उपादान और त्रैलोक्य
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उपादान और त्रैलोक्य के बीच अंतर
उपादान vs. त्रैलोक्य
किसी वस्तु की तृष्णा से उसे ग्रहण करने की जो प्रवृत्ति होती है, उसे उपादान कहते हैं। प्रतीत्यसमुत्पादन की दूसरी कड़ी 'तण्हापच्चया उपादानं' - इसी का प्रतिपादान करती है। उपादान से ही प्राणी के जीवन की सारी भाग दोड़ होती है, जिसे भव कहते हैं। तृष्णा के न होने से उपादान भी नहीं होता और उपादान के निरोध से भव का निरोध हो जाता है। यही निर्वाण के लाभ की दिशा है। श्रेणी:भारतीय दर्शन. हिन्दू धर्म में विष्णु पुराण के अनुसार इस त्रिलोक्य को दो प्रकार के लोकों में बांटा जा सकता है:-.
उपादान और त्रैलोक्य के बीच समानता
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संदर्भ
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