अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद और हरे कृष्ण (मंत्र)
शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ।
अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद और हरे कृष्ण (मंत्र) के बीच अंतर
अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद vs. हरे कृष्ण (मंत्र)
अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (1 सितम्बर 1896 – 14 नवम्बर 1977) जिन्हें स्वामी श्रील भक्तिवेदांत प्रभुपाद के नाम से भी जाना जाता है, बीसवीं सदी के एक प्रसिद्ध गौडीय वैष्णव गुरु तथा धर्मप्रचारक थे। उन्होंने वेदान्त, कृष्ण-भक्ति और इससे संबंधित क्षेत्रों पर शुद्ध कृष्ण भक्ति के प्रवर्तक श्री ब्रह्म-मध्व-गौड़ीय संप्रदाय के पूर्वाचार्यों की टीकाओं के प्रचार प्रसार और कृष्णभावना को पश्चिमी जगत में पहुँचाने का काम किया। ये भक्तिसिद्धांत ठाकुर सरस्वती के शिष्य थे जिन्होंने इनको अंग्रेज़ी भाषा के माध्यम से वैदिक ज्ञान के प्रसार के लिए प्रेरित और उत्साहित किया। इन्होने इस्कॉन (ISKCON) की स्थापना की और कई वैष्णव धार्मिक ग्रंथों का प्रकाशन और संपादन स्वयं किया। इनका पूर्वाश्रम नाम "अभयचरण डे" था और ये कलकत्ता में जन्मे थे। सन् १९२२ में कलकत्ता में अपने गुरुदेव श्री भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर से मिलने के बाद उन्होंने श्रीमद्भग्वद्गीता पर एक टिप्पणी लिखी, गौड़ीय मठ के कार्य में सहयोग दिया तथा १९४४ में बिना किसी की सहायता के एक अंगरेजी आरंभ की जिसके संपादन, टंकण और परिशोधन (यानि प्रूफ रीडिंग) का काम स्वयं किया। निःशुल्क प्रतियाँ बेचकर भी इसके प्रकाशन क जारी रखा। सन् १९४७ में गौड़ीय वैष्णव समाज ने इन्हें भक्तिवेदान्त की उपाधि से सम्मानित किया, क्योंकि इन्होने सहज भक्ति के द्वारा वेदान्त को सरलता से हृदयंगम करने का एक परंपरागत मार्ग पुनः प्रतिस्थापित किया, जो भुलाया जा चुका था। सन् १९५९ में सन्यास ग्रहण के बाद उन्होंने वृंदावन में श्रीमदभागवतपुराण का अनेक खंडों में अंग्रेजी में अनुवाद किया। आरंभिक तीन खंड प्रकाशित करने के बाद सन् १९६५ में अपने गुरुदेव के अनुष्ठान को संपन्न करने वे ७० वर्ष की आयु में बिना धन या किसी सहायता के अमेरिका जाने के लिए निकले जहाँ सन् १९६६ में उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ (ISKCON) की स्थापना की। सन् १९६८ में प्रयोग के तौर पर वर्जीनिया (अमेरिका) की पहाड़ियों में नव-वृन्दावन की स्थापना की। दो हज़ार एकड़ के इस समृद्ध कृषि क्षेत्र से प्रभावित होकर उनके शिष्यों ने अन्य जगहों पर भी ऐसे समुदायों की स्थापना की। १९७२ में टेक्सस के डैलस में गुरुकुल की स्थापना कर प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा की वैदिक प्रणाली का सूत्रपात किया। सन १९६६ से १९७७ तक उन्होंने विश्वभर का १४ बार भ्रमण किया तथा अनेक विद्वानों से कृष्णभक्ति के विषय में वार्तालाप करके उन्हें यह समझाया की कैसे कृष्णभावना ही जीव की वास्तविक भावना है। उन्होंने विश्व की सबसे बड़ी आध्यात्मिक पुस्तकों की प्रकाशन संस्था- भक्तिवेदांत बुक ट्रस्ट- की स्थापना भी की। कृष्णभावना के वैज्ञानिक आधार को स्थापित करने के लिए उन्होंने भक्तिवेदांत इंस्टिट्यूट की भी स्थापना की। . हरे कृष्ण मंत्र कलि संतारण उपनिषद में वर्णित एक मंत्र है जिसे वैष्णव लोग 'महामन्त्र' कहते हैं। १५वीं शताब्दी में चैतन्य महाप्रभु के भक्ति आन्दोलन के समय यह मंत्र प्रसिद्ध हुआ। यह मंत्र निम्नलिखित है- श्रेणी:हिन्दू धर्म.
अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद और हरे कृष्ण (मंत्र) के बीच समानता
अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद और हरे कृष्ण (मंत्र) आम में 0 बातें हैं (यूनियनपीडिया में)।
सूची के ऊपर निम्न सवालों के जवाब
- क्या अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद और हरे कृष्ण (मंत्र) लगती में
- यह आम अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद और हरे कृष्ण (मंत्र) में है क्या
- अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद और हरे कृष्ण (मंत्र) के बीच समानता
अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद और हरे कृष्ण (मंत्र) के बीच तुलना
अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद 20 संबंध है और हरे कृष्ण (मंत्र) 2 है। वे आम 0 में है, समानता सूचकांक 0.00% है = 0 / (20 + 2)।
संदर्भ
यह लेख अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद और हरे कृष्ण (मंत्र) के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें: