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अमेरिकी राज्य और किशोरावस्था

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

अमेरिकी राज्य और किशोरावस्था के बीच अंतर

अमेरिकी राज्य vs. किशोरावस्था

अमेरिकी राज्य संयुक्त राज्य अमेरिका के घटक एक राजनीतिक इकाई है। कुल मिलाकर 50 राज्य हैं जो एक-दूसरे के साथ मिलकर बंधे हुए हैं। प्रत्येक राज्य एक परिभाषित भौगोलिक क्षेत्र के ऊपर प्रशासनिक अधिकार क्षेत्र रखता है और संयुक्त राज्य संघीय सरकार के साथ अपनी संप्रभुता को साझा करता है। प्रत्येक राज्य और संघीय सरकार के बीच साझा संप्रभुता के कारण अमेरिका के लोग संघीय सरकार और वे राज्य जिसमें वे रहते हैं, दोनों के नागरिक हैं। राज्य नागरिकता और निवास में लचीलापन हैं और राज्यों के बीच आवागमन के लिए कोई भी सरकारी मंजूरी आवश्यक नहीं है। चार राज्य अपने पूर्ण अधिकारिक नामों में राज्य के बजाय राष्ट्रमंडल शब्द का उपयोग करते हैं। राज्यों को काउंटियों या काउंटी-समकक्ष में विभाजित किया गया है। जिसे कुछ स्थानीय सरकारी अधिकार सौंपें जाते है। काउंटी या काउंटी-समतुल्य संरचना हर राज्य में व्यापक रूप से बदलती हैं। राज्य सरकारों को अपने व्यक्तिगत संविधानों के माध्यम से लोगों (प्रत्येक संबंधित राज्य) द्वारा सत्ता आवंटित की जाती हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान के तहत राज्यों के पास कई शक्तियां और अधिकार हैं; विशेषकर संविधान संशोधन को अनुमोदन देना। ऐतिहासिक रूप से, स्थानीय कानून प्रवर्तन, सार्वजनिक शिक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य, अंतर्निहित वाणिज्यों का विनियमन और स्थानीय परिवहन एव अवसंरचना के कार्यों को मुख्य रूप से राज्य की बुनियादी जिम्मेदारियों में से एक माना जाता है। समय के साथ सामान्य प्रवृत्ति केन्द्रीकरण और निगमन की ओर रही है और अब संघीय सरकार पहले की तुलना में बहुत बड़ी भूमिका राज्य के संचालन में निभा रही है। राज्यों के अधिकार पर एक सतत बहस चल रही है जो संघीय सरकार और व्यक्तियों के अधिकार के संबंध में राज्यों की शक्तियों और संप्रभुता की सीमा और प्रकृति से संबंधित है। संघीय कांग्रेस में राज्यों और उनके निवासियों का प्रतिनिधित्व किया जाता है। अमेरिकी कांग्रेस में द्विसदनीयता प्रणाली के तहत दो सदन होते हैं: सीनेट और हाउस ऑफ रेप्रेसेंटेटिव। प्रत्येक राज्य का सीनेट में दो सीनेटरों द्वारा प्रतिनिधित्व किया जाता है और हाउस ऑफ रेप्रेसेंटेटिव में कम से कम एक प्रतिनिधि द्वारा। प्रत्येक राज्य निर्वाचक मण्डल में वोट करने के लिए कई मतदाताओं का चयन करने का भी हकदार है, जो कि संयुक्त राज्य के राष्ट्रपति का चुनाव करता है। संघ में नए राज्यों को स्वीकार करने का अधिकार संविधान ने कांग्रेस को प्रदान किया है। 1776 में संयुक्त राज्य की स्थापना के बाद से राज्यों की संख्या मूल 13 से बढ़कर 50 हो गई है। अलास्का और हवाई जिन्हें 1959 में स्वीकार किया गया था, सबसे नए राज्य हैं। संविधान इस बात पर खामोश है कि क्या राज्यों के पास संघ से निकलने (अलग होना) की शक्ति है। गृह युद्ध के तुरंत बाद, अमेरिका के उच्चतम न्यायालय ने यह माना कि कोई राज्य एकतरफा निर्णय लेकर ऐसा नहीं कर सकता। . किशोरावस्था मनुष्य के जीवन का बसंतकाल माना गया है। यह काल बारह से उन्नीस वर्ष तक रहता है, परंतु किसी किसी व्यक्ति में यह बाईस वर्ष तक चला जाता है। यह काल भी सभी प्रकार की मानसिक शक्तियों के विकास का समय है। भावों के विकास के साथ साथ बालक की कल्पना का विकास होता है। उसमें सभी प्रकार के सौंदर्य की रुचि उत्पन्न होती है और बालक इसी समय नए नए और ऊँचे ऊँचे आदर्शों को अपनाता है। बालक भविष्य में जो कुछ होता है, उसकी पूरी रूपरेखा उसकी किशोरावस्था में बन जाती है। जिस बालक ने धन कमाने का स्वप्न देखा, वह अपने जीवन में धन कमाने में लगता है। इसी प्रकार जिस बालक के मन में कविता और कला के प्रति लगन हो जाती है, वह इन्हीं में महानता प्राप्त करने की चेष्टा करता और इनमें सफलता प्राप्त करना ही वह जीवन की सफलता मानता है। जो बालक किशोरावस्था में समाज सुधारक और नेतागिरी के स्वप्न देखते हैं, वे आगे चलकर इन बातों में आगे बढ़ते है। पश्चिम में किशोर अवस्था का विशेष अध्ययन कई मनोवैज्ञानिकों ने किया है। किशोर अवस्था काम भावना के विकास की अवस्था है। कामवासना के कारण ही बालक अपने में नवशक्ति का अनुभव करता है। वह सौंदर्य का उपासक तथा महानता का पुजारी बनता है। उसी से उसे बहादुरी के काम करने की प्रेरणा मिलती है। किशोर अवस्था शारीरिक परिपक्वता की अवस्था है। इस अवस्था में बच्चे की हड्डियों में दृढ़ता आती है; भूख काफी लगती है। कामुकता की अनुभूति बालक को 13 वर्ष से ही होने लगती है। इसका कारण उसके शरीर में स्थित ग्रंथियों का स्राव होता है। अतएव बहुत से किशोर बालक अनेक प्रकार की कामुक क्रियाएँ अनायास ही करने लगते हैं। जब पहले पहल बड़े लोगों को इसकी जानकारी होती है तो वे चौंक से जाते हैं। आधुनिक मनोविश्लेषण विज्ञान ने बालक की किशोर अवस्था की कामचेष्टा को स्वाभाविक बताकर, अभिभावकों के अकारण भय का निराकरण किया है। ये चेष्टाएँ बालक के शारीरिक विकास के सहज परिणाम हैं। किशोरावस्था की स्वार्थपरता कभी कभी प्रौढ़ अवस्था तक बनी रह जाती है। किशोरावस्था का विकास होते समय किशोर को अपने ही समान लिंग के बालक से विशेष प्रेम होता है। यह जब अधिक प्रबल होता है, तो समलिंगी कामक्रियाएँ भी होने लगती हैं। बालक की समलिंगी कामक्रियाएँ सामाजिक भावना के प्रतिकूल होती हैं, इसलिए वह आत्मग्लानि का अनुभव करता है। अत: वह समाज के सामने निर्भीक होकर नहीं आता। समलिंगी प्रेम के दमन के कारण मानसिक ग्रंथि मनुष्य में पैरानोइया नामक पागलपन उत्पन्न करती है। इस पागलपन में मनुष्य एक ओर अपने आपको अत्यंत महान व्यक्ति मानने लगता है और दूसरी ओर अपने ही साथियों को शत्रु रूप में देखने लगता है। ऐसी ग्रंथियाँ हिटलर और उसके साथियों में थीं, जिसके कारण वे दूसरे राष्ट्रों की उन्नति नहीं देख सकते थे। इसी के परिणामस्वरूप द्वितीय विश्वयुद्ध छिड़ा। किशोर बालक उपर्युक्त मन:स्थितियों को पार करके, विषमलिंगी प्रेम अपने में विकसित करता है और फिर प्रौढ़ अवस्था आने पर एक विषमलिंगी व्यक्ति को अपना प्रेमकेंद्र बना लेता है, जिसके साथ वह अपना जीवन व्यतीत करता है। कामवासना के विकास के साथ साथ मनुष्य के भावों का विकास भी होता है। किशोर बालक के भावोद्वेग बहुत तीव्र होते हैं। वह अपने प्रेम अथवा श्रद्धा की वस्तु के लिए सभी कुछ त्याग करने को तैयार हो जाता है। इस काल में किशोर बालकों को कला और कविता में लगाना लाभप्रद होता है। ये काम बालक को समाजोपयोगी बनाते हैं। किशोर बालक सदा असाधारण काम करना चाहता है। वह दूसरों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करना चाहता है। जब तक वह इस कार्य में सफल होता है, अपने जीवन को सार्थक मानता है और जब इसमें वह असफल हो जाता है तो वह अपने जीवन को नीरस एवं अर्थहीन मानने लगता है। किशोर बालक के डींग मारने की प्रवृत्ति भी अत्यधिक होती है। वह सदा नए नए प्रयोग करना चाहता है। इसके लिए दूर दूर तक घूमने में उसकी बड़ी रुचि रहती है। किशोर बालक का बौद्धिक विकास पर्याप्त होता है। उसकी चिंतन शक्ति अच्छी होती है। इसके कारण उसे पर्याप्त बौद्धिक कार्य देना आवश्यक होता है। किशोर बालक में अभिनय करने, भाषणा देने तथा लेख लिखने की सहज रुचि होती है। अतएव कुशल शिक्षक इन साधनों द्वारा किशोर का बौद्धिक विकास करते हैं। किशोर बालक की सामाजिक भावना प्रबल होती है। वह समाज में सम्मानित रहकर ही जीना चाहता है। वह अपने अभिभावकों से भी सम्मान की आशा करता है। उसके साथ 10, 12 वर्ष के बालकों जैसा व्यवहार करने से, उसमें द्वेष की मानसिक ग्रंथियाँ उत्पन्न हो जाती हैं, जिससे उसकी शक्ति दुर्बल हो जाती है और अनेक प्रकार के मानसिक रोग उत्पन्न हो जाते हैं। बालक का जीवन दो नियमों के अनुसार विकसित होता है, एक सहज परिपक्वता का नियम और दूसरा सीखने का नियम। बालक के समुचित विकास के लिए, हमें उसे जल्दी जल्दी कुछ भी न सिखाना चाहिए। सीखने का कार्य अच्छा तभी होता है जब वह सहज रूप से होता है। बालक जब सहज रूप से अपनी सभी मानसिक अवस्थाएँ पार करता है तभी वह स्वस्थ और योग्य नागरिक बनता है। कोई भी व्यक्ति न तो एकाएक बुद्धिमान होता है और न परोपकारी बनता है। उसकी बुद्धि अनुभव की वृद्धि के साथ विकसित होती है और उसमें परोपकार, दयालुता तथा बहादुरी के गुण धीरे धीरे ही आते हैं। उसकी इच्छाओं का विकास क्रमिक होता है। पहले उसकी न्यून कोटि की इच्छाएँ जाग्रत होती हैं और जब इनकी समुचित रूप से तृप्ति होती है तभी उच्च कोटि की इच्छाओं का आविर्भाव होता है। यह मानसिक परिपक्वता के नियम के अनुसार है। ऐसे ही व्यक्ति के चरित्र में स्थायी सद्गुणों का विकास होता है और ऐसा ही व्यक्ति अपने कार्यों से समाज को स्थायी लाभ पहुँचाता है। .

अमेरिकी राज्य और किशोरावस्था के बीच समानता

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अमेरिकी राज्य और किशोरावस्था के बीच तुलना

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संदर्भ

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