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एकेश्वरवाद और सर्वेश्वरवाद

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

एकेश्वरवाद और सर्वेश्वरवाद के बीच अंतर

एकेश्वरवाद vs. सर्वेश्वरवाद

एकेश्वरवाद अथवा एकदेववाद वह सिद्धान्त है जो 'ईश्वर एक है' अथवा 'एक ईश्वर है' विचार को सर्वप्रमुख रूप में मान्यता देता है। एकेश्वरवादी एक ही ईश्वर में विश्वास करता है और केवल उसी की पूजा-उपासना करता है। इसके साथ ही वह किसी भी ऐसी अन्य अलौकिक शक्ति या देवता को नहीं मानता जो उस ईश्वर का समकक्ष हो सके अथवा उसका स्थान ले सके। इसी दृष्टि से बहुदेववाद, एकदेववाद का विलोम सिद्धान्त कहा जाता है। एकेश्वरवाद के विरोधी दार्शनिक मतवादों में दार्शनिक सर्वेश्वरवाद, दार्शनिक निरीश्वरवाद तथा दार्शनिक संदेहवाद की गणना की जाती है। सर्वेश्वरवाद, ईश्वर और जगत् में अभिन्नता मानता है। उसके सिद्धांतवाक्य हैं- 'सब ईश्वर हैं' तथा 'ईश्वर सब हैं'। एकेश्वरवाद केवल एक ईश्वर की सत्ता मानता है। सर्वेश्वरवाद ईश्वर और जगत् दोनों की सत्ता मानता है। यद्यपि जगत् की सत्ता के स्वरूप में वैमत्य है तथापि ईश्वर और जगत् की एकता अवश्य स्वीकार करता है। 'ईश्वर एक है' वाक्य की सूक्ष्म दार्शनिक मीमांसा करने पर यह कहा जा सकता है कि सर्वसत्ता ईश्वर है। यह निष्कर्ष सर्वेश्वरवाद के निकट है। इसीलिए ये वाक्य एक ही तथ्य को दो ढंग से प्रकट करते हैं। इनका तुलनात्मक अध्ययन करने से यह प्रकट होता है कि 'ईश्वर एक है' वाक्य जहाँ ईश्वर के सर्वातीतत्व की ओर संकेत करता है वहीं 'सब ईश्वर हैं' वाक्य ईश्वर के सर्वव्यापकत्व की ओर। देशकालगत प्रभाव की दृष्टि से विचार करने पर ईश्वर के तीन विषम रूपों के अनुसार तीन प्रकार के एकेश्वरवाद का भी उल्लेख मिलता है-. सर्वेश्वरवाद (Pantheism) कारण और कार्य को अभिन्न मानता है। इसकी प्रमुख प्रतिज्ञा यह है कि ब्रह्म और ब्रह्मांड एक ही वस्तु है। नवीन काल में स्पीनोजा इस सिद्धांत का सबसे बड़ा समर्थक समझा जाता है। उसके विचारानुसार यथार्थ सत्ता एकमात्र द्रव्य, ईश्वर, की है, सारे चेतन उसके चिंतन के आकार हैं, सारे आकृतिक पदार्थ उसके विस्तार के आकार हैं। सर्वेश्वरवाद वैज्ञानिक और धार्मिक मनोवृत्तियों के लिए विशेष आकर्षण रखता है। विज्ञान के लिए किसी घटना को समझने का अर्थ यही है उसे अन्य घटनाओं से संबद्ध किया जाए, अनुवेषण का लक्ष्य बहुत्व में एकत्व को देखना है। सर्वेश्वरवाद इस प्रवृत्ति को इसके चरम बिंदु तक ले जाता है और कहता है कि बहुत्व की वास्तविक सत्ता है ही नहीं, यह आभासमात्र है। धार्मिक मनोवृत्ति में भक्तिभाव केंद्रीय अंश है। भक्त का अंतिम लक्ष्य अपने आपकोश् उपास्य में खो देना है। अति निकट संपर्क और एकरूपता में बहुत अंतर नहीं। भक्त समझने लगता है कि उसका काम इस भ्रम से छूटना है कि उपास्य और उपासक एक दूसरे से भिन्न हैं। मनोवैज्ञानिक और नैतिक मनोवृत्तियों के लिए इस सिद्धांत में अजेय कठिनाइयाँ हैं। हम बाहरी जगत्‌ को वास्तविक कर्मक्षेत्र के रूप में देखते हैं, इसे छायामात्र नहीं समझ सकते। नैतिक भाव समस्या को और भी जटिल बना देता है। यदि मनुष्य स्वाधीन सत्ता ही नहीं तो उत्तरदायित्व का भाव भ्रम मात्र है। जीवन में पाप, दु:ख और अनेक त्रुटियाँ मौजूद हैं सर्वेश्वरवाद के पास इसका कोई समाधान नहीं। .

एकेश्वरवाद और सर्वेश्वरवाद के बीच समानता

एकेश्वरवाद और सर्वेश्वरवाद आम में एक बात है (यूनियनपीडिया में): बहुदेववाद

बहुदेववाद

एक से अधिक देवताओं की पूजा करना या एक से अधिक देवताओं के अस्तित्व को मानना बहुदेववाद या अनेकदेववाद या बहु-ईश्वरवाद (Polytheism/पॉलीथिज्म) कहलाता है। बहुदेववाद में विश्वास रखने वाले अधिकांश धर्मों में भिन्न-भिन्न देवता, प्रकृति की विभिन्न शक्तियों को निरुपित करते हैं। ये देवता या तो पूर्णतः स्वायत्त हैं या 'स्ऱिष्टिकर्ता ईश्वर' के कोई रूप हैं। .

एकेश्वरवाद और बहुदेववाद · बहुदेववाद और सर्वेश्वरवाद · और देखें »

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एकेश्वरवाद और सर्वेश्वरवाद के बीच तुलना

एकेश्वरवाद 15 संबंध है और सर्वेश्वरवाद 2 है। वे आम 1 में है, समानता सूचकांक 5.88% है = 1 / (15 + 2)।

संदर्भ

यह लेख एकेश्वरवाद और सर्वेश्वरवाद के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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