अर्थव्यवस्था और उपभोक्ता व्यवहार और उपभोक्तावाद
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अर्थव्यवस्था और उपभोक्ता व्यवहार और उपभोक्तावाद के बीच अंतर
अर्थव्यवस्था vs. उपभोक्ता व्यवहार और उपभोक्तावाद
अर्थव्यवस्था (Economy) उत्पादन, वितरण एवम खपत की एक सामाजिक व्यवस्था है। यह किसी देश या क्षेत्र विशेष में अर्थशास्त्र का गतित चित्र है। यह चित्र किसी विशेष अवधि का होता है। उदाहरण के लिए अगर हम कहते हैं ' समसामयिक भारतीय अर्थव्यवस्था ' तो इसका तात्पर्य होता है। वर्तमान समय में भारत की सभी आर्थिक गतिविधियों का वर्णन। अर्थव्यवस्था अर्थशास्त्र की अवधारणाओं और सिद्धांतों का व्यवहारिक कार्य रूप है। . उपभोक्ता व्यवहार व्यक्तियों, समूहों या संगठनों का अध्ययन किया जाता है यह इस तरह की भावनाओं व्यवहार खरीदने को कैसे प्रभावित के रूप में खरीददारों, दोनों को व्यक्तिगत और समूहों में से निर्णय लेने की प्रक्रिया को समझने के लिए प्रयास करता है। यह इस तरह के लोगों की आवश्यकताओं को समझने की कोशिश में जनसांख्यिकी और व्यवहार चर के रूप में व्यक्तिगत उपभोक्ताओं की विशेषताओं का अध्ययन करता है। यह भी सामान्य तौर पर परिवार, दोस्तों, खेल, संदर्भ समूहों और समाज के रूप में समूहों से उपभोक्ता पर प्रभाव का आकलन करने के लिए कोशिश करता है। आज ग्राहक जमाखोरी, कालाबाजारी, मिलावट, बिना मानक की वस्तुओं की बिक्री, अधिक दाम, ग्यारन्टी के बाद सर्विस नहीं देना, हर जगह ठगी, कम नाप-तौल इत्यादि संकटों से घिरा है। ग्राहक संरक्षण के लिए विभिन्न कानून बने हैं, इसके फलस्वरूप ग्राहक आज सरकार पर निर्भर हो गया है। जो लोग गैरकानूनी काम करते हैं, जैसे- जमाखोरी, कालाबाजारी करने वाले, मिलावटखोर इत्यादि को राजनैतिक संरक्षण प्राप्त होता है। ग्राहक चूंकि संगठित नहीं हैं इसलिए हर जगह ठगा जाता है। ग्राहक आन्दोलन की शुरूआत यहीं से होती है। ग्राहक को जागना होगा व स्वयं का संरक्षण करना होगा। विकसित पूँजीवादी देशों में, जैसा कि ऊपर कहा गया है, उपभोक्तावादी संस्कृति उत्पादन प्रक्रिया को बिना पूँजीवादी मूल्यों और ढाँचे को तोड़े चालू रखने और विकसित करने में सहायक होती है। लेकिन तीसरी दुनिया के देशों में इस संस्कृति का असर इसके ठीक विपरीत होता है। भारत जैसे तीसरी दुनिया के के देशों में जहाँ साम्राज्यवादी सम्पर्क से परम्परागत उत्पादन का ढाँचा टूट गया है और लोगों की बुनियादी जरूरतों की पूर्ति के लिए उत्पादन के तेज विकास की जरूरत है, वहाँ उपभोक्तावाद के असर से विकास की सम्भावनाएँ कुंठित हो गयी हैं। पश्चिमी देशों के सम्पर्क से इन देशों में एक नया अभिजात वर्ग पैदा हो गया है जिसने इस उपभोक्तावादी संस्कृति को अपना लिया है। इस वर्ग में भी उन वस्तुओं की भूख जग गयी है जो पश्चिम के विकसित समाज में मध्यम वर्ग और कुशल मजदूरों के एक हिस्से को उपलब्ध होने लगीं हैं। इन वस्तुओं की उपलब्धि में उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा में भी बढ़ोतरी हो जाती है। अत: इस अभिजात वर्ग में और इसकी देखा-देखी इससे नीचे के मध्यम वर्ग और निम्न मध्यम वर्ग में भी स्कूटर, टी.वी.
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