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उत्तराखंड में स्वाधीनता संग्राम और गोरखा युद्ध

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

उत्तराखंड में स्वाधीनता संग्राम और गोरखा युद्ध के बीच अंतर

उत्तराखंड में स्वाधीनता संग्राम vs. गोरखा युद्ध

सुगौली संधि द्वारा गोरखा शासन से मुक्त हुआ क्षेत्र। वर्तमान राज्य उत्तराखण्ड जिस भौगोलिक क्षेत्र पर विस्तृत है उस इलाके में ब्रिटिश शासन का इतिहास उन्नीसवी सदी के दूसरे दशक से लेकर भारत की आज़ादी तक का है। उत्तराखण्ड में ईस्ट इंडिया कंपनी का आगमन 1815 में हुआ। इससे पहले यहाँ नेपाली गोरखों का शासन था। यह भी माना जाता है कि गोरखा शासकों द्वारा इस इलाके के लोगों पर किये गये अत्याचारों को देखकर ही अंग्रेजों का ध्यान इस ओर गया। हालाँकि अंग्रेजों और नेपाली गुरखाओं के बीच लड़े गये गोरखा युद्ध के अन्य कारण भी थे। अल्मोड़ा में 27 अप्रैल 1815 को गोरखा प्रतिनिधि बमशाह और लेफ्टिनेंट कर्नल गार्डनर के बीच हुई एक संधि के बाद नेपाली शासक ने इस क्षेत्र से हट जाने को स्वीकारा और इस क्षेत्र पर ईस्ट इण्डिया कंपनी का अधिकार हो गया। अंग्रेजों का इस क्षेत्र पर पूर्ण अधिकार 4 अप्रैल 1816 को सुगौली की सन्धि के बाद इस पूरे क्षेत्र पर हो गया और नेपाल की सीमा काली नदी घोषित हुई। अंग्रेजों ने पूरे इलाके को अपने शासन में न रख अप्रैल 1815 में ही गढ़वाल के पूर्वी हिस्से और कुमायूँ के क्षेत्र पर अपना अधिकार रखा और पश्चिमी हिस्सा सुदर्शन शाह, जो गोरखों के शासन से पहले गढ़वाल के राजा थे, को सौंप दिया जो अलकनंदा और मंदाकिनी नदियों के पश्चिम में पड़ता था।Robert Montgomery Martin, History of the Possessions of the Honourable East India Company, Volume 1, pg. सन् १८१४ से १८१६ चला अंग्रेज-नेपाल युद्ध (गोरखा युद्ध) उस समय के नेपाल अधिराज्य (वर्तमान संघीय लोकतांत्रिक गण राज्य) और ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी के बीच में हुआ था। जिसका परिणाम सुगौली संधि में हुई और नेपाल ने अपना एक-तिहाई भूभाग ब्रिटिश हुकुमत को देना पडा। इस युद्धसे अमर सिंह थापा, बलभद्र कुँवर एवम् भक्ति थापाके सौर्य, पराक्रम एवम् राष्ट्रप्रेमके कहानी अंग्रेजी राज्योमे प्रचलित हुआ था। .

उत्तराखंड में स्वाधीनता संग्राम और गोरखा युद्ध के बीच समानता

उत्तराखंड में स्वाधीनता संग्राम और गोरखा युद्ध आम में एक बात है (यूनियनपीडिया में): सुगौली संधि

सुगौली संधि

सुगौली संधि के क्षेत्रीय प्रभाव सुगौली संधि, ईस्ट इंडिया कंपनी और नेपाल के राजा के बीच हुई एक संधि है, जिसे 1814-16 के दौरान हुये ब्रिटिश-नेपाली युद्ध के बाद अस्तित्व में लाया गया था। इस संधि पर 2 दिसम्बर 1815 को हस्ताक्ष्रर किये गये और 4 मार्च 1816 का इसका अनुमोदन किया गया। नेपाल की ओर से इस पर राज गुरु गजराज मिश्र (जिनके सहायक चंद्र शेखर उपाध्याय थे) और कंपनी ओर से लेफ्टिनेंट कर्नल पेरिस ब्रेडशॉ ने हस्ताक्षर किये थे। इस संधि के अनुसार नेपाल के कुछ हिस्सों को ब्रिटिश भारत में शामिल करने, काठमांडू में एक ब्रिटिश प्रतिनिधि की नियुक्ति और ब्रिटेन की सैन्य सेवा में गोरखाओं को भर्ती करने की अनुमति दी गयी थी, साथ ही इसके द्वारा नेपाल ने अपनी किसी भी सेवा में किसी अमेरिकी या यूरोपीय कर्मचारी को नियुक्त करने का अधिकार भी खो दिया। (पहले कई फ्रांसीसी कमांडरों को नेपाली सेना को प्रशिक्षित करने के लिए तैनात किया गया था) संधि के तहत, नेपाल ने अपने नियंत्रण वाले भूभाग का लगभग एक तिहाई हिस्सा गंवा दिया जिसमे नेपाल के राजा द्वारा पिछ्ले 25 साल में जीते गये क्षेत्र जैसे कि पूर्व में सिक्किम, पश्चिम में कुमाऊं और गढ़वाल राजशाही और दक्षिण में तराई का अधिकतर क्षेत्र शामिल था। तराई भूमि का कुछ हिस्सा 1816 में ही नेपाल को लौटा दिया गया। 1860 में तराई भूमि का एक बड़ा हिस्सा नेपाल को 1857 के भारतीय विद्रोह को दबाने में ब्रिटिशों की सहायता करने की एवज में पुन: लौटाया गया। काठमांडू में तैनात ब्रिटिश प्रतिनिधि मल्ल युग के बाद नेपाल में रहने पहला पश्चिमी व्यक्ति था। (यह ध्यान देने योग्य है कि 18 वीं सदी के मध्य में गोरखाओं ने नेपाल पर विजय प्राप्ति के बाद बहुत से ईसाई धर्मप्रचारकों को नेपाल से बाहर निकाल दिया था)। नेपाल में ब्रिटिशों के पहले प्रतिनिधि, एडवर्ड गार्डनर को काठमांडू के उत्तरी हिस्से में तैनात किया गया था और आज यह स्थान लाज़िम्पाट कहलाता है और यहां ब्रिटिश और भारतीय दूतावास स्थित हैं। दिसम्बर 1923 में सुगौली संधि को अधिक्रमित कर "सतत शांति और मैत्री की संधि", में प्रोन्नत किया गया और ब्रिटिश निवासी के दर्जे को प्रतिनिधि से बढ़ाकर दूत का कर दिया गया। 1950 में भारत (अब स्वतंत्र) और नेपाल ने एक नयी संधि पर दो स्वतंत्र देशों के रूप में हस्ताक्षर किए गए जिसका उद्देश्य दोनों देशों के बीच संबंधों को एक नए सिरे से स्थापित करना था। .

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उत्तराखंड में स्वाधीनता संग्राम और गोरखा युद्ध के बीच तुलना

उत्तराखंड में स्वाधीनता संग्राम 29 संबंध है और गोरखा युद्ध 7 है। वे आम 1 में है, समानता सूचकांक 2.78% है = 1 / (29 + 7)।

संदर्भ

यह लेख उत्तराखंड में स्वाधीनता संग्राम और गोरखा युद्ध के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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