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उत्तर प्रदेश के लोकनृत्य

सूची उत्तर प्रदेश के लोकनृत्य

लोकनृत्य में उत्तर प्रदेश के प्रत्येक अंचल की अपनी विशिष्ट पहचान है। समृद्ध विरासत की विविधता को संजोये हुए ये आंगिक कलारूप लोक संस्कृति के प्रमुख वाहक हैं। .

34 संबंधों: चित्रकूट, ढाल, तलवार, दर्पण, धोबी, नक्कारा, पासी, पूर्वांचल, बुन्देलखण्ड, ब्रज, बैलगाड़ी, मन्दिर, मिर्ज़ापुर, मोर, युद्ध, रथ, राम नवमी, रासलीला, राजपूत, लट्ठमार होली, लोक नृत्य, लोक संस्कृति, श्रावण, सरस्वती, सोनभद्र जिला, घड़ा, गुजरात, कहार, किसान, कुम्हार, कृष्ण, अहीर, अवध, उत्तर प्रदेश

चित्रकूट

चित्रकूट धाम मंदाकिनी नदी के किनारे पर बसा भारत के सबसे प्राचीन तीर्थस्थलों में एक है। उत्तर प्रदेश में 38.2 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला शांत और सुन्दर चित्रकूट प्रकृति और ईश्वर की अनुपम देन है। चारों ओर से विन्ध्य पर्वत श्रृंखलाओं और वनों से घिरे चित्रकूट को अनेक आश्चर्यो की पहाड़ी कहा जाता है। मंदाकिनी नदी के किनार बने अनेक घाट और मंदिर में पूरे साल श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है। माना जाता है कि भगवान राम ने सीता और लक्ष्मण के साथ अपने वनवास के चौदह वर्षो में ग्यारह वर्ष चित्रकूट में ही बिताए थे। इसी स्थान पर ऋषि अत्रि और सती अनसुइया ने ध्यान लगाया था। ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने चित्रकूट में ही सती अनसुइया के घर जन्म लिया था। .

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ढाल

ढाल जब कभी किसी सड़क में मोड़ आता है तो उस मोड़पर सड़क के फर्श को मोड़ के बाहरी ओर ऊँचा उठाकर सड़क को ढालू बनाया है। इसी प्रकार रेल के मार्ग में भी मोड़ बाहरी पटरी भीतरी से थोड़ी उँची रखी जाती है। सड़क की सतह का, या रेल के मार्ग का, मोड़ पर इस प्रकार ढालू बनाया जाना ढाल या आनति (कैन्ट या सुपर-ऐलिवेशन) कहलाता है। मोड़ पर चलती हुई गाड़ी पर जो बल काम करते हैं वे.

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तलवार

१५वीं-१६वीं शताब्दी की स्विटजरलैण्ड की लम्बी तलवार तलवार एक प्रकार का शस्त्र है जिसमें लम्बी फलक (ब्लेड) होती है जिससे किसी के शरीर को काटा/घोंपा जा सकता है। .

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दर्पण

दर्पण या आइना एक प्रकाशीय युक्ति है जो प्रकाश के परावर्तन के सिद्धान्त पर काम करता है। .

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धोबी

कपड़े इस्त्री करते हुये धोबी व्यक्ति धोबी भारत में पाये जाने वाले जाति समूह हैं जिनका मुख्य कार्य कपड़े धोने, रंगने, इस्त्री करने से संबंधित माना जाता है। इन्हें भारत के अलग-अलग राज्यों में नाम से जाने जाते हैं - मादीवाला, अगसार, पारित, राजका, चकली, राजाकुला, वेलुत्दार, एकली, सेठी, कनौजिया, पणिक्कर आदि अन्य कई नामों से जाना जाता है। मुसलमान हो गए धोबी को बरेठा नाम से जाना जाता है। हालाँकि इनका मुख्य व्यवसाय कपड़े धोना है लेकिन कई धोबी खेती किया करते हैं। धोबी की व्युत्पत्ति धावन या धोने से मानी जाती है। हिन्दू धोबी अछूत माने जाते थे और अनुसूचित जाति में उन्हें सम्मिलित किया गया है। जबकि मुस्लिम धोबी भंगी से ऊँचे के स्तर के स्तर के और नाई के बराबर स्वच्छ जाति माने जाते थे। २०११ की भारतीय जनगणना आँकड़ों के अनुसार धोबी जाति की कुल जनसंख्या ८,२२,००,००० होने का अनुमान है। .

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नक्कारा

नक्कारा एक ताल वाद्य यंत्र है। इस लोक वाद्य का उपयोग अनेक लोकनृत्यों में किया जाता है। मसलन उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र में अहीरों द्वारा इसका प्रयोग प्रसिद्ध नटवरी नृत्य में किया जाता है। श्रेणी:ताल वाद्य श्रेणी:लोक वाद्य श्रेणी:भारतीय वाद्य यंत्र.

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पासी

पासी, भारत की एक जाति है, जिसे भारतीय संविधान में 'अनुसूचित जाति' का दर्जा प्राप्त है। .

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पूर्वांचल

उत्तर प्रदेश के क्षेत्र पूर्वांचल उत्तर-मध्य भारत का एक भौगोलिक क्षेत्र है जो उत्तर प्रदेश के पूर्वी छोर पर स्थित है। यह उत्तर में नेपाल, पूर्व में बिहार, दक्षिण मे मध्य प्रदेश के बघेलखंड क्षेत्र और पश्चिम मे उत्तर प्रदेश के अवध क्षेत्र द्वारा घिरा है। इसे एक अलग राज्य बनाने के लिए लंबे समय राजनीतिक मांग उठती रही है। वर्तमान में इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व उत्तर प्रदेश विधानसभा में 117 विधायकों द्वारा होता है तो वहीं इस क्षेत्र से 23 लोकसभा सदस्य चुने जाते हैं। पूर्वांचल के मुख्यतः तीन भाग हैं- पश्चिम में पूर्वी अवधी क्षेत्र, पूर्व में पश्चिमी-भोजपुरी क्षेत्र और उत्तर में नेपाल क्षेत्र। यह भारतीय-गंगा मैदान पर स्थित है और पश्चिमी बिहार के साथ यह दुनिया में सबसे अधिक घनी आबादी वाला क्षेत्र है। उत्तर प्रदेश के आसपास के जिलों की तुलना में मिट्टी की समृद्ध गुणवत्ता और उच्च केंचुआ घनत्व के कारण कृषि के लिए अनुकूल है। भोजपुरी क्षेत्र में प्रमुख भाषा या बोली है। हालाँकि इस क्षेत्र में हिंदी और भोजपुरी के अलावा अवधी तथा बघेलखंडी पश्चिमी और दक्षिणी क्षेत्रों में बोली जाती हैं।। 1991 में उत्तर प्रदेश की सरकार ने पूर्वांचल विकास निधि की स्थापना की जिसका उद्देश्य था क्षेत्रीय विकास परियोजनाओं के लिये धन इकट्ठा करना जिससे भविष्य में संतुलित विकास के जरिए स्थानीय जरूरतों को पूरा करते हुए क्षेत्रीय असमानताओं का निवारण हो सके। .

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बुन्देलखण्ड

बुन्देलखण्ड मध्य भारत का एक प्राचीन क्षेत्र है।इसका प्राचीन नाम जेजाकभुक्ति है.

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ब्रज

शेठ लक्ष्मीचन्द मन्दिर का द्वार (१८६० के दशक का फोटो) वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के मथुरा नगर सहित वह भू-भाग, जो श्रीकृष्ण के जन्म और उनकी विविध लीलाओं से सम्बधित है, ब्रज कहलाता है। इस प्रकार ब्रज वर्तमान मथुरा मंडल और प्राचीन शूरसेन प्रदेश का अपर नाम और उसका एक छोटा रूप है। इसमें मथुरा, वृन्दावन, गोवर्धन, गोकुल, महाबन, वलदेव, नन्दगाँव, वरसाना, डीग और कामबन आदि भगवान श्रीकृष्ण के सभी लीला-स्थल सम्मिलित हैं। उक्त ब्रज की सीमा को चौरासी कोस माना गया है। सूरदास तथा अन्य व्रजभाषा के भक्त कवियों और वार्ताकारों ने भागवत पुराण के अनुकरण पर मथुरा के निकटवर्ती वन्य प्रदेश की गोप-बस्ती को ब्रज कहा है और उसे सर्वत्र 'मथुरा', 'मधुपुरी' या 'मधुवन' से पृथक वतलाया है। ब्रज क्षेत्र में आने वाले प्रमुख नगर ये हैं- मथुरा, जलेसर, भरतपुर, आगरा, हाथरस, धौलपुर, अलीगढ़, इटावा, मैनपुरी, एटा, कासगंज, और फिरोजाबाद। ब्रज शब्द संस्कृत धातु 'व्रज' से बना है, जिसका अर्थ गतिशीलता से है। जहां गाय चरती हैं और विचरण करती हैं वह स्थान भी ब्रज कहा गया है। अमरकोश के लेखक ने ब्रज के तीन अर्थ प्रस्तुत किये हैं- गोष्ठ (गायों का बाड़ा), मार्ग और वृंद (झुण्ड)। संस्कृत के व्रज शब्द से ही हिन्दी का ब्रज शब्द बना है। वैदिक संहिताओं तथा रामायण, महाभारत आदि संस्कृत के प्राचीन धर्मग्रंथों में ब्रज शब्द गोशाला, गो-स्थान, गोचर भूमि के अर्थों में भी प्रयुक्त हुआ है। ऋग्वेद में यह शब्द गोशाला अथवा गायों के खिरक के रूप में वर्णित है। यजुर्वेद में गायों के चरने के स्थान को ब्रज और गोशाला को गोष्ठ कहा गया है। शुक्लयजुर्वेद में सुन्दर सींगों वाली गायों के विचरण स्थान से ब्रज का संकेत मिलता है। अथर्ववेद में गोशलाओं से सम्बधित पूरा सूक्त ही प्रस्तुत है। हरिवंश तथा भागवतपुराणों में यह शब्द गोप बस्त के रूप में प्रयुक्त हुआ है। स्कंदपुराण में महर्षि शांण्डिल्य ने ब्रज शब्द का अर्थ व्थापित वतलाते हुए इसे व्यापक ब्रह्म का रूप कहा है। अतः यह शब्द ब्रज की आध्यात्मिकता से सम्बधित है। वेदों से लेकर पुराणों तक में ब्रज का सम्बध गायों से वर्णित किया गया है। चाहे वह गायों को बांधने का बाडा हो, चाहे गोशाला हो, चाहे गोचर भूमि हो और चाहे गोप-बस्ती हो। भागवतकार की दृष्टि में गोष्ठ, गोकुल और ब्रज समानार्थक हैं। भागवत के आधार पर सूरदास की रचनाओं में भी ब्रज इसी अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। मथुरा और उसका निकटवर्ती भू-भाग प्राचीन काल से ही अपने सघन वनों, विस्तृत चारागाहों, गोष्ठों और सुन्दर गायों के लिये प्रसिद्ध रहा है। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म यद्यपि मथुरा नगर में हुआ था, तथापि राजनैतिक कारणों से उन्हें जन्म लेते ही यमुना पार की गोप-वस्ती में भेज दिया गया था, उनकी वाल्यावस्था एक बड़े गोपालक के घर में गोप, गोपी और गो-वृंद के साथ बीती थी। उस काल में उनके पालक नंदादि गोप गण अपनी सुरक्षा और गोचर-भूमि की सुविधा के लिये अपने गोकुल के साथ मथुरा निकटवर्ती विस्तृत वन-खण्डों में घूमा करते थे। श्रीकृष्ण के कारण उन गोप-गोपियों, गायों और गोचर-भूमियों का महत्व बड़ गया था। पौराणिक काल से लेकर वैष्णव सम्प्रदायों के आविर्भाव काल तक जैसे-जैसे कृश्णोपासना का विस्तार होता गया, वैसे-वैसे श्रीकृष्ण के उक्त परिकरों तथा उनके लीला स्थलों के गौरव की भी वृद्धि होती गई। इस काल में यहां गो-पालन की प्रचुरता थी, जिसके कारण व्रजखण्डों की भी प्रचुरता हो गई थी। इसलिये श्री कृष्ण के जन्म स्थान मथुरा और उनकी लीलाओं से सम्वधित मथुरा के आस-पास का समस्त प्रदेश ही ब्रज अथवा ब्रजमण्डल कहा जाने लगा था। इस प्रकार ब्रज शब्द का काल-क्रमानुसार अर्थ विकास हुआ है। वेदों और रामायण-महाभारत के काल में जहाँ इसका प्रयोग 'गोष्ठ'-'गो-स्थान' जैसे लघु स्थल के लिये होता था। वहां पौराणिक काल में 'गोप-बस्ती' जैसे कुछ बड़े स्थान के लिये किया जाने लगा। उस समय तक यह शब्द प्रदेशवायी न होकर क्षेत्रवायी ही था। भागवत में 'ब्रज' क्षेत्रवायी अर्थ में ही प्रयुक्त हुआ है। वहां इसे एक छोटे ग्राम की संज्ञा दी गई है। उसमें 'पुर' से छोटा 'ग्राम' और उससे भी छोटी बस्ती को 'ब्रज' कहा गया है। १६वीं शताब्दी में 'ब्रज' प्रदेशवायी होकर 'ब्रजमंडल' हो गया और तव उसका आकार ८४ कोस का माना जाने लगा था। उस समय मथुरा नगर 'ब्रज' में सम्मिलित नहीं माना जाता था। सूरदास तथा अन्य ब्रज-भाषा कवियों ने 'ब्रज' और मथुरा का पृथक् रूप में ही कथन किया है, जैसे पहिले अंकित किया जा चुका है। कृष्ण उपासक सम्प्रदायों और ब्रजभाषा कवियों के कारण जब ब्रज संस्कृति और ब्रजभाषा का क्षेत्र विस्तृत हुआ तब ब्रज का आकार भी सुविस्तृत हो गया था। उस समय मथुरा नगर ही नहीं, बल्कि उससे दूर-दूर के भू-भाग, जो ब्रज संस्कृति और ब्रज-भाषा से प्रभावित थे, व्रज अन्तर्गत मान लिये गये थे। वर्तमान काल में मथुरा नगर सहित मथुरा जिले का अधिकांश भाग तथा राजस्थान के डीग और कामबन का कुछ भाग, जहाँ से ब्रजयात्रा गुजरती है, ब्रज कहा जाता है। ब्रज संस्कृति और ब्रज भाषा का क्षेत्र और भी विस्तृत है। उक्त समस्त भू-भाग रे प्राचीन नाम, मधुबन, शुरसेन, मधुरा, मधुपुरी, मथुरा और मथुरामंडल थे तथा आधुनिक नाम ब्रज या ब्रजमंडल हैं। यद्यपि इनके अर्थ-बोध और आकार-प्रकार में समय-समय पर अन्तर होता रहा है। इस भू-भाग की धार्मिक, राजनैतिक, ऐतिहासिक और संस्कृतिक परंपरा अत्यन्त गौरवपूर्ण रही है। .

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बैलगाड़ी

भारत की एक बैलगाड़ी बैलगाड़ी बैलों से खींची जाने वाली गाड़ी या यान है। यह विश्व का सबसे पुराना यातायात का साधन एवं सामान ढ़ोने का साधन है। इसकी डिजाइन बहुत सरल होती है और परम्परागत रूप से इसे स्थानीय संसाधनों से स्थानीय कारीगर बनाते रहें हैं। आज भी विश्व के सभी भागों में बैलगाड़ियाँ पायी जातीं हैं। लेकिन इस समय इसका चलन कम होता जाता है। श्रेणी:यातायात के साधन.

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मन्दिर

मन्दिर भारतीय धर्मों (सनातन धर्म, जैन धर्म, बौद्ध धर्म, सिख धर्म आदि) हिन्दुओं के उपासनास्थल को मन्दिर कहते हैं। यह अराधना और पूजा-अर्चना के लिए निश्चित की हुई जगह या देवस्थान है। यानी जिस जगह किसी आराध्य देव के प्रति ध्यान या चिंतन किया जाए या वहां मूर्ति इत्यादि रखकर पूजा-अर्चना की जाए उसे मन्दिर कहते हैं। मन्दिर का शाब्दिक अर्थ 'घर' है। वस्तुतः सही शब्द 'देवमन्दिर', 'शिवमन्दिर', 'कालीमन्दिर' आदि हैं। और मठ वह स्थान है जहां किसी सम्प्रदाय, धर्म या परंपरा विशेष में आस्था रखने वाले शिष्य आचार्य या धर्मगुरु अपने सम्प्रदाय के संरक्षण और संवर्द्धन के उद्देश्य से धर्म ग्रन्थों पर विचार विमर्श करते हैं या उनकी व्याख्या करते हैं जिससे उस सम्प्रदाय के मानने वालों का हित हो और उन्हें पता चल सके कि उनके धर्म में क्या है। उदाहरण के लिए बौद्ध विहारों की तुलना हिन्दू मठों या ईसाई मोनेस्ट्रीज़ से की जा सकती है। लेकिन 'मठ' शब्द का प्रयोग शंकराचार्य के काल यानी सातवीं या आठवीं शताब्दी से शुरु हुआ माना जाता है। तमिल भाषा में मन्दिर को कोईल या कोविल (கோவில்) कहते हैं। .

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मिर्ज़ापुर

मिर्ज़ापुर भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का शहर है। यह मिर्ज़ापुर जिला का मुख्यालय है। पर्यटन की दृष्टि से मिर्जापुर काफी महत्वपूर्ण जिला माना जाता है। यहां की प्राकृतिक सुंदरता और धार्मिक वातावरण बरबस लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचती है। मिर्जापुर स्थित विन्ध्याचल धाम भारत के प्रमुख हिन्दू तीर्थ स्थलों में से एक है। इसके अतिरिक्त, यह जिला में सीता कुण्ड, लाल भैरव मंदिर, मोती तालाब, टंडा जलप्रपात, विन्धाम झरना, तारकेश्‍वर महादेव, महा त्रिकोण, शिव पुर, चुनार किला, गुरूद्वारा गुरू दा बाघ और रामेश्‍वर आदि के लिए प्रसिद्ध है। मिर्जापुर वाराणसी जिले के उत्तर, सोनभद्र जिले के दक्षिण और इलाहाबाद जिले के पश्चिम से घिरा हुआ है। भारत का अंतराष्ट्रीय मानक समय इलाहाबाद जिले के नैनी के स्थान से लिया गया है मिर्जापुर "लालस्टोन" के लिये बहुत विख्यात है प्राचीन समय में इस स्टोन का मौर्य वन्श के राजा सम्राट् अशोक के द्वारा बौद्ध स्तुप को एवं अशोक स्तम्भ(वर्तमान में भारत का राष्ट्रीय चिन्ह) को बनाने में किया था मिर्जापुर के लोगों की भाषा हिन्दी एवं भोजपुरी है .

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मोर

मोर अथवा मयूर एक पक्षी है जिसका मूलस्थान दक्षिणी और दक्षिणपूर्वी एशिया में है। ये ज़्यादातर खुले वनों में वन्यपक्षी की तरह रहते हैं। नीला मोर भारत और श्रीलंका का राष्ट्रीय पक्षी है। नर की एक ख़ूबसूरत और रंग-बिरंगी फरों से बनी पूँछ होती है, जिसे वो खोलकर प्रणय निवेदन के लिए नाचता है, विशेष रूप से बसन्त और बारिश के मौसम में। मोर की मादा मोरनी कहलाती है। जावाई मोर हरे रंग का होता है। .

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युद्ध

वर्ष १९४५ में कोलोन युद्ध एक लंबे समय तक चलने वाला आक्रामक कृत्य है जो सामान्यतः राज्यों के बीच झगड़ों के आक्रामक और हथियारबंद लड़ाई में परिवर्तित होने से उत्पन्न होता है। .

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रथ

रथ का अर्थ होता है घोड़ों से जुता हुआ भव्य वाहन। .

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राम नवमी

रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी मनाया जाता है। हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान श्री राम जी का जन्म हुआ था। .

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रासलीला

रासलीला या कृष्णलीला में युवा और बालक कृष्ण की गतिविधियों का मंचन होता है। कृष्ण की मनमोहक अदाओं पर गोपियां यानी बृजबालाएं लट्टू थीं। कान्हा की मुरली का जादू ऐसा था कि गोपियां अपनी सुतबुत गंवा बैठती थीं। गोपियों के मदहोश होते ही शुरू होती थी कान्हा के मित्रों की शरारतें। माखन चुराना, मटकी फोड़ना, गोपियों के वस्त्र चुराना, जानवरों को चरने के लिए गांव से दूर-दूर छोड़ कर आना ही प्रमुख शरारतें थी, जिन पर पूरा वृन्दावन मोहित था। जन्माष्टमी के मौके पर कान्हा की इन सारी अठखेलियों को एक धागे में पिरोकर यानी उनको नाटकीय रूप देकर रासलीला या कृष्ण लीला खेली जाती है। इसीलिए जन्माष्टमी की तैयारियों में श्रीकृष्ण की रासलीला का आनन्द मथुरा, वृंदावन तक सीमित न रह कर पूरे देश में छा जाता है। जगह-जगह रासलीलाओं का मंचन होता है, जिनमें सजे-धजे श्री कृष्ण को अलग-अलग रूप रखकर राधा के प्रति अपने प्रेम को व्यक्त करते दिखाया जाता है। इन रास-लीलाओं को देख दर्शकों को ऐसा लगता है मानो वे असलियत में श्रीकृष्ण के युग में पहुंच गए हों। .

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राजपूत

राजपूत उत्तर भारत का एक क्षत्रिय कुल माना जाता है।जो कि राजपुत्र का अपभ्रंश है। राजस्थान को ब्रिटिशकाल मे राजपूताना भी कहा गया है। पुराने समय में आर्य जाति में केवल चार वर्णों की व्यवस्था थी। राजपूत काल में प्राचीन वर्ण व्यवस्था समाप्त हो गयी थी तथा वर्ण के स्थान पर कई जातियाँ व उप जातियाँ बन गईं थीं। कवि चंदबरदाई के कथनानुसार राजपूतों की 36 जातियाँ थी। उस समय में क्षत्रिय वर्ण के अंतर्गत सूर्यवंश और चंद्रवंश के राजघरानों का बहुत विस्तार हुआ। .

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लट्ठमार होली

भगवान कृष्ण की साथी राधा के जन्म स्थान बरसाना की लट्ठमार होली भारत के सबसे रंगीन पर्व होली मनाने के अपने अनूठे तरीके के लिए विश्वप्रसिद्ध है। बरसाने की लट्ठमार होली फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाई जाती है। इस दिन नंदगाँव के ग्वाल बाल होली खेलने के लिए राधा रानी के गाँव बरसाने जाते हैं और विभिन्न मंदिरों में पूजा अर्चना के पश्चात नंदगांव के पुरुष होली खेलने बरसाना गांव में आते हैं और बरसाना गांव के लोग नंदगांव में जाते हैं। इन पुरूषों को होरियारे कहा जाता है। बरसाना की लट्ठमार होली के बाद अगले दिन यानी फाल्गुन शुक्ला दशमी के दिन बरसाना के हुरियार नंदगांव की हुरियारिनों से होली खेलने उनके यहां पहुंचते हैं। तब नंदभवन में होली की खूब धूम मचती है। दरअसल बरसाना की लठामार होली भगवान कृष्ण के काल में उनके द्वारा की जाने वाली लीलाओं की पुनरावृत्ति जैसी है। माना जाता है कि कृष्ण अपने सखाओं के साथ इसी प्रकार कमर में फेंटा लगाए राधारानी तथा उनकी सखियों से होली खेलने पहुंच जाते थे तथा उनके साथ ठिठोली करते थे जिस पर राधारानी तथा उनकी सखियां ग्वाल वालों पर डंडे बरसाया करती थीं। ऐसे में लाठी-डंडों की मार से बचने के लिए ग्वाल वृंद भी लाठी या ढ़ालों का प्रयोग किया करते थे जो धीरे-धीरे होली की परंपरा बन गया। उसी का परिणाम है कि आज भी इस परंपरा का निर्वहन उसी रूप में किया जाता है। जब नाचते झूमते लोग गांव में पहुंचते हैं तो औरतें हाथ में ली हुई लाठियों से उन्हें पीटना शुरू कर देती हैं और पुरुष खुद को बचाते भागते हैं। लेकिन खास बात यह है कि यह सब मारना पीटना हंसी खुशी के वातावरण में होता है। औरतें अपने गांवों के पुरूषों पर लाठियां नहीं बरसातीं.

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लोक नृत्य

लोकनृत्य (Folk dance) उन नृत्यों को कहते हैं जिनमें प्राय: निम्नलिखित विशेषताएँ पायी जाती हैं-.

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लोक संस्कृति

संस्कृति ब्रह्म की भाँति अवर्णनीय है। वह व्यापक, अनेक तत्त्वों का बोध कराने वाली, जीवन की विविध प्रवृत्तियों से संबन्धित है, अतः विविध अर्थों व भावों में उसका प्रयोग होता है। मानव मन की बाह्य प्रवृत्ति-मूलक प्रेरणाओं से जो कुछ विकास हुआ है उसे सभ्यता कहेंगे और उसकी अन्तर्मुखी प्रवृत्तियों से जो कुछ बना है, उसे संस्कृति कहेंगे। लोक का अभिप्राय सर्वसाधारण जनता से है, जिसकी व्यक्तिगत पहचान न होकर सामूहिक पहचान है। दीन-हीन, शोषित, दलित, जंगली जातियाँ, कोल, भील, गोंड (जनजाति), संथाल, नाग, किरात, हूण, शक, यवन, खस, पुक्कस आदि समस्त लोक समुदाय का मिलाजुला रूप लोक कहलाता है। इन सबकी मिलीजुली संस्कृति, लोक संस्कृति कहलाती है। देखने में इन सबका अलग-अलग रहन-सहन है, वेशभूषा, खान-पान, पहरावा-ओढ़ावा, चाल-व्यवहार, नृत्य, गीत, कला-कौशल, भाषा आदि सब अलग-अलग दिखाई देते हैं, परन्तु एक ऐसा सूत्र है जिसमें ये सब एक माला में पिरोई हुई मणियों की भाँति दिखाई देते हैं, यही लोक संस्कृति है। लोक संस्कृति कभी भी शिष्ट समाज की आश्रित नहीं रही है, उलटे शिष्ट समाज लोक संस्कृति से प्रेरणा प्राप्त करता रहा है। लोक संस्कृति का एक रूप हमें भावाभिव्यक्तियों की शैली में भी मिलता है, जिसके द्वारा लोक-मानस की मांगलिक भावना से ओत प्रोत होना सिद्ध होता है। वह 'दीपक के बुझने' की कल्पना से सिहर उठता है। इसलिए वह 'दीपक बुझाने' की बात नहीं करता 'दीपक बढ़ाने' को कहता है। इसी प्रकार 'दूकान बन्द होने' की कल्पना से सहम जाता है। इसलिए 'दूकान बढ़ाने' को कहता है। लोक जीवन की जैसी सरलतम, नैसर्गिक अनुभूतिमयी अभिव्यंजना का चित्रण लोक गीतों व लोक कथाओं में मिलता है, वैसा अन्यत्र सर्वथा दुर्लभ है। लोक साहित्य में लोक मानव का हृदय बोलता है। प्रकृति स्वयं गाती गुनगुनाती है। लोक जीवन में पग पग पर लोक संस्कृति के दर्शन होते हैं। लोक साहित्य उतना ही पुराना है जितना कि मानव, इसलिए उसमें जन जीवन की प्रत्येक अवस्था, प्रत्येक वर्ग, प्रत्येक समय और प्रकृति सभी कुछ समाहित है। .

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श्रावण

Rahman .

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सरस्वती

कोई विवरण नहीं।

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सोनभद्र जिला

सोनभद्र जिला (काले रंग में) सोनभद्र भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश का एक जिला है। जिले का मुख्यालय राबर्ट्सगंज है। सोनभद्र जिला, मूल मिर्जापुर जिले से 4 मार्च 1989 को अलग किया गया था। 6,788 वर्ग किमी क्षेत्रफल के साथ यह उत्तर प्रदेश का दुसरा सबसे बड़ा जिला है। यह 23.52 तथा 25.32 अंश उत्तरी अक्षांश तथा 82.72 एवं 93.33 अंश पूर्वी देशान्तर के बीच स्थित है। जिले की सीमा पश्चिम में मध्य प्रदेश, दक्षिण में छत्तीसगढ़, पूर्व में झारखण्ड तथा बिहार एवं उत्तर में उत्तर प्रदेश का मिर्जापुर जिला है। रार्बट्सगंज जिले का प्रमुख नगर तथा जिला मुख्यालय है। जिले की जनसंख्या 14,63,519 है तथा इसका जनसंख्या घनत्व उत्तर प्रदेश में सबसे कम 198 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है। सोन नदी जिले में पश्चिम से पूर्व की ओर बहती है। इसकी सहायक नदी रिहन्द जो छत्तीसगढ़ एवं मध्य प्रदेश के पठार से निकलती है सोन में जिले के केन्द्र में मिल जाती है। रिहन्द नदी पर बना गोवन्दि वल्लभ पंत सागर आंशिक रूप से जिले में तथा आंशिक रूप से मध्य प्रदेश में आता है। जिले में दो भौगोलिक क्षेत्र हैं जिनमें से क्षेत्रफल में हर एक लगभग 50 प्रतिशत है। पहला पठार है जो विंध्य पहाड़ियों से कैमूर पहाड़ियों तक होते हुए सोन नदी तक फैला हुआ है। यह क्षेत्र गंगा घाटी से 400 से 1,100 फिट ऊंचा है। दूसरा भाग सोन नदी के दक्षिण में सोन घाटी है जिसमें सिंगरौली तथा दुध्दी आते हैं। यह अपने प्राकृतिक संसाधनों एवं उपजाऊ भूमि के कारण विख्यात हैं। स्वतंत्रता मिलने के लगभग 10 वर्षों तक यह क्षेत्र (तब मिर्जापुर जिले का भाग) अलग-थलग था तथा यहां यातायात या संचार के कोई साधन नहीं थे। पहाड़ियों में चूना पत्थर तथा कोयला मिलने के साथ तथा क्षेत्र में पानी की बहुतायत होने के कारण यह औद्योगिक स्वर्ग बन गया। यहां पर देश की सबसे बड़ी सीमेन्ट फैक्ट्रियां, बिजली घर (थर्मल तथा हाइड्रो), एलुमिनियम एवं रासायनिक इकाइयां स्थित हैं। साथ ही कई सारी सहायक इकाइयां एवं असंगठित उत्पादन केन्द्र, विशेष रूप से स्टोन क्रशर इकाइयां, भी स्थापित हुई हैं। क्षेत्रफल -6,788 वर्ग कि.मी जनसंख्या - 1,862,559(2011 जनगणना) साक्षरता - 70% एस.

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घड़ा

धीरज का घड़ा घड़ा कलश एक ऐसा पात्र जिसमें किसी वस्तु को एकत्र किया जा सके, घड़ा विशेषत: मिट्टी, व धातु के बनाये जाते हैं इतिहास में घड़े के प्रदुर्भाव का सभ्यता से सीधा संबध हैं। मानव सभ्यता के उदगम के साथ साथ कृषि जैसी तकनीक के अविष्कार के साथ ही वस्तुओं को इकट्ठा करने की आवश्यकता होने लगी और वस्तुओं के सरंक्षण व एकत्र करने की आवश्यकताओं ने घड़े जैसे पात्र का अविष्कार करवाया। .

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गुजरात

गुजरात (गुजराती:ગુજરાત)() पश्चिमी भारत में स्थित एक राज्य है। इसकी उत्तरी-पश्चिमी सीमा जो अन्तर्राष्ट्रीय सीमा भी है, पाकिस्तान से लगी है। राजस्थान और मध्य प्रदेश इसके क्रमशः उत्तर एवं उत्तर-पूर्व में स्थित राज्य हैं। महाराष्ट्र इसके दक्षिण में है। अरब सागर इसकी पश्चिमी-दक्षिणी सीमा बनाता है। इसकी दक्षिणी सीमा पर दादर एवं नगर-हवेली हैं। इस राज्य की राजधानी गांधीनगर है। गांधीनगर, राज्य के प्रमुख व्यवसायिक केन्द्र अहमदाबाद के समीप स्थित है। गुजरात का क्षेत्रफल १,९६,०७७ किलोमीटर है। गुजरात, भारत का अत्यंत महत्वपूर्ण राज्य है। कच्छ, सौराष्ट्र, काठियावाड, हालार, पांचाल, गोहिलवाड, झालावाड और गुजरात उसके प्रादेशिक सांस्कृतिक अंग हैं। इनकी लोक संस्कृति और साहित्य का अनुबन्ध राजस्थान, सिंध और पंजाब, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के साथ है। विशाल सागर तट वाले इस राज्य में इतिहास युग के आरम्भ होने से पूर्व ही अनेक विदेशी जातियाँ थल और समुद्र मार्ग से आकर स्थायी रूप से बसी हुई हैं। इसके उपरांत गुजरात में अट्ठाइस आदिवासी जातियां हैं। जन-समाज के ऐसे वैविध्य के कारण इस प्रदेश को भाँति-भाँति की लोक संस्कृतियों का लाभ मिला है। .

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कहार

कहार (अंग्रेजी: Kahar) भारतवर्ष में हिन्दू धर्म को मानने वाली एक जाति है। यह जाति यहाँ हिन्दुओं के अतिरिक्त मुस्लिम व सिक्ख सम्प्रदाय में भी होती है। हिन्दू कहार जाति का इतिहास बहुत पुराना है जबकि मुस्लिम सिक्ख कहार बाद में बने। इस समुदाय के लोग बिहार, पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ही पाये जाते हैं! कहार स्वयं को कश्यप नाम के एक अति प्राचीन हिन्दू ऋषि के गोत्र से उत्पन्न हुआ बतलाते हैं। इस कारण वे अपने नाम के आगे जातिसूचक शब्द कश्यप लगाने में गर्व अनुभव करते हैं।बैसे महाभारत के भिष्म पितामह की दुसरी माता सत्यवती एक धीवर(निषाद)पुत्री थी,मगध साम्राट बहुबली जरासंध महराज भी चंद्रवंशी क्षत्रिय ही थे!बिहार,झारखंड,पं.बंगाल,आसाम में इस समाज को चंद्रवंशी क्षत्रिय समाज कहते है!रवानी या रमानी चंद्रवंसी समाज या कहार जाति की उपजाति या शाखा है। यह भारत के विभिन्न प्रांतों में विभिन्न नामों से पायी जाती है। श्रेणी:जाति"कहर" शब्द को खंडित कर कहार शब्द बना है।,कहर का एक इतिहास रहा है।महाभारत काल मे जब भारत का क्षेत्र फल अखण्ड आर्यबर्त में हुआ करता था,उस समय डाकूओ का प्रचलन जोरो पर था,आज भी हमलोग देख सकते है,पर नाम बदलकर डाकू के जगह फ्रोड, जालसाज, घोटाले,छिनतई ने ले रखी है।,खैर उस समय डाकुओ द्वरा दुल्हन की डोली के साथ जेवरात लूटना एक आम बात थी,लोग भयभीत थे,अइसे में कहर टीम का गठन किया गया था,डोली लुटेरों के रक्षा हेतुं, दुल्हन की डोली के साथ कहर टीम जाती थी और उनकी रक्षा करते हुवे मंजिल तक पहुँचते थे, आप सब ध्यान दे तो शादी की कार्ड पर डोली के आगे और पीछे तलवार लिए कुछ लोग की चित्रांकन देखने को मिलेगा, समय बीतता गया और शब्दों में परिवर्तन होता गया,कहर से कहार बन गया, कहर टीम को जब डोली के साथ जाना ही था,रोजगार और आर्थिक जरुरतो के पूर्ण के लिए कुछ लोग डोली भी खुद ही उठाने का निर्णय लिए थे यही इतिहास रहा है। कहार को संस्कृत में 'स्कंधहार ' कहते हैं....जिसका तात्पर्य होता है,जो अपने कंधे पर भार ढोता है...अब आप 'डोली' (पालकी) उठाना भी कह सकते हो...जोकि ज्यातर हमारे पुर्वज राजघराने की बहु-बेटी को डोली पे बिठाकर एक स्थान से दुसरे स्थान सुरक्षा के साथ वीहर-जंगलो व डाकुओ व राजाघरानें के दुश्मनों से बचाकर ले जाते थे...कर्म संबोधन कहार जाति कमजोर नहीं है...ये लोग अपनी बाहु-बल पे नाज करता है...और खुद को बिहार,झारखंड,प.बंगाल,आसाम में चंद्रवंशी क्षत्रिय कहलाना पसंद करते है...ये समाज जरासंध के वंसज़ है...

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किसान

किसान उन्हें कहा जाता है, जो खेती का काम करते हैं। इन्हें कृषक और खेतिहर के नाम से भी जाना जाता है। ये बाकी सभी लोगो के लिए खाद्य सामग्री का उत्पादन करते है। इसमें फसलों को उगाना, बागों में पौधे लगाना, मुर्गियों या इस तरह के अन्य पशुओं की देखभाल कर उन्हें बढ़ाना भी शामिल है। कोई भी किसान या तो खेत का मालिक हो सकता है या उस कृषि भूमि के मालिक द्वारा काम पर रखा गया मजदूर हो सकता है। अच्छी अर्थव्यवस्था वाले जगहों में किसान ही खेत का मालिक होता है और उसमें काम करने वाले उसके कर्मचारी या मजदूर होते हैं। हालांकि इससे पहले तक केवल वही किसान होता था, जो खेत में फसल उगाता था और पशुओं, मछलियों आदि की देखभाल कर उन्हें बढ़ाता था। .

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कुम्हार

मिट्टी के बर्तन बनाने वाले को कुम्हार कहते हैं। कुम्हार जाति सपूर्ण भारत में हिन्दू व मुस्लिम धर्म सम्प्रदायो में पायी जाती है। क्षेत्र व उप-सम्प्रदायो के आधार पर कुम्हारों को अन्य पिछड़ा वर्ग.

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कृष्ण

बाल कृष्ण का लड्डू गोपाल रूप, जिनकी घर घर में पूजा सदियों से की जाती रही है। कृष्ण भारत में अवतरित हुये भगवान विष्णु के ८वें अवतार और हिन्दू धर्म के ईश्वर हैं। कन्हैया, श्याम, केशव, द्वारकेश या द्वारकाधीश, वासुदेव आदि नामों से भी उनको जाना जाता हैं। कृष्ण निष्काम कर्मयोगी, एक आदर्श दार्शनिक, स्थितप्रज्ञ एवं दैवी संपदाओं से सुसज्ज महान पुरुष थे। उनका जन्म द्वापरयुग में हुआ था। उनको इस युग के सर्वश्रेष्ठ पुरुष युगपुरुष या युगावतार का स्थान दिया गया है। कृष्ण के समकालीन महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित श्रीमद्भागवत और महाभारत में कृष्ण का चरित्र विस्तुत रूप से लिखा गया है। भगवद्गीता कृष्ण और अर्जुन का संवाद है जो ग्रंथ आज भी पूरे विश्व में लोकप्रिय है। इस कृति के लिए कृष्ण को जगतगुरु का सम्मान भी दिया जाता है। कृष्ण वसुदेव और देवकी की ८वीं संतान थे। मथुरा के कारावास में उनका जन्म हुआ था और गोकुल में उनका लालन पालन हुआ था। यशोदा और नन्द उनके पालक माता पिता थे। उनका बचपन गोकुल में व्यतित हुआ। बाल्य अवस्था में ही उन्होंने बड़े बड़े कार्य किये जो किसी सामान्य मनुष्य के लिए सम्भव नहीं थे। मथुरा में मामा कंस का वध किया। सौराष्ट्र में द्वारका नगरी की स्थापना की और वहाँ अपना राज्य बसाया। पांडवों की मदद की और विभिन्न आपत्तियों में उनकी रक्षा की। महाभारत के युद्ध में उन्होंने अर्जुन के सारथी की भूमिका निभाई और भगवद्गीता का ज्ञान दिया जो उनके जीवन की सर्वश्रेष्ठ रचना मानी जाती है। १२५ वर्षों के जीवनकाल के बाद उन्होंने अपनी लीला समाप्त की। उनकी मृत्यु के तुरंत बाद ही कलियुग का आरंभ माना जाता है। .

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अहीर

अहीर प्रमुखतः एक भारतीय जाति समूह है,जिसके सदस्यों को यादव समुदाय के नाम से भी पहचाना जाता है तथा अहीर व यादव या राव साहब Rajasthan, Anthropological Survey of India, 1998, आईएसबीएन-9788171547661, पृष्ठ-44,45 शब्दों को एक दूसरे का पर्यायवाची समझा जाता है। अहीरों को एक जाति, वर्ण, आदिम जाति या नस्ल के रूप मे वर्णित किया जाता है, जिन्होने भारत व नेपाल के कई हिस्सों पर राज किया है। .

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अवध

अवध अवध वर्तमान उत्तर प्रदेश के एक भाग का नाम है जो प्राचीन काल में कोशल कहलाता था। इसकी राजधानी अयोध्या थी। अवध शब्द अयोध्या से ही निकला है। अवध की राजधानी प्रांरभ में फैजाबाद थी किंतु बाद को लखनऊ उठ आई थी। अवध पर नवाबों का आधिपत्य था जो प्राय: स्वतंत्र थे, क्योंकि अवध के नवाब शिया मुसलमान थे अत: अवध में इसलाम के इस संप्रदाय को विशेष संरक्षण मिला। लखनऊ उर्दू कविता का भी प्रसिद्ध केंद्र रहा। दिल्ली केंद्र के नष्ट होने पर बहुत से दिल्ली के भी प्रसिद्ध उर्दू कवि लखनऊ वापस चले आए थे। अवध की पारम्परिक राजधानी लखनऊ है। भौगोलिक रूप से अवध की आधुनिक परिभाषा - लखनऊ, सुल्तानपुर, रायबरेली, उन्नाव, कानपुर, भदोही, इलाहाबाद, बाराबंकी, फैजाबाद, प्रतापगढ़, बहराइच, बलरामपुर, गोंडा, हरदोई, लखीमपुर खीरी, कौशाम्बी, सीतापुर, श्रावस्ती, बस्ती, सिद्धार्थ नगर, खलीलाबाद, उन्नाव, फतेहपुर, कानपुर, (जौनपुर, और मिर्जापुर के पश्चिमी हिस्सों), कन्नौज, पीलीभीत, शाहजहांपुर से बनती है। .

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उत्तर प्रदेश

आगरा और अवध संयुक्त प्रांत 1903 उत्तर प्रदेश सरकार का राजचिन्ह उत्तर प्रदेश भारत का सबसे बड़ा (जनसंख्या के आधार पर) राज्य है। लखनऊ प्रदेश की प्रशासनिक व विधायिक राजधानी है और इलाहाबाद न्यायिक राजधानी है। आगरा, अयोध्या, कानपुर, झाँसी, बरेली, मेरठ, वाराणसी, गोरखपुर, मथुरा, मुरादाबाद तथा आज़मगढ़ प्रदेश के अन्य महत्त्वपूर्ण शहर हैं। राज्य के उत्तर में उत्तराखण्ड तथा हिमाचल प्रदेश, पश्चिम में हरियाणा, दिल्ली तथा राजस्थान, दक्षिण में मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ और पूर्व में बिहार तथा झारखंड राज्य स्थित हैं। इनके अतिरिक्त राज्य की की पूर्वोत्तर दिशा में नेपाल देश है। सन २००० में भारतीय संसद ने उत्तर प्रदेश के उत्तर पश्चिमी (मुख्यतः पहाड़ी) भाग से उत्तरांचल (वर्तमान में उत्तराखंड) राज्य का निर्माण किया। उत्तर प्रदेश का अधिकतर हिस्सा सघन आबादी वाले गंगा और यमुना। विश्व में केवल पाँच राष्ट्र चीन, स्वयं भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, इंडोनिशिया और ब्राज़ील की जनसंख्या उत्तर प्रदेश की जनसंख्या से अधिक है। उत्तर प्रदेश भारत के उत्तर में स्थित है। यह राज्य उत्तर में नेपाल व उत्तराखण्ड, दक्षिण में मध्य प्रदेश, पश्चिम में हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान तथा पूर्व में बिहार तथा दक्षिण-पूर्व में झारखण्ड व छत्तीसगढ़ से घिरा हुआ है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ है। यह राज्य २,३८,५६६ वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला हुआ है। यहाँ का मुख्य न्यायालय इलाहाबाद में है। कानपुर, झाँसी, बाँदा, हमीरपुर, चित्रकूट, जालौन, महोबा, ललितपुर, लखीमपुर खीरी, वाराणसी, इलाहाबाद, मेरठ, गोरखपुर, नोएडा, मथुरा, मुरादाबाद, गाजियाबाद, अलीगढ़, सुल्तानपुर, फैजाबाद, बरेली, आज़मगढ़, मुज़फ्फरनगर, सहारनपुर यहाँ के मुख्य शहर हैं। .

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