अफ़्रीका और भूमध्य द्रोणी के बीच समानता
अफ़्रीका और भूमध्य द्रोणी आम में 4 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): भूमध्यसागरीय जलवायु, ज़ैतून, वनस्पति, ग्रीष्म ऋतु।
भूमध्यसागरीय जलवायु
भूमध्य जलवायु (mediterranean climate) वह जलवायु है जो भूमध्य द्रोणी क्षेत्र में व्यापक है। भूमध्य सागर के अलावा कैलिफ़ोर्निया के तटवर्ती क्षेत्र, पश्चिमी और दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया के कुछ क्षेत्र, दक्षिणपश्चिमी दक्षिण अफ़्रीका और मध्य चिली में भी इस प्रकार की मौसमी परिस्थितियाँ मिलती हैं। इन इलाक़ों में हलकी ठंड व वर्षा वाली शीतऋतु और मध्यम गरमी वाली व शुष्क ग्रीष्मऋतु होती है। .
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ज़ैतून
ज़ैतून के फल यूनान में ज़ैतून के वृक्ष ज़ैतून अँग्रेजी नाम ओलिव (olive), वानस्पतिक नाम 'ओलेआ एउरोपैआ', (Olea europaea); प्रजाति ओलिया, जाति थूरोपिया; कुल ओलियेसी; एक वृक्ष है, जिसका उत्पत्तिस्थान पश्चिम एशिया है। यह प्रसिद्ध है कि यूनान के ऐटिका (एथेंस) प्रांत की पहाड़ियों में, चूनेदार चट्टानों द्वारा बनी हुई मिट्टी में, ज़ैतून के वृक्ष सर्वप्रथम पैदा किए गए। ये अब भूमध्य सागर के आस-पास के देशों, जैसे स्पेन, पुर्तगाल, ट्यूनीशिया और टर्की आदि में भली भाँति पैदा किए जाते हैं। यूनान के पर्वतीय प्रांतों में ज़ैतून की खेती व्यापारिक अभिप्राय से की जाती है। अफ्रीका के केप उपनिवेश, चीन तथा न्यूज़ीलैंड में भी इसकी खेती सफलता पूर्वक की जाती है। अमरीका के कैलिफोर्निया प्रांत में ज़ैतून के बाग लगाए गए हैं। यूरोप में ज़ैतून के दो प्रकार के वृक्ष पाए जाते हैं। एक जंगली काँटेदार और दूसरा बिना काँटे का होता है। जंगली वृक्ष छोटा या झाड़ी की भाँति होता है और उसकी डालियों पर काँटे होते हैं। पत्तियाँ विपरीत, दीर्घवत् और नुकीली होती हैं। इसके पुष्प सफेद होते हैं तथा प्रत्येक पुष्प में चार विदरित बाह्यदलपुंज (calyx) तथा दलपुंज (corolla), दो पुंकेसर तथा द्विशाख वर्तिंकाग्र (stigma) होते हैं। बागों में लगाए गए वृक्ष ऊँचे, सुगठित और बिना काँटे के होते हैं। इनकी कई किस्में हैं। इस वृक्ष के फल से व्यापारिक महत्व का तेल प्राप्त किया जाता है। इसके फल में सूखे पदार्थ के आधार पर 50 से 60 प्रति शत तक तेल रहता है। इसे भली भाँति कुचल कर, दबाकर या दाबक से तेल निकालते हैं। फल का अचार बनाया जाता है। ये तिक्त होते हैं। नमक के पानी मे फल का रखने स तिक्तता दूर हो जाती है। ज़ैतून के नए पौधे कलम द्वारा प्राप्त किए जाते हैं। प्रौढ़ डालियों के 6 इंच के टुकड़े काट कर अक्टूबर या रवरी में कर्तन (Cutting) लगाते हैं। जब जड़ें निकल आती हैं तब उन्हें रोपण क्यारी में लगा देते हैं। दो वर्ष बाद स्थायी स्थान में 30-40 फुट की दूरी पर लगा कर बाग तैयार करते हैं। 5 वर्ष बाद वृक्ष फल देने लगते हैं। सर्वाधिक फल 15-20 वर्ष की अवस्था होने पर ही प्राप्त होते हैं। प्रति वर्ष वृक्षों की डालियों की कटाई-छँटाई की जाती है। नाइट्रोजन की खाद इसके लिय सबसे उपयोगी है। .
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वनस्पति
पेड़-पौधों या वनस्पतिलोक का अर्थ है, किसी क्षेत्र का वनस्पति जीवन या भूमि पर मौजूद पेड़-पौधे और इसका संबंध किसी विशिष्ट जाति, जीवन के ऱूप, रचना, स्थानिक प्रसार, या अन्य वानस्पतिक या भौगोलिक गुणों से नहीं है। यह शब्द फ्लोरा शब्द से कहीं अधिक बड़ा है जो विशेष रूप से जाति की संरचना से संबधित होता है। शायद सबसे करीबी पर्याय ''वनस्पति'' समाज है, लेकिन पेड़-पौधे शब्द स्थानिक पैमानों की विस्तृत श्रेणी से संबध रख सकता है, जिनमें समस्त विश्व की वनस्पति-संपदा समाविष्ट है। प्राचीन लाल लकड़ी के वन, तटीय सदाबहार वन, दलदल में जमने वाली काई, रेगिस्तानी मिट्टी की पर्तें, सड़क के किनारे उगने वाली घास, गेहूं के खेत, बाग-बगीचे-ये सभी पेड़-पौधों की परिभाषा में शामिल हैं। .
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ग्रीष्म ऋतु
ग्रीष्म ऋतु, वर्ष की छह ऋतओं में से एक ऋतु है, जिसमें वातावरण का तापमान प्रायः उच्च रहता है। साल की अन्य प्रमुख ऋतु हैं - शीत ऋतु, वर्षा ऋतु, वसन्त ऋतु। भारत में यह अप्रैल से जुलाई तक होती है। अन्य देशों में यह अलग समयों पर हो सकती है। ज्येष्ठ और आशाढ़ के महीने ग्रीष्म ऋतु के होते हैं। इन मासों में सूर्य की किरणें इतनी तेज होती हैं कि प्रातः काल में भी उन्हें सहन करना सरल नहीं होता। गर्मी इतनी अधिक होती है कि बार बार स्नान करने में आनंद आता है। शर्बत और ठंडा पानी पीने की इच्छा होती है। प्यास बुझाए नहीं बुझती। पानी जितना पिओ, उतना थोड़ा है। लू इतनी प्रचंड होती है कि उन्हें घर से बाहर निकलने का मन ही नहीं करता।गर्मियों में दिन लम्बे होते हैं और रातें छोटी। चलना फिरना भी इस मौसम में कष्टदायक हो जाता है। समय कटते नहीं कटता। मकान की दीवारें तक तप जाती हैं। पंखे भी गर्म हवा उगलने लगते हैं। कूलर के बिना गुजारा होना मुश्किल हो जाता है। गर्मी से हमें लाभ भी बहुत हैं। यदि गर्मी अच्छी पड़ती है तो वर्षा भी खूब होती है। गर्मी के कारण ही अनाज पकता है और खाने योग्य बनता है। ग्रीष्म ऋतु में गर्मी के कारण विषैले कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। इस ऋतु में आम, लीची आदि अनेक रसीले फल भी होते हैं। इनका स्वाद निराला होता है। भारत में सामान्यतया 15 मार्च से 15 जून तक ग्रीष्म मानी जाती है। इस समय तक सूर्य भूमध्य रेखा से कर्क रेखा की ओर बढ़ता है, जिससे सम्पूर्ण देश में तापमान में वृद्धि होने लगती है। इस समय सूर्य के कर्क रेखा की ओर अग्रसर होने के साथ ही तापमान का अधिकतम बिन्दु भी क्रमशः दक्षिण से उत्तर की ओर बढ़ता जाता है और मई के अन्त में देश के उत्तरी-पश्चिमी भाग में यह 48 सें.गे.
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अफ़्रीका और भूमध्य द्रोणी के बीच तुलना
अफ़्रीका 340 संबंध है और भूमध्य द्रोणी 9 है। वे आम 4 में है, समानता सूचकांक 1.15% है = 4 / (340 + 9)।
संदर्भ
यह लेख अफ़्रीका और भूमध्य द्रोणी के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें: