आकृति-विज्ञान और रोज़ेसी
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आकृति-विज्ञान और रोज़ेसी के बीच अंतर
आकृति-विज्ञान vs. रोज़ेसी
आकृति-विज्ञान (अंग्रेजी: Morphology मॉर्फोलॉजी), जीव विज्ञान की एक शाखा है जिसके अंतर्गत किसी जीव की आकृति, उसकी संरचना और उसके विशिष्ट संरचनात्मक गुणों का अध्ययन किया जाता है। आकृति-विज्ञान के अंतर्गत किसी जीव की बाहरी रचना जैसे कि उसकी आकृति, संरचना, रंग, पैटर्नआदि पहलुओं के अतिरिक्त उसके आंतरिक अंगों जैसे कि अस्थियां, यकृत इत्यादि की आकृति और संरचना को भी शामिल किया जाता है। आकृति-विज्ञान, जीव विज्ञान की एक अन्य शाखा शरीर क्रिया विज्ञान (अंग्रेजी: Physiology फिजियोलॉजी), का ठीक विपरीत होता है, जिसमें विभिन्न अंगों के कार्यों का अध्ययन किया जाता है। . 300px रोज़ेसी (Rosaceae) आर्किक्लामिडिई (Archichlamydeae) प्रभाग के रोज़ेलीज गण का बड़ा कुल है। इस कुल में १०० वंश और २,००० स्पीशीज़ हैं। इस विश्वव्यापी कुल के पौधे द्विबीजपत्री होते हैं। शाक, क्षुप एवं वृक्ष सभी इस कुल के सदस्य हैं। बहुवर्षी उपरिभूस्तरी का उदाहरण स्ट्रॉबेरी, काँटेदार क्षुप का उदाहरण गुलाब तथा वृक्ष का उदाहरण सेब, नाशपाती तथा चेरी हैं। कायिक प्रवर्धन, चेरी में मूल से निकलेप्ररोह से, स्ट्रॉबेरी में उपरिभूस्तरी (runner) द्वारा, जो शीर्ष पर जड़ बना जाती है और रैस्पबेरी में अंत:भूस्तरी (suckers) द्वारा होता है। उपगण प्रूनॉइडी में पत्तियाँ साधारण होती हैं। जीनस पाइरस में पत्तियाँ अनुपर्णी (stipulate) होती हैं और अनुपर्ण कभी छोटे और कभी बड़े होते हैं। वृक्षों की आंतरिक संरचना मूलभूतरूपेण एकसदृश होती है। उपगण रोज़ॉइडी आदि में मज्जारश्मि (medullary rays) चौड़ी तथा पोमॉइडी में सकरी होती है। प्रूनॉइडी में काष्ठ विघटन से श्लेष्मक (mucilage) निर्मित होता है। पुष्प अग्रस्थ, अथवा असीमाक्षी (racemose) या सीमाक्षी (cymose) होता है। पुष्पाक्ष प्राय: गर्ती (hollow) होता है, जिससे विभिन्न श्रेणी की परिजायांगीय (perigynous) अवस्था निर्मित हो जाती है। पुष्पाक्ष प्राय: पुष्प का ही एक अंग होता है। पुष्प प्राय: द्विलिंगी, बहुयुग्मी होते हैं। पाँच हरे बाह्यदल होते हैं। एपिकैलिक्स (epicalyx) भी, जो प्राय: छोटा होता है, उपस्थित रहता है। प्राय: पाँच रंगीन दल होते हैं। नीले दल केवल क्राइसोवेलनाइडी में रहते हैं। एलचीमेला, पोटीरियम आदि में दल अनुपस्थित रहते हैं। पुमंग तथा दल के मध्य में प्राय: परागकोश स्थित रहता है। २, ३, ४ या अधिक पुंकेसर अंतर्मुख होते हैं। जायांग प्राय: पृथक् अंडप (१-¥) तथा बीजांड अधोमुख होता है। प्रत्येक अंडाशय में दो वार्तिक या आधारीय पार्श्व होते हैं। इस कुल के फल सरस होते हैं। पोटेंटिला में एकीन का पुंजफल, रूबस में गुठलीदार पुंजफल, प्रुनस में केवल एक गुठलीदार फल तथा पाइरस में पोम (pome) होता है। .
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