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आचार्य राममूर्ति और आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

आचार्य राममूर्ति और आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी के बीच अंतर

आचार्य राममूर्ति vs. आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी

आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी और आचार्य राममूर्ति अलग-अलग व्यक्ति हैं; भ्रमित न हों। ---- आचार्य राममूर्ति (२२ जनवरी १९१३ - २० मई २०१०) गांधीवादी शिक्षाविद और समाजसेवी थे। वे जयप्रकाश नारायण के सहयोगी थे। आचार्य राममूर्ति की अगुवाई में 1990 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति में सुधार के लिए कमेटी का गठन किया गया था। आचार्य राममूर्ति समिति ने अपनी रिपोर्ट शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन की सिफारिश की थी। . आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी और आचार्य राममूर्ति अलग-अलग व्यक्ति हैं; भ्रमित न हों। ---- आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी (जन्म-स्थान: नीवी कलाँ, वाराणसी (उ.प्र.) जन्म - ४ जनवरी १९२९ निधन- ३० मार्च २००९) शिक्षा: काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से एम.ए., पी-एच.डी.; साहित्याचार्य, साहित्यरत्न। काव्यशास्त्र एवं दर्शन के प्रकांड पंडित। हिन्दी एवं संस्कृत के विद्वान एवं समालोचक थे। वे सागर विश्वविद्यालय में प्राध्यापक रहे; विक्रम विश्वविद्यालय में हिन्दी के विभागाध्यक्ष रहे तथा कई विश्वविद्यालयों के अतिथि शिक्षक (विजिटिंग फैकल्टी) भी रहे। वे शब्द शक्ति एवं रस विचार के अप्रतिम व्याख्याकार थे। .

आचार्य राममूर्ति और आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी के बीच समानता

आचार्य राममूर्ति और आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी आम में एक बात है (यूनियनपीडिया में): वाराणसी

वाराणसी

वाराणसी (अंग्रेज़ी: Vārāṇasī) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का प्रसिद्ध नगर है। इसे 'बनारस' और 'काशी' भी कहते हैं। इसे हिन्दू धर्म में सर्वाधिक पवित्र नगरों में से एक माना जाता है और इसे अविमुक्त क्षेत्र कहा जाता है। इसके अलावा बौद्ध एवं जैन धर्म में भी इसे पवित्र माना जाता है। यह संसार के प्राचीनतम बसे शहरों में से एक और भारत का प्राचीनतम बसा शहर है। काशी नरेश (काशी के महाराजा) वाराणसी शहर के मुख्य सांस्कृतिक संरक्षक एवं सभी धार्मिक क्रिया-कलापों के अभिन्न अंग हैं। वाराणसी की संस्कृति का गंगा नदी एवं इसके धार्मिक महत्त्व से अटूट रिश्ता है। ये शहर सहस्रों वर्षों से भारत का, विशेषकर उत्तर भारत का सांस्कृतिक एवं धार्मिक केन्द्र रहा है। हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का बनारस घराना वाराणसी में ही जन्मा एवं विकसित हुआ है। भारत के कई दार्शनिक, कवि, लेखक, संगीतज्ञ वाराणसी में रहे हैं, जिनमें कबीर, वल्लभाचार्य, रविदास, स्वामी रामानंद, त्रैलंग स्वामी, शिवानन्द गोस्वामी, मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, पंडित रवि शंकर, गिरिजा देवी, पंडित हरि प्रसाद चौरसिया एवं उस्ताद बिस्मिल्लाह खां आदि कुछ हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने हिन्दू धर्म का परम-पूज्य ग्रंथ रामचरितमानस यहीं लिखा था और गौतम बुद्ध ने अपना प्रथम प्रवचन यहीं निकट ही सारनाथ में दिया था। वाराणसी में चार बड़े विश्वविद्यालय स्थित हैं: बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइयर टिबेटियन स्टडीज़ और संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय। यहां के निवासी मुख्यतः काशिका भोजपुरी बोलते हैं, जो हिन्दी की ही एक बोली है। वाराणसी को प्रायः 'मंदिरों का शहर', 'भारत की धार्मिक राजधानी', 'भगवान शिव की नगरी', 'दीपों का शहर', 'ज्ञान नगरी' आदि विशेषणों से संबोधित किया जाता है। प्रसिद्ध अमरीकी लेखक मार्क ट्वेन लिखते हैं: "बनारस इतिहास से भी पुरातन है, परंपराओं से पुराना है, किंवदंतियों (लीजेन्ड्स) से भी प्राचीन है और जब इन सबको एकत्र कर दें, तो उस संग्रह से भी दोगुना प्राचीन है।" .

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आचार्य राममूर्ति और आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी के बीच तुलना

आचार्य राममूर्ति 19 संबंध है और आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी 7 है। वे आम 1 में है, समानता सूचकांक 3.85% है = 1 / (19 + 7)।

संदर्भ

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