अहल अल-हदीस और सुन्नी इस्लाम के बीच समानता
अहल अल-हदीस और सुन्नी इस्लाम आम में एक बात है (यूनियनपीडिया में): अहले सुन्नत वल जमात।
अहले सुन्नत वल जमात
अहले सुन्नत या सुन्नी उन्हें कहा जाता हैं जो क़ुरान और पैगम्बर मुहम्मद साहब के तरीके (सुन्नत)को ज़िन्दगी गुजरने का तरीका मानते हैं ये नाम शिया उर्फ राफ़ज़ीयो से अपने को अलग पएहचन बताने के लिए भी किया जाता हैं दक्षिण एशिया में आधिकारिक तौर पर अहले सुन्नत में बड़े तौर पर तीन गिरोह आते हैं बरेलवी,देवबंदी,अहले हदीस या सलफ़ी। बरेलवी मुहीम दक्षिण एशिया में सूफी आंदोलन के अंतर्गत एक उप-आंदोलन को कहा जाता है यह अहले सुन्नत वल जमात से निकली एक मुहिम हैं जिसे उन्नीसवीं एवं बीसवीं सदी के भारत में रोहेलखंड स्थित बरेली से सुन्नी विद्वान अहमद रजा खान कादरी ने प्रारंभ किया था,। बरेलवी सुन्नी हनफी बरेलवी मुसलमानों का एक बड़ा हिस्सा है जो अब बडी संख्या में भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान दक्षिण अफ्रीका एवं ब्रिटेन में संघनित हैं। आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा कादरी ने अपनी प्रसिद्ध फतवा रजविया के माध्यम से भारत में पारंपरिक और रूढ़िवादी इस्लाम का बचाव करते हुए अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। देवबंदी मुहीम को वास्तव में एक सूफी मुहिम जिसे इस्माइल देहलवी देवबंदियों के बड़े आलिमो क़ासिम नानोतवी,अशरफ अली थानवी,खलील अम्बेठवी ने सऊदी अरब की वहाबियत को तक़लीद का जामा पहना कर इसे दक्षिण एशियाई मुसलमानों के सामने प्रस्तुत किया। दक्षिण एशिया के ज़्यादातर सुन्नी बरेलवी होते हैं। देओबंदी सुन्नी भी खासी तादाद में है। अहले हदीस वह सुन्नी हैं जो सूफिज्म में विश्वास नहीं करते इन्हें सलफ़ी भी कहा जाता हैं क्यों की ये इस्लाम को उस तरह समझने और मानाने का दावा करते हैं हैं जिस तरह सलफ(पहले ३०० साल के मुस्लमान) ने क़ुरान और सुन्नत को समझा, सलफ़ी सुन्नी उर्फ़ अहले हदीस ज़यादातर सऊदी अरब और क़तर में हैं। ये किसी इमाम की तक़लीद नहीं करते। ऐसा कहा जाता हैं कि पूरे विश्व के मुसलमानों में कट्टरपंथ फ़ैलाने का काम देओबंदी और वहाबी विचारधारा ने किया है हालांकि कश्मीर और चेचन्या में उग्रवाद की शुरुआत सूफी पंथ के मानने वालों ने ही कि थी। 1925 में अरब पर आले सऊद द्वारा तीसरे और निर्णायक क़ब्ज़े के बाद नाम बदलकर सऊदी अरब रख दिया और धार्मिक व ऐतिहासिक महत्व की विरासतों को मूर्तिपूजा(शिर्क) की संज्ञा देकर ढहा दिया गया जिसमे सैय्यदा फातिमा की मज़ार और उस्मान गनी की मज़ार शामिल है। फतेहपुर सीकरी, उत्तर प्रदेश में सूफी संत शेख सलीम चिश्ती के मकबरे बरेलवी एक नाम दिया गया है सुन्नी मुसलमान के गिरोह को जो सूफिज्म में विश्वास रखते हैं और सैकड़ों बरसों से इस्लाम सुनियत के मानने वाले हैं। बरेलवियो को आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खान के लगाव की वजह से लोग बरेलवी बोलते हैं! इन्हें रजॉखानी भी कहा जाता हैं अहले सुन्नत वाल जमात को वहाबी देओबंदी विचारधारा द्वारा बरेलवी बोलने के अनेक कारण हैं जिसमे खुद को सुन्नी बताना भी लक्ष्यहो सकता है ! सुन्नी जमाअत में सबसे पहले अहमद रज़ा ने देओबंदी आलिमों की गुस्ताखाना किताबों पर फतावे लगाये और आम मुसलमानों को इनके गलत अकीदे के बारे में अवगत कराया! हसंमुल हरामेंन लिखकर अपने साफ़ किया की दारुल उलूम देओबंद हकीक़त में गलत विचारधारा को मानने वाला स्कूल है। भारत में इस्लाम के प्रचार व प्रसार में सूफियों (इस्लामी मनीषियों) ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
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संदर्भ
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