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आर्यभट और भारतीय मानचित्रकला

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

आर्यभट और भारतीय मानचित्रकला के बीच अंतर

आर्यभट vs. भारतीय मानचित्रकला

आर्यभट (४७६-५५०) प्राचीन भारत के एक महान ज्योतिषविद् और गणितज्ञ थे। इन्होंने आर्यभटीय ग्रंथ की रचना की जिसमें ज्योतिषशास्त्र के अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन है। इसी ग्रंथ में इन्होंने अपना जन्मस्थान कुसुमपुर और जन्मकाल शक संवत् 398 लिखा है। बिहार में वर्तमान पटना का प्राचीन नाम कुसुमपुर था लेकिन आर्यभट का कुसुमपुर दक्षिण में था, यह अब लगभग सिद्ध हो चुका है। एक अन्य मान्यता के अनुसार उनका जन्म महाराष्ट्र के अश्मक देश में हुआ था। उनके वैज्ञानिक कार्यों का समादर राजधानी में ही हो सकता था। अतः उन्होंने लम्बी यात्रा करके आधुनिक पटना के समीप कुसुमपुर में अवस्थित होकर राजसान्निध्य में अपनी रचनाएँ पूर्ण की। . अभी प्राचीन भारत की मानचित्र कला तथा संबंधित भौगोलिक ज्ञान के विषय में शोध कार्य नहीं हुआ है, लेकिन अन्य विषयों के शोध कार्यों से संबंधित तथ्यों से यह स्पष्ट हो जाता है कि प्राचीन भारतीयों ने मानचित्र कला में पर्याप्त उन्नति की थी। जोजेफ स्क्वार्टबर्ग (Joseph E. Schwartzberg (2008)) का विचार है कि कांस्य युगीन सिन्धु घाटी की सभ्यता (c. 2500–1900 BCE) मानचित्रकला से परिचित थी। यह बात वहाँ खनन से प्राप्त वस्तुओं में सर्वेक्षण उपकरण तथा मापन दण्ड (measuring rods) से स्पष्ट होती है। इसके अलावा बड़े आकार की निर्माण-योजनाएँ, ब्रह्माण्डीय चित्र, तथा मानचित्र निर्माण से सम्बन्धित सामग्री भारत में वैदिक काल से ही नियमित रूप से मिलती है। परिलेखन ज्ञान, प्रक्षेप, सर्वेक्षण, शुल्व सूत्र तथा तत्संबंधी विविध प्रकार के यंत्रों के निर्माण एवं ज्ञान का आभास प्राचीन पुस्तकों में मिलता है। यह कला रोमनों से बहुत पहले ऋग्वेद (4,000 ई0 पू0 से 1,500 ई0 पू0), बौधायन (800 ई0 पूर्व), आपस्तंब एवं कात्यायन के काल में उन्नत अवस्था में थी। भूमि पर विभिन्न आकृतियों और योजना लेखों के खींचने की परिपाटी बौधायन से पहले ही प्रारंभ हो चुकी थी। पाणिनि के अष्टाध्यायी से भी सर्वेक्षण ज्ञान की स्थिति का पता चलता है। मौर्य काल में सुसंगठित सर्वेक्षण ज्ञान की स्थिति, मानचित्रों को समाहित कर्यों में उपयोग करने की परंपरा तथा जातकों में शुल्व कार्य में यष्टि और रज्जु के प्रयोग आदि तथ्यों के उल्लेख से स्पष्ट हैं कि भारतीय लोग मानचित्रों के निर्माता ही नहीं थे, वरन्‌ उसका कुशल और व्यावहारिक उपयोग भी करते थे। सूर्यसिद्धांत तथा विविध ज्योतिष ग्रंथों में भूगोल एवं तत्संबंधी चित्रों एवं सीमांकन रेखाचित्रों आदि के संबंध में सर्वार्थवाची शब्द 'परिलेख' का उपयोग हुआ है। विभिन्न खगोल संबंधी कार्यों तथा ग्रहण आदि के अवसर पर विविध ग्रह उपग्रहों की स्थितियों, मार्गों आदि को प्रक्षेप प्रतिपाद के द्वारा दिखलाया जाता था। सूर्यसिद्धांत के अनुसार गोलक पर अक्षांश, देशांतर, क्रांति, विषुवत आदि को अंकित करने की रीतियाँ बताई गई हैं। उसी पुस्तक से स्पष्ट होता है कि जल द्वारा तलमापन (levelling) किया जाता था, जो आजकल स्पिरिट लेवल (spirit level) से किया जाता है। अक्षांश, देशांतर के स्थान पर सर्वप्रथम भारतीय पुराणकारों ने पृथ्वी के चारों ओर चार प्रमुख स्थानों, यथा श्रीलंका, श्रीलंका से 90° पूर्व यमकोटि, श्रीलंका से 90° पश्चिम सिद्धपुर तथा उसके विपरीत अध:भाग में रोमकपत्तन, का उल्लेख करते हुए सूर्य की दृश्यमान गति को स्पष्ट किया है। यहीं से बाद में अक्षांश तथा देशांतर का सूत्रपात होता है। प्रक्षेप की पद्धति का सूत्रपात भी सर्वप्रथम ज्योतिष ग्रंथों में ही मिलता है। आर्यभट्ट ने ही सर्वप्रथम पाई का वास्वविक फल तथा वृत्त का क्षेत्रफल निकलने की रीति बतलाई। पौराणिक काल में जंबू द्वीप आदि का मानचित्र बनाकर उन्हें मंजूषा में रखा जाता था। एक वर्ग हस्त के समपटल पर मानचित्र बनाने की पद्धति पाई जाती है। .

आर्यभट और भारतीय मानचित्रकला के बीच समानता

आर्यभट और भारतीय मानचित्रकला आम में 3 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): पाई, श्रीलंका, सूर्यसिद्धान्त

पाई

ग्रीक अक्षर '''पाई''' यदि किसी वृत्त का व्यास '''१''' हो तो उसकी परिधि '''पाई''' के बराबर होगी. पाई या π एक गणितीय नियतांक है जिसका संख्यात्मक मान किसी वृत्त की परिधि और उसके व्यास के अनुपात के बराबर होता है। इस अनुपात के लिये π संकेत का प्रयोग सर्वप्रथम सन् १७०६ में विलियम जोन्स ने सुझाया। इसका मान लगभग 3.14159 के बराबर होता है। यह एक अपरिमेय राशि है। पाई सबसे महत्वपूर्ण गणितीय एवं भौतिक नियतांकों में से एक है। गणित, विज्ञान एवं इंजीनियरी के बहुत से सूत्रों में π आता है। .

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श्रीलंका

श्रीलंका (आधिकारिक नाम श्रीलंका समाजवादी जनतांत्रिक गणराज्य) दक्षिण एशिया में हिन्द महासागर के उत्तरी भाग में स्थित एक द्वीपीय देश है। भारत के दक्षिण में स्थित इस देश की दूरी भारत से मात्र ३१ किलोमीटर है। १९७२ तक इसका नाम सीलोन (अंग्रेजी:Ceylon) था, जिसे १९७२ में बदलकर लंका तथा १९७८ में इसके आगे सम्मानसूचक शब्द "श्री" जोड़कर श्रीलंका कर दिया गया। श्रीलंका का सबसे बड़ा नगर कोलम्बो समुद्री परिवहन की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण बन्दरगाह है। .

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सूर्यसिद्धान्त

सूर्यसिद्धान्त भारतीय खगोलशास्त्र का प्रसिद्ध ग्रन्थ है। कई सिद्धान्त-ग्रन्थों के समूह का नाम है। वर्तमान समय में उपलब्ध ग्रन्थ मध्ययुग में रचित ग्रन्थ लगता है किन्तु अवश्य ही यह ग्रन्थ पुराने संस्क्रणों पर आधारित है जो ६ठी शताब्दी के आरम्भिक चरण में रचित हुए माने जाते हैं। भारतीय गणितज्ञ और खगोलशास्त्रियों ने इसका सन्दर्भ भी लिया है, जैसे आर्यभट्ट और वाराहमिहिर, आदि.

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आर्यभट और भारतीय मानचित्रकला के बीच तुलना

आर्यभट 87 संबंध है और भारतीय मानचित्रकला 16 है। वे आम 3 में है, समानता सूचकांक 2.91% है = 3 / (87 + 16)।

संदर्भ

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