक्षिण में, मुंबई से 750 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में तथा चेन्नई से 700 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में स्थित है। किसी समय नवाबी परम्परा के इस शहर में शाही हवेलियाँ और निज़ामों की संस्कृति के बीच हीरे जवाहरात का रंग उभर कर सामने आया तो कभी स्वादिष्ट नवाबी भोजन का स्वाद। इस शहर के ऐतिहासिक गोलकुंडा दुर्ग की प्रसिद्धि पार-द्वार तक पहुँची और इसे उत्तर भारत और दक्षिणांचल के बीच संवाद का अवसर सालाजार संग्रहालय तथा चारमीनार ने प्रदान किया है। वर्ष २०११ की जनगणना के अनुसार इस महानगर की जनसंख्या ६८ लाख से अधिक है। .

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जनता पार्टी

प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लागू आपातकाल (1975-1976) के बाद जनसंघ सहित भारत के प्रमुख राजनैतिक दलों का विलय कर के एक नए दल जनता पार्टी का गठन किया गया। जनता पार्टी ने 1977 से 1980 तक भारत सरकार का नेतृत्व किया। आंतरिक मतभेदों के कारण जनता पार्टी 1980 में टूट गयी। सम्प्रति डॉ सुब्रमणियन स्वामी जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। .

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जहाँगीर

अकबर के तीन लड़के थे। सलीम, मुराद और दानियाल (मुग़ल परिवार)। मुराद और दानियाल पिता के जीवन में शराब पीने की वजह से मर चुके थे। सलीम अकबर की मृत्यु पर नुरुद्दीन मोहम्मद जहांगीर के उपनाम से तख्त नशीन हुआ। १६०५ ई. में कई उपयोगी सुधार लागू किए। कान और नाक और हाथ आदि काटने की सजा रद्द कीं। शराब और अन्य नशा हमलावर वस्तुओं का हकमा बंद। कई अवैध महसूलात हटा दिए। प्रमुख दिनों में जानवरों का ज़बीहह बंद.

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जानकी बल्लभ पटनायक

जानकी बल्लभ पटनायक (ଜାନକୀ ବଲ୍ଲଭ ପଟ୍ଟନାୟକ (३ जनवरी १९२७ - २१ अप्रैल २०१५) भारतीय राजनीतिज्ञ हैं जो २००९ से असम के राज्यपाल थे। वो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस नेता के रूप में १९८० से १९८९ और पुनः १९९५ से १९९९ तक ओडिशा के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। वो नवीन पटनायक से पहले सबसे लम्बे समय तक ओडिशा के मुख्यमंत्री रहे। .

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जगन्नाथ

'''जगन्नाथ''' (सबसे दाएं) अपने भ्राता बलभद्र (सबसे बाएं) एवं बहन सुभद्रा (बीच में) के संग, राधादेश, बेल्जियम में जगन्नाथ (जगन्नाथ ଜଗନ୍ନାଥ) हिन्दू भगवान विष्णु के पूर्ण कला अवतार श्रीकृष्ण का ही एक रूप हैं। इनका एक बहुत बड़ा मन्दिर ओडिशा राज्य के पुरी शहर में स्थित है। इस शहर का नाम जगन्नाथ पुरी से निकल कर पुरी बना है। यहाँ वार्षिक रूप से रथ यात्रा उत्सव भी आयोजित किया जाता है। पुरी की गिनती हिन्दू धर्म के चार धाम में होती है। Image:Lord_Jagannath.jpg|जगन्नाथ (दायें) बलभद्र (बायें) तथा सुभद्रा (मध्य में) Image:Lord_Jagannath_Statue.jpg|एक छोटे आकार का altar, जगन्नाथ, बलभद्र तथा देवी सुभद्रा के साथ Image:Car_Festival.jpg|भुवनेश्वर में रथ यात्रा महोत्सव Image:Rath_Yatra.jpg| न्यूयॉर्क शहर में इस्कॉन द्वारा आयोजित रथ यात्रा उत्सव .

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जगन्नाथ मन्दिर, पुरी

पुरी का श्री जगन्नाथ मंदिर एक हिन्दू मंदिर है, जो भगवान जगन्नाथ (श्रीकृष्ण) को समर्पित है। यह भारत के ओडिशा राज्य के तटवर्ती शहर पुरी में स्थित है। जगन्नाथ शब्द का अर्थ जगत के स्वामी होता है। इनकी नगरी ही जगन्नाथपुरी या पुरी कहलाती है। इस मंदिर को हिन्दुओं के चार धाम में से एक गिना जाता है। यह वैष्णव सम्प्रदाय का मंदिर है, जो भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण को समर्पित है। इस मंदिर का वार्षिक रथ यात्रा उत्सव प्रसिद्ध है। इसमें मंदिर के तीनों मुख्य देवता, भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भ्राता बलभद्र और भगिनी सुभद्रा तीनों, तीन अलग-अलग भव्य और सुसज्जित रथों में विराजमान होकर नगर की यात्रा को निकलते हैं। मध्य-काल से ही यह उत्सव अतीव हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इसके साथ ही यह उत्सव भारत के ढेरों वैष्णव कृष्ण मंदिरों में मनाया जाता है, एवं यात्रा निकाली जाती है। यह मंदिर वैष्णव परंपराओं और संत रामानंद से जुड़ा हुआ है। यह गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय के लिये खास महत्व रखता है। इस पंथ के संस्थापक श्री चैतन्य महाप्रभु भगवान की ओर आकर्षित हुए थे और कई वर्षों तक पुरी में रहे भी थे। .

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जैन धर्म

जैन ध्वज जैन धर्म भारत के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है। 'जैन धर्म' का अर्थ है - 'जिन द्वारा प्रवर्तित धर्म'। जो 'जिन' के अनुयायी हों उन्हें 'जैन' कहते हैं। 'जिन' शब्द बना है 'जि' धातु से। 'जि' माने - जीतना। 'जिन' माने जीतने वाला। जिन्होंने अपने मन को जीत लिया, अपनी वाणी को जीत लिया और अपनी काया को जीत लिया और विशिष्ट ज्ञान को पाकर सर्वज्ञ या पूर्णज्ञान प्राप्त किया उन आप्त पुरुष को जिनेश्वर या 'जिन' कहा जाता है'। जैन धर्म अर्थात 'जिन' भगवान्‌ का धर्म। अहिंसा जैन धर्म का मूल सिद्धान्त है। जैन दर्शन में सृष्टिकर्ता कण कण स्वतंत्र है इस सॄष्टि का या किसी जीव का कोई कर्ता धर्ता नही है।सभी जीव अपने अपने कर्मों का फल भोगते है।जैन धर्म के ईश्वर कर्ता नही भोगता नही वो तो जो है सो है।जैन धर्म मे ईश्वरसृष्टिकर्ता इश्वर को स्थान नहीं दिया गया है। जैन ग्रंथों के अनुसार इस काल के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव आदिनाथ द्वारा जैन धर्म का प्रादुर्भाव हुआ था। जैन धर्म की अत्यंत प्राचीनता करने वाले अनेक उल्लेख अ-जैन साहित्य और विशेषकर वैदिक साहित्य में प्रचुर मात्रा में हैं। .

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ईस्ट इण्डिया कम्पनी

लन्दन स्थित ईस्ट इण्डिया कम्पनी का मुख्यालय (थॉमस माल्टन द्वारा चित्रित, १८०० ई) ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना ३१ दिसम्बर १६०० ईस्वी में हुई थी। इसे यदाकदा जॉन कंपनी के नाम से भी जाना जाता था। इसे ब्रिटेन की महारानी ने भारत के साथ व्यापार करने के लिये २१ सालो तक की छूट दे दी। बाद में कम्पनी ने भारत के लगभग सभी क्षेत्रों पर अपना सैनिक तथा प्रशासनिक अधिपत्य जमा लिया। १८५८ में इसका विलय हो गया। .

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वास्तुकला

'''अंकोरवाट मंदिर''' विश्व की सबसे बड़ी धार्मिक संरचना है भवनों के विन्यास, आकल्पन और रचना की, तथा परिवर्तनशील समय, तकनीक और रुचि के अनुसार मानव की आवश्यकताओं को संतुष्ट करने योग्य सभी प्रकार के स्थानों के तर्कसंगत एवं बुद्धिसंगत निर्माण की कला, विज्ञान तथा तकनीक का संमिश्रण वास्तुकला (आर्किटेक्चर) की परिभाषा में आता है। इसका और भी स्पष्टकीण किया जा सकता है। वास्तुकला ललितकला की वह शाखा रही है और है, जिसका उद्देश्य औद्योगिकी का सहयोग लेते हुए उपयोगिता की दृष्टि से उत्तम भवननिर्माण करना है, जिनके पर्यावरण सुसंस्कृत एवं कलात्मक रुचि के लिए अत्यंत प्रिय, सौंदर्य-भावना के पोषक तथा आनंदकर एवं आनंदवर्धक हों। प्रकृति, बुद्धि एवं रुचि द्वारा निर्धारित और नियमित कतिपय सिद्धांतों और अनुपातों के अनुसार रचना करना इस कला का संबद्ध अंग है। नक्शों और पिंडों का ऐसा विन्यास करना और संरचना को अत्यंत उपयुक्त ढंग से समृद्ध करना, जिससे अधिकतम सुविधाओं के साथ रोचकता, सौंदर्य, महानता, एकता और शक्ति की सृष्टि हो से यही वास्तुकौशल है। प्रारंभिक अवस्थाओं में, अथवा स्वल्पसिद्धि के साथ, वास्तुकला का स्थान मानव के सीमित प्रयोजनों के लिए आवश्यक पेशों, या व्यवसायों में-प्राय: मनुष्य के लिए किसी प्रकार का रक्षास्थान प्रदान करने के लिए होता है। किसी जाति के इतिहास में वास्तुकृतियाँ महत्वपूर्ण तब होती हैं, जब उनमें किसी अंश तक सभ्यता, समृद्धि और विलासिता आ जाती है और उनमें जाति के गर्व, प्रतिष्ठा, महत्वाकांक्षा और आध्यात्मिकता की प्रकृति पूर्णतया अभिव्यक्त होती है। .

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विधान सभा

विधान सभा या वैधानिक सभा जिसे भारत के विभिन्न राज्यों में निचला सदन(द्विसदनीय राज्यों में) या सोल हाउस (एक सदनीय राज्यों में) भी कहा जाता है। दिल्ली व पुडुचेरी नामक दो केंद्र शासित राज्यों में भी इसी नाम का प्रयोग निचले सदन के लिए किया जाता है। 7 द्विसदनीय राज्यों में ऊपरी सदन को विधान परिषद कहा जाता है। विधान सभा के सदस्य राज्यों के लोगों के प्रत्यक्ष प्रतिनिधि होते हैं क्योंकि उन्हें किसी एक राज्य के 18 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के नागरिकों द्वारा सीधे तौर पर चुना जाता है। इसके अधिकतम आकार को भारत के संविधान के द्वारा निर्धारित किया गया है जिसमें 500 से अधिक व् 60 से कम सदस्य नहीं हो सकते। हालाँकि विधान सभा का आकार 60 सदस्यों से कम हो सकता है संसद के एक अधिनियम के द्वारा: जैसे गोवा, सिक्किम, मिजोरम और केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी। कुछ राज्यों में राज्यपाल 1 सदस्य को अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व करने के लिए नियुक्त कर सकता है, उदा० ऐंग्लो इंडियन समुदाय अगर उसे लगता है कि सदन में अल्पसंख्यकों को उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिला है। राज्यपाल के द्वारा चुने गए या नियुक्त को विधान सभा सदस्य या MLA कहा जाता है। प्रत्येक विधान सभा का कार्यकाल पाँच वर्षों का होता है जिसके बाद पुनः चुनाव होता है। आपातकाल के दौरान, इसके सत्र को बढ़ाया जा सकता है या इसे भंग किया जा सकता है। विधान सभा का एक सत्र वैसे तो पाँच वर्षों का होता है पर लेकिन मुख्यमंत्री के अनुरोध पर राज्यपाल द्वारा इसे पाँच साल से पहले भी भंग किया जा सकता है। विधानसभा का सत्र आपातकाल के दौरान बढ़ाया जा सकता है लेकिन एक समय में केवल छः महीनों के लिए। विधान सभा को बहुमत प्राप्त या गठबंधन सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाने पर भी भंग किया जा सकता है। .

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खारवेल

खारवेल (193 ईसापूर्व) कलिंग (वर्तमान ओडिशा) में राज करने वाले महामेघवाहन वंश का तृतीय एवं सबसे महान तथा प्रख्यात सम्राट था। खारवेल के बारे में सबसे महत्वपूर्ण जानकारी हाथीगुम्फा में चट्टान पर खुदी हुई सत्रह पंक्तियों वाला प्रसिद्ध शिलालेख है। हाथीगुम्फा, भुवनेश्वर के निकट उदयगिरि पहाड़ियों में है। इस शिलालेख के अनुसार यह जैन धर्म का अनुयायी था। उसने पंडितों की एक विराट् सभा का भी आयोजन किया था, ऐसा उक्त प्रशस्ति से प्रकट होता है। इसके समय के संबंध में मतभेद है। उसकी प्रशस्ति शिलालेख में जो संकेत उपलब्ध हैं उनके आधार पर कुछ विद्वान् उसका समय ईसा पूर्व दूसरी शती में मानते हैं और कुछ उसे ईसा पूर्व की प्रथम शती में रखते हैं। किंतु खारवेल को ईसा पूर्व पहली शताब्दी के उत्तरार्ध में रखनेवाले विद्वानों की संख्या बढ़ रहीं है। .

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गंग वंश

उड़ीसा का एक राज वंश, जिसने वहां लम्बे समय तक राज किया। .

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ओड़िआ

ओड़िआ ओड़िशा की प्रमुख भाषा है। इसके साथ ही 'ओडिया' शब्द निम्नलिखित अर्थों में भी प्रयुक्त होता है-.

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ओडिशा

ओड़िशा, (ओड़िआ: ଓଡ଼ିଶା) जिसे पहले उड़ीसा के नाम से जाना जाता था, भारत के पूर्वी तट पर स्थित एक राज्य है। ओड़िशा उत्तर में झारखंड, उत्तर पूर्व में पश्चिम बंगाल दक्षिण में आंध्र प्रदेश और पश्चिम में छत्तीसगढ से घिरा है तथा पूर्व में बंगाल की खाड़ी है। यह उसी प्राचीन राष्ट्र कलिंग का आधुनिक नाम है जिसपर 261 ईसा पूर्व में मौर्य सम्राट अशोक ने आक्रमण किया था और युद्ध में हुये भयानक रक्तपात से व्यथित हो अंतत: बौद्ध धर्म अंगीकार किया था। आधुनिक ओड़िशा राज्य की स्थापना 1 अप्रैल 1936 को कटक के कनिका पैलेस में भारत के एक राज्य के रूप में हुई थी और इस नये राज्य के अधिकांश नागरिक ओड़िआ भाषी थे। राज्य में 1 अप्रैल को उत्कल दिवस (ओड़िशा दिवस) के रूप में मनाया जाता है। क्षेत्रफल के अनुसार ओड़िशा भारत का नौवां और जनसंख्या के हिसाब से ग्यारहवां सबसे बड़ा राज्य है। ओड़िआ भाषा राज्य की अधिकारिक और सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। भाषाई सर्वेक्षण के अनुसार ओड़िशा की 93.33% जनसंख्या ओड़िआ भाषी है। पाराद्वीप को छोड़कर राज्य की अपेक्षाकृत सपाट तटरेखा (लगभग 480 किमी लंबी) के कारण अच्छे बंदरगाहों का अभाव है। संकीर्ण और अपेक्षाकृत समतल तटीय पट्टी जिसमें महानदी का डेल्टा क्षेत्र शामिल है, राज्य की अधिकांश जनसंख्या का घर है। भौगोलिक लिहाज से इसके उत्तर में छोटानागपुर का पठार है जो अपेक्षाकृत कम उपजाऊ है लेकिन दक्षिण में महानदी, ब्राह्मणी, सालंदी और बैतरणी नदियों का उपजाऊ मैदान है। यह पूरा क्षेत्र मुख्य रूप से चावल उत्पादक क्षेत्र है। राज्य के आंतरिक भाग और कम आबादी वाले पहाड़ी क्षेत्र हैं। 1672 मीटर ऊँचा देवमाली, राज्य का सबसे ऊँचा स्थान है। ओड़िशा में तीव्र चक्रवात आते रहते हैं और सबसे तीव्र चक्रवात उष्णकटिबंधीय चक्रवात 05बी, 1 अक्टूबर 1999 को आया था, जिसके कारण जानमाल का गंभीर नुकसान हुआ और लगभग 10000 लोग मृत्यु का शिकार बन गये। ओड़िशा के संबलपुर के पास स्थित हीराकुंड बांध विश्व का सबसे लंबा मिट्टी का बांध है। ओड़िशा में कई लोकप्रिय पर्यटक स्थल स्थित हैं जिनमें, पुरी, कोणार्क और भुवनेश्वर सबसे प्रमुख हैं और जिन्हें पूर्वी भारत का सुनहरा त्रिकोण पुकारा जाता है। पुरी के जगन्नाथ मंदिर जिसकी रथयात्रा विश्व प्रसिद्ध है और कोणार्क के सूर्य मंदिर को देखने प्रतिवर्ष लाखों पर्यटक आते हैं। ब्रह्मपुर के पास जौगदा में स्थित अशोक का प्रसिद्ध शिलालेख और कटक का बारबाटी किला भारत के पुरातात्विक इतिहास में महत्वपूर्ण हैं। .

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कटक

कटक भारत के ओड़िशा प्रान्त का एक नगर है। यह कटक जिला के अन्दर आता है। कटक ओड़िशा का एक प्राचीन नगर है, जो रौप्य नगर (Silver City) के नाम से भी जाना जाता है। इसका इतिहास एक हजार वर्ष से भी ज्‍यादा पुराना है। करीब नौ शताब्दियों तक कटक ओड़िशा की राजधानी रहा और आज यहां की व्‍यावयायिक राजधानी के रूप में जाना जाता है। केशरी वंश के समय यहां बने सैनिक शिविर कटक के नाम पर इस शहर का नाम रखा गया था। यहां के किले, मंदिर और संग्रहालय पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। कटक वर्तमान ओड़िशा की मध्ययुगीन राजधानी था, जिसे पद्मावती भी कहते थे। यह नगर महानदी और उसकी सहायक नदी काठजोड़ी के मिलन स्थल पर बना है। .

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कला

राजा रवि वर्मा द्वारा चित्रित 'गोपिका' कला (आर्ट) शब्द इतना व्यापक है कि विभिन्न विद्वानों की परिभाषाएँ केवल एक विशेष पक्ष को छूकर रह जाती हैं। कला का अर्थ अभी तक निश्चित नहीं हो पाया है, यद्यपि इसकी हजारों परिभाषाएँ की गयी हैं। भारतीय परम्परा के अनुसार कला उन सारी क्रियाओं को कहते हैं जिनमें कौशल अपेक्षित हो। यूरोपीय शास्त्रियों ने भी कला में कौशल को महत्त्वपूर्ण माना है। कला एक प्रकार का कृत्रिम निर्माण है जिसमे शारीरिक और मानसिक कौशलों का प्रयोग होता है। .

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कलिंग

कलिंग का प्रभाव क्षेत्र कलिंग भारत का एक राज्य था। यह वर्तमान ओडिशा राज्य का भाग था। यह एक शक्तिशाली साम्राज्य रहा है। श्रेणी:दक्षिण भारत श्रेणी:भारत का इतिहास.

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कोणार्क

सूर्य मंदिर कोणार्क उड़ीसा प्रदेश के पुरी जिले में पुरी के जगन्नाथ मन्दिर से 21 मील उत्तर-पूर्व समुद्रतट पर चंद्रभागा नदी के किनारे स्थित है। यहाँ का सूर्य मन्दिर बहुत प्रसिद्ध है। इस मंदिर की कल्पना सूर्य के रथ के रूप में की गई है। रथ में बारह जोड़े विशाल पहिए लगे हैं और इसे सात शक्तिशाली घोड़े तेजी से खींच रहे हैं। जितनी सुंदर कल्पना है, रचना भी उतनी ही भव्य है। मंदिर अपनी विशालता, निर्माणसौष्ठव तथा वास्तु और मूर्तिकला के समन्वय के लिये अद्वितीय है और उड़ीसा की वास्तु और मूर्तिकलाओं की चरम सीमा प्रदर्शित करता है। एक शब्द में यह भारतीय स्थापत्य की महत्तम विभूतियों में है। .

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अफ़ग़ानिस्तान

अफ़ग़ानिस्तान इस्लामी गणराज्य दक्षिणी मध्य एशिया में अवस्थित देश है, जो चारो ओर से जमीन से घिरा हुआ है। प्रायः इसकी गिनती मध्य एशिया के देशों में होती है पर देश में लगातार चल रहे संघर्षों ने इसे कभी मध्य पूर्व तो कभी दक्षिण एशिया से जोड़ दिया है। इसके पूर्व में पाकिस्तान, उत्तर पूर्व में भारत तथा चीन, उत्तर में ताजिकिस्तान, कज़ाकस्तान तथा तुर्कमेनिस्तान तथा पश्चिम में ईरान है। अफ़ग़ानिस्तान रेशम मार्ग और मानव प्रवास का8 एक प्राचीन केन्द्र बिन्दु रहा है। पुरातत्वविदों को मध्य पाषाण काल ​​के मानव बस्ती के साक्ष्य मिले हैं। इस क्षेत्र में नगरीय सभ्यता की शुरुआत 3000 से 2,000 ई.पू.

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अभिलेख

कंधार स्थित सम्राट अशोक के द्वारा उत्कीर्ण एक पाषाण अभिलेख अभिलेख पत्थर अथवा धातु जैसी अपेक्षाकृत कठोर सतहों पर उत्कीर्ण किये गये पाठन सामाग्री को कहते है। प्राचीन काल से इसका उपयोग हो रहा है। शासको के द्वारा अपने आदेशो को इस तरह उत्कीर्ण करवाते थे, ताकि लोग उन्हे देख सके एवं पढ़ सके और पालन कर सके। आधुनिक युग मे भी इसका उपयोग हो रहा है। .

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अशोक

चक्रवर्ती सम्राट अशोक (ईसा पूर्व ३०४ से ईसा पूर्व २३२) विश्वप्रसिद्ध एवं शक्तिशाली भारतीय मौर्य राजवंश के महान सम्राट थे। सम्राट अशोक का पूरा नाम देवानांप्रिय अशोक मौर्य (राजा प्रियदर्शी देवताओं का प्रिय) था। उनका राजकाल ईसा पूर्व २६९ से २३२ प्राचीन भारत में था। मौर्य राजवंश के चक्रवर्ती सम्राट अशोक ने अखंड भारत पर राज्य किया है तथा उनका मौर्य साम्राज्य उत्तर में हिन्दुकुश की श्रेणियों से लेकर दक्षिण में गोदावरी नदी के दक्षिण तथा मैसूर तक तथा पूर्व में बांग्लादेश से पश्चिम में अफ़ग़ानिस्तान, ईरान तक पहुँच गया था। सम्राट अशोक का साम्राज्य आज का संपूर्ण भारत, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, भूटान, म्यान्मार के अधिकांश भूभाग पर था, यह विशाल साम्राज्य उस समय तक से आज तक का सबसे बड़ा भारतीय साम्राज्य रहा है। चक्रवर्ती सम्राट अशोक विश्व के सभी महान एवं शक्तिशाली सम्राटों एवं राजाओं की पंक्तियों में हमेशा शिर्ष स्थान पर ही रहे हैं। सम्राट अशोक ही भारत के सबसे शक्तिशाली एवं महान सम्राट है। सम्राट अशोक को ‘चक्रवर्ती सम्राट अशोक’ कहाँ जाता है, जिसका अर्थ है - ‘सम्राटों का सम्राट’, और यह स्थान भारत में केवल सम्राट अशोक को मिला है। सम्राट अशोक को अपने विस्तृत साम्राज्य से बेहतर कुशल प्रशासन तथा बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए भी जाना जाता है। सम्राट अशोक ने संपूर्ण एशिया में तथा अन्य आज के सभी महाद्विपों में भी बौद्ध धर्म धर्म का प्रचार किया। सम्राट अशोक के संदर्भ के स्तंभ एवं शिलालेख आज भी भारत के कई स्थानों पर दिखाई देते है। इसलिए सम्राट अशोक की ऐतिहासिक जानकारी एन्य किसी भी सम्राट या राजा से बहूत व्यापक रूप में मिल जाती है। सम्राट अशोक प्रेम, सहिष्णूता, सत्य, अहिंसा एवं शाकाहारी जीवनप्रणाली के सच्चे समर्थक थे, इसलिए उनका नाम इतिहास में महान परोपकारी सम्राट के रूप में ही दर्ज हो चुका है। जीवन के उत्तरार्ध में सम्राट अशोक भगवान बुद्ध की मानवतावादी शिक्षाओं से प्रभावित होकर बौद्ध हो गये और उन्ही की स्मृति में उन्होने कई स्तम्भ खड़े कर दिये जो आज भी नेपाल में उनके जन्मस्थल - लुम्बिनी - में मायादेवी मन्दिर के पास, सारनाथ, बोधगया, कुशीनगर एवं आदी श्रीलंका, थाईलैंड, चीन इन देशों में आज भी अशोक स्तम्भ के रूप में देखे जा सकते है। सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म का प्रचार भारत के अलावा श्रीलंका, अफ़ग़ानिस्तान, पश्चिम एशिया, मिस्र तथा यूनान में भी करवाया। सम्राट अशोक अपने पूरे जीवन में एक भी युद्ध नहीं हारे। सम्राट अशोक के ही समय में २३ विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई जिसमें तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला, कंधार आदि विश्वविद्यालय प्रमुख थे। इन्हीं विश्वविद्यालयों में विदेश से कई छात्र शिक्षा पाने भारत आया करते थे। ये विश्वविद्यालय उस समय के उत्कृट विश्वविद्यालय थे। शिलालेख सुरु करने वाला पहला शासक अशोक ही था, .

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अकबर

जलाल उद्दीन मोहम्मद अकबर (१५ अक्तूबर, १५४२-२७ अक्तूबर, १६०५) तैमूरी वंशावली के मुगल वंश का तीसरा शासक था। अकबर को अकबर-ऐ-आज़म (अर्थात अकबर महान), शहंशाह अकबर, महाबली शहंशाह के नाम से भी जाना जाता है। अंतरण करने वाले के अनुसार बादशाह अकबर की जन्म तिथि हुमायुंनामा के अनुसार, रज्जब के चौथे दिन, ९४९ हिज़री, तदनुसार १४ अक्टूबर १५४२ को थी। सम्राट अकबर मुगल साम्राज्य के संस्थापक जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर का पौत्र और नासिरुद्दीन हुमायूं एवं हमीदा बानो का पुत्र था। बाबर का वंश तैमूर और मंगोल नेता चंगेज खां से संबंधित था अर्थात उसके वंशज तैमूर लंग के खानदान से थे और मातृपक्ष का संबंध चंगेज खां से था। अकबर के शासन के अंत तक १६०५ में मुगल साम्राज्य में उत्तरी और मध्य भारत के अधिकाश भाग सम्मिलित थे और उस समय के सर्वाधिक शक्तिशाली साम्राज्यों में से एक था। बादशाहों में अकबर ही एक ऐसा बादशाह था, जिसे हिन्दू मुस्लिम दोनों वर्गों का बराबर प्यार और सम्मान मिला। उसने हिन्दू-मुस्लिम संप्रदायों के बीच की दूरियां कम करने के लिए दीन-ए-इलाही नामक धर्म की स्थापना की। उसका दरबार सबके लिए हर समय खुला रहता था। उसके दरबार में मुस्लिम सरदारों की अपेक्षा हिन्दू सरदार अधिक थे। अकबर ने हिन्दुओं पर लगने वाला जज़िया ही नहीं समाप्त किया, बल्कि ऐसे अनेक कार्य किए जिनके कारण हिन्दू और मुस्लिम दोनों उसके प्रशंसक बने। अकबर मात्र तेरह वर्ष की आयु में अपने पिता नसीरुद्दीन मुहम्मद हुमायुं की मृत्यु उपरांत दिल्ली की राजगद्दी पर बैठा था। अपने शासन काल में उसने शक्तिशाली पश्तून वंशज शेरशाह सूरी के आक्रमण बिल्कुल बंद करवा दिये थे, साथ ही पानीपत के द्वितीय युद्ध में नवघोषित हिन्दू राजा हेमू को पराजित किया था। अपने साम्राज्य के गठन करने और उत्तरी और मध्य भारत के सभी क्षेत्रों को एकछत्र अधिकार में लाने में अकबर को दो दशक लग गये थे। उसका प्रभाव लगभग पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर था और इस क्षेत्र के एक बड़े भूभाग पर सम्राट के रूप में उसने शासन किया। सम्राट के रूप में अकबर ने शक्तिशाली और बहुल हिन्दू राजपूत राजाओं से राजनयिक संबंध बनाये और उनके यहाँ विवाह भी किये। अकबर के शासन का प्रभाव देश की कला एवं संस्कृति पर भी पड़ा। उसने चित्रकारी आदि ललित कलाओं में काफ़ी रुचि दिखाई और उसके प्रासाद की भित्तियाँ सुंदर चित्रों व नमूनों से भरी पड़ी थीं। मुगल चित्रकारी का विकास करने के साथ साथ ही उसने यूरोपीय शैली का भी स्वागत किया। उसे साहित्य में भी रुचि थी और उसने अनेक संस्कृत पाण्डुलिपियों व ग्रन्थों का फारसी में तथा फारसी ग्रन्थों का संस्कृत व हिन्दी में अनुवाद भी करवाया था। अनेक फारसी संस्कृति से जुड़े चित्रों को अपने दरबार की दीवारों पर भी बनवाया। अपने आरंभिक शासन काल में अकबर की हिन्दुओं के प्रति सहिष्णुता नहीं थी, किन्तु समय के साथ-साथ उसने अपने आप को बदला और हिन्दुओं सहित अन्य धर्मों में बहुत रुचि दिखायी। उसने हिन्दू राजपूत राजकुमारियों से वैवाहिक संबंध भी बनाये। अकबर के दरबार में अनेक हिन्दू दरबारी, सैन्य अधिकारी व सामंत थे। उसने धार्मिक चर्चाओं व वाद-विवाद कार्यक्रमों की अनोखी शृंखला आरंभ की थी, जिसमें मुस्लिम आलिम लोगों की जैन, सिख, हिन्दु, चार्वाक, नास्तिक, यहूदी, पुर्तगाली एवं कैथोलिक ईसाई धर्मशस्त्रियों से चर्चाएं हुआ करती थीं। उसके मन में इन धार्मिक नेताओं के प्रति आदर भाव था, जिसपर उसकी निजि धार्मिक भावनाओं का किंचित भी प्रभाव नहीं पड़ता था। उसने आगे चलकर एक नये धर्म दीन-ए-इलाही की भी स्थापना की, जिसमें विश्व के सभी प्रधान धर्मों की नीतियों व शिक्षाओं का समावेश था। दुर्भाग्यवश ये धर्म अकबर की मृत्यु के साथ ही समाप्त होता चला गया। इतने बड़े सम्राट की मृत्यु होने पर उसकी अंत्येष्टि बिना किसी संस्कार के जल्दी ही कर दी गयी। परम्परानुसार दुर्ग में दीवार तोड़कर एक मार्ग बनवाया गया तथा उसका शव चुपचाप सिकंदरा के मकबरे में दफना दिया गया। .

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उदयगिरि

उदयगिरि विदिशा से वैसनगर होते हुए पहुँचा जा सकता है। नदी से यह गिरि लगभग १ मील की दूरी पर है। पहाड़ी के पूरब की तरफ पत्थरों को काटकर गुफाएँ बनाई गई हैं। इन गुफाओं में प्रस्तर- मूर्तियों के प्रमाण मिलते हैं, जो भारतीय मूर्तिकला के इतिहास में मील का पत्थर माना जाता है। उत्खनन से प्राप्त ध्वंसावशेष अपनी अलग कहानी कहते हैं। उदयगिरि को पहले नीचैगिरि के नाम से जाना जाता था। कालिदास ने भी इसे इसी नाम से संबोधित किया है। १० वीं शताब्दी में जब विदिशा धार के परमारों के हाथ में आ गया, तो राजा भोज के पौत्र उदयादित्य ने अपने नाम से इस स्थान का नाम उदयगिरि रख दिया। .

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१०३८

1038 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१०५०

1050 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१११२

१११२ ग्रेगोरी कैलंडर का एक अधिवर्ष है। .

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११४७

११४७ ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१२११

१२११ ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१२३८

१२३८ ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१२४४

१२४४ ग्रेगोरी कैलंडर का एक अधिवर्ष है। .

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१३६१

1361 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१५६७

१५६७ ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१५६८

१५६८ ग्रेगोरी कैलंडर का एक अधिवर्ष है। .

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१५९०

१५९० ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१५९२

१५९२ ग्रेगोरी कैलंडर का एक अधिवर्ष है। .

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१५९५

१५९५ ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१६०७

1607 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१६३३

1633 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१६७०

1670 १६७० ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१७२८

१७२८ ग्रेगोरी कैलंडर का एक अधिवर्ष है। .

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१७५१

1751 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१७५७

1757 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१७६४

1764 ग्रेगोरी कैलंडर का एक अधिवर्ष है। .

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१८०३

1803 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१८१८

1818 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१८२२

१८२२ ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१८३७

1837 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१८३९

1839 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१८४३

1843 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१८४८

१८४८ ग्रेगोरी कैलंडर का एक अधिवर्ष है। .

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१८४९

1849 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१८५३

1853 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१८५५

1855 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१८६५

1865 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१८६६

1866 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१९ अगस्त

19 अगस्त ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 231वॉ (लीप वर्ष मे 232 वॉ) दिन है। साल मे अभी और 134 दिन बाकी है। .

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१९००

१९०० ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है, जो सोमवार से प्रारंभ हुआ था। .

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१९५०

1950 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१९५६

१९५६ ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१९५९

1959 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१९६१

1961 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१९६२

1962 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१९६३

1963 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१९६५

1965 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१९६६

1966 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१९६७

1967 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१९७१

१९७१ ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१९७२

१९७२ ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१९७३

1973 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१९७४

1974 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१९७६

१९७६ ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१९७७

1977 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१९८०

अभिनेत्री नेहा धुपिया १९८० ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१९८१

1981 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१९८४

१९८४ ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१९८५

1985 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१९८९

१९८९ ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१९९०

कोई विवरण नहीं।

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१९९५

1995 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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२३२

एक संख्या जो २३१ के बाद और २३३ के पहले आती है। श्रेणी:संख्या.

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२६१

एक संख्या जो २६० के बाद और २६२ के पहले आती है। श्रेणी:संख्या.

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३५०

एक संख्या जो ३४९ के बाद और ३५१ के पहले आती है। श्रेणी:संख्या.

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४९

एक संख्या जो ४८ के बाद और ५० के पहले आती है। श्रेणी:संख्या als:40er#49 ((als:40er#48)).

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४९८

४९८ ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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५००

500 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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