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आचार्य कृपलानी और कांग्रेस समाजवादी दल

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

आचार्य कृपलानी और कांग्रेस समाजवादी दल के बीच अंतर

आचार्य कृपलानी vs. कांग्रेस समाजवादी दल

आचार्य कृपलानी (11 नवम्बर 1888 – 19 मार्च 1982) भारत के स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी, गांधीवादी समाजवादी, पर्यावरणवादी तथा राजनेता थे। उनका वास्तविक नाम जीवटराम भगवानदास था। वे सन् 1947 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे जब भारत को आजादी मिली। जब भावी प्रधानमंत्री के लिये कांग्रेस में मतदान हुआ तो तो सरदार पटेल के बाद सबसे अधिक मत उनको ही मिले थे। किन्तु गांधीजी के कहने पर सरदार पटेल और आचार्य कृपलानी ने अपना नाम वापस ले लिया और जवाहर लाल नेहरू को प्रधानमंत्री बनाया गया। . कांग्रेस समाजवादी दल मानता है:"मैं नहीं हम"। कांग्रेस समाजवादी दल (Congress Socialist Party (CSP)) की स्थापना 1934 में हुई थी। भारतीय समाजवादी नेता प्रथम महायुद्ध के बाद से ही समाजवाद का प्रचार कर रहे थे। परंतु सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930-33) की असफलता और सन् 1929 के आर्थिक संकट के समय पूँजीवादी देशों की दुर्गति तथा इन देशों में फासिज्म की विजय और दूसरी ओर सोवियत देश की आर्थिक संकट से मुक्ति तथा उसकी सफलता, इन सब कारणों से अनेक राष्ट्रभक्त समाजवाद की ओर आकर्षित हुए। इनमें जयप्रकाश नारायण, आचार्य नरेंद्रदेव, मीनू मसानी, डॉ॰ राममनोहर लोहिया, कमलादेवी चट्टोपाध्याय, यूसुफ मेहर अली, अच्युत पटवर्धन और अशोक मेहता उल्लेखनीय हैं। इनका उद्देश्य भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मंच द्वारा समाजवादी ढंग से स्वराज्यप्राप्ति और उसके बाद समाजवाद की स्थापना था। भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद कांग्रेस राष्ट्रीय शक्तियों का संयुक्त मोर्चा न रहकर एक राजनीतिक दल बन गई, अत: अन्य स्वायत्त और संगठित दलों को कांग्रेस से निकलना पड़ा। इनमें कांग्रेस समाजवादी दल भी था। उसने कांग्रेस शब्द को अपने नाम से हटा दिया। बाद में आचार्य कृपलानी द्वारा संगठित कृषक मजदूर प्रजापार्टी इसमें मिल गई और इसका नाम प्रजा सोशलिस्ट पार्टी हो गया, परंतु डाक्टर राममनोहर लोहिया के नेतृत्व में समाजवादी दल का एक अंग इससे अलग हो गया और उसने एक समाजवादी पार्टी बना ली। इस समय प्रजा सोशलिस्ट और सोशलिस्ट पार्टी ने मिलकर संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी बनाई। किंतु संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के वाराणसी अधिवेशन (1965) में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने अलग होकर पुन: अपना स्वतंत्र अस्तित्व कायम कर लिया। उसी समय अशोक मेहता के नेतृत्व में कुछ प्रजा सोशलिस्ट कार्यकर्ता कांग्रेस में शमिल हो गए हैं। द्वितीय महायुद्ध के बाद वह समाजवादी विचारधारा सोवियत तानाशाही का विरोध करती है तथा अपने को पाश्चात्य देशों के लोकतंत्रात्मक और विकासवादी समाजवाद के निकट पाती है। .

आचार्य कृपलानी और कांग्रेस समाजवादी दल के बीच समानता

आचार्य कृपलानी और कांग्रेस समाजवादी दल आम में 2 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): प्रजा सोसलिस्ट पार्टी, समाजवाद

प्रजा सोसलिस्ट पार्टी

प्रजा सोसलिस्ट पार्टी (PSP) भारत का एक राजनीतीतिक दल था। यह सन् १९५२ में बनी थी और सन् १९७२ तक अस्तित्व में रही। इसका निर्माण समाजवादी पार्टी (सोसलिस्ट पार्टी) एवं किसान मजदूर प्रजा पार्टी के विलय के परिणामस्वरूप हुआ। सोसलिस्ट पार्टी जयप्रकाश नारायण, आचार्य नरेन्द्र देव, बसावन सिंह के नेतृत्व में चलने वाली पार्टी थी; किसान मजदूर प्रजा पार्टी के नेता जेबी कृपलानी थे। सन् १९५५ में इस दल से राममनोहर लोहिया के नेतृत्व में कई लोग अलग होकर "सोसलिस्ट पार्टी" के नाम से अलग दल बना लिये। इसके बाद पुन: सन् १९६९ में जार्ज फर्नाण्डीज के नेतृत्व में इससे कुछ लोग अलग होकर संयुक्त सोसलिस्ट पार्टी बना डाले। सन् १९६० में कृपलानी जी ने प्रजा सोसलिस्ट पार्टी छोड़ दी। इसी प्रकार सन् १९६४ मेम् अशोक मेहता इस पार्टी से निकाले जाने के बाद कंग्रेस में चले गये। सन् १९७२ में जार्ज फर्नांडीज की संयुक्त सोसलिस्ट पार्टी और प्रजा सोसलिस्ट पार्टी का विलय हो गया जिसका नाम सोसलिस्ट पार्टी रखा गया। अन्त में यह दल भी सन् १९७७ में जनता पार्टी में मिल गया। .

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समाजवाद

समाजवाद (Socialism) एक आर्थिक-सामाजिक दर्शन है। समाजवादी व्यवस्था में धन-सम्पत्ति का स्वामित्व और वितरण समाज के नियन्त्रण के अधीन रहते हैं। आर्थिक, सामाजिक और वैचारिक प्रत्यय के तौर पर समाजवाद निजी सम्पत्ति पर आधारित अधिकारों का विरोध करता है। उसकी एक बुनियादी प्रतिज्ञा यह भी है कि सम्पदा का उत्पादन और वितरण समाज या राज्य के हाथों में होना चाहिए। राजनीति के आधुनिक अर्थों में समाजवाद को पूँजीवाद या मुक्त बाजार के सिद्धांत के विपरीत देखा जाता है। एक राजनीतिक विचारधारा के रूप में समाजवाद युरोप में अठारहवीं और उन्नीसवीं सदी में उभरे उद्योगीकरण की अन्योन्यक्रिया में विकसित हुआ है। ब्रिटिश राजनीतिक विज्ञानी हैरॉल्ड लॉस्की ने कभी समाजवाद को एक ऐसी टोपी कहा था जिसे कोई भी अपने अनुसार पहन लेता है। समाजवाद की विभिन्न किस्में लॉस्की के इस चित्रण को काफी सीमा तक रूपायित करती है। समाजवाद की एक किस्म विघटित हो चुके सोवियत संघ के सर्वसत्तावादी नियंत्रण में चरितार्थ होती है जिसमें मानवीय जीवन के हर सम्भव पहलू को राज्य के नियंत्रण में लाने का आग्रह किया गया था। उसकी दूसरी किस्म राज्य को अर्थव्यवस्था के नियमन द्वारा कल्याणकारी भूमिका निभाने का मंत्र देती है। भारत में समाजवाद की एक अलग किस्म के सूत्रीकरण की कोशिश की गयी है। राममनोहर लोहिया, जय प्रकाश नारायण और नरेन्द्र देव के राजनीतिक चिंतन और व्यवहार से निकलने वाले प्रत्यय को 'गाँधीवादी समाजवाद' की संज्ञा दी जाती है। समाजवाद अंग्रेजी और फ्रांसीसी शब्द 'सोशलिज्म' का हिंदी रूपांतर है। 19वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में इस शब्द का प्रयोग व्यक्तिवाद के विरोध में और उन विचारों के समर्थन में किया जाता था जिनका लक्ष्य समाज के आर्थिक और नैतिक आधार को बदलना था और जो जीवन में व्यक्तिगत नियंत्रण की जगह सामाजिक नियंत्रण स्थापित करना चाहते थे। समाजवाद शब्द का प्रयोग अनेक और कभी कभी परस्पर विरोधी प्रसंगों में किया जाता है; जैसे समूहवाद अराजकतावाद, आदिकालीन कबायली साम्यवाद, सैन्य साम्यवाद, ईसाई समाजवाद, सहकारितावाद, आदि - यहाँ तक कि नात्सी दल का भी पूरा नाम 'राष्ट्रीय समाजवादी दल' था। समाजवाद की परिभाषा करना कठिन है। यह सिद्धांत तथा आंदोलन, दोनों ही है और यह विभिन्न ऐतिहासिक और स्थानीय परिस्थितियों में विभिन्न रूप धारण करता है। मूलत: यह वह आंदोलन है जो उत्पादन के मुख्य साधनों के समाजीकरण पर आधारित वर्गविहीन समाज स्थापित करने के लिए प्रयत्नशील है और जो मजदूर वर्ग को इसका मुख्य आधार बनाता है, क्योंकि वह इस वर्ग को शोषित वर्ग मानता है जिसका ऐतिहासिक कार्य वर्गव्यवस्था का अंत करना है। .

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आचार्य कृपलानी और कांग्रेस समाजवादी दल के बीच तुलना

आचार्य कृपलानी 15 संबंध है और कांग्रेस समाजवादी दल 15 है। वे आम 2 में है, समानता सूचकांक 6.67% है = 2 / (15 + 15)।

संदर्भ

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