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आर्यभट और ज्यामिति का इतिहास

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

आर्यभट और ज्यामिति का इतिहास के बीच अंतर

आर्यभट vs. ज्यामिति का इतिहास

आर्यभट (४७६-५५०) प्राचीन भारत के एक महान ज्योतिषविद् और गणितज्ञ थे। इन्होंने आर्यभटीय ग्रंथ की रचना की जिसमें ज्योतिषशास्त्र के अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन है। इसी ग्रंथ में इन्होंने अपना जन्मस्थान कुसुमपुर और जन्मकाल शक संवत् 398 लिखा है। बिहार में वर्तमान पटना का प्राचीन नाम कुसुमपुर था लेकिन आर्यभट का कुसुमपुर दक्षिण में था, यह अब लगभग सिद्ध हो चुका है। एक अन्य मान्यता के अनुसार उनका जन्म महाराष्ट्र के अश्मक देश में हुआ था। उनके वैज्ञानिक कार्यों का समादर राजधानी में ही हो सकता था। अतः उन्होंने लम्बी यात्रा करके आधुनिक पटना के समीप कुसुमपुर में अवस्थित होकर राजसान्निध्य में अपनी रचनाएँ पूर्ण की। . 1728 साइक्लोपीडिया से ज्यामिति की तालिका. ज्यामिति (यूनानी भाषा γεωμετρία; जियो .

आर्यभट और ज्यामिति का इतिहास के बीच समानता

आर्यभट और ज्यामिति का इतिहास आम में 9 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): त्रिकोणमिति, पाई, बख्शाली पाण्डुलिपि, ब्रह्मगुप्त, लातिन भाषा, समीकरण, संस्कृत भाषा, खगोल शास्त्र, आर्यभटीय

त्रिकोणमिति

किसी दूरस्थ और सीधे मापन में कठिनाई वाले सर्वेक्षण के लिए समरूप त्रिभुज के उपयोग का उदाहरण (1667) त्रिकोणमिति गणित की वह शाखा है जिसमें त्रिभुज और त्रिभुजों से बनने वाले बहुभुजों का अध्ययन होता है। त्रिकोणमिति का शब्दिक अर्थ है 'त्रिभुज का मापन'। त्रिकोणमिति में सबसे अधिक महत्वपूर्ण है समकोण त्रिभुज का अध्ययन। त्रिभुजों और बहुभुजों की भुजाओं की लम्बाई और दो भुजाओं के बीच के कोणों का अध्ययन करने का मुख्य आधार यह है कि समकोण त्रिभुज की किन्ही दो भुजाओं (आधार, लम्ब व कर्ण) का अनुपात उस त्रिभुज के कोणों के मान पर निर्भर करता है। त्रिकोणमिति का ज्यामिति की प्रसिद्ध बौधायन प्रमेय (पाइथागोरस प्रमेय) से गहरा सम्बन्ध है। .

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पाई

ग्रीक अक्षर '''पाई''' यदि किसी वृत्त का व्यास '''१''' हो तो उसकी परिधि '''पाई''' के बराबर होगी. पाई या π एक गणितीय नियतांक है जिसका संख्यात्मक मान किसी वृत्त की परिधि और उसके व्यास के अनुपात के बराबर होता है। इस अनुपात के लिये π संकेत का प्रयोग सर्वप्रथम सन् १७०६ में विलियम जोन्स ने सुझाया। इसका मान लगभग 3.14159 के बराबर होता है। यह एक अपरिमेय राशि है। पाई सबसे महत्वपूर्ण गणितीय एवं भौतिक नियतांकों में से एक है। गणित, विज्ञान एवं इंजीनियरी के बहुत से सूत्रों में π आता है। .

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बख्शाली पाण्डुलिपि

बख्शाली पाण्डुलिपि में प्रयोग किये गये अंक बक्षाली पाण्डुलिपि या बख्शाली पाण्डुलिपि (Bakhshali Manuscript) प्राचीन भारत की गणित से सम्बन्धित पाण्डुलिपि है। यह भोजपत्र पर लिखी है। यह सन् १८८१ में बख्शाली गाँव (तत्कालीन पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त; अब पाकिस्तान में, तक्षशिला से लगभग ७० किमी दूर) में मिली थी। यह शारदा लिपि में है एवं गाथा बोली (संस्कृत एवं प्राकृत का मिलाजुला रूप) में है। यह पाण्डुलिपि अपूर्ण है। इसमें केवल ७० 'पन्ने' (या पत्तियाँ) ही हैं जिनमें से बहुत ही बेकार हो चुकी हैं। बहुत से पन्ने अप्राप्य हैं। .

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ब्रह्मगुप्त

ब्रह्मगुप्त का प्रमेय, इसके अनुसार ''AF'' .

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लातिन भाषा

लातीना (Latina लातीना) प्राचीन रोमन साम्राज्य और प्राचीन रोमन धर्म की राजभाषा थी। आज ये एक मृत भाषा है, लेकिन फिर भी रोमन कैथोलिक चर्च की धर्मभाषा और वैटिकन सिटी शहर की राजभाषा है। ये एक शास्त्रीय भाषा है, संस्कृत की ही तरह, जिससे ये बहुत ज़्यादा मेल खाती है। लातीना हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार की रोमांस शाखा में आती है। इसी से फ़्रांसिसी, इतालवी, स्पैनिश, रोमानियाई और पुर्तगाली भाषाओं का उद्गम हुआ है (पर अंग्रेज़ी का नहीं)। यूरोप में ईसाई धर्म के प्रभुत्व की वजह से लातीना मध्ययुगीन और पूर्व-आधुनिक कालों में लगभग सारे यूरोप की अंतर्राष्ट्रीय भाषा थी, जिसमें समस्त धर्म, विज्ञान, उच्च साहित्य, दर्शन और गणित की किताबें लिखी जाती थीं। .

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समीकरण

---- समीकरण (equation) प्रतीकों की सहायता से व्यक्त किया गया एक गणितीय कथन है जो दो वस्तुओं को समान अथवा तुल्य बताता है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि आधुनिक गणित में समीकरण सर्वाधिक महत्वपूर्ण विषय है। आधुनिक विज्ञान एवं तकनीकी में विभिन्न घटनाओं (फेनामेना) एवं प्रक्रियाओं का गणितीय मॉडल बनाने में समीकरण ही आधारका काम करने हैं। समीकरण लिखने में समता चिन्ह का प्रयोग किया जाता है। यथा- समीकरण प्राय: दो या दो से अधिक व्यंजकों (expressions) की समानता को दर्शाने के लिये प्रयुक्त होते हैं। किसी समीकरण में एक या एक से अधिक चर राशि (यां) (variables) होती हैं। चर राशि के जिस मान के लिये समीकरण के दोनो पक्ष बराबर हो जाते हैं, वह/वे मान समीकरण का हल या समीकरण का मूल (roots of the equation) कहलाता/कहलाते है। ऐसा समीकरण जो चर राशि के सभी मानों के लिये संतुष्ट होता है, उसे सर्वसमिका (identity) कहते हैं। जैसे - एक सर्वसमिका है। जबकि एक समीकरण है जिसका मूल हैं x.

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संस्कृत भाषा

संस्कृत (संस्कृतम्) भारतीय उपमहाद्वीप की एक शास्त्रीय भाषा है। इसे देववाणी अथवा सुरभारती भी कहा जाता है। यह विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है। संस्कृत एक हिंद-आर्य भाषा हैं जो हिंद-यूरोपीय भाषा परिवार का एक शाखा हैं। आधुनिक भारतीय भाषाएँ जैसे, हिंदी, मराठी, सिन्धी, पंजाबी, नेपाली, आदि इसी से उत्पन्न हुई हैं। इन सभी भाषाओं में यूरोपीय बंजारों की रोमानी भाषा भी शामिल है। संस्कृत में वैदिक धर्म से संबंधित लगभग सभी धर्मग्रंथ लिखे गये हैं। बौद्ध धर्म (विशेषकर महायान) तथा जैन मत के भी कई महत्त्वपूर्ण ग्रंथ संस्कृत में लिखे गये हैं। आज भी हिंदू धर्म के अधिकतर यज्ञ और पूजा संस्कृत में ही होती हैं। .

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खगोल शास्त्र

चन्द्र संबंधी खगोल शास्त्र: यह बडा क्रेटर है डेडलस। १९६९ में चन्द्रमा की प्रदक्षिणा करते समय अपोलो ११ के चालक-दल (क्रू) ने यह चित्र लिया था। यह क्रेटर पृथ्वी के चन्द्रमा के मध्य के नज़दीक है और इसका व्यास (diameter) लगभग ९३ किलोमीटर या ५८ मील है। खगोल शास्त्र, एक ऐसा शास्त्र है जिसके अंतर्गत पृथ्वी और उसके वायुमण्डल के बाहर होने वाली घटनाओं का अवलोकन, विश्लेषण तथा उसकी व्याख्या (explanation) की जाती है। यह वह अनुशासन है जो आकाश में अवलोकित की जा सकने वाली तथा उनका समावेश करने वाली क्रियाओं के आरंभ, बदलाव और भौतिक तथा रासायनिक गुणों का अध्ययन करता है। बीसवीं शताब्दी के दौरान, व्यावसायिक खगोल शास्त्र को अवलोकिक खगोल शास्त्र तथा काल्पनिक खगोल तथा भौतिक शास्त्र में बाँटने की कोशिश की गई है। बहुत कम ऐसे खगोल शास्त्री है जो दोनो करते है क्योंकि दोनो क्षेत्रों में अलग अलग प्रवीणताओं की आवश्यकता होती है, पर ज़्यादातर व्यावसायिक खगोलशास्त्री अपने आप को दोनो में से एक पक्ष में पाते है। खगोल शास्त्र ज्योतिष शास्त्र से अलग है। ज्योतिष शास्त्र एक छद्म-विज्ञान (Pseudoscience) है जो किसी का भविष्य ग्रहों के चाल से जोड़कर बताने कि कोशिश करता है। हालाँकि दोनों शास्त्रों का आरंभ बिंदु एक है फिर भी वे काफ़ी अलग है। खगोल शास्त्री जहाँ वैज्ञानिक पद्धति का उपयोग करते हैं जबकि ज्योतिषी केवल अनुमान आधारित गणनाओं का सहारा लेते हैं। .

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आर्यभटीय

आर्यभटीय नामक ग्रन्थ की रचना आर्यभट प्रथम (४७६-५५०) ने की थी। यह संस्कृत भाषा में आर्या छंद में काव्यरूप में रचित गणित तथा खगोलशास्त्र का ग्रंथ है। इसकी रचनापद्धति बहुत ही वैज्ञानिक और भाषा बहुत ही संक्षिप्त तथा मंजी हुई है। इसमें चार अध्यायों में १२३ श्लोक हैं। आर्यभटीय, दसगीतिका पाद से आरम्भ होती है। इसके चार अध्याय इस प्रकार हैं: 1.

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सूची के ऊपर निम्न सवालों के जवाब

आर्यभट और ज्यामिति का इतिहास के बीच तुलना

आर्यभट 87 संबंध है और ज्यामिति का इतिहास 75 है। वे आम 9 में है, समानता सूचकांक 5.56% है = 9 / (87 + 75)।

संदर्भ

यह लेख आर्यभट और ज्यामिति का इतिहास के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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