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आर्यभटीय और आर्यभट्ट (बहुविकल्पी)

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

आर्यभटीय और आर्यभट्ट (बहुविकल्पी) के बीच अंतर

आर्यभटीय vs. आर्यभट्ट (बहुविकल्पी)

आर्यभटीय और आर्यभट्ट (बहुविकल्पी) के बीच मतभेद उपलब्ध नहीं हैं।

आर्यभटीय और आर्यभट्ट (बहुविकल्पी) के बीच समानता

आर्यभटीय और आर्यभट्ट (बहुविकल्पी) आम में 2 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): आर्यभट, आर्यभट्ट की संख्यापद्धति

आर्यभट

आर्यभट (४७६-५५०) प्राचीन भारत के एक महान ज्योतिषविद् और गणितज्ञ थे। इन्होंने आर्यभटीय ग्रंथ की रचना की जिसमें ज्योतिषशास्त्र के अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन है। इसी ग्रंथ में इन्होंने अपना जन्मस्थान कुसुमपुर और जन्मकाल शक संवत् 398 लिखा है। बिहार में वर्तमान पटना का प्राचीन नाम कुसुमपुर था लेकिन आर्यभट का कुसुमपुर दक्षिण में था, यह अब लगभग सिद्ध हो चुका है। एक अन्य मान्यता के अनुसार उनका जन्म महाराष्ट्र के अश्मक देश में हुआ था। उनके वैज्ञानिक कार्यों का समादर राजधानी में ही हो सकता था। अतः उन्होंने लम्बी यात्रा करके आधुनिक पटना के समीप कुसुमपुर में अवस्थित होकर राजसान्निध्य में अपनी रचनाएँ पूर्ण की। .

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आर्यभट्ट की संख्यापद्धति

संख्याओं को शब्दों में बदलने के लिये आर्यभट द्वारा प्रयुक्त पद्धति की तालिका आर्यभट्ट ने आर्यभटीय के 'गीतिकापादम्' नामक अध्याय में संख्याओं को 'शब्दों' के रूप में बदलने की पद्धति का विवरण दिया है। इस पद्धति की मुख्य विशेषता यह है कि इसके उपयोग से गणित तथा खगोलिकी में आने वाली संख्याएँ भी श्लोकों में आसानी से प्रयुक्त की जा सकती थीं। इस पद्धति का आधार आर्यभट्ट की महान रचना आर्यभटीय के प्रथम अध्याय (गीतिकापदम्) के द्वितीय श्लोक में वर्णित है। आर्यभट को अपना ग्रंथ पद्य में लिखना था, गणित व ज्योतिष के विषयों को श्लोकबद्ध करना था। प्रचलित शब्दांकों से आर्यभट का काम नहीं चल सकता था, इसलिए उन्होंने संस्कृत वर्णमाला का उपयोग करके एक नई वर्णांक या अक्षरांक पद्धति को जन्म दिया। संस्कृत व्याकरण के विशिष्ट शब्दों का उपयोग करके आर्यभट ने अपनी नई अक्षरांक-पद्धति के सारे नियम एक श्लोक में भर दिए। ग्रंथ के आरंभ में ही अपनी नई अक्षरांक पद्धति को प्रस्तुत कर देने के बाद आर्यभट अब बड़ी-बड़ी संख्याओं को अत्यंत संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत रूप में रखने में समर्थ थे। उन्होंने शब्दांकों का भी काफी प्रयोग किया है। वह अद्भुत श्लोक है- अर्थात् क से प्रारंभ करके वर्ग अक्षरों को वर्ग स्थानों में और अवर्ग अक्षरों को अवर्ग स्थानों में (व्यवहार करना चाहिए), (इस प्रकार) ङ और म का जोड़ य (होता है)। वर्ग और अवर्ग स्थानों के नव के दूने शून्यों को नव स्वर व्यक्त करते हैं। नव वर्ग स्थानों और नव अवर्ग स्थानों के पश्चात् (अर्थात् इनसे अधिक स्थानों के उपयोग की आवश्यकता होने पर) इन्हीं नव स्वरों का उपयोग करना चाहिए। 'आर्यभटीय' के भाष्यकार परमेश्वर कहते हैं- 'केनचिदनुस्वारादिविशेषण संयुक्ताः प्रयोज्या इत्यर्थः' अर्थात् किसी अनुस्वार आदि विशेषणों का उपयोग (स्वरों में) करना चाहिए। संस्कृत वर्णमाला में क से म तक पच्चीस वर्ग अक्षर हैं और य से ह तक आठ अवर्ग अक्षर हैं। संख्याओं के लिखने में दाहिनी ओर से पहला, तीसरा, पाँचवाँ अर्थात् विषम स्थान और दूसरा, चौथा, छठा आदि सम स्थान अवर्ग स्थान है। क से म तक 25 अक्षर हैं। आर्यभट ने इन्हें 1 से 25 तक मान दिए हैं अर्थात् क .

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सूची के ऊपर निम्न सवालों के जवाब

आर्यभटीय और आर्यभट्ट (बहुविकल्पी) के बीच तुलना

आर्यभटीय 38 संबंध है और आर्यभट्ट (बहुविकल्पी) 10 है। वे आम 2 में है, समानता सूचकांक 4.17% है = 2 / (38 + 10)।

संदर्भ

यह लेख आर्यभटीय और आर्यभट्ट (बहुविकल्पी) के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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