उपदंश और फ्रांसिस प्रथम (फ्रांस का राजा)
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उपदंश और फ्रांसिस प्रथम (फ्रांस का राजा) के बीच अंतर
उपदंश vs. फ्रांसिस प्रथम (फ्रांस का राजा)
उपदंश (Syphilis) एक प्रकार का गुह्य रोग है जो मुख्यतः लैंगिक संपर्क के द्वारा फैलता है। इसका कारक रोगाणु एक जीवाणु, 'ट्रीपोनीमा पैलिडम' है। इसके लक्षण अनेक हैं एंव बिना सही परीक्षा के इसका सही पता करना कठिन है। इसे सीरोलोजिकल परीक्षण द्वारा चिन्हित किया जाता है। इसका इलाज पेन्सिलिन नामक एण्टीबायोटिक से किया जाता है। यह सबसे प्राचीन और कारगर इलाज है। यदि बिना चिकित्सा के छोड़ दिया जाये तो यह रोग हृदय, मस्तिष्क, आंखों एंव हड्डियों को क्षति पहुंचा सकता है। इसकी उत्पत्ति के कारणों के मुख्य रूप से आघात, अशौच तथा प्रदुष्ट योनिवाली स्त्री के साथ संसर्ग बताया गया है। इस प्रकार यह एक औपसर्गिक व्याधि है जिसमें शिश्न पर ब्रण (sore) पाए जाते हैं। दोषभेद से इनके लक्षणों में भेद मिलता है। उचित चिकित्सा न करने पर संपूर्ण लिंग सड़-गलकर गिर सकता है और बिना शिश्न के अंडकोष रह जाते हैं। आयर्वेद में उपदंश के पाँच भेद बताए गए हैं जिन्हें क्रमश:, वात, पित्त, कफ, त्रिदोष एवं रक्त की विकृति के कारण होना बताया गया है। वातज उपदंश में सूई चुभने या शस्त्रभेदन सरीखी पीड़ा होती है। पैत्तिक उपदंश में शीघ्र ही पीला पूय पड़ जाता है और उसमें क्लेद, दाह एवं लालिमा रहती है। कफज उपदंश में खुजली होती है पर पीड़ा और पाक का सर्वथा अभाव रहता है। यह सफेद, घन तथा जलीय स्रावयुक्त होता है। त्रिदोषज में नाना प्रकार की व्यथा होती है और मिश्रित लक्षण मिलते हैं। रक्तज उपदंश में व्रण से रक्तस्राव बहुत अधिक होता रहता है और रोगी बहुत दुर्बल हो जाता है। इसमें पैत्तिक लक्षण भी मिलते हैं। इस प्रकार आयुर्वेद में उपदंश शिश्न की अनेक व्याधियों का समूह मालूम पड़ता है जिसमें सिफ़िलिस, सॉफ्ट शैंकर (soft chanchre) एवं शिश्न के कैंसर सभी सम्मिलित हैं। एक विशेष प्रकार का उपदंश जो फिरंग देश में बहुत अधिक प्रचलित था और जब भारतवर्ष में वे लोग आए तो उनके संपर्क से यहाँ भी गंध के समान वह फैलने लगा तो उस समय के वैद्यों ने, जिनमें भाव मिश्र प्रधान हैं, उसका नाम 'फिरंग रोग' रखा दिया। इसे आगंतुज व्याधि बताया गया अर्थात् इसका कारण हेतु जीवाणु बाहर से प्रवेश करता है। निदान में कहा गया है कि फिरंग देश के मनुष्यों के संसर्ग से तथा विशेषकर फिरंग देश की स्त्रियों के साथ प्रसंग करने से यह रोग उत्पन्न होता है। यह दो प्रकार का होता है एक बाह्य एवं दूसरा अभ्यंतर। बाह्य में शिश्न पर और कालांतर में त्वचा पर विस्फोट होता है। आभ्यंतर में संधियों, अस्थियों तथा अन्य अवयवों में विकृति हो जाती है। जब यह बीमारी बढ़ जाती है तो दौर्बल्य, नासाभंग, अग्निमांद्य, अस्थिशोष एवं अस्थिवक्रता आदि लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं। वस्तुत: फिरंग रोग उपदंश से भिन्न व्याधि नहीं है बल्कि उसी का एक भेद मात्र है। बहुत लोग इसे पर्याय भी मानने लगे हैं। . फ्रांसिस प्रथम (१४९४-१५४७) फ्रांस का राजा जो वैलोई के चार्ल्स का पुत्र था। सन् १४९८ में लूई बारहवें के सिंहासनारूढ़ होने पर फ्रांसिस राज्य का संभावित उत्तराधिकारी मान लिया गया। सन् १५१९ में वह रोमन साम्राज्य के सिंहासन के लिए उम्मीदवार बना। इस पद पर चार्ल्स पंचम के चुन लिए जाने पर दोनों नरेशों में जो प्रतिद्वंद्विता प्रारंभ हुई, उसके परिणामस्वरूप १५२१-२९, १५३६-३८ और १५४२-४४ के युद्ध हुए। १५२५ के इटैलियन अभियान में बहादुरी से लड़ने के बाद पेविया नामक स्थान में उसे गहरी शिकस्त उठानी पड़ी। वह बंदी बना लिया गया और अपमानजनक संधि पर हस्ताक्षर होने के बाद ही उसे छुटकारा मिला। वह बड़ी ही ढुलमुल नीति और अस्थिर विचारों का व्यक्ति था। उसके शासन काल में राज्य के अधिकारों और शक्ति में वृद्धि हुई। स्टेट्स जनरल (जनता, अमीरों तथा चर्च के प्रतिनिधियों की सभा) की बैठक बुलाई नहीं जाती थी और 'पार्लमेंट' के विरोध की परवाह नहीं की जाती थी। उसके खर्चीलेपन पर कोई नियंत्रण न था और अपनी प्रेमिकाओं तथा कृपापात्रों को उपहार तथा पेंशन आदि देकर वह मनमाना द्रव्य उड़ाया करता था जिससे प्रजा पर शासन का भार बढ़ता जाता था। वह साहित्यप्रेमी अवश्य था और विद्वानों का आदर करता था जिनमें उसके प्रशंसकों की कमी न थी। श्रेणी:फ्रांस के राजा.
उपदंश और फ्रांसिस प्रथम (फ्रांस का राजा) के बीच समानता
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