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अष्टसाहस्रिका प्रज्ञापारमिता और प्रतीत्यसमुत्पाद

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

अष्टसाहस्रिका प्रज्ञापारमिता और प्रतीत्यसमुत्पाद के बीच अंतर

अष्टसाहस्रिका प्रज्ञापारमिता vs. प्रतीत्यसमुत्पाद

मानवीकृत 'अष्टसाहस्रिका प्रज्ञापारमिता' प्रज्ञापारमिता-बोधिसत्व (जावा, इण्डोनेशिया) अष्टसाहस्रिका प्रज्ञापारमिता आठ हजार श्लोकोंवाला यह महायान बौद्ध ग्रंथ प्रज्ञा की पारमिता (पराकाष्ठा) के माहात्म्य का वर्णन करता है। प्रज्ञापारमिता को मूर्त रूप में अवतरित कर उसके चमत्कार दिखाए गए हैं। इसमें ३२ परिच्छेद हैं जिनमें प्राय: गृद्धकूट पर्वत पर भगवान्‌ बुद्ध अपने सुभूति, सारिपुत्र, पूर्ण मैत्रायणीपुत्र जैसे शिष्यों को उपदेश देते हुए उपस्थित हैं। आगे चलकर इस ग्रंथ के कई छोटै और बड़े संस्करण बने। अष्टसाहस्रिका प्रज्ञापारमिता की रचना सम्भवतः ईसापूर्व पहली शताब्दी में हुई। . प्रतीत्यसमुत्पाद का सिद्धांत कहता है कि कोई भी घटना केवल दूसरी घटनाओं के कारण ही एक जटिल कारण-परिणाम के जाल में विद्यमान होती है। प्राणियों के लिये इसका अर्थ है - कर्म और विपाक (कर्म के परिणाम) के अनुसार अनंत संसार का चक्र। क्योंकि सब कुछ अनित्य और अनात्म (बिना आत्मा के) होता है, कुछ भी सच में विद्यमान नहीं है। हर घटना मूलतः शून्य होती है। परंतु, मानव, जिनके पास ज्ञान की शक्ति है, तृष्णा को, जो दुःख का कारण है, त्यागकर, तृष्णा में नष्ट की हुई शक्ति को ज्ञान और ध्यान में बदलकर, निर्वाण पा सकते है .

अष्टसाहस्रिका प्रज्ञापारमिता और प्रतीत्यसमुत्पाद के बीच समानता

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संदर्भ

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