लोगो
यूनियनपीडिया
संचार
Google Play पर पाएं
नई! अपने एंड्रॉयड डिवाइस पर डाउनलोड यूनियनपीडिया!
मुक्त
ब्राउज़र की तुलना में तेजी से पहुँच!
 

आल्ह-खण्ड और आल्हा (गायन)

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

आल्ह-खण्ड और आल्हा (गायन) के बीच अंतर

आल्ह-खण्ड vs. आल्हा (गायन)

आल्ह-खण्ड लोक कवि जगनिक द्वारा लिखित एक वीर रस प्रधान काव्य हैं जिसमें आल्हा और ऊदल की ५२ लड़ाइयों का रोमांचकारी वर्णन हैं। पं० ललिता प्रसाद मिश्र ने अपने ग्रन्थ आल्हखण्ड की भूमिका में आल्हा को युधिष्ठिर और ऊदल को भीम का साक्षात अवतार बताते हुए लिखा है - . https://commons.wikimedia.org/wiki/File:Charles_Elliot.jpg आल्हा वीरगाथाओं के लेखन और गायन की एक शैली है। इसमें रचा गया परमाल रासो का आल्ह खण्ड बहुत लोकप्रिय हुआ। आल्हा छन्द में लिखी आल्हखण्ड की ये पंक्तियाँ आज भी नौजवानों की रगों में अद्भुत जोश भर देती हैं: गाँव की चौपालों पर वर्षा ऋतु में आल्हा का आनन्द सभी युवा, बाल और बृद्ध मिलकर उठाते हैं। .

आल्ह-खण्ड और आल्हा (गायन) के बीच समानता

आल्ह-खण्ड और आल्हा (गायन) आम में 5 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): परमाल रासो, पहला विश्व युद्ध, लखनऊ, आल्हा-ऊदल, २००७

परमाल रासो

परमाल रासो आदिकालीन हिंदी साहित्य का प्रसिद्ध वीरगाथात्मक रासोकाव्य है। वर्तमान समय में इसका केवल आल्ह खंड उपलब्ध है जो वीरगाथात्मक लोकगाथा के रूप में उत्तर भारत में बेहद लोकप्रिय रहा है। इसके रचयिता जगनिक हैं। वे कालिंजर तथा महोबा के शासक परमाल (परमर्दिदेव) के दरबारी कवि थे। आल्ह खंड में महोबा के दो प्रसिद्ध वीरों आल्हा और ऊदल के वीर चरित का विस्तृत वर्णन किया गया था। आल्हखण्ड की जगनिक द्वारा लिखी गई कोई भी प्रति अभी तक उपलब्ध नहीं हुई है। अभी इसकी संकलित की गई प्रति ही उपलब्ध है जिसका संकलन विभिन्न विद्वानों ने अनेक क्षेत्रों में गाये जाने वाले आल्हा गीतों के आधार पर किया है। इसलिए इसके विभिन्न संकलनों में पाठांतर मिलता है और कोइ भी प्रति पूर्णतः प्रमाणिक नहीं मानी गई है। इस काव्य का प्रचार-प्रसार समस्त उत्तर भारत में है। उसके आधार पर प्रचलित गाथा हिन्दी भाषा भाषी प्रान्तों के गाँव-गाँव में सुनी जा सकती है। आल्हा लोकगाथा वर्षा ऋतु में विशेष रूप से गाई जाती है। .

आल्ह-खण्ड और परमाल रासो · आल्हा (गायन) और परमाल रासो · और देखें »

पहला विश्व युद्ध

पहला विश्व युद्ध 1914 से 1918 तक मुख्य तौर पर यूरोप में व्याप्त महायुद्ध को कहते हैं। यह महायुद्ध यूरोप, एशिया व अफ़्रीका तीन महाद्वीपों और समुंदर, धरती और आकाश में लड़ा गया। इसमें भाग लेने वाले देशों की संख्या, इसका क्षेत्र (जिसमें यह लड़ा गया) तथा इससे हुई क्षति के अभूतपूर्व आंकड़ों के कारण ही इसे विश्व युद्ध कहते हैं। पहला विश्व युद्ध लगभग 52 माह तक चला और उस समय की पीढ़ी के लिए यह जीवन की दृष्टि बदल देने वाला अनुभव था। क़रीब आधी दुनिया हिंसा की चपेट में चली गई और इस दौरान अंदाज़न एक करोड़ लोगों की जान गई और इससे दोगुने घायल हो गए। इसके अलावा बीमारियों और कुपोषण जैसी घटनाओं से भी लाखों लोग मरे। विश्व युद्ध ख़त्म होते-होते चार बड़े साम्राज्य रूस, जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी (हैप्सबर्ग) और उस्मानिया ढह गए। यूरोप की सीमाएँ फिर से निर्धारित हुई और अमेरिका निश्चित तौर पर एक 'महाशक्ति ' बन कर उभरा। .

आल्ह-खण्ड और पहला विश्व युद्ध · आल्हा (गायन) और पहला विश्व युद्ध · और देखें »

लखनऊ

लखनऊ (भारत के सर्वाधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश की राजधानी है। इस शहर में लखनऊ जिले और लखनऊ मंडल के प्रशासनिक मुख्यालय भी स्थित हैं। लखनऊ शहर अपनी खास नज़ाकत और तहजीब वाली बहुसांस्कृतिक खूबी, दशहरी आम के बाग़ों तथा चिकन की कढ़ाई के काम के लिये जाना जाता है। २००६ मे इसकी जनसंख्या २,५४१,१०१ तथा साक्षरता दर ६८.६३% थी। भारत सरकार की २००१ की जनगणना, सामाजिक आर्थिक सूचकांक और बुनियादी सुविधा सूचकांक संबंधी आंकड़ों के अनुसार, लखनऊ जिला अल्पसंख्यकों की घनी आबादी वाला जिला है। कानपुर के बाद यह शहर उत्तर-प्रदेश का सबसे बड़ा शहरी क्षेत्र है। शहर के बीच से गोमती नदी बहती है, जो लखनऊ की संस्कृति का हिस्सा है। लखनऊ उस क्ष्रेत्र मे स्थित है जिसे ऐतिहासिक रूप से अवध क्षेत्र के नाम से जाना जाता था। लखनऊ हमेशा से एक बहुसांस्कृतिक शहर रहा है। यहाँ के शिया नवाबों द्वारा शिष्टाचार, खूबसूरत उद्यानों, कविता, संगीत और बढ़िया व्यंजनों को हमेशा संरक्षण दिया गया। लखनऊ को नवाबों के शहर के रूप में भी जाना जाता है। इसे पूर्व की स्वर्ण नगर (गोल्डन सिटी) और शिराज-ए-हिंद के रूप में जाना जाता है। आज का लखनऊ एक जीवंत शहर है जिसमे एक आर्थिक विकास दिखता है और यह भारत के तेजी से बढ़ रहे गैर-महानगरों के शीर्ष पंद्रह में से एक है। यह हिंदी और उर्दू साहित्य के केंद्रों में से एक है। यहां अधिकांश लोग हिन्दी बोलते हैं। यहां की हिन्दी में लखनवी अंदाज़ है, जो विश्वप्रसिद्ध है। इसके अलावा यहाँ उर्दू और अंग्रेज़ी भी बोली जाती हैं। .

आल्ह-खण्ड और लखनऊ · आल्हा (गायन) और लखनऊ · और देखें »

आल्हा-ऊदल

आल्हा और ऊदल दो भाई थे। ये बुन्देलखण्ड (महोबा) के वीर योद्धा थे। इनकी वीरता की कहानी आज भी उत्तर-भारत के गाँव-गाँव में गायी जाती है। जगनिक ने आल्ह-खण्ड नामक एक काव्य रचा था उसमें इन वीरों की गाथा वर्णित है। पं० ललिता प्रसाद मिश्र ने अपने ग्रन्थ आल्हखण्ड की भूमिका में आल्हा को युधिष्ठिर और ऊदल को भीम का साक्षात अवतार बताते हुए लिखा है - "यह दोनों वीर अवतारी होने के कारण अतुल पराक्रमी थे। ये प्राय: १२वीं विक्रमीय शताब्दी में पैदा हुए और १३वीं शताब्दी के पुर्वार्द्ध तक अमानुषी पराक्रम दिखाते हुए वीरगति को प्राप्त हो गये।ऐसा प्रचलित है की ऊदल की पृथ्वीराज चौहान द्वारा हत्या के पश्चात आल्हा ने संन्यास ले लिया और जो आज तक अमर है और गुरु गोरखनाथ के आदेश से आल्हा ने पृथ्वीराज को जीवनदान दे दिया था,पृथ्वीराज चौहान के परम मित्र संजम भी महोबा की इसी लड़ाई में आल्हा उदल के सेनापति बलभद्र तिवारी जो कान्यकुब्ज और कश्यप गोत्र के थे उनके द्वारा मारा गया था l वह शताब्दी वीरों की सदी कही जा सकती है और उस समय की अलौकिक वीरगाथाओं को तब से गाते हम लोग चले आते हैं। आज भी कायर तक उन्हें (आल्हा) सुनकर जोश में भर अनेकों साहस के काम कर डालते हैं। यूरोपीय महायुद्ध में सैनिकों को रणमत्त करने के लिये ब्रिटिश गवर्नमेण्ट को भी इस (आल्हखण्ड) का सहारा लेना पड़ा था।" जन्मऊदल का जन्म 12 वी सदी में जेठ दशमी दशहरा के दिन दसपुरवा महोबा में हुुुआ था इनके पिता देशराज थे जिन्हें जम्बे भी कहा गया है (1142-1160) माडोगढ़ वर्तमान मांडू जो नर्मदा नदी के किनारे मध्य प्रदेश स्थित है के पुत्र कीर्तवर्मनके द्वारा यूुुद्व में मारे गये थे जिनकी मा का नाम देवल था जी अहीर यादव जाति के थी बड़ी बहादुर और ज्ञानी महिला थी जिनकी मृत्यु पर आल्हा ने विलाप करते हुए कहा कि"मैय्या देवे सी ना मिलिहै भैया न मिले वीर मलखान पीठ परन तो उदय सिंह है जिन जग जीत लई किरपान" राजा परिमाल की रानी मल्हना ने ऊदल का पालन पोषण पुत्र की तरह किया इनका नाम उदय सिंह रखा ऊदल बचपन से ही युद्ध के प्रति उन्मत्त रहता था इसलिए आल्हखण्ड में लिखा है "कलहा पूत देवल क्यार " अस्तु जब उदल का जन्म हुआ उस समय का वृत्तान्त आल्ह खण्ड में दिया है जब ज्योतिषों ने बताया "जौन घड़ी यहु लड़िका जन्मो दूसरो नाय रचो करतार सेतु बन्ध और रामेश्वर लै करिहै जग जाहिर तलवार किला जीत ले यह माडू का बाप का बदला लिहै चुकाय जा कोल्हू में बाबुल पेरे जम्बे को ठाडो दिहे पिराय किला किला पर परमाले की रानी दुहाई दिहे फिराय बावन गढ़ पर विजय करिके जीत का झंडा दिहे गडाय तीन बार गढ दिल्ली दाबे मारे मान पिथौरा क्यार नामकरण जाको ऊदल है भीमसेन क्यार अवतार" .

आल्ह-खण्ड और आल्हा-ऊदल · आल्हा (गायन) और आल्हा-ऊदल · और देखें »

२००७

वर्ष २००७ सोमवार से प्रारम्भ होने वाला ग्रेगोरी कैलंडर का सामान्य वर्ष है। .

आल्ह-खण्ड और २००७ · आल्हा (गायन) और २००७ · और देखें »

सूची के ऊपर निम्न सवालों के जवाब

आल्ह-खण्ड और आल्हा (गायन) के बीच तुलना

आल्ह-खण्ड 10 संबंध है और आल्हा (गायन) 14 है। वे आम 5 में है, समानता सूचकांक 20.83% है = 5 / (10 + 14)।

संदर्भ

यह लेख आल्ह-खण्ड और आल्हा (गायन) के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

अरे! अब हम फेसबुक पर हैं! »