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अयोध्या प्रसाद खत्री और सरस्वती पत्रिका

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

अयोध्या प्रसाद खत्री और सरस्वती पत्रिका के बीच अंतर

अयोध्या प्रसाद खत्री vs. सरस्वती पत्रिका

अयोध्या प्रसाद खत्री अयोध्या प्रसाद खत्री (१८५७-४ जनवरी १९०५) का नाम हिंदी पद्य में खड़ी बोली हिन्दी के प्रारम्भिक समर्थकों और पुरस्कर्ताओं में प्रमुख है। उन्होंने उस समय हिन्दी कविता में खड़ी बोली के महत्त्व पर जोर दिया जब अधिकतर लोग ब्रजभाषा में कविता लिख रहे थे। उनका जन्म बिहार में हुआ था बाद में वे बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में कलक्‍टरी के पेशकार पद पर नियुक्त हुए। १८७७ में उन्होंने हिन्दी व्याकरण नामक खड़ी बोली की पहली व्याकरण पुस्तक की रचना की जो बिहार बन्धु प्रेस द्वारा प्रकाशित की गई थी। उनके अनुसार खड़ीबोली गद्य की चार शैलियाँ थीं- मौलवी शैली, मुंशी शैली, पण्डित शैली तथा मास्टर शैली। १८८७-८९ में इन्होंने "खड़ीबोली का पद्य" नामक संग्रह दो भागों में प्रस्तुत किया जिसमें विभिन्न शैलियों की रचनाएँ संकलित की गयीं। इसके अतिरिक्त सभाओं आदि में बोलकर भी वे खड़ीबोली के पक्ष का समर्थन करते थे। सरस्वती मार्च १९०५ में प्रकाशित "अयोध्याप्रसाद" खत्री शीर्षक जीवनी के लेखक पुरुषोत्तमप्रसाद ने लिखा था कि खड़ी बोली का प्रचार करने के लिए इन्होंने इतना द्रव्य खर्च किया कि राजा-महाराजा भी कम करते हैं। १८८८ में उन्‍होंने 'खडी बोली का आंदोलन' नामक पुस्तिका प्रकाशित करवाई। भारतेंदु युग से हिन्दी-साहित्य में आधुनिकता की शुरूआत हुई। इसी दौर में बड़े पैमाने पर भाषा और विषय-वस्तु में बदलाव आया। इतिहास के उस कालखंड में, जिसे हम भारतेंदु युग के नाम से जानते हैं, खड़ीबोली हिन्दी गद्य की भाषा बन गई लेकिन पद्य की भाषा के रूप में ब्रजभाषा का बोलबाला कायम रहा। अयोध्या प्रसाद खत्री ने गद्य और पद्य की भाषा के अलगाव को गलत मानते हुए इसकी एकरूपता पर जोर दिया। पहली बार इन्होंने साहित्य जगत का ध्यान इस मुद्दे की तरफ खींचा, साथ ही इसे आंदोलन का रूप दिया। हिंदी पुनर्जागरण काल में स्रष्टा के रूप में जहाँ एक ओर भारतेंदु हरिश्चंद्र जैसा प्रतिभा-पुरुष खड़ा था तो दूसरी ओर द्रष्टा के रूप में अयोध्याप्रसाद खत्री जैसा अद्वितीय युगांतरकारी व्यक्तित्व था। इसी क्रम में खत्री जी ने 'खड़ी-बोली का पद्य` दो खंडों में छपवाया। इस किताब के जरिए एक साहित्यिक आंदोलन की शुरूआत हुई। हिन्दी कविता की भाषा क्या हो, ब्रजभाषा अथवा खड़ीबोली हिन्दी? जिसका ग्रियर्सन के साथ भारतेंदु मंडल के अनेक लेखकों ने प्रतिवाद किया तो फ्रेडरिक पिन्काट ने समर्थन। इस दृष्टि से यह भाषा, धर्म, जाति, राज्य आदि क्षेत्रीयताओं के सामूहिक उद्घोष का नवजागरण था। जुलाई २००७ में बिहार के शहर मुजफ्फरपुर में उनकी समृति में 'अयोध्या प्रसाद खत्री जयंती समारोह समिति' की स्थापना की गई। इसके द्वारा प्रति वर्ष हिंदी साहित्य में विशेष योगदन करने वाले किसी विशिष्ट व्यक्ति को अयोध्या प्रसाद खत्री स्मृति सम्मान से सम्मानित किया जाता है। पुरस्कार में अयोध्या प्रसाद खत्री की डेढ़ फुट ऊँची प्रतिमा, शाल और नकद राशि प्रदान की जाती है। ५-६ जुलाई २००७ को पटना में खड़ी बोली के प्रथम आंदोलनकर्ता अयोध्या प्रसाद खत्री की १५०वीं जयंती आयोजित की गई। संस्था के अध्यक्ष श्री वीरेन नंदा द्वारा श्री अयोध्या प्रसाद खत्री के जीवन तथा कार्यों पर केन्द्रित 'खड़ी बोली का चाणक्य' शीर्षक फिल्म का निर्माण किया गया है। . सरस्वती हिन्दी साहित्य की प्रसिद्ध रूपगुणसम्पन्न प्रतिनिधि पत्रिका थी। इस पत्रिका का प्रकाशन इलाहाबाद से सन १९०० ई० के जनवरी मास में प्रारम्भ हुआ था। ३२ पृष्ठ की क्राउन आकार की इस पत्रिका का मूल्य ४ आना मात्र था। १९०३ ई० में महावीर प्रसाद द्विवेदी इसके संपादक हुए और १९२० ई० तक रहे। इसका प्रकाशन पहले झाँसी और फिर कानपुर से होने लगा था। महवीर प्रसाद द्विवेदी के बाद पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, देवी दत्त शुक्ल, श्रीनाथ सिंह, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, देवीलाल चतुर्वेदी और श्रीनारायण चतुर्वेदी सम्पादक हुए। १९०५ ई० में काशी नागरी प्रचारिणी सभा का नाम मुखपृष्ठ से हट गया। 1903 में महावीर प्रसाद द्विवेदी ने इसका कार्यभार संभाला। एक ओर भाषा के स्तर पर और दूसरी ओर प्रेरक बनकर मार्गदर्शन का कार्य संभालकर द्विवेदी जी ने साहित्यिक और राष्ट्रीय चेतना को स्वर प्रदान किया। द्विवेदी जी ने भाषा की समृद्धि करके नवीन साहित्यकारों को राह दिखाई। उनका वक्तव्य है: महावीरप्रसाद द्विवेदी ने ‘सरस्वती’ पत्रिका के माध्यम से ज्ञानवर्धन करने के साथ-साथ नए रचनाकारों को भाषा का महत्त्व समझाया व गद्य और पद्य के लिए राह निर्मित की। महावीर प्रसाद द्विवेदी की यह पत्रिका मूलतः साहित्यिक थी और हरिऔध, मैथिलीशरण गुप्त से लेकर कहीं-न-कहीं निराला के निर्माण में इसी पत्रिका का योगदान था परंतु साहित्य के निर्माण के साथ राष्ट्रीयता का प्रसार करना भी इनका उद्देश्य था। भाषा का निर्माण करना साथ ही गद्य-पद्य के लिए खड़ी बोली को ही प्रोत्साहन देना इनका सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य था। मई १९७६ के बाद इसका प्रकाशन बन्द हो गया।लगभग अस्सी वर्षों तक यह पत्रिका निकली I अंतिम बीस वर्षों तक इसका सम्पादन पंडित श्रीनारायण चतुर्वेदी ने किया I .

अयोध्या प्रसाद खत्री और सरस्वती पत्रिका के बीच समानता

अयोध्या प्रसाद खत्री और सरस्वती पत्रिका आम में एक बात है (यूनियनपीडिया में): १९०५

१९०५

1905 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

अयोध्या प्रसाद खत्री और १९०५ · सरस्वती पत्रिका और १९०५ · और देखें »

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अयोध्या प्रसाद खत्री और सरस्वती पत्रिका के बीच तुलना

अयोध्या प्रसाद खत्री 24 संबंध है और सरस्वती पत्रिका 24 है। वे आम 1 में है, समानता सूचकांक 2.08% है = 1 / (24 + 24)।

संदर्भ

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