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अष्टबाहु और काइटिन

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

अष्टबाहु और काइटिन के बीच अंतर

अष्टबाहु vs. काइटिन

अष्टबाहु अष्टबाहु (आक्टोपस) मोलस्का संघ का एक समुद्री प्राणी है। इस रात्रिचर जीव को डेविलफिश भी कहते हैं। इसी संघ में घोंघा, सीप, शंख इत्यादि जीव भी हैं। अष्टबाहुओं की गणना शीर्षपाद वर्ग में की जाती हैं। शीर्षपाद वर्ग के जीवों की अपनी कुछ विशेषताएँ हैं जो अन्य चूर्णप्रावारो (मोलस्कों) में नहीं पाई जातीं। मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं: उनके शरीर की रचना तथा संगठन अन्य जातियों से उच्च कोटि की होती है। वे आकार में बड़े सुडौल, बहुत तेज चलनेवाले, मांसाहारी, बड़े भयानक तथा कूर स्वभाव के होते हैं। बहुतों में प्रकवच (बाहरी कड़ा खोल) नहीं होता। ये पृथ्वी के प्राय: सभी उष्ण समुद्रों में पाए जाते हैं। मसिक्षेपी (कटल फिश), कालक्षेपी (लोलाइगो), सामान्य अष्टबाहु, स्क्विड तथा मृदुनाविक (आर्गोनॉट) अष्टबाहुओं के उदाहरण हैं। पूर्ण वयस्क भीम (जाएँट) स्क्विड की लंबाई ५० फुट, नीचे के जबड़े ४ इंच तक लंबे और आंखों का व्यास १५ इंच तक होता है। अष्टबाहु का कोमल, गोलाकार या अंडाकार शरीर दस सेंटीमीटर से लेकर करीब बीस-पचीस फुट तक लंबा हो सकता है। इसमें कवच नहीं पाया जाता है या अविकसित होता है। इसकी आठ लचीली भुजाएँ होती है जिनके ऊपर भीतर की ओर अवृंत चूषक की दो पंक्तियाँ होती हैं। इन्हीं बाहुओं के सहारे यह आत्मरक्षा करता है या शिकार पकड़ता है। शत्रु के समीप आने पर यह काले द्रव का धुआँ अपनी मसीग्रन्थि से निकालता है जिससे इसकी रक्षा होती है। इसके सिर पर दो स्पष्ट नेत्र होते है और सिर के पश्च-अधरतल पर साइफन होता है। चीन और इटली में इसका भोज्य पदार्थ के रूप में प्रयोग होता है। सभी अष्टबाहु जहरीले होते हैं परन्तु सिर्फ नीले छ्ल्ले वाले अक्टोपस का विष ही मनुष्य के लिए घातक होता है। यहां तक कि इसे दुनिया के सबसे विषधर जीवों में से एक माना जाता है। अष्टबाहु दुनिया का सबसे बुद्धिमान अकशेरुकी जीव माना जाता है। समुद्री जलचर विशेषज्ञों के एक दल ने अपने शोध के दौरान दो हजार से अधिक अष्टबाहु का अध्ययन किया। इस दल का नेतृत्व करने वाले विशेषज्ञ ओलिवर वेलेंसियक ने बताया कि अष्टबाहु अपने पहले तीन जोड़ी टेंटेकल का इस्तेमाल चीजों को पकड़ने में करता है। इसे इस तरह कह सकते हैं कि अष्टबाहु अपने अगले छह टेंटेकल को हाथ और सबसे पीछे वाले दो टेंटेकल को पैर की तरह इस्तेमाल करता है। अष्टबाहु की पकड़ उसकी देखने की शक्ति से जुड़ी होती है। जब अष्टबाहु की एक आंख कमजोर होने लगती है तो उसकी दूसरी तरफ की बाहें उसका सहारा बनती हैं। . काइटिन अणु की संरचना, एन-एसिटाइलग्लूकोसेमाइन की इकाइयों को दो दिखाते हुए β-1,4 बंध में वृहत-श्रृंखला बनाने के लिए दोहराते हैं। काइटिन (C8H13O5N)n ग्लूकोज से व्युत्पन्न एन -एसिटाइलग्लूकोसेमाइन का वृहत-श्रृंखला बहुलक है, जो समस्त प्रकृति जगत में अनेक स्थानों पर पाया जाता है। यह कवक की कोशिका भित्ति, जलीय संधिपादों (उदाहरण के लिए, केकड़ा, झींगा और चिराट) और कीटों के बाह्यकंकालों, घोंघे के घर्षित्रों तथा समुद्रफेनी व ऑक्टोपस सहित शीर्षपादों की चोंचों का मुख्य घटक है। काइटिन की बहुशर्कराइड सेलुलोस और प्रोटीन किरेटिन से तुलना की जा सकती है। हालांकि किरेटिन एक प्रोटीन है, काइटिन की भांति कार्बोहाइड्रेट नहीं है, किरेटिन और काइटिन के संरचनात्मक प्रकार्य समान होते हैं। काइटिन अनेक चिकित्सा और औद्योगिक प्रयोजनों के लिए उपयोगी सिद्ध हुआ है। .

अष्टबाहु और काइटिन के बीच समानता

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अष्टबाहु और काइटिन के बीच तुलना

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संदर्भ

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