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ईसाई मत में ईश्वर और मसीहा

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

ईसाई मत में ईश्वर और मसीहा के बीच अंतर

ईसाई मत में ईश्वर vs. मसीहा

बाइबिल में कहीं भी ईश्वर के स्वरूप का दार्शनिक विवेचन तो नहीं मिलता किंतु मनुष्यों के साथ ईश्वर के व्यवहार का जो इतिहास इसमें प्रस्तुत किया गया है उसपर ईश्वर के अस्तित्व तथा उसके स्वरूप के विषय में ईसाइयों की धारण आधारित है। (१) बाइबिल के पूर्वार्ध का वर्ण्य विषय संसार की सृष्टि तथा यहूदियों का धार्मिक इतिहास है। उससे ईश्वर के विषय में निम्नलिखित शिक्षा मिलती है: एक ही ईश्वर है- अनादि और अनंत; सर्वशक्तिमान और अपतिकार्य, विश्व का सृष्टिकर्ता, मनुष्य मात्र का आराध्य। वह सृष्ट संसार के परे होकर उससे अलग है तथा साथ-साथ अपनी शक्ति से उसमें व्याप्त भी रहता है। कोई मूर्ति उसका स्वरूप व्यक्त करने में असमर्थ है। वह परमपावन होकर मनुष्य को पवित्र बनने का आदेश देता है, मनुष्य ईश्वरीय विधान ग्रहण कर ईश्वर की आराधना करे तथा ईश्वर के नियमानुसार अपना जीवन बितावे। जो ऐसा नहीं करता वह परलोक में दंडित होगा क्योंकि ईश्वर सब मनुष्यों का उनके कर्मों के अनुसार न्याय करेगा। पाप के कारण मनुष्य की दुर्गति देखकर ईश्वर ने प्रारंभ से ही मुक्ति की प्रतिज्ञा की थी। उस मुक्ति का मार्ग तैयार करने के लिए उसने यहूदी जाति को अपनी ही प्रजा के रूप में ग्रहण किया तथा बहुत से नबियों को उत्पन्न करके उस जाति में शुद्ध एकेश्वरवाद बनाए रखा। यद्यपि बाइबिल के पूर्वार्ध में ईश्वर का परमपावन न्यायकर्ता का रूप प्रधान है, तथापि यहूदी जाति के साथ उसके व्यवहार के वर्णन में ईश्वर की दयालुता तथा सत्यप्रतिज्ञा पर भी बहुत ही बल दिया गया है। (२) बाइबिल के उत्तरार्ध से पता चलता है कि ईसा ने ईश्वर के स्वरूप के विषय में एक नए रहस्य का उद्घाटन किया है। ईश्वर तिर्यकू है, अर्थात् एक ही ईश्वर में तीन व्यक्ति हैं- पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा। तीनों समान रूप से अनादि, अनंत और सर्वशक्तिमान् हैं क्योंकि वे तत्वत: एक हैं। ईश्वर के आभ्यंतर जीवन का वास्तविक स्वरूप है-पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा का अनर्विचनीय प्रेम। प्रेम से ही प्रेरित होकर ईश्वर ने मनुष्य को अपने आभ्यंतर जीवन का भागी बनाने के उद्देश्य से उसकी सृष्टि की थी किंतु प्रथम मनुष्य ने ईश्वर की इस योजना को ठुकरा दिया जिससे संसार में पाप का प्रवेश हुआ। मनुष्यों को पाप से मुक्त करने के लिए ईश्वर ईसा में अवतरित हुआ जिससे ईश्वर का प्रेम और स्पष्ट रूप से परिलिक्षित होता है। ईसा ने क्रूस पर मरकर मानव जाति के सब पापों का प्रायश्चित किया तथा मनुष्य मात्र के लिए मुक्ति का मार्ग प्रशस्त कर दिया। जो कोई सच्चे हृदय से पछतावा करे वह ईसा के पुण्यफलों द्वारा पापक्षमा प्राप्त कर सकता है और अनंतकाल तक पिता-पुत्र-पवित्र आत्मा के आभ्यंतर जीवन का साझी बन सकता है। इस प्रकार ईश्वर का वास्तविक स्वरूप प्रेम ही है। मनुष्य की दृष्टि से वह दयालु पिता है जिसके प्रति प्रेमपूर्ण आत्मसमर्पण होना चाहिए। बाइबिल के उत्तरार्ध में ईश्वर को लगभग ३०० बार 'पिता' कहकर पुकारा गया है। (३) बाइबिल के आधार पर ईसाइयों का विश्वास है कि मनुष्य अपनी बुद्धि के बल पर भी ईश्वर का ज्ञान प्राप्त कर सकता है। अपूर्ण होते हुए भी यह ज्ञान प्रामाणिक ही है। ईसाई धर्म का किसी एक दर्शन के साथ अनिवार्य संबंध तो नहीं है, किंतु ऐतिहासिक परिस्थितियों के फलस्वरूप ईसाई तत्वज्ञ प्राय: अफलातून अथवा अरस्तू के दर्शन का सहारा लेकर ईश्वरवाद का प्रतिपादन करते हैं। ईश्वर का अस्तित्व प्राय: कार्य-कारण-संबंध के आधार पर प्रमाणित किया जाता है। ईश्वर निर्गुण, अमूर्त, अभौतिक है। वह परिवर्तनीय, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान, अनंत और अनादि है। वह सृष्टि के परे होते हुए भी इसमें व्याप्त रहता है; वह अंतर्यामी है। ईसाई दार्शनिक एक ओर तो सर्वेश्वरवाद तथा अद्वैत का विरोध करते हुए सिखलाते हैं कि समस्त सृष्टि (अत: जीवात्मा भी) तत्वत: ईश्वर से भिन्न है, दसूरी ओर वे अद्वैत को भी पूर्ण रूप से ग्रहण नहीं सकते, क्योंकि उनकी धारणा है कि समस्त सृष्टि अपने अस्तित्व के लिए निरंतर ईश्वर पर निर्भर रहती है। . मसीहा इब्राहीमी धर्मों में आत्मा को पाप से मोक्ष दिलाने वाला या मुक्तिदाता है। मसीहा का मूल यहूदी धर्म और हिब्रू बाइबिल में है। उसके अनुसार मसीहा वह मनुष्य है जो दाऊद और सुलेमान के वंश का है और यहूदियों का मुख्य पुजारी है। साथ ही उसका अभिषेक पवित्र तेल से किया गया हो। ऐसी मान्यता है कि वह अपने भविष्य के आगमन में पूर्व निर्धारित चीजों को पूरा करेगा। ईसाई धर्म में ईसा को मसीहा माना जाता है। इस मान्यता में ईसा को ईश्वरपुत्र माना गया है और यह भी माना जाता है कि हिब्रू बाइबिल में लिखित भविष्यवाणी को उन्होंने पूरा कर दिया है। साथ में यह भी मान्यता है कि ईसा दोबारा आएंगे और बाकी भविष्यवाणियों को पूरा करेंगे। इस्लाम में ईसा को पैगम्बर के साथ-साथ मसीहा माना गया है। ऐसी मान्यता है कि ईसा क़यामत के दिन लौट कर आएंगे और महदी के साथ नकली मसीहा पराजित करेंगे। .

ईसाई मत में ईश्वर और मसीहा के बीच समानता

ईसाई मत में ईश्वर और मसीहा आम में एक बात है (यूनियनपीडिया में): यीशु

यीशु

एक मोजेक यीशु या यीशु मसीहईसा, यीशु और मसीह नाम हेतु पूरी चर्चा इस लेख के वार्ता पृष्ठ पर है। प्रचलित मान्यता के विरुद्ध, ईसा एक इस्लामी शब्दावली है, व "यीशु" सही ईसाई शब्दावली है। तथा मसीह एक उपादि है। विस्तृत चर्चा वार्ता पृष्ठ पर देखें। (इब्रानी:येशुआ; अन्य नाम:ईसा मसीह, जीसस क्राइस्ट), जिन्हें नासरत का यीशु भी कहा जाता है, ईसाई धर्म के प्रवर्तक हैं। ईसाई लोग उन्हें परमपिता परमेश्वर का पुत्र और ईसाई त्रिएक परमेश्वर का तृतीय सदस्य मानते हैं। ईसा की जीवनी और उपदेश बाइबिल के नये नियम (ख़ास तौर पर चार शुभसन्देशों: मत्ती, लूका, युहन्ना, मर्कुस पौलुस का पत्रिया, पत्रस का चिट्ठियां, याकूब का चिट्ठियां, दुनिया के अंत में होने वाले चीजों का विवरण देने वाली प्रकाशित वाक्य) में दिये गये हैं। यीशु मसीह को इस्लाम में ईसा कहा जाता है, और उन्हें इस्लाम के भी महानतम पैग़म्बरों में से एक माना जाता है। .

ईसाई मत में ईश्वर और यीशु · मसीहा और यीशु · और देखें »

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ईसाई मत में ईश्वर और मसीहा के बीच तुलना

ईसाई मत में ईश्वर 12 संबंध है और मसीहा 16 है। वे आम 1 में है, समानता सूचकांक 3.57% है = 1 / (12 + 16)।

संदर्भ

यह लेख ईसाई मत में ईश्वर और मसीहा के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें: