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आदर्शवाद और दर्शनशास्त्र

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

आदर्शवाद और दर्शनशास्त्र के बीच अंतर

आदर्शवाद vs. दर्शनशास्त्र

विचारवाद या आदर्शवाद या प्रत्ययवाद (Idealism; Ideal. दर्शनशास्त्र वह ज्ञान है जो परम् सत्य और प्रकृति के सिद्धांतों और उनके कारणों की विवेचना करता है। दर्शन यथार्थ की परख के लिये एक दृष्टिकोण है। दार्शनिक चिन्तन मूलतः जीवन की अर्थवत्ता की खोज का पर्याय है। वस्तुतः दर्शनशास्त्र स्वत्व, अर्थात प्रकृति तथा समाज और मानव चिंतन तथा संज्ञान की प्रक्रिया के सामान्य नियमों का विज्ञान है। दर्शनशास्त्र सामाजिक चेतना के रूपों में से एक है। दर्शन उस विद्या का नाम है जो सत्य एवं ज्ञान की खोज करता है। व्यापक अर्थ में दर्शन, तर्कपूर्ण, विधिपूर्वक एवं क्रमबद्ध विचार की कला है। इसका जन्म अनुभव एवं परिस्थिति के अनुसार होता है। यही कारण है कि संसार के भिन्न-भिन्न व्यक्तियों ने समय-समय पर अपने-अपने अनुभवों एवं परिस्थितियों के अनुसार भिन्न-भिन्न प्रकार के जीवन-दर्शन को अपनाया। भारतीय दर्शन का इतिहास अत्यन्त पुराना है किन्तु फिलॉसफ़ी (Philosophy) के अर्थों में दर्शनशास्त्र पद का प्रयोग सर्वप्रथम पाइथागोरस ने किया था। विशिष्ट अनुशासन और विज्ञान के रूप में दर्शन को प्लेटो ने विकसित किया था। उसकी उत्पत्ति दास-स्वामी समाज में एक ऐसे विज्ञान के रूप में हुई जिसने वस्तुगत जगत तथा स्वयं अपने विषय में मनुष्य के ज्ञान के सकल योग को ऐक्यबद्ध किया था। यह मानव इतिहास के आरंभिक सोपानों में ज्ञान के विकास के निम्न स्तर के कारण सर्वथा स्वाभाविक था। सामाजिक उत्पादन के विकास और वैज्ञानिक ज्ञान के संचय की प्रक्रिया में भिन्न भिन्न विज्ञान दर्शनशास्त्र से पृथक होते गये और दर्शनशास्त्र एक स्वतंत्र विज्ञान के रूप में विकसित होने लगा। जगत के विषय में सामान्य दृष्टिकोण का विस्तार करने तथा सामान्य आधारों व नियमों का करने, यथार्थ के विषय में चिंतन की तर्कबुद्धिपरक, तर्क तथा संज्ञान के सिद्धांत विकसित करने की आवश्यकता से दर्शनशास्त्र का एक विशिष्ट अनुशासन के रूप में जन्म हुआ। पृथक विज्ञान के रूप में दर्शन का आधारभूत प्रश्न स्वत्व के साथ चिंतन के, भूतद्रव्य के साथ चेतना के संबंध की समस्या है। .

आदर्शवाद और दर्शनशास्त्र के बीच समानता

आदर्शवाद और दर्शनशास्त्र आम में 9 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): चेतना, प्रकृति, प्लेटो, भौतिकवाद, संशयवाद, सुकरात, इमानुएल काण्ट, अरस्तु, अज्ञेयवाद

चेतना

१७वीं सदी से चेतना का एक चित्रण चेतना कुछ जीवधारियों में स्वयं के और अपने आसपास के वातावरण के तत्वों का बोध होने, उन्हें समझने तथा उनकी बातों का मूल्यांकन करने की शक्ति का नाम है। विज्ञान के अनुसार चेतना वह अनुभूति है जो मस्तिष्क में पहुँचनेवाले अभिगामी आवेगों से उत्पन्न होती है। इन आवेगों का अर्थ तुरंत अथवा बाद में लगाया जाता है। .

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प्रकृति

प्रकृति, व्यापकतम अर्थ में, प्राकृतिक, भौतिक या पदार्थिक जगत या ब्रह्माण्ड हैं। "प्रकृति" का सन्दर्भ भौतिक जगत के दृग्विषय से हो सकता हैं, और सामन्यतः जीवन से भी हो सकता हैं। प्रकृति का अध्ययन, विज्ञान के अध्ययन का बड़ा हिस्सा हैं। यद्यपि मानव प्रकृति का हिस्सा हैं, मानवी क्रिया को प्रायः अन्य प्राकृतिक दृग्विषय से अलग श्रेणी के रूप में समझा जाता हैं। .

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प्लेटो

प्लेटो (४२८/४२७ ईसापूर्व - ३४८/३४७ ईसापूर्व), या अफ़्लातून, यूनान का प्रसिद्ध दार्शनिक था। वह सुकरात (Socrates) का शिष्य तथा अरस्तू (Aristotle) का गुरू था। इन तीन दार्शनिकों की त्रयी ने ही पश्चिमी संस्कृति की दार्शनिक आधार तैयार किया। यूरोप में ध्वनियों के वर्गीकरण का श्रेय प्लेटो को ही है। .

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भौतिकवाद

भौतिकवाद (Materialism) दार्शनिक एकत्ववाद का एक प्रकार हैं, जिसका यह मत है कि प्रकृति में पदार्थ ही मूल द्रव्य है, और साथ ही, सभी दृग्विषय, जिस में मानसिक दृग्विषय और चेतना भी शामिल हैं, भौतिक परस्पर संक्रिया के परिणाम हैं। भौतिकवाद का भौतिकतावाद (Physicalism) से गहरा सम्बन्ध हैं, जिसका यह मत है कि जो कुछ भी अस्तित्व में हैं, वह अंततः भौतिक हैं। भौतिक विज्ञानों की ख़ोज के साथ, दार्शनिक भौतिकतावाद भौतिकवाद से क्रम-विकासित हुआ, ताकि सिर्फ़ सामान्य पदार्थ के बजाए भौतिकता के अधिक परिष्कृत विचारों को समाहित किया जा सकें, जैसे कि, दिक्-काल, भौतिक ऊर्जाएँ और बल, डार्क मैटर, इत्यादि। अतः, कुछ लोग "भौतिकवाद" से बढ़कर "भौतिकतावाद" शब्द को वरीयता देते हैं, जबकि कुछ इन शब्दों का प्रयोग समानार्थी शब्दों के रूप में करते हैं। भौतिकवाद या भौतिकतावाद से विरुद्ध दर्शनों में आदर्शवाद, बहुलवाद, द्वैतवाद और एकत्ववाद के कुछ प्रकार सम्मिलित हैं। .

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संशयवाद

जैसा श्री शिवादित्य ने सप्तपदार्थी नामक ग्रंथ में लिखा है (अनवधारण ज्ञान संशय) संशय अनिश्चित ज्ञान या संदिग्ध अनुभव को कहते हैं। तर्कसंग्रह के अनुसार संशय वह ज्ञान है जिसमें एक ही पदार्थ अनेक विरोधी धर्मो या गुणों से युक्त प्रतीत होता है (एकस्मिन् धर्मिणी विरुद्धनानाधर्मवैशिष्ट्यावगाहिज्ञानं संशय)। उदाहरणार्थ, जब हम अँधेरे में किसी दूरस्थ स्तंभ को देखकर निश्चित रूप से यह नहीं जान पाते कि वह स्तंभ है तो हमारा मन दोलायमान हो जाता है और हम उस एक को पदार्थ में स्तंभत्व एवं मनुष्यत्व दो विभिन्न धर्मों का आरोप करने लगते हैं। न तो हम निश्चयपूर्वक यह कह सकते हैं कि वह पदार्थ स्तंभ है और न यह कि वह मनुष्य है। मन की ऐसी ही विप्रतिपत्तियुक्त, द्विविधाग्रस्त, निश्चयरहित या विकल्पात्मक अवस्था को संशय कहा जाता है। यह अवस्था न केवल ज्ञानाभाव तथा (रज्जु के सर्प के) भ्रम या विपरीत ज्ञान (विपर्यय) से ही किंतु यथार्थ निश्चित्त ज्ञान से भी भिन्न होती है। अत: संशयवाद (Scepticism), नामक सिद्धांत के अनुसार निश्चित्त ज्ञान अथवा उसकी संभावना का निषेध किया जाता है। इस सिद्धांत को पूर्ण रूप से माननेवाले व्यक्तियों के विचारानुसार मानव को कभी भी और किसी भी प्रकार का वास्तविक या निश्चित ज्ञान नहीं हो सकता। संशयवादियों की राय में हमारे मस्तिष्क या मन की बनावट ही ऐसी है कि उसके द्वारा हम कभी भी संसार के या उसके पदार्थों के सही स्वरूप को अवगत कर सकने में समर्थ नहीं हो सकते। .

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सुकरात

सुकरात को सूफियों की भाँति मौलिक शिक्षा और आचार द्वारा उदाहरण देना ही पसंद था। वस्तुत: उसके समसामयिक भी उसे सूफी समझते थे। सूफियों की भाँति साधारण शिक्षा तथा मानव सदाचार पर वह जोर देता था और उन्हीं की तरह पुरानी रूढ़ियों पर प्रहार करता था। वह कहता था, ""सच्चा ज्ञान संभव है बशर्ते उसके लिए ठीक तौर पर प्रयत्न किया जाए; जो बातें हमारी समझ में आती हैं या हमारे सामने आई हैं, उन्हें तत्संबंधी घटनाओं पर हम परखें, इस तरह अनेक परखों के बाद हम एक सचाई पर पहुँच सकते हैं। ज्ञान के समान पवित्रतम कोई वस्तु नहीं हैं।' बुद्ध की भाँति सुकरात ने कोई ग्रंथ नहीं लिखा। बुद्ध के शिष्यों ने उनके जीवनकाल में ही उपदेशों को कंठस्थ करना शुरु किया था जिससे हम उनके उपदेशों को बहुत कुछ सीधे तौर पर जान सकते हैं; किंतु सुकरात के उपदेशों के बारे में यह भी सुविधा नहीं। सुकरात का क्या जीवनदर्शन था यह उसके आचरण से ही मालूम होता है, लेकिन उसकी व्याख्या भिन्न-भिन्न लेखक भिन्न-भिन्न ढंग से करते हैं। कुछ लेखक सुक्रात की प्रसन्नमुखता और मर्यादित जीवनयोपभोग को दिखलाकर कहते हैं कि वह भोगी था। दूसरे लेखक शारीरिक कष्टों की ओर से उसकी बेपर्वाही तथा आवश्यकता पड़ने पर जीवनसुख को भी छोड़ने के लिए तैयार रहने को दिखलाकर उसे सादा जीवन का पक्षपाती बतलाते हैं। सुकरात को हवाई बहस पसंद न थी। वह अथेन्स के बहुत ही गरीब घर में पैदा हुआ था। गंभीर विद्वान् और ख्यातिप्राप्त हो जाने पर भी उसने वैवाहिक जीवन की लालसा नहीं रखी। ज्ञान का संग्रह और प्रसार, ये ही उसके जीवन के मुख्य लक्ष्य थे। उसके अधूरे कार्य को उसके शिष्य अफलातून और अरस्तू ने पूरा किया। इसके दर्शन को दो भागों में बाँटा जा सकता है, पहला सुक्रात का गुरु-शिष्य-यथार्थवाद और दूसरा अरस्तू का प्रयोगवाद। तरुणों को बिगाड़ने, देवनिंदा और नास्तिक होने का झूठा दोष उसपर लगाया गया था और उसके लिए उसे जहर देकर मारने का दंड मिला था। सुकरात ने जहर का प्याला खुशी-खुशी पिया और जान दे दी। उसे कारागार से भाग जाने का आग्रह उसे शिष्यों तथा स्नेहियों ने किया किंतु उसने कहा- भाइयो, तुम्हारे इस प्रस्ताव का मैं आदर करता हूँ कि मैं यहाँ से भाग जाऊँ। प्रत्येक व्यक्ति को जीवन और प्राण के प्रति मोह होता है। भला प्राण देना कौन चाहता है? किंतु यह उन साधारण लोगों के लिए हैं जो लोग इस नश्वर शरीर को ही सब कुछ मानते हैं। आत्मा अमर है फिर इस शरीर से क्या डरना? हमारे शरीर में जो निवास करता है क्या उसका कोई कुछ बिगाड़ सकता है? आत्मा ऐसे शरीर को बार बार धारण करती है अत: इस क्षणिक शरीर की रक्षा के लिए भागना उचित नहीं है। क्या मैंने कोई अपराध किया है? जिन लोगों ने इसे अपराध बताया है उनकी बुद्धि पर अज्ञान का प्रकोप है। मैंने उस समय कहा था-विश्व कभी भी एक ही सिद्धांत की परिधि में नहीं बाँधा जा सकता। मानव मस्तिष्क की अपनी सीमाएँ हैं। विश्व को जानने और समझने के लिए अपने अंतस् के तम को हटा देना चाहिए। मनुष्य यह नश्वर कायामात्र नहीं, वह सजग और चेतन आत्मा में निवास करता है। इसलिए हमें आत्मानुसंधान की ओर ही मुख्य रूप से प्रवृत्त होना चाहिए। यह आवश्यक है कि हम अपने जीवन में सत्य, न्याय और ईमानदारी का अवलंबन करें। हमें यह बात मानकर ही आगे बढ़ना है कि शरीर नश्वर है। अच्छा है, नश्वर शरीर अपनी सीमा समाप्त कर चुका। टहलते-टहलते थक चुका हूँ। अब संसार रूपी रात्रि में लेटकर आराम कर रहा हूँ। सोने के बाद मेरे ऊपर चादर उड़ देना। .

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इमानुएल काण्ट

इमानुएल कांट (1724-1804) जर्मन वैज्ञानिक, नीतिशास्त्री एवं दार्शनिक थे। उसका वैज्ञानिक मत "कांट-लाप्लास परिकल्पना" (हाइपॉथेसिस) के नाम से विख्यात है। उक्त परिकल्पना के अनुसार संतप्त वाष्पराशि नेबुला से सौरमंडल उत्पन्न हुआ। कांट का नैतिक मत "नैतिक शुद्धता" (मॉरल प्योरिज्म) का सिद्धांत, "कर्तव्य के लिए कर्तव्य" का सिद्धांत अथवा "कठोरतावाद" (रिगॉरिज्म) कहा जाता है। उसका दार्शनिक मत "आलोचनात्मक दर्शन" (क्रिटिकल फ़िलॉसफ़ी) के नाम से प्रसिद्ध है। इमानुएल कांट अपने इस प्रचार से प्रसिद्ध हुये कि मनुष्य को ऐसे कर्म और कथन करने चाहियें जो अगर सभी करें तो वे मनुष्यता के लिये अच्छे हों। .

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अरस्तु

अरस्तु अरस्तु (384 ईपू – 322 ईपू) यूनानी दार्शनिक थे। वे प्लेटो के शिष्य व सिकंदर के गुरु थे। उनका जन्म स्टेगेरिया नामक नगर में हुआ था ।  अरस्तु ने भौतिकी, आध्यात्म, कविता, नाटक, संगीत, तर्कशास्त्र, राजनीति शास्त्र, नीतिशास्त्र, जीव विज्ञान सहित कई विषयों पर रचना की। अरस्तु ने अपने गुरु प्लेटो के कार्य को आगे बढ़ाया। प्लेटो, सुकरात और अरस्तु पश्चिमी दर्शनशास्त्र के सबसे महान दार्शनिकों में एक थे।  उन्होंने पश्चिमी दर्शनशास्त्र पर पहली व्यापक रचना की, जिसमें नीति, तर्क, विज्ञान, राजनीति और आध्यात्म का मेलजोल था।  भौतिक विज्ञान पर अरस्तु के विचार ने मध्ययुगीन शिक्षा पर व्यापक प्रभाव डाला और इसका प्रभाव पुनर्जागरण पर भी पड़ा।  अंतिम रूप से न्यूटन के भौतिकवाद ने इसकी जगह ले लिया। जीव विज्ञान उनके कुछ संकल्पनाओं की पुष्टि उन्नीसवीं सदी में हुई।  उनके तर्कशास्त्र आज भी प्रासांगिक हैं।  उनकी आध्यात्मिक रचनाओं ने मध्ययुग में इस्लामिक और यहूदी विचारधारा को प्रभावित किया और वे आज भी क्रिश्चियन, खासकर रोमन कैथोलिक चर्च को प्रभावित कर रही हैं।  उनके दर्शन आज भी उच्च कक्षाओं में पढ़ाये जाते हैं।  अरस्तु ने अनेक रचनाएं की थी, जिसमें कई नष्ट हो गई। अरस्तु का राजनीति पर प्रसिद्ध ग्रंथ पोलिटिक्स है। .

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अज्ञेयवाद

अज्ञेयवाद (एग्नॉस्टिसिज्म / English: Agnosticism) ज्ञान मीमांसा का विषय है, यद्यपि उसका कई पद्धतियों में तत्व दर्शन से भी संबंध जोड़ दिया गया है। इस सिद्धांत की मान्यता है कि जहाँ विश्व की कुछ वस्तुओं का निश्चयात्मक ज्ञान संभव है, वहाँ कुछ ऐसे तत्व या पदार्थ भी हैं जो अज्ञेय हैं, अर्थात् जिनका निश्चयात्मक ज्ञान संभव नहीं है। अज्ञेयवाद, संदेहवाद से भिन्न है; संदेहवाद या संशयवाद के अनुसार विश्व के किसी भी पदार्थ का निश्चयात्मक ज्ञान संभव नहीं है। भारतीय दर्शन के संभवतः किसी भी संप्रदाय को अज्ञेयवादी नहीं कहा जा सकता। वस्तुतः भारत में कभी भी संदेहवाद एवं अज्ञेयवाद का व्यवस्थित प्रतिपादन नहीं हुआ। नैयायिक सर्वज्ञेयवादी हैं और नागार्जुन तथा श्रीहर्ष जेसे मुक्तिवादी भी पारिश्रमिक अर्थ में संशयवादी अथवा अज्ञेयवादी नहीं कहे जा सकते। एग्नास्टिसिज्म शब्द का सर्वप्रथम आविष्कार और प्रयोग सन् 1870 में टॉमस हेनरी हक्सले (1825-1895) द्वारा हुआ। अंग्रेजी जीवविज्ञानी थॉमस हेनरी हक्सले ने 1869 में "अज्ञेय" शब्द का उच्चारण किया था। पहले के विचारकों ने हालांकि लिखा था कि 5 वीं शताब्दी ई.पू.

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आदर्शवाद और दर्शनशास्त्र के बीच तुलना

आदर्शवाद 22 संबंध है और दर्शनशास्त्र 63 है। वे आम 9 में है, समानता सूचकांक 10.59% है = 9 / (22 + 63)।

संदर्भ

यह लेख आदर्शवाद और दर्शनशास्त्र के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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