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आर्मीनिया और जुस्तिनियन प्रथम

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

आर्मीनिया और जुस्तिनियन प्रथम के बीच अंतर

आर्मीनिया vs. जुस्तिनियन प्रथम

आर्मीनिया (आर्मेनिया) पश्चिम एशिया और यूरोप के काकेशस क्षेत्र में स्थित एक पहाड़ी देश है जो चारों तरफ़ ज़मीन से घिरा है। १९९० के पूर्व यह सोवियत संघ का एक अंग था जो एक राज्य के रूप में था। सोवियत संघ में एक जनक्रान्ति एवं राज्यों के आजादी के संघर्ष के बाद आर्मीनिया को २३ अगस्त १९९० को स्वतंत्रता प्रदान कर दी गई, परन्तु इसके स्थापना की घोषणा २१ सितंबर, १९९१ को हुई एवं इसे अंतर्राष्ट्रीय मान्यता २५ दिसंबर को मिली। इसकी राजधानी येरेवन है। अर्मेनियाई मूल की लिपि आरामाईक एक समय (ईसा पूर्व ३००) भारत से लेकर भूमध्य सागर के बीच प्रयुक्त होती थी। पूर्वी रोमन साम्राज्य और फ़ारस तथा अरब दोनों क्षेत्रों के बीच अवस्थित होने के कारण मध्य काल से यह विदेशी प्रभाव और युद्ध की भूमि रहा है जहाँ इस्लाम और ईसाइयत के कई आरंभिक युद्ध लड़े गए थे। आर्मेनिया प्राचीन ऐतिहासिक सांस्कृतिक धरोहर वाला देश है। आर्मेनिया के राजा ने चौथी शताब्दी में ही ईसाई धर्म ग्रहण कर लिया था। इस प्रकार आर्मेनिया राज्य ईसाई धर्म ग्रहण करने वाला प्रथम राज्य है। देश में आर्मेनियाई एपोस्टलिक चर्च सबसे बड़ा धर्म है। इसके अलावा यहाँ ईसाईयों, मुसलमानों और अन्य संप्रदायों का छोटा समुदाय है। आर्मेनिय़ा का कुल क्षेत्रफल २९,८०० कि.मी² (११,५०६ वर्ग मील) है जिसका ४.७१% जलीय क्षेत्र है। अनुमानतः (जुलाई २००८) यहाँ की जनसंख्या ३२,३१,९०० है एवं वर्ग किमी घनत्व १०१ व्यक्ति है। इसकी सीमाएँ तुर्की, जॉर्जिया, अजरबैजान और ईरान से लगी हुई हैं। आज यहाँ ९७.९ प्रतिशत से अधिक आर्मीनियाई जातीय समुदाय के अलावा १.३% यज़िदी, ०.५% रूसी और अन्य अल्पसंख्यक निवास करते हैं। यहां की जनसंख्या का १०.६% भाग अंतर्राष्ट्रीय गरीबी रेखा (अमरीकी डालर १.२५ प्रतिदिन) से नीचे निवास करता है। आर्मेनिया ४० से अधिक अंतर्राष्ट्रीय संगठनों का सदस्य है। इसमें संयुक्त राष्ट्र, यूरोप परिषद, एशियाई विकास बैंक, स्वतंत्र देशों का राष्ट्रकुल, विश्व व्यापार संगठन एवं गुट निरपेक्ष संगठन आदि प्रमुख हैं। . जुस्तिनियन प्रथम (Justinian I; ४८३ - ५६५) बाइजैण्टाइन साम्राज्य (पूर्वी रोमन साम्राज्य) का 527 से 565 तक शासक था। उसे 'जुस्तिनियन महान' और 'सन्त जुस्तिनियन' भी कहते हैं। सम्राट् जुस्तिनिअन का जन्म ११ मई सन् ४८३ को हुआ। इसका पहला नाम 'उप्रादा' था, परन्तु कुस्तुनतुनियाँ में शिक्षा प्राप्त करने और उसके चाचा जुस्तिन द्वारा उसे गोद लिए जाने के पश्चात् उसने अपना नाम बदल कर जुस्तिनिअन कर लिया। सन् ५२७ में चाचा की मृत्यु के बाद वह सिंहासनारूढ़ हुआ और सन् ५६५ में अपनी मृत्यु तक शासन करता रहा। शासनारूड़ होने के बाद जुस्तिनिअन ने अपना ध्यान अंतर्राष्ट्रीय मामलों पर लगाया। उसकी सेना को विदेशों से अनेक युद्ध लड़ने पड़े। सन् ५२९ से लेकर ५३२ तक फारस के साथ उसका युद्ध होता रहा। इन युद्धों में उसके सेनापति बोलिसारियस को महत्वपूर्ण सफलताएँ मिलीं लेकिन इन सफलताओं से जुस्तिनिअन का कोई विशेष लाभ नहीं हुआ। उसने फारस के साथ संघर्ष से बचने के लिये उससे शांतिसंधि कर ली और उसे वार्षिक रूप से एक निश्चित धनराशि देने लगा। ५३३ में बोलिसारियस बंडालों को जीतकर सिसली होता हुआ इटली पहुँचा और उसे साम्राज्य में मिला लिया। परंतु अपनी सैनिक दुर्बलता के कारण जुस्तिनिअन इटली पर स्थायी प्रभुत्व नहीं स्थापित कर सका। स्पेन को भी विजय करने का उसका प्रयत्न सफल नहीं रहा। उसके शासन काल में डेन्यूब तट की बर्बर जातियाँ भी उसके लिये सिर दर्द बनी रहीं। ५५९ में कुस्तुनतुनियाँ की रक्षा के लिये सेवानिवृत्त बोलिसारियस को बुलाने के लिये भी उसे बाध्य होना पड़ा था। जुस्तिनिअन प्रमुखत: 'रोमन ला' को व्यवस्थित बनाने के लिये प्रसिद्ध है। इस कार्य के लिये सभी रोमन सम्राटों की राजाज्ञा और आज्ञापत्र का पर्यवेक्षण कर, पुनरावृत्ति को बचाकर उनका एक कोड बनाया गया जो ५२९ में प्रकाशित हुआ। न्यायायिकों के मत और मान्यताओं का भी संग्रह किया गया जिसके परिणामस्वरूप 'डाइजेस्ट' जैसे विशाल ग्रंथ का प्रकाशन हुआ जिसमें प्रसिद्ध विधि-विशेषज्ञों की लगभग १०,००० मान्यताओं का संग्रह है। अंत में जुस्तिनिअन ने 'रोमन ला' की एक पाठ्यपुस्तक तैयार करने का आदेश दिया और 'इंस्टीट्यूट्स' नामक ग्रंथ तैयार हुआ। बाद में इन सबको मिलाकर दस खंडों का प्रसिद्ध 'कार्पस जूरिस सिविलस' प्रकाशित किया गया। यही रोमन ला का मुख्य स्रोत है। जुस्तिनिअन की महानता के संबंध में कोई संदेह नहीं लेकिन यह तथ्य भुलाया नहीं जा सकता कि उसे बहुत ही योग्य सहायकों का सहयोग प्राप्त था। बेलिसारियस महान् सेनाध्यक्ष और त्रिबोनियन योग्य न्यायाधीश था। इसके अतिरिक्त राजकुमारी थिओदोस ने उसके शासन में सक्रिय रुचि लेकर उसमें हाथ बँटाया। जुस्तिनिअन के चरित्र की पवित्रता और उसकी नैतिकता का परिचय इससे मिलता है कि उसका धर्मशास्त्र में विश्वास था और उसने धार्मिक पाखंडों को दूर करने का बहुत प्रयत्न किया। उसने कई चर्च बनवाए जिनमें कुस्तुनतुनियाँ के सैंट सोफिया चर्च की तो संसार की अद्भुत वस्तुओं में गणना होती है। यद्यपि जुस्तिनिअन में महान् शासक की सूझ बूझ, दूरदर्शिता और प्रतिभा का अभाव था फिर भी वह एक योग्य और परिश्रमी शासक था, इसमें संदेह नहीं। श्रेणी:रोमन साम्राज्य श्रेणी:चित्र जोड़ें.

आर्मीनिया और जुस्तिनियन प्रथम के बीच समानता

आर्मीनिया और जुस्तिनियन प्रथम आम में एक बात है (यूनियनपीडिया में): फ़ारस

फ़ारस

फ़ारस (فارس; Persia) प्राचीन काल के कई साम्राज्यों के केन्द्र रहे प्रदेशों को कहते हैं जो आधुनिक ईरान से तथा उससे संलग्न क्षेत्रों में फैला था। फ़ारस का साम्राज्य कई बार विशाल बन गया और फिर ढह गया। एक समय इसका विस्तार मध्य यूरोप से लेकर भारत के पश्चिमी छोर तक तथा मध्य एशिया से लेकप मिस्र तक था। १९३५ में रजाशाह पहलवी ने तत्कालीन फारस का नाम बदलकर ईरान कर दिया। इसके निवासियों के संयुक्त रूप से फारसी कहते हैं, यद्यपि इसके निवासियों में जातीय विविधता है। श्रेणी:इतिहास श्रेणी:ईरान en:History of Iran.

आर्मीनिया और फ़ारस · जुस्तिनियन प्रथम और फ़ारस · और देखें »

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आर्मीनिया और जुस्तिनियन प्रथम के बीच तुलना

आर्मीनिया 62 संबंध है और जुस्तिनियन प्रथम 5 है। वे आम 1 में है, समानता सूचकांक 1.49% है = 1 / (62 + 5)।

संदर्भ

यह लेख आर्मीनिया और जुस्तिनियन प्रथम के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें: