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अमूर्तन और दर्शनशास्त्र

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

अमूर्तन और दर्शनशास्त्र के बीच अंतर

अमूर्तन vs. दर्शनशास्त्र

अमूर्तन (abstraction) अवधारणाओं की वह प्रक्रिया होती है इसमें कुछ उदाहरणों के प्रयोग और श्रेणीकरण, प्राथमिक ज्ञान के व्याख्यान और अन्य प्रणालियों से कोई सामान्य नियम या अवधारणा की परिभाषा हो। अमूर्तन के बाद, सभी उदाहरण उस अमूर्त नियम या अवधारणा द्वारा स्थापित करी गई परिभाषा के अधीन आते हैं। मसलन बैलगाड़ी, बस, साइकिल और मोटर-गाड़ी एक-दूसरे से बहुत भिन्न हैं, लेकिन इनसे एक "वाहन" नामक अमूर्त अवधारणा निकाली जा सकती है और फिर यह सभी वाहन के अलग-अलग उदाहरण समझे जा सकते हैं। इसी तरह चींटी, मच्छर और झींगुर तीन बहुत भिन्न प्राणी हैं लेकिन अपने आकार, टांगो की संख्या और अन्य सामानताओं के आधार पर यह सभी "कीट" नामक अमूर्त श्रेणी में डाले जा सकते हैं। एक अन्य मिसाल चोरी, हत्या और अपहरण की है - यह तीन बहुत भिन्न चीज़ें हैं लेकिन न्याय-व्यवस्था में अमूर्तन द्वारा इन्हें "अपराध" नामक अवधारणा में डाला जाता है।Suzanne K. Langer (1953), Feeling and Form: a theory of art developed from Philosophy in a New Key p. 90: "Sculptural form is a powerful abstraction from actual objects and the three-dimensional space which we construe... दर्शनशास्त्र वह ज्ञान है जो परम् सत्य और प्रकृति के सिद्धांतों और उनके कारणों की विवेचना करता है। दर्शन यथार्थ की परख के लिये एक दृष्टिकोण है। दार्शनिक चिन्तन मूलतः जीवन की अर्थवत्ता की खोज का पर्याय है। वस्तुतः दर्शनशास्त्र स्वत्व, अर्थात प्रकृति तथा समाज और मानव चिंतन तथा संज्ञान की प्रक्रिया के सामान्य नियमों का विज्ञान है। दर्शनशास्त्र सामाजिक चेतना के रूपों में से एक है। दर्शन उस विद्या का नाम है जो सत्य एवं ज्ञान की खोज करता है। व्यापक अर्थ में दर्शन, तर्कपूर्ण, विधिपूर्वक एवं क्रमबद्ध विचार की कला है। इसका जन्म अनुभव एवं परिस्थिति के अनुसार होता है। यही कारण है कि संसार के भिन्न-भिन्न व्यक्तियों ने समय-समय पर अपने-अपने अनुभवों एवं परिस्थितियों के अनुसार भिन्न-भिन्न प्रकार के जीवन-दर्शन को अपनाया। भारतीय दर्शन का इतिहास अत्यन्त पुराना है किन्तु फिलॉसफ़ी (Philosophy) के अर्थों में दर्शनशास्त्र पद का प्रयोग सर्वप्रथम पाइथागोरस ने किया था। विशिष्ट अनुशासन और विज्ञान के रूप में दर्शन को प्लेटो ने विकसित किया था। उसकी उत्पत्ति दास-स्वामी समाज में एक ऐसे विज्ञान के रूप में हुई जिसने वस्तुगत जगत तथा स्वयं अपने विषय में मनुष्य के ज्ञान के सकल योग को ऐक्यबद्ध किया था। यह मानव इतिहास के आरंभिक सोपानों में ज्ञान के विकास के निम्न स्तर के कारण सर्वथा स्वाभाविक था। सामाजिक उत्पादन के विकास और वैज्ञानिक ज्ञान के संचय की प्रक्रिया में भिन्न भिन्न विज्ञान दर्शनशास्त्र से पृथक होते गये और दर्शनशास्त्र एक स्वतंत्र विज्ञान के रूप में विकसित होने लगा। जगत के विषय में सामान्य दृष्टिकोण का विस्तार करने तथा सामान्य आधारों व नियमों का करने, यथार्थ के विषय में चिंतन की तर्कबुद्धिपरक, तर्क तथा संज्ञान के सिद्धांत विकसित करने की आवश्यकता से दर्शनशास्त्र का एक विशिष्ट अनुशासन के रूप में जन्म हुआ। पृथक विज्ञान के रूप में दर्शन का आधारभूत प्रश्न स्वत्व के साथ चिंतन के, भूतद्रव्य के साथ चेतना के संबंध की समस्या है। .

अमूर्तन और दर्शनशास्त्र के बीच समानता

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अमूर्तन और दर्शनशास्त्र के बीच तुलना

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संदर्भ

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