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ऋष्यशृंग और दशरथ

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

ऋष्यशृंग और दशरथ के बीच अंतर

ऋष्यशृंग vs. दशरथ

"ऋष्यश्रृंग" या श्रृंगी ऋषि वाल्मीकि रामायण में एक पात्र हैं जिन्होंने राजा दशरथ के पुत्र प्राप्ति के लिए अश्वमेध यज्ञ तथा पुत्रकामेष्टि यज्ञ कराये थे। वह विभण्डक ऋषि के पुत्र तथा कश्यप ऋषि के पौत्र बताये जाते हैं। उनके नाम को लेकर यह उल्लेख है कि उनके माथे पर सींग (संस्कृत में ऋंग) जैसा उभार होने की वजह से उनका यह नाम पड़ा था। उनका विवाह अंगदेश के राजा रोमपाद की दत्तक पुत्री शान्ता से सम्पन्न हुआ जो कि वास्तव में दशरथ की पुत्री थीं। पौराणिक कथाओं के अनुसार ऋष्यशृंग विभण्डक तथा अप्सरा उर्वशी के पुत्र थे। विभण्डक ने इतना कठोर तप किया कि देवतागण भयभीत हो गये और उनके तप को भंग करने के लिए उर्वशि को भेजा। उर्वशी ने उन्हें मोहित कर उनके साथ संसर्ग किया जिसके फलस्वरूप ऋष्यशृंग की उत्पत्ति हुयी। ऋष्यशृंग के माथे पर एक सींग (शृंग) था अतः उनका यह नाम पड़ा। ऋष्यशृंग के पैदा होने के तुरन्त बाद उर्वशी का धरती का काम समाप्त हो गया तथा वह स्वर्गलोक के लिए प्रस्थान कर गई। इस धोखे से विभण्डक इतने आहत हुये कि उन्हें नारी जाति से घृणा हो गई तथा उन्होंने अपने पुत्र ऋष्यशृंग पर नारी का साया भी न पड़ने देने की ठान ली। इसी उद्देश्य से वह ऋष्यशृंग का पालन-पोषण एक अरण्य में करने लगे। वह अरण्य अंगदेश की सीमा से लग के था। उनके घोर तप तथा क्रोध के परिणाम अंगदेश को भुगतने पड़े जहाँ भयंकर अकाल छा गया। अंगराज रोमपाद (चित्ररथ) ने ऋषियों तथा मंत्रियों से मंत्रणा की तथा इस निष्कर्ष में पहुँचे कि यदि किसी भी तरह से ऋष्यशृंग को अंगदेश की धरती में ले आया जाता है तो उनकी यह विपदा दूर हो जायेगी। अतः राजा ने ऋष्यशृंग को रिझाने के लिए देवदासियों का सहारा लिया क्योंकि ऋष्यशृंग ने जन्म लेने के पश्चात् कभी नारी का अवलोकन नहीं किया था। और ऐसा ही हुआ भी। ऋष्यशृंग का अंगदेश में बड़े हर्षोल्लास के साथ स्वागत किया गया। उनके पिता के क्रोध के भय से रोमपाद ने तुरन्त अपनी पुत्री शान्ता का हाथ ऋष्यशृंग को सौंप दिया। बाद में ऋष्यशृंग ने दशरथ की पुत्र कामना के लिए अश्वमेध यज्ञ तथा पुत्रकामेष्टि यज्ञ कराया। जिस स्थान पर उन्होंने यह यज्ञ करवाये थे वह अयोध्या से लगभग ३८ कि॰मी॰ पूर्व में था और वहाँ आज भी उनका आश्रम है और उनकी तथा उनकी पत्नी की समाधियाँ हैं। . दशरथ ऋष्यश्रृंग को लेने के लिए जाते हुए दशरथ वाल्मीकि रामायण के अनुसार अयोध्या के रघुवंशी (सूर्यवंशी) राजा थे। वह इक्ष्वाकु कुल के थे तथा प्रभु श्रीराम, जो कि विष्णु का अवतार थे, के पिता थे। दशरथ के चरित्र में आदर्श महाराजा, पुत्रों को प्रेम करने वाले पिता और अपने वचनों के प्रति पूर्ण समर्पित व्यक्ति दर्शाया गया है। उनकी तीन पत्नियाँ थीं – कौशल्या, सुमित्रा तथा कैकेयी। अंगदेश के राजा रोमपाद या चित्ररथ की दत्तक पुत्री शान्ता महर्षि ऋष्यशृंग की पत्नी थीं। एक प्रसंग के अनुसार शान्ता दशरथ की पुत्री थीं तथा रोमपाद को गोद दी गयीं थीं। .

ऋष्यशृंग और दशरथ के बीच समानता

ऋष्यशृंग और दशरथ आम में 5 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): पुत्रकामेष्टि, रामायण, वाल्मीकि, अश्वमेध यज्ञ, अंग महाजनपद

पुत्रकामेष्टि

Sacrifices Yield Boon Giving Pudding पुत्रकामेष्टि हिंदू मान्यता के अनुसार एक यज्ञ है जिसका अनुष्ठान पुत्र प्राप्ति की कामना से किया जाता है। श्रेणी:रामायण श्रेणी:यज्ञ.

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रामायण

रामायण आदि कवि वाल्मीकि द्वारा लिखा गया संस्कृत का एक अनुपम महाकाव्य है। इसके २४,००० श्लोक हैं। यह हिन्दू स्मृति का वह अंग हैं जिसके माध्यम से रघुवंश के राजा राम की गाथा कही गयी। इसे आदिकाव्य तथा इसके रचयिता महर्षि वाल्मीकि को 'आदिकवि' भी कहा जाता है। रामायण के सात अध्याय हैं जो काण्ड के नाम से जाने जाते हैं। .

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वाल्मीकि

महर्षि वाल्मीक (संस्कृत: महर्षि वाल्मीक) प्राचीन भारतीय महर्षि हैं। ये आदिकवि के रूप में प्रसिद्ध हैं। उन्होने संस्कृत में रामायण की रचना की। उनके द्वारा रची रामायण वाल्मीकि रामायण कहलाई। रामायण एक महाकाव्य है जो कि श्रीराम के जीवन के माध्यम से हमें जीवन के सत्य से, कर्तव्य से, परिचित करवाता है।http://timesofindia.indiatimes.com/india/Maharishi-Valmeki-was-never-a-dacoit-Punjab-Haryana-HC/articleshow/5960417.cms आदिकवि शब्द 'आदि' और 'कवि' के मेल से बना है। 'आदि' का अर्थ होता है 'प्रथम' और 'कवि' का अर्थ होता है 'काव्य का रचयिता'। वाल्मीकि ऋषि ने संस्कृत के प्रथम महाकाव्य की रचना की थी जो रामायण के नाम से प्रसिद्ध है। प्रथम संस्कृत महाकाव्य की रचना करने के कारण वाल्मीकि आदिकवि कहलाये। वाल्मीकि एक आदि कवि थे पर उनकी विशेषता यह थी कि वे कोई ब्राह्मण नहीं थे, बल्कि केवट थे।। .

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अश्वमेध यज्ञ

अश्वमेध भारतवर्ष का एक प्रख्यात यज्ञ। सार्वभौम राजा अर्थात् चक्रवर्ती नरेश ही अश्वमेध का अधिकारी माना जाता था, परंतु ऐतरेय ब्राह्मण (8 पंचिका) के अनुसार अन्य महत्वशाली राजन्यों का भी इसके विधान में अधिकार था। आश्वलायन श्रौत सूत्र (10। 6। 1) का कथन है कि जो सब पदार्थो को प्राप्त करना चाहता है, सब विजयों का इच्छुक होता है और समस्त समृद्धि पाने की कामना करता है वह इस यज्ञ का अधिकारी है। इसलिए सार्वीभौम के अतिरिक्त भी मूर्धाभिषिक्त राजा अश्वमेध कर सकता था (आप.श्रौत. 20। 1। 1।; लाट्यायन 9। 10। 17)। यह अति प्राचीन यज्ञ प्रतीत होता है क्योंकि ऋग्वेद के दो सूक्तों में (1। 162; 1। 163) अश्वमेधीय अश्व तथा उसके हवन का विशेष विवरण दिया गया है। शतपथ (13। 1-5) तथा तैतिरीय ब्राह्मणों (3। 8-9) में इसका बड़ा ही विशद वर्णन उपलब्ध है जिसका अनुसरण श्रौत सूत्रों, वाल्मीकीय रामायण (1। 13), महाभारत के आश्वमेधिक पर्व में तथा जैमिनीय अश्वमेध में किया गया है। .

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अंग महाजनपद

अंग प्राचीन भारत के 16 महाजनपदों में से एक था। इसका सर्वप्रथम उल्लेख अथर्ववेद में मिलता है। बौद्ध ग्रंथो में अंग और वंग को प्रथम आर्यों की संज्ञा दी गई है। महाभारत के साक्ष्यों के अनुसार आधुनिक भागलपुर, मुंगेर और उससे सटे बिहार और बंगाल के क्षेत्र अंग प्रदेश के क्षेत्र थे। इस प्रदेश की राजधानी चम्पापुरी थी। यह जनपद मगध के अंतर्गत था। प्रारंभ में इस जनपद के राजाओं ने ब्रह्मदत्त के सहयोग से मगध के कुछ राजाओं को पराजित भी किया था किंतु कालांतर में इनकी शक्ति क्षीण हो गई और इन्हें मगध से पराजित होना पड़ा। महाभारत काल में यह कर्ण का राज्य था। इसका प्राचीन नाम मालिनी था। इसके प्रमुख नगर चम्पा (बंदरगाह), अश्वपुर थे। .

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ऋष्यशृंग और दशरथ के बीच तुलना

ऋष्यशृंग 12 संबंध है और दशरथ 22 है। वे आम 5 में है, समानता सूचकांक 14.71% है = 5 / (12 + 22)।

संदर्भ

यह लेख ऋष्यशृंग और दशरथ के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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