ऍनसॅलअडस (उपग्रह) और सौर मण्डल के बीच समानता
ऍनसॅलअडस (उपग्रह) और सौर मण्डल आम में 8 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): टाइटन (चंद्रमा), ट्राइटन (उपग्रह), बृहस्पति (ग्रह), शनि के प्राकृतिक उपग्रह, वरुण (ग्रह), गुरुत्वाकर्षण, आयो (उपग्रह), उल्का।
टाइटन (चंद्रमा)
टाइटन (या Τῑτάν), या शनि शष्टम, शनि ग्रह का सबसे बड़ा चंद्रमा है। यह वातावरण सहित एकमात्र ज्ञातचंद्रमा है, और पृथ्वी के अलावा एकमात्र ऐसा खगोलीय पिंड है जिसके सतही तरल स्थानों, जैसे नहरों, सागरों आदि के ठोस प्रमाण उपलब्ध हों। यूरोपीय-अमेरिकी के कासीनी अंतरिक्ष यान के साथ गया उसका अवतरण यान हायगन्स, १६ जनवरी २००४ को, टाइटन के धरातल पर उतरा जहां उसने भूरे-नारंगी रंग में रंगे टाईटन के नदियों-पहाडों और झीलों-तालाबों वाले जो चित्र भेजे। टाइटन के बहुत ही घने वायुमंडल के कारण इससे पहले उसकी ऊपरी सतह को देख या उसके चित्र ले पाना संभव ही नहीं था। २००८ अगस्त के मध्य में ब्राज़ील की राजधानी रियो दी जनेरो में अंतरराष्ट्रीय खगोल विज्ञान संघ के सम्मेलन में ऐसे चित्र दिखाये गये और दो ऐसे शोधपत्र प्रस्तुत किये गये, जिनसे पृथ्वी के साथ टाइटन की समानता स्पष्ट होती है। ये चित्र और अध्ययन भी मुख्यतः कासीनी और होयगन्स से मिले आंकड़ों पर ही आधारित थे। .
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ट्राइटन (उपग्रह)
ट्राइटन सौर मण्डल के आठवे ग्रह वरुण (नॅप्टयून) का सबसे बड़ा उपग्रह है और हमारे सौर मण्डल के सारे चंद्रमाओं में से सातवा सब से बड़ा चन्द्रमा है। अगर वरुण के सारे चंद्रमाओं का कुल द्रव्यमान देखा जाए तो उसका ९९.५% इस एक उपग्रह में निहित है। ट्राइटन वरुण का इकलौता उपग्रह है जो अपने गुरुत्वाकर्षक खिचाव से अपना अकार गोल कर चुका है। बाक़ी सभी चंद्रमाओं के अकार बेढंगे हैं। ट्राइटन का अपना पतला वायुमंडल भी है, जिसमें नाइट्रोजन के साथ-साथ थोड़ी मात्रा में मीथेन और कार्बन मोनोऑक्साइड भी मौजूद हैं। ट्राइटन की सतह पर औसत तापमान -२३५.२° सेंटीग्रेड है। १९८६ में पास से गुज़रते हुए वॉयेजर द्वितीय यान ने कुछ ऐसी तस्वीरें ली जिनमें ट्राइटन के वातावरण में बादलों जैसी चीज़ें नज़र आई थीं। ट्राइटन वरुण के इर्द-गिर्द अपनी कक्षा में परिक्रमा में प्रतिगामी चाल रखता है और इसकी बनावट यम ग्रह (प्लूटो) से मिलती-जुलती है जिस से वैज्ञानिक अनुमान लगते हैं के ट्राइटन वरुण से दूर काइपर घेरे में बना था और भटकते हुए वरुण के पास जा पहुंचा जहाँ वह वरुण के तगड़े गुरुत्वाकर्षण की पकड़ में आ गया और तब से उसकी परिक्रमा कर रहा है। .
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बृहस्पति (ग्रह)
बृहस्पति सूर्य से पांचवाँ और हमारे सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है। यह एक गैस दानव है जिसका द्रव्यमान सूर्य के हजारवें भाग के बराबर तथा सौरमंडल में मौजूद अन्य सात ग्रहों के कुल द्रव्यमान का ढाई गुना है। बृहस्पति को शनि, अरुण और वरुण के साथ एक गैसीय ग्रह के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इन चारों ग्रहों को बाहरी ग्रहों के रूप में जाना जाता है। यह ग्रह प्राचीन काल से ही खगोलविदों द्वारा जाना जाता रहा है तथा यह अनेकों संस्कृतियों की पौराणिक कथाओं और धार्मिक विश्वासों के साथ जुड़ा हुआ था। रोमन सभ्यता ने अपने देवता जुपिटर के नाम पर इसका नाम रखा था। इसे जब पृथ्वी से देखा गया, बृहस्पति -2.94 के सापेक्ष कांतिमान तक पहुंच सकता है, छाया डालने लायक पर्याप्त उज्जवल, जो इसे चन्द्रमा और शुक्र के बाद आसमान की औसत तृतीय सर्वाधिक चमकीली वस्तु बनाता है। (मंगल ग्रह अपनी कक्षा के कुछ बिंदुओं पर बृहस्पति की चमक से मेल खाता है)। बृहस्पति एक चौथाई हीलियम द्रव्यमान के साथ मुख्य रूप से हाइड्रोजन से बना हुआ है और इसका भारी तत्वों से युक्त एक चट्टानी कोर हो सकता है।अपने तेज घूर्णन के कारण बृहस्पति का आकार एक चपटा उपगोल (भूमध्य रेखा के पास चारों ओर एक मामूली लेकिन ध्यान देने योग्य उभार लिए हुए) है। इसके बाहरी वातावरण में विभिन्न अक्षांशों पर कई पृथक दृश्य पट्टियां नजर आती है जो अपनी सीमाओं के साथ भिन्न भिन्न वातावरण के परिणामस्वरूप बनती है। बृहस्पति के विश्मयकारी 'महान लाल धब्बा' (Great Red Spot), जो कि एक विशाल तूफ़ान है, के अस्तित्व को १७ वीं सदी के बाद तब से ही जान लिया गया था जब इसे पहली बार दूरबीन से देखा गया था। यह ग्रह एक शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र और एक धुंधले ग्रहीय वलय प्रणाली से घिरा हुआ है। बृहस्पति के कम से कम ६४ चन्द्रमा है। इनमें वो चार सबसे बड़े चन्द्रमा भी शामिल है जिसे गेलीलियन चन्द्रमा कहा जाता है जिसे सन् १६१० में पहली बार गैलीलियो गैलिली द्वारा खोजा गया था। गैनिमीड सबसे बड़ा चन्द्रमा है जिसका व्यास बुध ग्रह से भी ज्यादा है। यहाँ चन्द्रमा का तात्पर्य उपग्रह से है। बृहस्पति का अनेक अवसरों पर रोबोटिक अंतरिक्ष यान द्वारा, विशेष रूप से पहले पायोनियर और वॉयजर मिशन के दौरान और बाद में गैलिलियो यान के द्वारा, अन्वेषण किया जाता रहा है। फरवरी २००७ में न्यू होराएज़न्ज़ प्लूटो सहित बृहस्पति की यात्रा करने वाला अंतिम अंतरिक्ष यान था। इस यान की गति बृहस्पति के गुरुत्वाकर्षण का इस्तेमाल कर बढाई गई थी। इस बाहरी ग्रहीय प्रणाली के भविष्य के अन्वेषण के लिए संभवतः अगला लक्ष्य यूरोपा चंद्रमा पर बर्फ से ढके हुए तरल सागर शामिल हैं। .
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शनि के प्राकृतिक उपग्रह
छल्ले और उसके कुछ मुख्य उपग्रह (चित्रकार द्वारा बनाया गया चित्र) शनि के कुछ मुख्य उपग्रह: टाइटन बीच का बड़ा नारंगी गोला है जिसके ऊपर बाक़ी चन्द्रमा दर्शाए गए हैं हमारे सौर मण्डल के छठे ग्रह शनि के बहुत से भिन्न-भिन्न प्रकार के उपग्रह हैं, जिनमें १ कि॰मी॰ से भी कम आकार के नन्हे चाँद और भयंकर आकार वाला टाइटन (जो बुध ग्रह से भी बड़ा है) शामिल हैं। शनि के छल्लों में लाखों वस्तुएँ शनि की परिक्रमा कर रहीं हैं - लेकिन इनमें से बहुत तो छोटे-छोटे पत्थर या धुल के कण ही हैं। कुल मिलकर, सन् २०१० तक, शनि के ६२ ज्ञात उपग्रह थे जिनकी परिक्रमा की कक्षाएँ परखी जा चुकी थीं। इनमें से केवल १३ का व्यास (डायामीटर) ५० किमी से अधिक था और इनमें से ५३ का नामकरण किया जा चुका था। शनि के सात चन्द्रमा इतने बड़े हैं के वे अपने गुरुत्वाकर्षण की खींच से स्वयं को पूरा गोल आकार का कर पाएँ हैं। इन सारे चंद्रमाओं में से दो वैज्ञानिकों की लिए विशेष दिलचस्पी रखते हैं: टाइटन, जो सौरमंडल का दूसरा सब से बड़ा उपग्रह है और जिसपर पृथ्वी की तरह नाइट्रोजन गैस से भरपूर पृथ्वी से भी घना वायुमंडल है और ऍनसॅलअडस, जिसपर गैस और धुल के फव्वारे हैं और जिसके दक्षिणी ध्रुव की सतह के नीचे पानी का बड़ा जलाशय होने की सम्भावना है। .
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वरुण (ग्रह)
वरुण, नॅप्टयून या नॅप्चयून हमारे सौर मण्डल में सूर्य से आठवाँ ग्रह है। व्यास के आधार पर यह सौर मण्डल का चौथा बड़ा और द्रव्यमान के आधार पर तीसरा बड़ा ग्रह है। वरुण का द्रव्यमान पृथ्वी से १७ गुना अधिक है और अपने पड़ौसी ग्रह अरुण (युरेनस) से थोड़ा अधिक है। खगोलीय इकाई के हिसाब से वरुण की कक्षा सूरज से ३०.१ ख॰ई॰ की औसत दूरी पर है, यानि वरुण पृथ्वी के मुक़ाबले में सूरज से लगभग तीस गुना अधिक दूर है। वरुण को सूरज की एक पूरी परिक्रमा करने में १६४.७९ वर्ष लगते हैं, यानि एक वरुण वर्ष १६४.७९ पृथ्वी वर्षों के बराबर है। हमारे सौर मण्डल में चार ग्रहों को गैस दानव कहा जाता है, क्योंकि इनमें मिटटी-पत्थर की बजाय अधिकतर गैस है और इनका आकार बहुत ही विशाल है। वरुण इनमे से एक है - बाकी तीन बृहस्पति, शनि और अरुण (युरेनस) हैं। इनमें से अरुण की बनावट वरुण से बहुत मिलती-जुलती है। अरुण और वरुण के वातावरण में बृहस्पति और शनि के तुलना में बर्फ़ अधिक है - पानी की बर्फ़ के अतिरिक्त इनमें जमी हुई अमोनिया और मीथेन गैसों की बर्फ़ भी है। इसलिए कभी-कभी खगोलशास्त्री इन दोनों को "बर्फ़ीले गैस दानव" नाम की श्रेणी में डाल देते हैं। .
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गुरुत्वाकर्षण
गुरुत्वाकर्षण के कारण ही ग्रह, सूर्य के चारों ओर चक्कर लगा पाते हैं और यही उन्हें रोके रखती है। गुरुत्वाकर्षण (ग्रैविटेशन) एक पदार्थ द्वारा एक दूसरे की ओर आकृष्ट होने की प्रवृति है। गुरुत्वाकर्षण के बारे में पहली बार कोई गणितीय सूत्र देने की कोशिश आइजक न्यूटन द्वारा की गयी जो आश्चर्यजनक रूप से सही था। उन्होंने गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत का प्रतिपादन किया। न्यूटन के सिद्धान्त को बाद में अलबर्ट आइंस्टाइन द्वारा सापेक्षता सिद्धांत से बदला गया। इससे पूर्व वराह मिहिर ने कहा था कि किसी प्रकार की शक्ति ही वस्तुओं को पृथिवी पर चिपकाए रखती है। .
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आयो (उपग्रह)
आयो (Io), हमारे सौर मण्डल के पाँचवे ग्रह बृहस्पति का तीसरा सब से बड़ा उपग्रह है और यह पूरे सौर मंडल का चौथा सब से बड़ा चन्द्रमा है। आयो का व्यास (डायामीटर) 3,642 किमी है। बृहस्पति के चार प्रमुख उपग्रहों (गैनिमीड, कलिस्टो, आयो और यूरोपा) में यह बृहस्पति की सब से क़रीबी कक्षा में परिक्रमा करने वाला चन्द्रमा है। बृहस्पति के इतना समीप होने की वजह से उस ग्रह के भयंकर गुरुत्वाकर्षण से पैदा होने वाला ज्वारभाटा बल आयो को गूंथता रहता है जिस से इस उपग्रह पर बहुत से ज्वालामुखी हैं। सन् 2010 तक आयो पर 400 से भी अधिक सक्रीय ज्वालामुखी गिने जा चुके थे। पूरे सौर मंडल में और कोई वस्तु नहीं जहाँ आयो से ज़्यादा भौगोलिक उथल-पुथल हो रही हो। सौर मंडल के बाहरी चंद्रमाओं की बनावट में ज़्यादातर बर्फ़ की बहुतायत होती है लेकिन आयो पर ऐसा नहीं है। आयो अधिकतर पत्थरीले पदार्थों का बना हुआ है। .
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उल्का
आकाश के एक भाग में उल्का गिरने का दृष्य; यह दृष्य एक्स्ोजर समय कबढ़ाकर लिया गया है आकाश में कभी-कभी एक ओर से दूसरी ओर अत्यंत वेग से जाते हुए अथवा पृथ्वी पर गिरते हुए जो पिंड दिखाई देते हैं उन्हें उल्का (meteor) और साधारण बोलचाल में 'टूटते हुए तारे' अथवा 'लूका' कहते हैं। उल्काओं का जो अंश वायुमंडल में जलने से बचकर पृथ्वी तक पहुँचता है उसे उल्कापिंड (meteorite) कहते हैं। प्रायः प्रत्येक रात्रि को उल्काएँ अनगिनत संख्या में देखी जा सकती हैं, किंतु इनमें से पृथ्वी पर गिरनेवाले पिंडों की संख्या अत्यंत अल्प होती है। वैज्ञानिक दृष्टि से इनका महत्व बहुत अधिक है क्योंकि एक तो ये अति दुर्लभ होते हैं, दूसरे आकाश में विचरते हुए विभिन्न ग्रहों इत्यादि के संगठन और संरचना (स्ट्रक्चर) के ज्ञान के प्रत्यक्ष स्रोत केवल ये ही पिंड हैं। इनके अध्ययन से हमें यह भी बोध होता है कि भूमंडलीय वातावरण में आकाश से आए हुए पदार्थ पर क्या-क्या प्रतिक्रियाएँ होती हैं। इस प्रकार ये पिंड ब्रह्माण्डविद्या और भूविज्ञान के बीच संपर्क स्थापित करते हैं। .
सूची के ऊपर निम्न सवालों के जवाब
- क्या ऍनसॅलअडस (उपग्रह) और सौर मण्डल लगती में
- यह आम ऍनसॅलअडस (उपग्रह) और सौर मण्डल में है क्या
- ऍनसॅलअडस (उपग्रह) और सौर मण्डल के बीच समानता
ऍनसॅलअडस (उपग्रह) और सौर मण्डल के बीच तुलना
ऍनसॅलअडस (उपग्रह) 17 संबंध है और सौर मण्डल 99 है। वे आम 8 में है, समानता सूचकांक 6.90% है = 8 / (17 + 99)।
संदर्भ
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