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आइशा और नव वर्ष

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

आइशा और नव वर्ष के बीच अंतर

आइशा vs. नव वर्ष

आइशा बिन्त अबू बक्र (613/614 - 678 सीई; अरबी: عائشة بنت أبي بكر या عائشة, लिप्यंतरण: ' Ā'ishah, जिन्हें ऐशा, आऐस्याह, आयशा, ए के रूप में भी लिखा गया है 'ईशा, आऐशह, आऐशा, या आयेशा / ɑː i ʃ ɑː /) हज़रत मुहम्मद की पत्नियों में से एक थी। इस्लामी लेखन में, कुरान में मुहम्मद की पत्नियों के विवरण के अनुसार, उसका नाम अक्सर "उम् उल मोमिनीन" "विश्वासियों की मां" शीर्षक (अरबी: أم المؤمنين umm al- mu'min īn) से उपसर्ग किया जाता है। इस्लाम के पहले ख़लीफ़ा अबू बक्र की बेटी थीं। मुहम्मद के जीवन और उनकी मृत्यु के बाद दोनों के प्रारंभिक इस्लामी इतिहास में ऐशा की अहम भूमिका थी। सुन्नी परंपरा में, ऐशा को विद्वान और जिज्ञासु माना जाता है। उन्होंने मुहम्मद के संदेश के फैलाव में योगदान दिया और उनकी मृत्यु के 44 साल बाद मुस्लिम समुदाय की सेवा की। वह मुहम्मद के निजी जीवन से संबंधित मामलों पर, बल्कि विरासत, तीर्थयात्रा और eschatology जैसे विषयों पर भी 2210 हदीस, के वर्णन के लिए भी जाना जाता है। कविता और चिकित्सा समेत विभिन्न विषयों में उनकी बुद्धि और ज्ञान, अल-जुहरी और उनके छात्र उर्व इब्न अल- जुबयर जैसे शुरुआती चमकदार लोगों द्वारा अत्यधिक प्रशंसा की गई थी। उनके पिता, अबू बकर, मुहम्मद के सफल होने के लिए पहला खलीफा बन गए, और उमर द्वारा दो साल बाद उनका उत्तराधिकारी बन गया। तीसरे खलीफ उथमान के समय, आइशा के खिलाफ विपक्ष में एक प्रमुख भूमिका थी जो उनके खिलाफ बढ़ी, हालांकि वह या तो उनकी हत्या के लिए जिम्मेदार लोगों के साथ सहमत नहीं थीं और न ही अली की पार्टी के साथ। अली के शासनकाल के दौरान, वह उथमान की मृत्यु का बदला लेना चाहती थी, जिसे उसने ऊंट की लड़ाई में करने का प्रयास किया था। उन्होंने अपने ऊंट के पीछे भाषण और प्रमुख सैनिकों को देकर युद्ध में भाग लिया। वह लड़ाई हार गई, लेकिन उसकी भागीदारी और दृढ़ संकल्प ने एक स्थायी प्रभाव छोड़ा। बाद में, वह बीस साल से अधिक समय तक मदीना में चुपचाप रहती थी, राजनीति में कोई हिस्सा नहीं लेती थी, अली से मिलकर बन गई और खलीफ मुआविया का विरोध नहीं किया। पारंपरिक हदीस के अधिकांश स्रोतों में कहा गया है कि आइशा की शादी छः या सात वर्ष की आयु में मुहम्मद से हुई थी, लेकिन वह नौ वर्ष की आयु तक अपने माता-पिता के घर में रहती थीं, या दस इब्न हिशम के अनुसार, जब विवाह समाप्त हो गया था मुथान के साथ, 53, मदीना में । आधुनिक समय में कई विद्वानों द्वारा इस समयरेखा को चुनौती दी गई है। शिया का आम तौर पर आइशा का नकारात्मक विचार है । उन्होंने ऊंट की लड़ाई में अपने खलीफा के दौरान अली से घृणा करने और उसे अपमानित करने का आरोप लगाया, जब उसने बसरा में अली की सेना से पुरुषों से लड़ा। . भारतीय नववर्ष की विशेषता   - ग्रंथो में लिखा है कि जिस दिन सृष्टि का चक्र प्रथम बार विधाता ने प्रवर्तित किया, उस दिन चैत्र शुदी १ रविवार था। हमारे लिए आने वाला संवत्सर २०७५ बहुत ही भाग्यशाली होगा, क़्योंकि इस वर्ष भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को रविवार है,   शुदी एवम  ‘शुक्ल पक्ष एक ही  है। चैत्र के महीने के शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि (प्रतिपद या प्रतिपदा) को सृष्टि का आरंभ हुआ था।हमारा नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को शरू होता है| इस दिन ग्रह और नक्षत्र मे परिवर्तन होता है | हिन्दी महीने की शुरूआत इसी दिन से होती है | पेड़-पोधों मे फूल,मंजर,कली इसी समय आना शुरू होते है,  वातावरण मे एक नया उल्लास होता है जो मन को आह्लादित कर देता है | जीवो में धर्म के प्रति आस्था बढ़ जाती है | इसी दिन ब्रह्मा जी  ने सृष्टि का निर्माण किया था | भगवान विष्णु जी का प्रथम अवतार भी इसी दिन हुआ था | नवरात्र की शुरुअात इसी दिन से होती है | जिसमे हमलोग उपवास एवं पवित्र रह कर नव वर्ष की शुरूआत करते है | परम पुरूष अपनी प्रकृति से मिलने जब आता है तो सदा चैत्र में ही आता है। इसीलिए सारी सृष्टि सबसे ज्यादा चैत्र में ही महक रही होती है। वैष्णव दर्शन में चैत्र मास भगवान नारायण का ही रूप है। चैत्र का आध्यात्मिक स्वरूप इतना उन्नत है कि इसने वैकुंठ में बसने वाले ईश्वर को भी धरती पर उतार दिया। न शीत न ग्रीष्म। पूरा पावन काल। ऎसे समय में सूर्य की चमकती किरणों की साक्षी में चरित्र और धर्म धरती पर स्वयं श्रीराम रूप धारण कर उतर आए,  श्रीराम का अवतार चैत्र शुक्ल नवमी को होता है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि  के ठीक नवे दिन भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था | आर्यसमाज की स्थापना इसी दिन हुई थी | यह दिन कल्प, सृष्टि, युगादि का प्रारंभिक दिन है | संसारव्यापी निर्मलता और कोमलता के बीच प्रकट होता है हमारा अपना नया साल *  *विक्रम संवत्सर विक्रम संवत का संबंध हमारे कालचक्र से ही नहीं, बल्कि हमारे सुदीर्घ साहित्य और जीवन जीने की विविधता से भी है। कहीं धूल-धक्कड़ नहीं, कुत्सित कीच नहीं, बाहर-भीतर जमीन-आसमान सर्वत्र स्नानोपरांत मन जैसी शुद्धता। पता नहीं किस महामना ऋषि ने चैत्र के इस दिव्य भाव को समझा होगा और किसान को सबसे ज्यादा सुहाती इस चैत मेे ही काल गणना की शुरूआत मानी होगी। चैत्र मास का वैदिक नाम है-मधु मास। मधु मास अर्थात आनंद बांटती वसंत का मास। यह वसंत आ तो जाता है फाल्गुन में ही, पर पूरी तरह से व्यक्त होता है चैत्र में। सारी वनस्पति और सृष्टि प्रस्फुटित होती है,  पके मीठे अन्न के दानों में, आम की मन को लुभाती खुशबू में, गणगौर पूजती कन्याओं और सुहागिन नारियों के हाथ की हरी-हरी दूब में तथा वसंतदूत कोयल की गूंजती स्वर लहरी में। चारों ओर पकी फसल का दर्शन,  आत्मबल और उत्साह को जन्म देता है। खेतों में हलचल, फसलों की कटाई, हंसिए का मंगलमय खर-खर करता स्वर और खेतों में डांट-डपट-मजाक करती आवाजें। जरा दृष्टि फैलाइए, भारत के आभा मंडल के चारों ओर। चैत्र क्या आया मानो खेतों में हंसी-खुशी की रौनक छा गई। नई फसल घर मे आने का समय भी यही है | इस समय प्रकृति मे उष्णता बढ्ने लगती है, जिससे पेड़ -पौधे, जीव-जन्तु मे नव जीवन आ जाता है | लोग इतने मदमस्त हो जाते है कि आनंद में मंगलमय  गीत गुनगुनाने लगते है | गौर और गणेश कि पूजा भी इसी दिन से तीन दिन तक राजस्थान मे कि जाती है | चैत शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के दिन सूर्योदय के समय जो वार होता है वह ही वर्ष में संवत्सर का राजा कहा जाता है,  मेषार्क प्रवेश के दिन जो वार होता है वही संवत्सर का मंत्री होता है इस दिन सूर्य मेष राशि मे होता है | नये साल के अवसर पर फ़्लोरिडा में आतिशबाज़ी का एक दृश्य। नव वर्ष एक उत्सव की तरह पूरे विश्व में अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग तिथियों तथा विधियों से मनाया जाता है। विभिन्न सम्प्रदायों के नव वर्ष समारोह भिन्न-भिन्न होते हैं और इसके महत्त्व की भी विभिन्न संस्कृतियों में परस्पर भिन्नता है। .

आइशा और नव वर्ष के बीच समानता

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आइशा और नव वर्ष के बीच तुलना

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संदर्भ

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