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इंग्लैण्ड और बाह्य प्रत्यक्षवाद

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

इंग्लैण्ड और बाह्य प्रत्यक्षवाद के बीच अंतर

इंग्लैण्ड vs. बाह्य प्रत्यक्षवाद

इंग्लैण्ड (अंग्रेज़ी: England), ग्रेट ब्रिटेन नामक टापू के दक्षिणी भाग में स्थित एक देश है। इसका क्षेत्रफल 50,331 वर्ग मील है। यह यूनाइटेड किंगडम का सबसे बड़ा निर्वाचक देश है। इंग्लैंड के अलावा स्कॉटलैंड, वेल्स और उत्तर आयरलैंड भी यूनाइटेड किंगडम में शामिल हैं। यह यूरोप के उत्तर पश्चिम में अवस्थित है जो मुख्य भूमि से इंग्लिश चैनल द्वारा पृथकीकृत द्वीप का अंग है। इसकी राजभाषा अंग्रेज़ी है और यह विश्व के सबसे संपन्न तथा शक्तिशाली देशों में से एक है। इंग्लैंड के इतिहास में सबसे स्वर्णिम काल उसका औपनिवेशिक युग है। अठारहवीं सदी से लेकर बीसवीं सदी के मध्य तक ब्रिटिश साम्राज्य विश्व का सबसे बड़ा और शकितशाली साम्राज्य हुआ करता था जो कई महाद्वीपों में फैला हुआ था और कहा जाता था कि ब्रिटिश साम्राज्य में सूर्य कभी अस्त नहीं होता। उसी समय पूरे विश्व में अंग्रेज़ी भाषा ने अपनी छाप छोड़ी जिसकी वज़ह से यह आज भी विश्व के सबसे अधिक लोगों द्वारा बोले व समझे जाने वाली भाषा है। . अरस्तू जिसके दर्शन में बाह्य प्रत्यक्षवाद तत्व उपलब्ध हैं। बाह्य प्रत्यक्षवाद ज्ञानमीमांसा का एक सिद्धान्त है जिसके अनुसार बाह्य वस्तु का ज्ञान अनुमान से नहीं वरन् प्रत्यक्ष प्राप्त होता है। प्रत्यक्ष ज्ञान संभव माने बिना अनुमान नहीं लगाया जा सकता। यदि बाह्य वस्तु का प्रत्यक्ष कभी न हुआ हों, तो मानसिक प्रतिरूपों से बाह्य वस्तु का अस्तित्व सिद्ध ही नहीं हो सकता। इसलिए बाह्य वस्तु का ज्ञान अनिवार्य रूप से प्रत्यक्ष ही होता है। इंद्रियों के द्वारा जो कुछ दिखाई या सुनाई पड़ता है, बाह्य वस्तुएँ वैसी ही होती हैं। भारत में बौद्ध दर्शन की वैभाषिक शाखा के प्रवर्तक इस सिद्धांत को स्वीकार करते हैं। वे बाह्य वस्तु और मन दोनों का अस्तित्व मानते हैं। मन में बाह्य वस्तु का प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त होता है। यह प्रत्यक्ष ज्ञान इंद्रियों के माध्यम से होता है। इंद्रियाँ बाह्य जगत् के साथ संपर्क में आकर उससे एक प्रकार का संस्कार प्राप्त करती हैं। वे उन संस्कारों के साथ चित्त को प्रबुद्ध कर उसमें चेतना उत्पन्न कर देती हैं। तभी चित्त में संसार के ज्ञान का उदय होता है। जो वस्तु इंद्रियग्राह्य नहीं है, उसे मन भी नहीं जान सकता। अत: इंद्रियातीत वस्तुओं की सत्ता (जैसे आत्मा) वैभाषिकों को स्वीकार नहीं है। पश्चिम में आधुनिक नव्यवस्तुवादी (नियो रियलिस्ट) भी बाह्यप्रत्यक्षवाद का समर्थन करते हैं। वस्तुवादी विचारधारा नई नहीं है और न बाह्यप्रत्यक्षवाद। मनुष्य स्वभाव से ही इस सिद्धांत को आदि काल से मानता आ रहा है। अरस्तू के दर्शन में इसके तत्व उपलब्ध हैं। संत टॉमस एक्विनस् ने १३वीं शताब्दी में इसका पुन: प्रतिपादन किया। आधुनिक युग में बाह्यप्रत्यक्षवादी विचारधारा जर्मनी में उदित हुई। वहाँ वस्तुवादी दार्शनिक फ्रेंज ब्रेंटानो, एलेकजेंडर मीनांग, एडमंड हसरल आदि ने बाह्य-प्रत्यक्षवाद का समर्थन किया। उनसे प्रभावित इंग्लैंड के दार्शनिक जी.

इंग्लैण्ड और बाह्य प्रत्यक्षवाद के बीच समानता

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इंग्लैण्ड और बाह्य प्रत्यक्षवाद के बीच तुलना

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संदर्भ

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