हम Google Play स्टोर पर Unionpedia ऐप को पुनर्स्थापित करने के लिए काम कर रहे हैं
🌟हमने बेहतर नेविगेशन के लिए अपने डिज़ाइन को सरल बनाया!
Instagram Facebook X LinkedIn

अवगम और ज्ञानमीमांसा

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

अवगम और ज्ञानमीमांसा के बीच अंतर

अवगम vs. ज्ञानमीमांसा

नॅकर क्यूब और रुबिन गुलदस्ते ऐसे दो चित्र हैं जिनको दो भिन्न बोधों से देखा जा सकता है अपने वातावरण के बारे में इन्द्रियों द्वारा मिली जानकारी को संगठित करके उस से ज्ञान और अपनी स्थिति के बारे में जागरूकता प्राप्त करने की प्रक्रिया को अवगम या प्रत्यक्षण (perception) कहते हैं।Pomerantz, James R. (2003): "Perception: Overview". ज्ञानमीमांसा (Epistemology) दर्शन की एक शाखा है। ज्ञानमीमांसा ने आधुनिक काल में विचारकों का ध्यान आकृष्ट किया। दर्शनशास्त्र का ध्येय सत् के स्वरूप को समझना है। सदियों से विचारक यह खोज करते रहे हैं, परंतु किसी निश्चित निष्कर्ष से अब भी उतने ही दूर प्रतीत होते हैं, जितना पहले थे। आधुनिक काल में देकार्त (1596-1650 ई) का ध्यान आया कि प्रयत्न की असफलता का कारण यह है कि दार्शनिक कुछ अग्रिम कल्पनाओं को लेकर चलते रहे हैं। दर्शनशास्त्र को गणित की निश्चितता तभी प्राप्त हो सकती है, जब यह किसी धारणा को, जो स्वत:सिद्ध नहीं, प्रमाणित किए बिना न मानें। उसने व्यापक संदेह से आरंभ किया। उसकी अपनी चेतना उसे ऐसी वस्तु दिखाई दी, जिसके अस्तित्व में संदेह ही नहीं हो सकता: संदेह तो अपने आप चेतना का एक आकार या स्वरूप है। इस नींव पर उसने, अपने विचार में, परमात्मा और सृष्टि के अस्तित्व को सिद्ध किया। देकार्त की विवेचन-विधि नई थी, परंतु पूर्वजों की तरह उसका अनुराग भी तत्वज्ञान में ही थाु। जॉन लॉक (1632-1704 ई) ने अपने लिये नया मार्ग चुना। सदियों से सत् के विषय में विवाद होता रहा है। पहले तो यह जानना आवश्यक है कि हमारे ज्ञान की पहुँच कहाँ तक है। इसी से ये प्रश्न भी जुड़े थे कि ज्ञान क्या है और कैसे प्राप्त होता है। यूरोप महाद्वीप के दार्शनिकों ने दर्शन को गणित का प्रतिरूप देना चाहा था, लॉक ने अपना ध्यान मनोविज्ञान की ओर फेरा "मानव बुद्धि पर निबंध" की रचना की। यह युगांतकारी पुस्तक सिद्ध हुई, इसे अनुभववाद का मूलाधार समझा जाता है। जार्ज बर्कले (1684-1753) ने लॉक की आलोचना में "मानवज्ञान" के नियम लिखकर अनुभववाद को आगे बढ़ाया और डेविड ह्यूम (1711-1776 ईदृ) ने "मानव प्रकृति" में इसे चरम सीमा तक पहुँचा दिया। ह्यूम के विचारों का विशेष महत्व यह है कि उन्होंने कांट (1724-1804 ईदृ) के "आलोचनवाद" के लिये मार्ग खोल दिया। कांट ने ज्ञानमीमांसा को दर्शनशास्त्र का केंद्रीय प्रश्न बना दिया। किंतु पश्चिम में ज्ञानमीमांसा को उचित पद प्रप्त करने में बड़ी देर लगी। भारत में कभी इसकी उपेक्षा हुई ही नहीं। गौतम के न्यायसूत्रों में पहले सूत्र में ही 16 विचारविषयों का वर्णन हुआ है, जिसके यथार्थ ज्ञान से नि:श्रेयस की प्राप्ति होती है। इनमें प्रथम दो विषय "प्रमाण" और "प्रमेय" हैं। ये दोनों ज्ञानमीमांसा और ज्ञेय तत्व ही हैं। यह उल्लेखनीय है कि इन दोनों में भी प्रथम स्थान "प्रमाण" को दिया गया है। .

अवगम और ज्ञानमीमांसा के बीच समानता

अवगम और ज्ञानमीमांसा आम में 0 बातें हैं (यूनियनपीडिया में)।

सूची के ऊपर निम्न सवालों के जवाब

अवगम और ज्ञानमीमांसा के बीच तुलना

अवगम 12 संबंध है और ज्ञानमीमांसा 8 है। वे आम 0 में है, समानता सूचकांक 0.00% है = 0 / (12 + 8)।

संदर्भ

यह लेख अवगम और ज्ञानमीमांसा के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें: