उपलक्षण और शोगुन
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उपलक्षण और शोगुन के बीच अंतर
उपलक्षण vs. शोगुन
उपलक्षण, व्याकरणशास्त्र में ऐसे अलंकार को कहते हैं जिसमें किसी चीज़ को उसके अपने नाम से बुलाया जाने कि बजाय उस से सम्बंधित किसी लक्षण या अन्य चीज़ के नाम से बुलाया जाय। उदाहरण के लिए हिन्दी में 'रामपुर' या 'रामपुरी' का मतलब एक लम्बे प्रकार का चाक़ू को कहा जाता है, क्योंकि इस क़िस्म के छुरे अक्सर उत्तर प्रदेश के रामपुर शहर से आया करते हैं। इसी तरह कभी-कभी भारत की केन्द्रीय सरकार को समाचारों में 'दिल्ली' कह दिया जाता है क्योंकि उसका मुख्यालय उस शहर में है, मसलन 'बंगाल सरकार यह क़दम उठाना चाहती है पर दिल्ली ने इसपर आपत्ति जतलाई है'।, Julie Singer, pp. मिनामोतो योरितोमो जो ११९२-११९९ के काल में जापान के पहले शोगुन रहे शोगुन (जापानी: 将軍, अर्थ: सेनापति, महामंत्री) यह एक राजकीय उपाधि थी जो सन् ११९२ से १८६७ तक जापान के सम्राट के महामंत्री या सेनापति को दी जाती थी। यह सैन्य तानाशाह होते थे और अपने वंश चलाते थे। इस काल के जापानी इतिहास को इन्ही शोगुन वंशों के कालों में बांटा जाता है। औपचारिक रूप से जापान का शासक जापान का सम्राट होता था लेकिन वह केवल नाम का शासक था क्योंकि राजसी शक्तियाँ पूरी तरह शोगुन के नियंत्रण में थी। जब पुर्तगाली १५४३ में जापानियों से संपर्क में आने वाले पहले यूरोपीय शक्ति बने तो उन्होंने ब्यौरा दिया की शोगुन का ठाठ-बाठ भी पूरा राजाओं वाला होता था और वे खुले रूप से शासन करते थे। सम्राट को केवल धार्मिक दृष्टि से जापान का प्रमुख होने का आदर प्राप्त था। शोगुन इतने शक्तिशाली थे की यदि कोई सम्राट उनकी बात न मानता तो वे उन्हें गद्दी छोड़ने पे मजबूर तक कर सकते थे। कामाकुरा काल में पहले शोगुन की मृत्यु के उपरांत होजो वंश और तोकुसो वंश को शिक्केन की उपाधि प्राप्त हुई(शिक्केन का अर्थ है शोगुन के राज्याधिकारी या रीजेंट) और इन्होने जापान के शासक के रूप में राज किया,「執権 (一)」(『国史大辞典 6』(吉川弘文館、1985年) ISBN 978-4-642-00506-7) शोगुन केवल इनकी कठपुतली बनकर रह गए थे जैसे सम्राट शोगुन का था। सन् १८६७ में शोगुन व्यवस्था समाप्त हुई। तोकुगावा योशिनोबू (徳川 慶喜) अंतिम शोगुन रहे और उनके बाद "मेइजी पुनर्स्थापन" नाम के क्रांतिकारी बदलाव में शासन की शक्तियाँ सम्राट के पास लौट आई। शोगुन के शासन को जापानी में बकुफु जाता है जिसका अर्थ होता है दफ्तर या सरकार, अंग्रेजी में बकुफु को शोगुनत कहते हैं। शोगुन का दर्जा लगभग राज्यपाल के बराबर होता था बस फरक यह है कि शासन पूरी तरह से शोगुन के हाथ में होता था। .
उपलक्षण और शोगुन के बीच समानता
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संदर्भ
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