आघात (स्वनविज्ञान) और कान बजना
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आघात (स्वनविज्ञान) और कान बजना के बीच अंतर
आघात (स्वनविज्ञान) vs. कान बजना
बोलते समय किसी शब्द के किसी अक्षर (syllable) को या किसी शब्दसमूह (phrase) के किसी शब्द के उच्चारण को जो विशेष बल दिया जाता है, उसे आघात, बलाघात या स्वराघात (Accent) कहते हैं। शब्दों के उच्चारण में अक्षरों पर जो जोर (धक्का) लगता है, उसे आघात या बल कहते हैं। ध्वनि, कंपन की लहरों से बनती है। यह बल अथवा आघात (झटका) उन ध्वनिलहरों के छोटी-बड़ी होने पर निर्भर होता है। ‘मात्रा’ का उच्चारण काल के परिमाण से संबंधित रहता है और ‘आघात’ का स्वर-कंपन की छुटाई-बड़ाई के परिमाण से। इसी से फेफड़ों में से निःश्वास जितने बल से निकलता है, उसके अनुसार बल में अंतर पड़ता है। इस बल के उच्च-मध्य और नीच होने के अनुसार ही ध्वनि के तीन भेद किए जाते हैं सबल, समबल, निर्बल। जैसे, ‘कालिमा’ में मा तो सबल है, इसी पर धक्का लगता है और ‘का’ पर उससे कम और लि पर सबसे कम बल पड़ता है, अतः समबल और ‘लि’ निर्बल है। इसी प्रकार पत्थर में ‘पत्’, अंतःकरण में ‘अः’, चंदा में ‘चन्’ सबल अक्षर हैं। . बाहर कोई ध्वनि न हो तब भी कान में कुछ सुनाई पड़ना कान बजना या कर्णक्ष्वेण (Tinnitus) कहलाता है। टिनिटस शरीर के बाहर से नहीं, बल्कि सिर में अनुभूत/सुनाई देने वाले शोर को वर्णित करने के लिए प्रयुक्त चिकित्सा शब्द है। वे अक्सर बजने वाली या सिसकारी भरने वाली ध्वनियाँ हैं लेकिन वे गहराई से गुंजायमान, खड़खड़ाने, चिटकने वाली ध्वनियाँ, स्पंदित शोर, लयबद्ध, मध्यवर्ती या स्थाई भी हो सकती हैं। वे एक कान में, बाएँ या दाएँ, या दोनों में हो सकती हैं। उनका वॉल्यूम भी बदलता रहता है। प्रभावित लोगों के लिए, ध्वनियाँ काफ़ी अप्रिय हो सकती हैं और उनकी सुनने की क्षमता को बिगाड़ सकती है। लगभग 40% आबादी को अपने जीवन-काल के एक ही बिंदु पर अपने कानों में अप्रिय ध्वनि का अनुभव हो सकता है और 10 से 20% चिरकालिक टिनिटस से (तीन से ज़्यादा महीनों के लिए) अनुभव कर सकते हैं। ये लक्षण सामान्यतः 40 या अधिक उम्र वाले लोगों में देखे जा सकते हैं। तथापि, सभी उम्र वाले व्यक्तियों को इसका सामना करना पड़ सकता है। .
आघात (स्वनविज्ञान) और कान बजना के बीच समानता
आघात (स्वनविज्ञान) और कान बजना आम में एक बात है (यूनियनपीडिया में): ध्वनि।
ड्रम की झिल्ली में कंपन पैदा होता होता जो जो हवा के सम्पर्क में आकर ध्वनि तरंगें पैदा करती है मानव एवं अन्य जन्तु ध्वनि को कैसे सुनते हैं? -- ('''नीला''': ध्वनि तरंग, '''लाल''': कान का पर्दा, '''पीला''': कान की वह मेकेनिज्म जो ध्वनि को संकेतों में बदल देती है। '''हरा''': श्रवण तंत्रिकाएँ, '''नीललोहित''' (पर्पल): ध्वनि संकेत का आवृति स्पेक्ट्रम, '''नारंगी''': तंत्रिका में गया संकेत) ध्वनि (Sound) एक प्रकार का कम्पन या विक्षोभ है जो किसी ठोस, द्रव या गैस से होकर संचारित होती है। किन्तु मुख्य रूप से उन कम्पनों को ही ध्वनि कहते हैं जो मानव के कान (Ear) से सुनायी पडती हैं। .
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आघात (स्वनविज्ञान) और कान बजना के बीच तुलना
आघात (स्वनविज्ञान) 3 संबंध है और कान बजना 1 है। वे आम 1 में है, समानता सूचकांक 25.00% है = 1 / (3 + 1)।
संदर्भ
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