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आकारिकी और लिंग

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

आकारिकी और लिंग के बीच अंतर

आकारिकी vs. लिंग

आकारिकी अथवा आकार विज्ञान (अंग्रेजी में मॉरफ़ॉलाजी) शब्द वनस्पति विज्ञान तथा जंतु विज्ञान के अंतर्गत उन सभी अध्ययनों के लिए प्रयुक्त होता है। जिनका मुख्य विषय जीवपिंड का आकार और रचना है। पादप आकारिकी में पादपों के आकार और रचना तथा उनके अंगों (मूल, स्तंभ, पत्ती, फूल आदि) एवं इन अंगों के परस्पर संबंध और संपूर्ण पादप से उसके अंगों के संबंध का विचार किया जाता है। आकार विज्ञान का अध्ययन जनन तथा परिवर्तन के विभिन्न स्तरों पर जीवपिंड के इतिहास के तथ्यों का केवल निर्धारण मात्र हो सकता है। परंतु आजकल, जैसा सामान्यत: समझा जाता है, आकारिकी का आधार अधिक व्यापक है। इसका उद्देश्य विभिन्न पादपवर्गो के आकार में निहित समानताओं का पता लगाना है। इसलिए यह तुलनात्मक अध्ययन है जो उद्विकासात्मक परिवर्तन और परिवर्धन के दृष्टिकोण से किया जाता है। इस प्रकार आकारिकी पादपों के वर्गीकरण की स्थापना और उनके विकासात्मक अथवा जातिगत इतिहास के पुनर्निर्माण में सहायक है। आकारिकीय अध्ययन की निम्नलिखित पद्धतियाँ हैं: (1) जीवित पादपों के प्रौढ़ आकारों की तुलना, (2) पुरोद्भिदी अर्थात् जीवों के अवशिष्टों (फ़ॉसिल) के अध्ययन के आधार पर प्राचीन, लुप्त, निश्चित आकारों के साथ जीवित पादपों की तुलना, (3) प्रत्येक पादप के परिवर्धन का निरीक्षण। आकार विज्ञान के प्राय: दो उपविभाग किए जाते हैं - बाह्म आकार विज्ञान, जिसका संबंध पादप अंगों के सापेक्ष स्थान तथा बाह्म आकार से है और शरीररचना, जो पादपों की बाह्म और आँतरिक संरचना का अध्ययन है। कौशिकी अथवा कोशाध्ययन, जिसका संबंध आँतरिक रचना से है, आकार विज्ञान के उपविभाग के रूप में विकसित हुआ, किंतु अब यह जीवविज्ञान की ही एक स्वतंत्र शाखा माना जाता है। आकार विज्ञान का अध्ययन कुछ विशिष्ट रूप भी धारण कर सकता है; जैसे, इसका संबंध पादप के प्रारंभिक विकास से, आकार और संरचना के निर्णायक कारणों से अथवा पादप के उन भागों से, जो कुछ विशिष्ट कार्य करनेवाले समझे जाते हैं, हो सकता है। आकार विज्ञान के इन खंडों को क्रमानुसार भ्रूण विज्ञान, आकारजनन (मॉर्फ़ोजेनेसिस) तथा अंगवर्णना (ऑर्गेनोग्रैफ़ी) कहते हैं। पीढ़ियों के एकांतरण की क्रिया पादप आकारिकी की इतनी प्रमुख और महत्वपूर्ण विशेषता है कि बहुत वर्षो तक यह आकार विज्ञान के अध्ययन का प्रधान लक्ष्य बनी रही। शरीररचना का संबंध स्थूल और सूक्ष्म बाह्म और आँतरिक बनावट से है। शरीररचना का एक विशिष्ट विषय है औतिकी (हिस्टॉलोजी) जिसका संबंध जीवपिंड की सूक्ष्म रचना से है। प्राणि आकारिकी-यद्यपि आकार विज्ञान में (जिसका संबंध प्राणी के सामान्य आकार और उसके अंगों की संरचना से है) तथा शरीररचना में (जिसका संबंध स्थूल और सूक्ष्म रचनात्मक विस्तार से है) भेद किया जा सकता है, तो भी वास्ताविक व्यवहार में प्राणिशास्त्री इन दोनों शब्दों का प्रयोग पर्यायवाची रूप में करते हैं। अतएव प्राणिशास्त्री आकार विज्ञान शब्द के व्यावहारिक अर्थ में शरीररचना विषयक समस्त अध्ययन को भी सम्मिलित करते हैं। प्राणियों के आकार के विभिन्न प्रकार और उनके रूपांतर प्राणि आकारिकी के अध्ययन के विषय हैं। आकार मुख्यतया शरीर की सममिति पर निर्भर है। सममिति के प्रकारों के अध्ययन से पता चलता है कि शीर्षप्राधान्य (सेफ़लाइज़ेशन), जो अग्र तंत्रिकाओं तथा संवेदी रचनाओं की सघनता के कारण सिर का उत्तरोत्तर भेदकरण है, शरीर की द्विपार्श्विक सममिति के साथ साथ होता है। ज्यों ज्यों हम रचना की संश्लिष्टता (जटिलता) के क्रम में ऊपर चढ़ते जाते हैं, शीर्षप्राधान्य की क्रिया अधिकधिक स्पष्ट होती जाती है और मस्तिष्क के अत्यधिक परिवर्धन के साथ वानर तथा मुनष्य में पहुँचकर पूर्णता को प्राप्त होती है। सममिति में अंतर परिवर्धन के समय अन्य अक्षों की अपेक्षा एक अक्ष के अनुदिश अधिक वृद्धि होने से होता है। आकार के रूपांतरों में परिस्थिति के अनुकूल चलने की विशेषता होती है। रचना संबंधी समानता के लिए सधर्मता (होमोलॉजी) शब्द का व्यवहार होता है और कार्य संबंधी या दैहिक समानता के लिए कार्यसादृश्य (अनैलोजी) का। सधर्मता शरीररचना संबंधी अंतर्निहित समानता है। जिससे समान विकासात्मक उत्पत्ति ज्ञात होती है, परंतु कार्यसादृश्य (अनैलोजी) में इस तरह की कोई विशेषता नहीं है। प्रयोगात्मक भ्रूणतत्व इस प्रश्न का उत्तर देने का प्रयत्न करता है कि किसी प्राणी के शरीर के अंतिम आकार या रचना का अस्तित्व अंडे में उसी रूप में पहले से ही होता है अथवा वे परिवर्धन के समय पर्यावरण के तत्वों पर निर्भर हैं और इन तत्वों द्वारा ये दोनों परिवर्तित किए जा सकते हैं। श्रेणी:जीव विज्ञान. व्याकरण से सम्बन्धित 'लिंग' के लिये लिंग (व्याकरण) देखें। ---- मानव पुरुष और स्त्री का वाह्य दृष्य जीवविज्ञान में लिंग (Sex, Gender) से तात्पर्य उन पहचानों या लक्षणों से जिनके द्वारा जीवजगत् में नर को मादा से पृथक् पहचाना जाता है। जंतुओं में असंख्य जंतु ऐसे होते हैं जिन्हें केवल बाह्य चिह्नों से ही नर, या मादा नहीं कहा जा सकता। नर तथा मादा का निर्णय दो प्रकार के चिह्नों, प्राथमिक (primary) और गौण (secondary) लैंगिक लक्षणों (sexual characters), द्वारा किया जाता है। वानस्पतिक जगत् में नर तथा मादा का भेद, विकसित प्राणियों की भाँति, पृथक्-पृथक् नहीं पाया जाता। जो की सत्य है। .

आकारिकी और लिंग के बीच समानता

आकारिकी और लिंग आम में एक बात है (यूनियनपीडिया में): जीव विज्ञान

जीव विज्ञान

जीवविज्ञान भांति-भांति के जीवों का अध्ययन करता है। जीवविज्ञान प्राकृतिक विज्ञान की तीन विशाल शाखाओं में से एक है। यह विज्ञान जीव, जीवन और जीवन के प्रक्रियाओं के अध्ययन से सम्बन्धित है। इस विज्ञान में हम जीवों की संरचना, कार्यों, विकास, उद्भव, पहचान, वितरण एवं उनके वर्गीकरण के बारे में पढ़ते हैं। आधुनिक जीव विज्ञान एक बहुत विस्तृत विज्ञान है, जिसकी कई शाखाएँ हैं। 'बायलोजी' (जीवविज्ञान) शब्द का प्रयोग सबसे पहले लैमार्क और ट्रविरेनस नाम के वैज्ञानिको ने १८०२ ई० में किया। जिन वस्तुओं की उत्पत्ति किसी विशेष अकृत्रिम जातीय प्रक्रिया के फलस्वरूप होती है, जीव कहलाती हैं। इनका एक परिमित जीवनचक्र होता है। हम सभी जीव हैं। जीवों में कुछ मौलिक प्रक्रियाऐं होती हैं.

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आकारिकी और लिंग के बीच तुलना

आकारिकी 3 संबंध है और लिंग 28 है। वे आम 1 में है, समानता सूचकांक 3.23% है = 1 / (3 + 28)।

संदर्भ

यह लेख आकारिकी और लिंग के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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