अरारोट और कब्ज
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अरारोट और कब्ज के बीच अंतर
अरारोट vs. कब्ज
अरारोट, (अंग्रेज़ी:ऍरोरूट) जिसका वैज्ञानिक नाम 'मैरेंटा अरुंडिनेशी' (Maranta arundinacea) होता है, एक बहुवर्षी पौधा होता है। यह वर्षा वन का आवासी है। इसके राइज़ोम से प्राप्त होने वाले खाद्य मंड (स्टार्च) को भी अरारोट ही कहा जाता है। आयुर्वेद के अनुसार अरारोट सही पोषणकर्ता, शान्तिदायक, सुपाच्य, स्नेहजनक, सौम्य, विबन्ध (कब्ज) नाशक, दस्तावर होता है। पित्तजन्य रोग, आंखों के रोग, जलन, सिरदर्द, खूनी बवासीर और रक्तपिक्त आदि रोगों मे सेवन किया जाता है। कमजोर रोगियों और बालकों के लिए यह काफी लाभदायक है यह आंत्र और मूत्राशय सम्बन्धी रोगों के बाद की कमजोरी में यह आराम पहुंचाता है। विभिन्न भाषाओं में इसके कई नाम हैं। हिन्दी में अरारोट, बिलायती तीखुर, मराठी में आरारूट, बंगला में ओरारूट, तवक्षीर,गुजराती में तवखार, अरारोट; अंग्रेज़ी में ऍरोरूट, वेस्ट इण्डियन ऍरोरूट कहते हैं। अरारूट अथवा अरारोट (अंग्रेजी में ऐरोरूट) एक प्रकार का स्टार्च या मंड है जो कुछ पौधों की कंदिल (ट्यूबरस) जड़ों से प्राप्त होता है। इनमें मरेंटसी कुल का सामान्य शिशुमूल (मरंटा अरंडिनेसिया) नामक पौधा मुख्य है। यह दीर्घजीवी शाकीय पौधा है जो मुख्यत: उष्ण देशों में पाया जाता है। इसकी जड़ों में स्टार्च के रूप में खाद्य पदार्थ संचित रहता है। १० से १२ महीने तक के, पूर्ण वृद्धिप्राप्त पौधे की जड़ में प्राय: २६ प्रतिशत स्टार्च, ६५ प्रतिशत जल और शेष ९ प्रतिशत में अन्य खनिज लवण, रेशे इत्यादि होते हैं। मरंटा अरंडिनेसिया के अतिरिक्त, मैनीहार युटिलिस्मा, कुरकुमा अंगुस्टीफोलिया, लेसिया पिनेटीफ़िडा और ऐरम मैकुलेटम से भी अरारूट प्राप्त होता है। . कब्ज पाचन तंत्र की उस स्थिति को कहते हैं जिसमें कोई व्यक्ति (या जानवर) का मल बहुत कड़ा हो जाता है तथा मलत्याग में कठिनाई होती है। कब्ज अमाशय की स्वाभाविक परिवर्तन की वह अवस्था है, जिसमें मल निष्कासन की मात्रा कम हो जाती है, मल कड़ा हो जाता है, उसकी आवृति घट जाती है या मल निष्कासन के समय अत्यधिक बल का प्रयोग करना पड़ता है। सामान्य आवृति और अमाशय की गति व्यक्ति विशेष पर निर्भर करती है। (एक सप्ताह में 3 से 12 बार मल निष्कासन की प्रक्रिया सामान्य मानी जाती है। करने के लिए कई नुस्खे व उपाय यहां जोड़ें गए हैं। पेट में शुष्क मल का जमा होना ही कब्ज है। यदि कब्ज का शीघ्र ही उपचार नहीं किया जाये तो शरीर में अनेक विकार उत्पन्न हो जाते हैं। कब्जियत का मतलब ही प्रतिदिन पेट साफ न होने से है। एक स्वस्थ व्यक्ति को दिन में दो बार यानी सुबह और शाम को तो मल त्याग के लिये जाना ही चाहिये। दो बार नहीं तो कम से कम एक बार तो जाना आवश्यक है। नित्य कम से कम सुबह मल त्याग न कर पाना अस्वस्थता की निशानी है। .
अरारोट और कब्ज के बीच समानता
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संदर्भ
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