इज़राइल की संस्कृति और क़ुरआन
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इज़राइल की संस्कृति और क़ुरआन के बीच अंतर
इज़राइल की संस्कृति vs. क़ुरआन
इज़राइल की संस्कृति विविध और गत्यात्मक है जिसमें पश्चिमी सांस्कृतिक प्रभाव के साथ-साथ पूर्वी संजातीय और धार्मिक परंपराओं का संश्लेषण संयोजित है। 1948 में आधुनिक इज़राइल राष्ट्र की स्थापना से बहुत पहले ही इज़राइली संस्कृति की जड़ें विकसित हो चुकि थीं। इसमें प्रवासी यहूदियों के इतिहास, 19वीं सदी के अन्तिम वर्षों में शुरू हुए ज़ियोनिस्ट आंदोलन की विचारधारा के साथ-साथ अरब इज़राइली आबादी व अन्य अल्पसंख्यकों के इतिहास और परंपराओं की झलक दिखती है। तेल अवीव और येरुशलम को इज़राइल के मुख्य सांस्कृतिक केन्द्र माना जाता है। न्यूयॉर्क टाइम्स ने तेल अवीव को "शांत भूमध्य की राजधानी" वर्णित किया गया है, लोनली प्लैनेट ने रात के जीवन के लिए इसे शीर्ष दस शहरों में स्थान दिया है और नेशनल ज्योग्राफिक ने इसे शीर्ष दस समुद्र तट के शहरों में से एक कहा है। इज़राइल में 200 से अधिक संग्रहालय हैं जो दुनिया में प्रति व्यक्ति संग्रहालयों की संख्या के अनुसार सबसे अधिक है। इन संग्रहालयों में सलाना लाखों आगंतुक आते हैं। मुख्य कला संग्रहालय तेल अवीव, येरुशलम, हाइफ़ा और हेर्ज़लिया में हैं। इज़राइल फिलहार्मोनिक ऑर्केस्ट्रा देश भर के आयोजन स्थलों के साथ-साथ विश्व के कई अन्य देशों में अपनी संगीत कला की प्रदर्शनी करता है। देश के लगभग हर शहर के अपने ऑर्केस्ट्रा हैं और ज्यादातर संगीतकारों की पृष्ठभूमि पूर्व सोवियत संघ है। इज़राइल के पारंपरिक लोक नृत्यों में होरा और येमेनाइट नृत्य शामिल हैं। इज़राइल की आधुनिक नृत्य कम्पनियाँ जैसे बातशेवा डांस कंपनी दुनिया भर में अत्यधिक प्रशंसित हैं। राष्ट्रीय थियेटर हबीमा 1917 में स्थापित किया गया था। इज़राइली फ़िल्म निर्माताओं और अभिनेताओं ने कई अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में पुरस्कार जीते हैं। 1980 के दशक के बाद से इज़राइली साहित्य का व्यापक रूप से अनुवाद किया गया है और कई इज़राइली लेखकों को अंतरराष्ट्रीय मान्यता हासिल हुई है। * श्रेणी:चित्र जोड़ें. '''क़ुरान''' का आवरण पृष्ठ क़ुरआन, क़ुरान या कोरआन (अरबी: القرآن, अल-क़ुर्'आन) इस्लाम की पवित्रतम किताब है और इसकी नींव है। मुसलमान मानते हैं कि इसे अल्लाह ने फ़रिश्ते जिब्रील द्वारा हज़रत मुहम्मद को सुनाया था। मुसलमान मानते हैं कि क़ुरआन ही अल्लाह की भेजी अन्तिम और सर्वोच्च किताब है। यह ग्रन्थ लगभग 1400 साल पहले अवतरण हुई है। इस्लाम की मान्यताओं के मुताबिक़ क़ुरआन अल्लाह के फ़रिश्ते जिब्रील (दूत) द्वारा हज़रत मुहम्मद को सन् 610 से सन् 632 में उनकी मौत तक ख़ुलासा किया गया था। हालांकि आरंभ में इसका प्रसार मौखिक रूप से हुआ पर पैग़म्बर मुहम्मद की मौत के बाद सन् 633 में इसे पहली बार लिखा गया था और सन् 653 में इसे मानकीकृत कर इसकी प्रतियाँ इस्लामी साम्राज्य में वितरित की गईं थी। मुसलमानों का मानना है कि ईश्वर द्वारा भेजे गए पवित्र संदेशों के सबसे आख़िरी संदेश क़ुरआन में लिखे गए हैं। इन संदेशों की शुरुआत आदम से हुई थी। हज़रत आदम इस्लामी (और यहूदी तथा ईसाई) मान्यताओं में सबसे पहला नबी (पैग़म्बर या पयम्बर) था और इसकी तुलना हिन्दू धर्म के मनु से एक हद तक की जा सकती है। जिस तरह से हिन्दू धर्म में मनु की संतानों को मानव कहा गया है वैसे ही इस्लाम में आदम की संतानों को आदमी कहा जाता है। तौहीद, धार्मिक आदेश, जन्नत, जहन्नम, सब्र, धर्म परायणता (तक्वा) के विषय ऐसे हैं जो बारम्बार दोहराए गए। क़ुरआन ने अपने समय में एक सीधे साधे, नेक व्यापारी इंसान को, जो अपने परिवार में एक भरपूर जीवन गुज़ार रहा था। विश्व की दो महान शक्तियों (रोमन तथा ईरानी) के समक्ष खड़ा कर दिया। केवल यही नहीं उसने रेगिस्तान के अनपढ़ लोगों को ऐसा सभ्य बना दिया कि पूरे विश्व पर इस सभ्यता की छाप से सैकड़ों वर्षों बाद भी इसके निशान पक्के मिलते हैं। क़ुरआन ने युध्द, शांति, राज्य संचालन इबादत, परिवार के वे आदर्श प्रस्तुत किए जिसका मानव समाज में आज प्रभाव है। मुसलमानों के अनुसार कुरआन में दिए गए ज्ञान से ये साबित होता है कि हज़रत मुहम्मद एक नबी है | .
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