आंद्रेयेस विसेलियस और शवपरीक्षा
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आंद्रेयेस विसेलियस और शवपरीक्षा के बीच अंतर
आंद्रेयेस विसेलियस vs. शवपरीक्षा
आंद्रेयेस विसेलियस; यह चित्र उनके 'फैब्रिका' से लिया गया है। आंद्रेयेस विसेलियस (Andreas Vesalius, सन् १५१४-१५६४) बेल्जियम के, शारीर वैज्ञानिक, चिकित्सक, तथा शरीररचना विज्ञान (एनाटॉमी) पर विश्व की सबसे प्रभावकारी पुस्तक 'डी हुमेनी कॉर्पोरिस फैब्रिका' (De humani corporis fabrica) के रचयिता थे। वेसेलियस को आधुनिक मानव शरीर रचना विज्ञान का जनक माना जाता है। वे पैदुआ विश्वविद्यालय (University of Padua) में प्राध्यापक रहे तथा बाद में चार्ल्स पंचम के राजचिकित्सक भी रहे। विसेलियस को सर्वोच्च शारीर वैज्ञानिक कहा जाता है। मानव शरीर को रचना पर इनके ग्रंथ की गणना इस विषय के सर्वोत्कृष्ट ग्रंथों में होती है। इसमें अस्थियों और तंत्रिकातंत्र के वर्णन तो उत्कृष्ट हैं ही, पर पेशियों के वर्णन के लिए यह विशेषकर प्रसिद्ध है। विसेलियस ने अध्यापन करते समय स्वयं विच्छेदन (dissection) कर, शारीरविज्ञान की शिक्षा प्रणाली में क्रांति ला दी। . शवपरीक्षण के बाद लिया गया फोटो शवपरीक्षा (Autopsy या post-mortem examination) एक विशिष्ट प्रकार की शल्य प्रक्रिया है जिसमें शव की आद्योपान्त (thorough) परीक्षण किया जाता है ताकि पता चल सके कि मृत्यु किन कारणों से और किस तरीके से हुई है। शवपरीक्षा एक विशिष्ट चिकित्सक द्वारा की जाती है जिसे 'विकृतिविज्ञानी' (पैथोलोजिस्ट) कहते हैं। मृत्यु के पश्चात् आकस्मिक दुर्घटनाग्रस्त, अथवा रोगग्रस्त, मृतक के विषय में वैज्ञानिक अनुसंधान के हेतु शरीर की परीक्षा, अथवा शवपरीक्षा करना अतिआवश्यक है। रोग उपचारक शवपरीक्षा के द्वारा ही रोग की प्रकृति, विस्तार, विशालता एवं जटिलता के विषय में भली प्रकार तथ्य जान सकता है। शवपरीक्षा भली प्रकार करना उचित है एवं सहयोग के हेतु रोगग्रसित अंग अथवा ऊतक, की सूक्ष्मदर्शी द्वारा परीक्षा एवं कीटाणुशास्त्रीय परीक्षा अपेक्षित है। उस प्रत्येक मृतक की, जिसकी मृत्यु का कारण आकस्मिक दुर्घटना हो और उचित कारण अज्ञात हो, मृत्यु का कारण एवं उसकी प्रकृति ज्ञात करने के लिए शवपरीक्षा करना नितांत आवश्यक रूप से अपेक्षित है। शवपरीक्षा करने के पूर्व मृतक के निकट संबंधी से सहमति प्राप्त करना आवश्यक है और शवपरीक्षा मृत्यु के 6 से 10 घंटे के भीतर ही कर लेनी चाहिए, अन्यथा शव में मृत्युपरांत अवश्यंभावी प्राकृतिक परिवर्तन हो जाने की आशंका रहेगी, जैसे शव ऐंठन (rigor mortis), शवमलिनता (postmortem) एवं विघटन (decomposition)। यह परिवर्तन अधिकतर रोगावस्था के परिवर्तनों के समान ही होते हैं। .
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संदर्भ
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