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इज़ाडोरा डंकन और नृत्य

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

इज़ाडोरा डंकन और नृत्य के बीच अंतर

इज़ाडोरा डंकन vs. नृत्य

इज़ाडोरा डंकन। इज़ाडोरा डंकन (अंग्रेज़ी: Isadora Duncan)(२६ मई, १८७७ - १४ सितंबर, १९२७) एक अमेरिकी नर्तकी थीं। उनका पूरा नाम था ऐंगिला इज़ाडोरा डंकन और उनका जन्म सेन फ़्रांसिस्को, कैलिफ़ोर्निया में हुआ था। इज़ाडोरा डंकन को कई लोग आधुनिक नृत्य की जननी मानते हैं। यद्यपि अपने जीवन के बाद के वर्षों में वह अमेरिका में केवल न्यूयार्क में प्रसिद्ध हुईं, लेकिन उन्होंने पूरे यूरोप का मनोरंजन किया। नृत्य ही नहीं, जीवन में भी प्रयोगों की पक्षधर इज़ाडोरा की आत्मकथा माय लाइफ पढ़ने के बाद कला को समर्पित स्त्री के सभी पहलू उजागर होते हैं, साथ ही मन में प्रश्न उठता है, क्या कलाकार स्त्री एक सामान्य सहज जीवन नहीं जी सकती। इज़ाडोरा ने अपने समय से बहुत आगे जाकर जो प्रयोग किए, वह तत्कालीन समय के आलोचकों-कट्टरपंथियों को रास नहीं आए। इसके पश्चात भी इंग्लैंड के प्रसिद्ध नृत्य समीक्षक रिचर्ड ऑस्टिन ने माना कि वह विश्व की महानतम नृत्यांगनाओं में से एक थीं, जो स्वयं भी नहीं समझ पाती थी कि वह क्या नृत्य कर रही हैं। उनके माता-पिता आइरिश मूल के थे, लेकिन वे अलग हो गए थे। मां संगीत जानती थीं और पियानोवादन ही उनकी आजीविका का साधन बना। अभावग्रस्त जीवन ने उन्हें पारंपरिक तौर पर शिक्षा-दीक्षा की आज्ञा नहीं दी। इस प्रकार नृत्य उनके अपनी परिश्रम, क्षमताओं व आंतरिक अनुभूतियों की देन था। उनका सपना था-ऐसे नृत्य विद्यालय की स्थापना करना जहां दुनिया भर के बच्चे प्रशिक्षण ले सकें, पर आर्थिक परेशानियों व शिष्याओं की भद्दता ने उनका सपना पूरा नहीं होने दिया। १९१३ में हुई एक दुर्घटना में उन्होंने अपने दोनों बच्चों को खो दिया। इसके बाद उन्होंने फिर एक बच्चे को जन्म दिया, किंतु वह भी जन्म के कुछ देर बाद ही मर गया। इन त्रासदियों ने इज़ाडोरा को भीतर तक हिला दिया। इस बीच उनका अपना स्वास्थ्य बहुत गिर गया। खुले हाथों खर्च करने वाली इज़ाडोरा अपने अंतिम दिनों में बहुत तंगहाली में रहीं। १४ सितंबर १९२७ को लगभग ५० वर्ष की आयु में इज़ाडोरा ने जीवन की अंतिम सांसें लीं। . भारतीय नृत्यनृत्य भी मानवीय अभिव्यक्तियों का एक रसमय प्रदर्शन है। यह एक सार्वभौम कला है, जिसका जन्म मानव जीवन के साथ हुआ है। बालक जन्म लेते ही रोकर अपने हाथ पैर मार कर अपनी भावाभिव्यक्ति करता है कि वह भूखा है- इन्हीं आंगिक -क्रियाओं से नृत्य की उत्पत्ति हुई है। यह कला देवी-देवताओं- दैत्य दानवों- मनुष्यों एवं पशु-पक्षियों को अति प्रिय है। भारतीय पुराणों में यह दुष्ट नाशक एवं ईश्वर प्राप्ति का साधन मानी गई है। अमृत मंथन के पश्चात जब दुष्ट राक्षसों को अमरत्व प्राप्त होने का संकट उत्पन्न हुआ तब भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर अपने लास्य नृत्य के द्वारा ही तीनों लोकों को राक्षसों से मुक्ति दिलाई थी। इसी प्रकार भगवान शंकर ने जब कुटिल बुद्धि दैत्य भस्मासुर की तपस्या से प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया कि वह जिसके ऊपर हाथ रखेगा वह भस्म हो जाए- तब उस दुष्ट राक्षस ने स्वयं भगवान को ही भस्म करने के लिये कटिबद्ध हो उनका पीछा किया- एक बार फिर तीनों लोक संकट में पड़ गये थे तब फिर भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर अपने मोहक सौंदर्यपूर्ण नृत्य से उसे अपनी ओर आकृष्ट कर उसका वध किया। भारतीय संस्कृति एवं धर्म की आरंभ से ही मुख्यत- नृत्यकला से जुड़े रहे हैं। देवेन्द्र इन्द्र का अच्छा नर्तक होना- तथा स्वर्ग में अप्सराओं के अनवरत नृत्य की धारणा से हम भारतीयों के प्राचीन काल से नृत्य से जुड़ाव की ओर ही संकेत करता है। विश्वामित्र-मेनका का भी उदाहरण ऐसा ही है। स्पष्ट ही है कि हम आरंभ से ही नृत्यकला को धर्म से जोड़ते आए हैं। पत्थर के समान कठोर व दृढ़ प्रतिज्ञ मानव हृदय को भी मोम सदृश पिघलाने की शक्ति इस कला में है। यही इसका मनोवैज्ञानिक पक्ष है। जिसके कारण यह मनोरंजक तो है ही- धर्म- अर्थ- काम- मोक्ष का साधन भी है। स्व परमानंद प्राप्ति का साधन भी है। अगर ऐसा नहीं होता तो यह कला-धारा पुराणों- श्रुतियों से होती हुई आज तक अपने शास्त्रीय स्वरूप में धरोहर के रूप में हम तक प्रवाहित न होती। इस कला को हिन्दु देवी-देवताओं का प्रिय माना गया है। भगवान शंकर तो नटराज कहलाए- उनका पंचकृत्य से संबंधित नृत्य सृष्टि की उत्पत्ति- स्थिति एवं संहार का प्रतीक भी है। भगवान विष्णु के अवतारों में सर्वश्रेष्ठ एवं परिपूर्ण कृष्ण नृत्यावतार ही हैं। इसी कारण वे 'नटवर' कृष्ण कहलाये। भारतीय संस्कृति एवं धर्म के इतिहास में कई ऐसे प्रमाण मिलते हैं कि जिससे सफल कलाओं में नृत्यकला की श्रेष्ठता सर्वमान्य प्रतीत होती है। .

इज़ाडोरा डंकन और नृत्य के बीच समानता

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इज़ाडोरा डंकन और नृत्य के बीच तुलना

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