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इलेक्ट्रॉनिक दोलक

सूची इलेक्ट्रॉनिक दोलक

क्रॉस कपल्ड एल-सी दोलक, जिसका आउटपुट आरेख में ऊपर दिया है इलेक्ट्रॉनिक दोलक वह इलेक्ट्रॉनिक युक्ति है जो आवर्ती इलेक्टानिक संकेत उत्पन्न करती है। प्रायः ये संकेत साइन तरंग या वर्ग तरंग के होते हैं। निम्न आवृत्ति दोलक वह इलेक्ट्रॉनिक युक्ति होती है, जिसमें प्रत्यावर्ती धारा का उत्पादन होता है। ये धारा २० हर्ट्ज़ से कम आवृत्ति वाली होती है। .

4 संबंधों: एलसी परिपथ, प्रत्यावर्ती धारा, बार्कहाउजेन कसौटी, हार्टले दोलक

एलसी परिपथ

Lऔर C से बना परिपथ (बैण्डपास फिल्टर) LC परिपथ में प्रेरकत्व तथा संधारित्र होते हैं। इनको 'अनुनादी परिपथ' या 'टैंक परिपथ' या 'ट्युण्द परिपथ' भी कहते हैं। L और C मिलकर एक वैद्युत अनुनादी की तरह काम करते हैं (जो स्वरित्र का वैद्युत एनालॉग है)। LC का उपयोग किसी नियत आवृत्ति का वैद्युत संकेत उत्पन्न करने के लिया किया जाता है। इसके अलावा इसे किसी जटिल संकेत में से किसी निश्चित आवृत्ति के संकेत को चुनने (फिल्टर करने) के लिए भी काम में लाया जाता है। इस कारण LC परिपथ बहुत से एलेक्ट्रानिक युक्तियों में प्रयुक्त होते हैं, जैसे रेडियो में कंपित्र (आसिलेटर), फिल्टर, ट्यूनर और आवृत्ति मिश्रक (frequency mixers) के रूप में प्रयोग किया जाता है। LC परिपथ एक आदर्शीकृत परिपथ है जो इस मान्यता पर बनाया गया है कि इस परिपथ में प्रतिरोध अनुपस्थित या शून्य है और इस कारण ऊर्जा का ह्रास शून्य है। किन्तु किसी भी व्यावहारिक LC परिपथ में कुछ न कुछ ऊर्जा ह्रास अवश्य होगा। यद्यपि कोई भी परिपथ शुद्ध रूप में LC नहीं है फिर भी इस आदर्श परिपथ का अध्ययन समझ विकसित करने के लिए उपयोगी है। .

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प्रत्यावर्ती धारा

प्रत्यावर्ती धारा वह धारा है जो किसी विद्युत परिपथ में अपनी दिशा बदलती रहती हैं। इसके विपरीत दिष्ट धारा समय के साथ अपनी दिशा नहीं बदलती। भारत में घरों में प्रयुक्त प्रत्यावर्ती धारा की आवृत्ति ५० हर्ट्स होती हैं अर्थात यह एक सेकेण्ड में पचास बार अपनी दिशा बदलती है। वेस्टिंगहाउस का आरम्भिक दिनों का प्रत्यावर्ती धारा निकाय प्रत्यावर्ती धारा या पत्यावर्ती विभव का परिमाण (मैग्निट्यूड) समय के साथ बदलता रहता है और वह शून्य पर पहुंचकर विपरीत चिन्ह का (धनात्मक से ऋणात्मक या इसके उल्टा) भी हो जाता है। विभव या धारा के परिमाण में समय के साथ यह परिवर्तन कई तरह से सम्भव है। उदाहरण के लिये यह साइन-आकार (साइनस्वायडल) हो सकता है, त्रिभुजाकार हो सकता है, वर्गाकार हो सकता है, आदि। इनमें साइन-आकार का विभव या धारा का सर्वाधिक उपयोग किया जाता है। आजकल दुनिया के लगभग सभी देशों में बिजली का उत्पादन एवं वितरण प्रायः प्रत्यावर्ती धारा के रूप में ही किया जाता है, न कि दिष्ट-धारा (डीसी) के रूप में। इसका प्रमुख कारण है कि एसी का उत्पादन आसान है; इसके परिमाण को बिना कठिनाई के ट्रान्सफार्मर की सहायता से कम या अधिक किया जा सकता है; तरह-तरह की त्रि-फेजी मोटरों की सहायता से इसको यांत्रिक उर्जा में बदला जा सकता है। इसके अलावा श्रव्य आवृत्ति, रेडियो आवृत्ति, दृश्य आवृत्ति आदि भी प्रत्यावर्ती धारा के ही रूप हैं। .

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बार्कहाउजेन कसौटी

फीडबैक प्रवर्धक का ब्लॉक आरेख - इसमें बार्कहाउजेन की कसौटी लागू होती है। इसमें एक प्रवर्धक अवयव ''A'' है जिसके आउटपुट ''vo'' को फीडबैक नेटवर्क ''ß(jω)'' के द्वारा पुनर्निवेशित (fed back) किया गया है। बार्कहाउजेन कसौटी (Barkhausen criterion) एक शर्त या सम्बन्ध है जो बताती है कि कोई एलेक्ट्रानिक परिपथ किस स्थिति में दोलन कर सकेगा (और किस स्थिति में नहीं)। इसे जर्मनी के भौतिकशास्त्री एच जी बार्कहाउजेन ने सन् १९२१ में प्रतिपादित किया था। एलेक्ट्रानिक आसिलेटरों के डिजाइन में इसका बहुतायत से प्रयोग होता है। इसके साथ ही ऋणात्मक पुनर्निवेशयुक्त परिपथों (negative feedback) की डिजाइन में भी इसका खूब इस्तेमाल होता है। (जैसे आप-एम्प) बार्कहाउजेन की कसौटी उन परिपथों पर लागू होती है जिनमें फीडबैक लूप उपस्थित हो। इसके अनुसार, ध्यातब्य है कि बार्कहाउजेन कसौटी दोलन के लिये केवल आवश्यक शर्त है किन्तु यह पर्याप्त शर्त नहीं है। अर्थात कुछ ऐसे परिपथ भी हो सकते हैं जो इस कसौटी पर खरे उतरते हैं किन्तु दोलन नहीं करते। इसके विपरीत नाइक्विस्ट की कसौटी किसी लूप के स्थायित्व/अस्थायित्व के लिये आवश्यक एवं पर्याप्त शर्त की व्याख्या करती है। .

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हार्टले दोलक

हार्टले दोलक एक इलेक्ट्रॉनिक दोलक परिपथ है जिसकी आवृत्ति का मान इसमें पर्युक्त संधारित्र एवं कुण्डली से की जाती है। श्रेणी:दोलक.

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