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अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सायबर युद्ध

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सायबर युद्ध के बीच अंतर

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता vs. सायबर युद्ध

किसी सूचना या विचार को बोलकर, लिखकर या किसी अन्य रूप में बिना किसी रोकटोक के अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (freedom of expression) कहलाती है। अत: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की हमेशा कुछ न कुछ सीमा अवश्य होती है। भारत के संविधान के अनुच्छेद १९(१) के तहत सभी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी गयी है। अभिव्‍यक्‍ित की स्‍वतंत्रता अपने भावों और विचारों को व्‍यक्‍त करने का एक राजनीतिक अधिकार है। इसके तहत कोई भी व्‍यक्ति न सिर्फ विचारों का प्रचार-प्रसार कर सकता है, बल्कि किसी भी तरह की सूचना का आदान-प्रदान करने का अधिकार रखता है। हालांकि, यह अधिकार सार्वभौमिक नहीं है और इस पर समय-समय पर युक्‍ितयुक्‍त निर्बंधन लगाए जा सकते हैं। राष्‍ट्र-राज्‍य के पास यह अधिकार सुरक्षित होता है कि वह संविधान और कानूनों के तहत अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता को किस हद तक जाकर बाधित करने का अधिकार रखता है। कुछ विशेष परिस्थितियों में, जैसे- वाह्य या आंतरिक आपातकाल या राष्‍ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर अभिव्‍यक्‍ित की स्‍वंतत्रता सीमित हो जाती है। संयुक्‍त राष्‍ट्र की सार्वभौमिक मानवाधिकारों के घोषणा पत्र में मानवाधिकारों को परिभाषित किया गया है। इसके अनुच्‍छेद 19 में कहा गया है कि किसी भी व्‍यक्ति के पास अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता का अधिकार होगा जिसके तहत वह किसी भी तरह के विचारों और सूचनाओं के आदान-प्रदान को स्‍वतंत्र होगा। . सायबर युद्ध कंप्यूटर के माध्यम से लड़ा जाता है। सायबर युद्ध (अंग्रेज़ी:साइबर वॉर) एक ऐसा युद्ध होता है जो इंटरनेट और कंप्यूटरों के माध्यम से लड़ा जाता है यानी इसमें भौतिक हथियारों के स्थान पर इलेक्ट्रॉनिक होते हैं। अनेक देश लगातार साइबर युद्ध अभ्यास (वॉर ड्रिल्स) चलाते हैं जिससे वह किसी भी संभावित साइबर हमले के लिए तैयार रहते हैं। तकनीक पर लगातार बढ़ती जा रही है निर्भरता के कारण कई देशों को साइबर हमलों की चिंता भी होने लगी है। इस कारण अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये भारी खतरा बढ़ता जा रहा है।। याहू जागरण। १९ फ़रवरी २०१०। मुकुल व्यास साइबर वॉर में तकनीकी तरीकों से हमले किए जाते हैं।। हिन्दुस्तान लाइव। २९ अप्रैल २०१० ऐसे कुछ हमलों में एकदम पारंपरिक विधियां प्रयोग की जाती हैं, जैसे कंप्यूटर से जासूसी आदि। इन हमलों में वायरसों की सहायता से वेबसाइटें ठप कर दी जाती हैं और सरकार एवं उद्योग जगत को पंगु करने का प्रयास किया जाता है। इस युद्ध से बचाव हेतु कई देशों जैसे चीन ने वेबसाइट्स को ब्लाक करने, साइबर कैफों में गश्त लगाने, मोबाइल फोन के प्रयोग पर निगरानी रखने और इंटरनेट गतिविधियों पर नजर रखने के लिए हजारों की संख्या में साइबर पुलिस तैनात कर रखी है। साइबर वॉर में तकनीकी उपकरणों और अवसंरचना को भी भारी हानि होती है। एक कुशल साइबर योद्धा किसी भी देश की विद्युत ग्रिडों में हैकिंग के द्वारा घुसकर अत्यधिक गोपनीय सैन्य और अन्य जानकारियां प्राप्त कर सकता है। युद्ध के अन्य पारंपरिक तरीकों की तरह ही साइबर वॉर में किसी भी देश को अनेक रक्षात्मक विधियां और प्रत्युत्तर हमले के तरीके तैयार रखने पड़ते हैं, ताकि वह साइबर हमले की स्थिति में उसका तुरंत जवाब दे सके। हथियारों की दौड़ के कारण अभी तक दुनिया भर के देशों में साइबर सुरक्षा के संबंध में व्यय सीमित ही किया जाता है। सरकारें अक्सर इसके लिए जन-साधारण में से साइबर विशेषज्ञों पर निर्भर रहती हैं। यही लोग साइबर सुरक्षा प्रदान करने का महत्वपूर्ण कार्य करते हैं। वैसे इन योद्धाओं के लिए यह युद्ध पारंपरिक युद्ध से अधिक सुरक्षित है क्योंकि इसमें योद्धा एक सुरक्षित स्थान पर बैठा रहता है। साइबर योद्धा विश्व के अनेक भागो में उपस्थित रहते हैं और वह सरकारों के निर्देशानुसार कंप्यूटर सिस्टमों में किसी भी किस्म की घुसपैठ पर नजर रखते हैं। कई देशों में साइबर सुरक्षा एक विशेषज्ञ कोर्स की तरह कराया जाता है जिसके बाद व्यक्ति साइबर योद्धा के तौर पर कार्य कर सकता है। अमरीका के अनुसार उसे साइबर युद्ध का सबसे बड़ा खतरा है। वहां के नेशनल इंटेलीजेंस के पूर्व निदेशक जॉन माइकल मैक्कोलेन के अनुसा आज यदि साइबर युद्ध छिड़ जाए तो अमेरिका उसमें हार जाएगा और भारत एवं चीन इस क्षेत्र में अमेरिका को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। सायबर युद्ध के लिये सबसे बड़ी तैयारी चीन की मानी जाती है। .

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सायबर युद्ध के बीच समानता

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संदर्भ

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